वर्ष २००८ दिल्ली की...
 
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वर्ष २००८ दिल्ली की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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उस लड़की की हालत खराब थी, वो तीन महीने अस्पताल में भर्ती थी, सूख कर काँटा हो चुकी थी, चेहरे की रौनक जा चुकी थी, मांस तो जैसे अस्थियाँ छोड़ रहा था, उसकी आँखें बंद थीं, सांस भी धीरे चल रही थी, सारे परिजनों को उसकी चिंता सताए हुए थी, उसको उसके कोमा से होश तो आ चुका था लेकिन अभी कुछ नहीं कहा जा सकता था, डॉक्टर्स के अनुसार अभी उस से खतरा टला नहीं था, उनके अनुसार उसका रक्त पानी बने जा रहा था, ये बात उनकी समझ में नहीं आ रही थी, ऐसा उसे कोई रोग भी नहीं था जिस वजह से उसको ऐसी कोई समस्या हो! इसी चिंता में सभी परिवारजन एक अनजान भय से पीड़ित थे, क्या हुआ है उस लड़की को, ये किसी की भी समझ में नहीं आ रहा था, उसका इलाज काफी संतोषजनक रूप से हो रहा था, पैसा पानी की तरह से बहाया जा रहा था, लेकिन दवा का असर दिख नहीं रहा था!

शिल्पा, ये नाम है उस लड़की का, उसकी उम्र उस समय मात्र बीस वर्ष ही होगी, मुझे उसके पुराने फोटो दिखाए गए, चुस्त-दुरुस्त, गठीले बदन वाली, गोल, मांसल चेहरे वाली ये लड़की तो जैसे अब एक तिहाई ही रह गयी थी! मुझे भी हैरत हुई! मुझे उसकी बीमारी के बारे में उसके मामा नवीन ने बताया था, उनके अनुसार लड़की को कोई बीमारी नहीं थी, अचानक से घर में बेहोश हुई और उसकी हालत फिर बिगडती ही चली गयी, फिर डॉक्टर्स ने बताया कि वो कोमा में चली गयी है, ये सुनकर सभी के सर पर पहाड़ टूट पड़ा! उस संयुक्त घर में चार परिवार थे शिल्पा के पिता रोहताश अपने भाइयों में तीसरे नंबर पर थे, अब चूंकि चारों भाइयों के संतान तो थी, लेकिन कन्या संतान मात्र रोहताश के ही थी! शिल्पा उस पूरे परिवार में सबकी लाडली और दुलारी बेटी थी, शिल्पा का एक बड़ा भाई भी था, और इस तरह शिल्पा के चचेरे भाई कुल छह थे! छह भाइयों की अकेली बहन! इसी कारण से वो अपने ताऊ और ताई की प्यारी बेटी और सभी भाइयों की एक मात्र लाडली बहन थी! सभी उसका ध्यान रखते! उसके नाज-नखरे बर्दाश्त करते! लेकिन कभी उसको दुखी नहीं करते थे! अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि शिल्पा के बीमार होने से सभी पर क्या गुजर रही होगी!

शिल्पा के पिताजी व अन्य रिश्तेदार दिल्ली में रहा करते थे, पारिवारिक व्यवसाय सभी का एक ही था, ये रसायन बनाने का व्यवसाय था, कुल मिलाकर परिवार सुखमय था और किसी भी वस्तु की कोई कमी न थी, परिवार आधुनिक-विचारधारा वाला, वैज्ञानिक-दृष्टिकोण वाला था! लेकिन ऐसा भी नहीं था कि शिल्पा के इलाज के लिए कोई कमी छोड़ी गयी हो, दूर दूर से


   
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श्रीशः उपदंडक
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ओझे, गुनिये, तांत्रिक और मान्त्रिक बुलाये गए थे, लेकिन सभी उस विवश परिवार से पैसा लूट कर अपनी राह चलते बने! लाभ किसी से भी न हुआ!

इसी सिलसिले में शिल्पा के मामा जी मेरे एक जानकार के संपर्क में आये! मेरे जानकार ने उनको मेरे पास भेजा था, मैंने उनकी सारी समस्या सुनी और फिर मैंने शिल्पा की माँ अथवा पिता जी से मिलने की इच्छ ज़ाहिर की, उसके मामा जी मान गए और फिर अगले दिन शिल्पा के पिता जी मेरे पास आ अगये, चेहरे पर मुर्दानगी छाई हुई थी, चिंताओं ने जैसे मकड़-जाल बना दिया था, मैंने उनसे पूछा, “अब शिल्पा कैसी है?”

“कोई फर्क नहीं है जी” उन्होंने बताया,

“कोमा से तो बाहर आ गयी है न?” मैंने पूछा,

“हाँ जी, लेकिन मुझे तो कोई बदलाव नहीं दिख रहा” उसके पिता जी ने मायूसी से कहा,

“रोहताश साहब, उसके हुआ क्या था?” मैंने पूछा,

“मुझे याद है वो दिन जब वो कॉलेज से आई थी, आते ही लेट गयी, फिर उलटी की उसने फिर बिस्तर पर बेहोश हो गयी” उसने पिता जी ने बताया,

“तब आप उसे अस्पताल ले गए” मैंने कहा,

“हाँ जी” वो बोले,

“तब उसे होश था?” मैंने पूछा,

“नहीं जी, उस दिन के बाद से कभी होश नहीं आया उसे” अब वो रो पड़े,

“एक बात बताइये, जब वो घर पर आई थी कॉलेज से तो उसने कुछ बताया था? कोई शिकायत की थी स्वास्थय के लिए?” मैंने पूछा,

“नहीं जी, वो आई, सीधा गुसलखाने गयी, उल्टियां की फिर बिस्तर पर लेट गयी और बेहोश हो गयी” उन्होंने बताया,

फिर काफी प्रश्न किये मैंने उनसे, लेकिन कोई भी उत्तर नहीं मिला जो कुछ बता सकता, इसीलिए मैंने उनको वापिस भेज दिया और अगले दिन स्वयं शिल्पा को देखने का निर्णय किया!

 


   
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श्रीशः उपदंडक
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मै अगले दिन अस्पताल पहुंचा जहां वो दाखिल थी, वहाँ उसके परिजन चिंतित खड़े थे, मै वहाँ आया तो उन्होंने मुझे किसी भी गंभीरता से नहीं लिया, उसका कारण था, मुझसे पहले जो भी आये थे वो कुछ नहीं कर सके थे, मै अन्दर गया नवीन और शर्मा जी के साथ, शिल्पा बेहोश पड़ी थी, मै उसको गौर से देखा, उसके माथे और गर्दन पर बारीक बारीक रेखाएं दिख रही थीं, मैंने नवीन से कहा कि शिल्पा की माँ से कहें कि वो शिल्पा का पेट देखें, नाभि से नीचे, क्या कोई निशान आदि हैं वहाँ पर, या फिर ऐसी ही कुछ रेखाएं हैं? मै और शर्मा जी बाहर गए, नवीन ने शिल्पा की माँ से वैसा ही देखने के लिए कह दिया, उन्होंने देखा और फिर बताया कि हाँ उसके पेट पर आड़ी-तिरछी रेखाएं हैं! अब मै समझ गया! ये धीमा-मारण है, इस मारण में छह से आठ माह का समय लगता है, चाक़ू की जगह सुईं काटा जाता है! और इस तरह का मारण पहाड़ी-मारण होता है, ये उत्तरांचल में चलता है, लेकिन इसकी निकास असम ही है! इसमें देह पर बारीक बारीक रेखाएं उभर आती हैं, जो स्वतः ही समाप्त हो जाती हैं, कोई शक नहीं कर सकता, अब जो भी ये मारण कर रहा था वो बहुत सधा हुआ मारण कर रहा था! अब मैंने निर्णय लिया कि इस मारण को यहीं रोका जाना चाहिए, ताकि और अधिक नुकसान न हो सके और मारण करने वाले को पता भी न चल सके!

तब मैंने एक धागा बनाया, उसको अभिमंत्रित किया और उसे शिल्पा कि माँ को दे दिया ताकि वो उस धागे को शिल्पा की कमर में पहना सकें, उन्होंने वो धागा शिल्पा की कमर में बाँध दिया, तब मै और शर्मा जी बाहर खड़े थे, हमे आधा घंटा ही हुआ था कि शिल्पा की आँखें खुल गयीं! मारण रुक गया था, अभिमन्त्रण ने अपना काम कर दिया था! आँखें खोलते ही शिल्पा को डॉक्टर्स ने आके घेर लिया और उसकी गहन जांच करने लग गए, मै तब तक शर्मा जी के साथ बाहर ही खड़ा रहा, डॉक्टर्स अपने हिसाब से उसकी जांच कर रहे थे, उनका अपना काम था ये, शिल्पा अभी आँखें खोल के तो लेटी थी लेकिन बोल कुछ नहीं रही थी, डॉक्टर्स और उसके परिजन लगातार उस से उसका नाम पूछ रहे थे, लेकिन वो भाव-हीन थी, थोड़ी देर बाद जब डॉक्टर्स चले गए तब मै अन्दर गया, मेरे साथ शर्मा जी और नवीन भी थे, मैंने शिल्पा को देखा वो छत की ओर देख रही थी, स्पष्ट था तीन-चौथाई मारण ने उसके तंत्रिका-तंत्र को भेद डाला था, तब मैंने शिल्पा की माँ को देखा, आँखों में आंसूं लिए वो बेचारी उसे ही देखे जा रही थीं! मुझे दया आई! मैंने कहा, “माता जी, घबराइये नहीं, अब कुछ नहीं होगा शिल्पा को, जो कुछ था वो मैंने देख लिया है, मै इसको कल ही घर भिजवा दूंगा यदि आप राजी हों तो”

उन्होंने अपने दोनों हाथ जोड़े और फिर बोलीं,”ये बोल भी नहीं रही है, क्या हो गया मेरी बेटी को”

“आप चाहती हैं कि ये अभी बोल के दिखाए आपको?” मैंने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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मेरी बात सुन उनको हैरानी सी हुई और फिर सीत्कार फूट पड़ी उनकी, मैंने एक मंत्र पढ़ा और उसको शिल्पा के माथे पर अभिमंत्रित कर दिया, और फिर मैंने उस से पूछा, “नाम क्या है तुम्हारा?”

“शिल्पा” उसने बताया,

इतना सुनके सभी के होश उड़ गए! मारे ख़ुशी के आंसू निकल पड़े, नवीन भागे भागे गए सभी को बताने! सभी अन्दर आ गए! सभी उस से उसका नाम पूछने लगे! लेकिन उसने किसी को अपना नाम नहीं बताया! सभी ने मुझे देखा, मै समझ गया कि वो चाहते हैं कि मै उस से उसका नाम पूछूं! मैंने उस से उसका नाम पूछा, “मुझे अपना नाम दुबारा बताओ?”

“शिल्पा” उसने बताया,

“घर जाना चाहोगी?” मैंने पूछा,

“हाँ” उसने कहा, लेकिन आँखें नहीं मिलाईं उसने!

इतना सुनकर तो वहाँ रोना-धोना शुरू हो गया! उन्हें तो जैसे यकीन ही नहीं हुआ! तब मै और शर्मा जी वहाँ से बाहर आ गए! शिल्पा का बड़ा भाई भागा भागा डॉक्टर्स को बुलाने! और तब शिल्पा की माँ और बाप मेरे पास आये और मेरे पाँव पड़ने लगे, मैंने उनको ऊपर उठा लिया और कहा, “अब आप न घबराइये! शिल्पा अब ठीक हो जायेगी!”

अश्रुपूरित नेत्रों से उन्होंने मेरा धन्यवाद किया और फिर कहा, “बचा लीजिये मेरी बेटी को गुरु जी!”

“आप अब चिंता न करें, बुरा समय समाप्त हुआ” मैंने कहा,

तब तक डॉक्टर्स भी अपनी रिपोर्ट ला चुके थे, रिपोर्ट में आया कि उसका तंत्रिका-तंत्र अब पुनः संतुलित होने वाला है, फिर वो ठीक हो जायेगी!

 

अब मै वहाँ से वापिस आया, मैंने नवीन से कह दिया था कि मै दुबारा अवश्य ही आऊंगा, मै ये जानना चाहता था कि इस लड़की से किसी कि क्या दुश्मनी हो सकती है? कहीं कोई प्रेम-प्रसंग तो नहीं? मै दिन भर इन्ही ख़यालों में उलझा रहा, वहाँ अस्पताल से खबर लगातार आ रही थी कि शिल्पा की हालत में लगातार सुधार होता जा रहा है और अब वो धीमे धीमे बातें भी करने लगी है! डॉक्टर्स के साथ ही साथ सारे परिजन अब खुश थे! अब वो अनजाना भय धीरे धीरे रिसने लगा था! शिल्पा के पिता जी का लगातार फ़ोन आ रहा था, धन्यवाद करते करते और


   
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श्रीशः उपदंडक
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आभार स्पष्ट करते करते उनका गला सूखे जा रहा था! मैंने उनको बताया कि मै कल आऊंगा उनके पास दोपहर से पहले, अभी मेरा काम शेष है!

मैंने तब पास बैठे शर्मा जी से पूछा,” शर्मा जी, इस उम्र की एक छोटी सी लड़की से किसी का क्या बैर हो सकता है?”

“गुरु जी, आजकल का समय बहुत खराब है, जो व्यक्ति ऊपर से सीधा दीखता है, वो अन्दर से रुक्ष होता है, इस से किसी का कोई न कोई बैर तो है ही” वो बोले,

“हाँ, ये तो है, लेकिन क्या आपने कोई प्रेम-प्रसंग के कोण के बारे में सोचा?” मैंने संशय से पूछा,

“हो भी सकता है, मै नवीन से अभी मालूम कर लेता हूँ” उन्होंने कहा और नवीन को फ़ोन मिला दिया, शर्मा जी ने नवीन से भी यही प्रश्न किया, जवाब में अपना फ़ोन नवीन ने शिल्पा के पिता जी को पकड़ा दिया, शिल्पा के पिता ने कहा कि उनके संज्ञान में अभी तक ऐसी कोई बात नहीं आई थी, और वो शिल्पा की माँ से पूछ के अभी फ़ोन कर रहे हैं, अगर उनको पता हो या शिल्पा ने कभी बताया हो तो,

“शर्मा जी, एक बात गौर करने वाली है, ये जो भी मारण कर रहा है, बड़े सीधे एवं सधे तौर से कर रहा है, किसी को भनक भी नहीं लग सकती” मैंने कहा,

“हाँ, यदि वो इसको मारना चाहता है और उसका उद्देश्य इसे मारना ही है तो वो उसे अब तक मार ही देता, लेकिन तीन महीने तक भी मारा नहीं?” वो बोले,

“हाँ, अब यहाँ मामला अटक जाता है” मैंने बताया,

“हाँ, यही से आगे का कोई सूत्र हाथ में आएगा” वो बोले,

“ठीक है मै मालूम कर लेता हूँ, कि इसके पीछे है कौन?” मैंने कहा,

“हाँ आप मालूम कीजिये” वो बोले,

इतने में शिल्पा के पिताजी का फ़ोन आ गया उन्होंने बता दिया कि शिल्पा की माँ के अनुसार शिल्पा का कोई प्रेम-प्रसंग नहीं था, परन्तु सारी बात स्वयं शिल्पा ही बता सकती थी, लेकिन वो अपनी कमजोरी के साथ इस हाल में नहीं थी अभी, फिर मैंने शिल्पा की तबियत का हाल बताते रहने को कह दिया!


   
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श्रीशः उपदंडक
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फिर रात आई, अब मै क्रिया में बैठने की तैयारी करने लगा, मैंने सारे सामान का बंदोबस्त कर लिया था, अतः मै रात्रि बारह बजे क्रिया में बैठ गया, मैंने अपना इबु-खबीस हाज़िर किया, उसको उसका भोग दिया और उसको उसका लक्ष्य और उद्देश्य बता दिया, इबु उड़ चला अपनी मजिल की और और इधर मै बेसब्री से इंतज़ार करने लगा उसके वापिस आने का! करीब आधे घंटे के बाद इबु वापिस आया, उसने मुझे सारी जानकारी दे दी!

हम जहां प्रेम-प्रसंग की अटकलें लगा रहे थे वैसा कुछ भी नहीं था, दरअसल ये व्यावसायिक-शत्रुता थी! शत्रुता जो कि रतन नाम के एक व्यवसायी ने निभायी थी! शिल्पा के पिता रोहताश से! दरअसल, ये रतन गुजरात में रहता था, इसकी भी अपनी फैक्ट्री थी गुजरात में, वहाँ ये चप्पलों के सोल बनाए करते थे, उसमे जो रसायन प्रयोग होता था वो रसायन रोहताश की फैक्ट्री से ही जाया करता था! रतन का काम अच्छा तो था, वो इनसे रसायन लेकर आगे दक्षिण भारत में भेज करता था और अच्छे पैसे भी बनाया करता था, लेकिन रोहताश का पैसा बकाया था इस रतन पर करीब नब्बे लाख रूपया, रोहताश ने उसको चेता भी दिया था कि उसको अब माल तभी मिलेगा जब वो आधा पैसा चुकता कर देगा, लेकिन रतन की एक बेटी बीमार थी, काफी बीमार और उसका कुछ पैसा दक्षिण भारत में भी बकाया था, अतः उसने रोहताश से गुहार लगाई की अगर वो उसको तीस लाख का माल भेज दें तो वो दो महीनों में पचास लाख चुकता कर देगा, लेकिन रोहताश नहीं माने और वो वहीँ अड़े रहे, अब हुआ ये कि रतन को माल नहीं मिला, उसकी बेटी के इलाज में काफी पैसा लग चुका था, दक्षिण भारत से पैसा आ नहीं रहा था, उसके लिए स्थिति दूभर हो गयी!

उसने फिर से रोहताश से गुहार लगाई, अपनी बीमार बेटी का हवाला दिया लेकिन रोहताश ने उसकी एक न सुनी और उसको मन कर दिया, अब रतन ने कुछ पैसे का इंतजाम किया, कुछ उधार आदि लिया और पच्चीस लाख रुपये लेकर वो दिल्ली आया, उसने वो पैसा रोहताश को दिया, लेकिन रोहताश ने बाकी के बीस लाख भी मांगे, रतन ने काफी मान-मुन्नव्त की लेकिन रोहताश ने माल नहीं भेजा उसको!

भारी दिल से रतन वापिस आया, बेटी करीब छह महीने से बीमार थी, उसको दिमागी-बुखार हो रखा था, और सातवें महीने उसकी बेटी की मौत हो गयी!

 

कहानी रतन की भी दुःखभरी थी, व्यापार चौपट तो था ही, अब बेटी की मौत ने उसे और आहत कर दिया, परेशान भटकता रहा रतन, तब जाकर उसके विवेक को पर्दा पड़ा और उसने रोहताश को भी ऐसा ही पाठ पढ़ाने और एक बाप का दुःख क्या होता है, ये जताने के लिए एक भयानक निर्णय ले लिया! जब विवेक साथ छोड़ जाता है, तब व्यक्ति दूसरे का तो क्या स्वयं


   
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श्रीशः उपदंडक
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अपना भी भला-बुरा नहीं समझ पाता यही हुआ उस रतन के साथ! रतन ये जानता था कि रोहताश का पूरा कुनबा घर में एक मात्र लड़की शिल्पा को बहुत प्यार करता है, सभी उस पर जान छिड़कते हैं, अतः उसने उसे ही मोहरा बनाया, रतन रोहताश के पारिवारिक आयोजनों में भी एक आद बार शामिल हुआ था, और उसके पास रोहताश और शिल्पा की पारिवारिक तस्वीरें भी थीं, अब उसने शिल्पा की तस्वीर काटी और लगा ढूँढने कोई योग्य तांत्रिक! वो कई तांत्रिकों से मिला लेकिन कोई योग्य नहीं मिला उसको! डेढ़ महिना बीत गया, तब उसको एक तांत्रिक मिला, ये था असमी बाबा! साठ साल का एक योग्य तांत्रिक! रतन उस से जाके मिला, उसने अपना सारा दुखड़ा रोया उसके सामने! असमी बाबा ने हर बात सुनी और उससे कह दिया की काम हो जाएगा, तुम्हारी बेटी की मौत सातवें महीने हुई थी अब इस रोहताश की बेटी की मौत भी सातवे महीने ही होगी! काम ऐसा होगा कि बड़े से बड़ा तांत्रिक भी उसको भांप नहीं पायेगा! असमी बाबा ने उस से शिल्पा की तस्वीर दे दी, बाबा ने उसको अब एक हफ्ते के बाद आने को कहा, रतन को कुछ सुकून हुआ बाबा की बातें सुनकर! उसे अपना बदला लेने का सपना साकार करना था और तब होगा उसको असली सुकून! लेकिन अब उसके इस असली सुकून को धक्का पहुँचने वाला था क्यूंकि अब मै बीच में आ गया था!

एक हफ्ते के बाद रतन वहाँ उस असमी बाबा के पास पहुंचा! कुल रकम पचास हज़ार तय हुई, आधी पहले और आधी काम होने के बाद! और उसी दोपहर उस असमी बाबा ने एक बकरा काट कर मारण-प्रयोग आरम्भ कर दिया! ये वो ही दिन था जब शिल्पा अपने कॉलेज से आई थी, उसको उल्टियां लगी थीं और फिर अपने बिस्तर पर लेट गयी थी! शाम को उसको भर्ती करा दिया गया था! डॉक्टर्स को कुछ समझ में नहीं आ रहा था! ये थी असली कहानी और उस मारण क्रिया का सच!

मैंने अपने इबु का शुक्रिया किया और खुश होके उसे और भोग दिया! इबु हंसा और वापिस चला गया!

अब मै बाहर आया, शर्मा जी अभी तक सोये नहीं थे, उनको जिज्ञासा थी, मै जैसे ही आया, उन्होंने प्रश्न किया, “कुछ पता चला?”

फिर मैंने क्रम से सारी बातें उनको बता दीं! उनकी भुजाएं भड़क गयीं और उस असमी बाबा को लगा दी गालियों की झाड!

“मेरे सामने आये तो साले का मै ही मारण कर दूंगा, उसी के ही सामने!” वो गुस्से से बोले!


   
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श्रीशः उपदंडक
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मुझे भी हंसी आई! लेकिन मैंने कहा, “सुनो शर्मा जी, जो धागा मैंने बाँधा है, वो ग्यारह दिन प्रभावी रहेगा, इसीलिए हमे तो सबसे पहले उस उस असमी बाबा को ढूंढना है, और उस से भी पहले वो मारण स्थान भी ढूंढना है, जहां से ये क्रिया चल रही है निरंतर”

“तो क्या आपको पता चला इस स्थान और उस बाबा के स्थान के बारे में?”

“नहीं अभी नहीं, मुझे पहले शिल्पा और शिल्पा के पिता से कुछ बातें करनी हैं, उसके बाद ही मै वहाँ का हल निकालूँगा” मैंने बताया,

“ठीक है, जैसी आपकी आज्ञा” उन्होंने कहा,

उसके बाद मै और शर्मा जी आगे की रणनीति बनाने को जुट गए! हल शीघ्र ही ढूंढना था, मै और अहित नहीं चाहता था उस लड़की का, मासूम शिल्पा का!

हम अगले दिन फिर से अस्पताल पहुंचे, वहाँ शिल्पा को देखा मैंने, अब वो नज़र तो मिला रही थी लेकिन जो बोल रही थी वो अस्पष्ट था, डॉक्टर्स के अनुसार वो सदमा-ग्रस्त थी, इसी कारण से ऐसा हो रहा था, लेकिन असलियत मै ही जानता था!

शर्मा जी ने शिल्पा के पिता को बुलाया एकांत में और सारी बातें पूछीं और बतायीं, उनके तो ये सुनके होश ही उड़ गए, हलक सूख गया, अंकों में आंसूं भी जम गए!

तब मैंने उनसे कहा, “क्या आपको मालूम है रतन की बेटी बीमार थी उन दिनों?”

“हाँ उसने बताया तो था मुझे” वो बोले,

“तब भी आपने उस पर दया नहीं दिखाई?” मैंने पूछा,

“उसने पूरे पैसे नहीं दिए थे, हमें भी हिसाब करना होता है” उन्होंने जवाब दिया,

“क्या आप जानते हैं, रतन की बेटी की मौत हो गयी?” मैंने अब धमाका किया,

“क्या?” उनको जैसे यकीन ही नहीं हुआ, वो धम्म से नीचे बैठे सोफे पर,

“अगर आप उसे माल दे देते तो उसकी बच्ची तो बच ही जाती, उसका रोजगार भी चल पड़ता” मैंने बताया,

उन्हें अब शर्मिंदगी हुई अपने ऊपर, चेहरे पर ग्लानि-भाव आये और बोले, “मुझे अगर वो बताता कि उसकी बेटी की हालत इतनी गंभीर है तो मै उसको माल तो देता ही, वो पैसे भी वापिस दे देता, लेकिन उसने मुझे बताया नहीं”


   
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श्रीशः उपदंडक
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उनके भाव और आंसूओं ने उनके पश्चाताप की गवाही दी!

 

मित्रगण! कभी कभार परिस्थितियाँ ऐसी हो जाती हैं की कहने वाला भी सही होता है और सुनने वाला भी! निर्णय नहीं हो पाता! समझदार व्यक्ति सहज रूप से सहनशीलता से अपने विवाद सुलझा लेते हैं, मूर्ख हाथापाई करते हैं और विक्षिप्त मनुष्य हत्या कर देते हैं अथवा करवा देते हैं! कुछ ऐसी ही परिस्थिति उस समय रतन और रोहताश की रही होगी, रतन अपना पक्ष सटीक रूप से रख नहीं पाया होगा और रोहताश ने सटीक रूप से समझा नहीं होगा!

जब रतन घर आया तो उस पर दोहरी विपत्ति टूट पड़ी थी, एक तो जिस पैसे का बंदोबस्त उसने किया था, वो उधार का था, बेटी बीमार थी, काम-धंधा चौपट था, अब बेटी की मृत्यु हुई, कारण कोई भी हो उसकी मृत्यु का, लेकिन रतन ने इस सबका ज़िम्मेदार रोहताश को ठहरा दिया! ये थी उसकी चूक! यहीं से उसके विवेक को उसके पुत्री-वियोग ने कुचलना आरम्भ किया था! अब उसको रोहताश अपना सबसे बड़ा शत्रु प्रतीत होने लगा था! तब जाके उसने वो निर्णय लिया था!

खैर, अब मै शिल्प के पास गया, मै उसको देख के मुस्कुराया, उसने अपने सूखे होंठों से मुस्कुराने की कोशिश की! अब मैंने शिल्पा के माथे पर हाथ फेरा और कहा, “शिल्पा मै अभी तुमसे कुछ पूछूंगा, ठीक है?”

उसने हाँ में गर्दन हिलाई अपनी!

“खाने में कौन सा फल अच्छा लगता है तुमको?” मैंने पूछा,

“सेब” उसने हंस के कहा,

“खाओगी?” मैंने पूछा,

“हाँ” उसने कहा,

तब मैंने टेबल पर रखा सेब उठाया और उसको मंत्र से पोषित कर दिया! ये मंत्र सुभाल-मंत्र होता है, मृतप्राय: में भी जीवन संचार कर देता है!

अब मैंने वो सेब उसकी माँ को दिया और कहा, “चाहे एक टुकड़ा ही खाए लेकिन इसे खिला दो”


   
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श्रीशः उपदंडक
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उन्होंने तभी सेब छीला और शिल्पा को खिला दिया! मंत्र ने अचूक प्रभाव किया! उसके शरीर और जिव्हा की लरजता समाप्त हो गयी उसी क्षण! उस समय पहली बार शिल्पा सामान्य दिखाई दी!

“शिल्पा, अब मै जा रहा हूँ, और जब मै वापिस आऊंगा तो तुम इस बिस्तर पर नहीं लेटी मिलोगी मुझे! और हाँ, अपने घर चलने की तैयारी कर लो अब!” मैंने मुस्कुरा के कहा,

मेरी ये बात सुन वहाँ सभी की आँखें नम हो गयीं! अब मै वहाँ से शर्मा जी के साथ बाहर आ गया!

मेरे पीछे पीछे शिल्पा के माँ और पिता जी भी आ गए और उसके मामा नवीन भी, शिल्पा के पिता जी ने अपनी नम आँखों से मुझे देखा और कहा, “गुरु जी, आपका ही सहारा है, हम खुशनसीब है जो आप आ गए, नहीं तो मेरी बच्ची शिल्पा…………..” और वो रो पड़े,

“चिंता न कीजिये आप लोग अब, अब शिल्पा बिलकुल ठीक हो जायेगी!” मैंने उन्हें विश्वास दिलाया!

और उसके बाद मै वापिस आ गया अपने स्थान पर!

शर्मा जी ने पूछा, “गुरु जी, आज मालूम करोगे वो दो ठिकाने?”

“हाँ शर्मा जी” मैंने कहा,

“गुरु जी, उस हराम के जाने अस्मि बाबा को मेरे सामने छोड़ देना एक बार, साले की माँ को रंXXX बना दूंगा!” वो गुस्से से बोले!

“ठीक है, आपको भी अवसर मिलेगा!” मैंने कहा,

“बताओ, साले कैसे कैसे कमज़र्फ लोग है दुनिया में!”

“देख लो शर्मा जी!” मैंने कहा,

“ऐसे आदमियों की तो रस्सी डाल कर और मुंह से निकाल कर पेड़ पे लटका देना चाहिए!” उन्होंने कहा!

उनकी ये बात सुन मुझे हंसी आ गयी!

मै फिर रात को बैठा क्रिया में! अब मेरे दो उद्देश्य थे, एक तो ये कि वो असमी बाबा है कहाँ और वो स्थान कहाँ है जहां से ये मारण क्रिया कहाँ से चलायमान है? मैंने समस्त सामग्री समक्ष रखी


   
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श्रीशः उपदंडक
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और फिर मैंने अपना तातार-खबीस हाज़िर किया! वो हाज़िर हुआ और फिर मैंने उसको उसका भोग दिया! उसने भोग लिया और अपने उद्देश्य जान उड़ चला! मै वहीँ बैठ गया! करीब एक घंटे के बाद वो वापिस आया और उसने मुझे मेरे सवालों की जानकारी दी! असमी बाबा गुजरात के पाटण जिले के नवदुर्गा नगर में है और ये क्रिया वहाँ से तेइस किलोमीटर दूर से संचालित हो रही है! ये एक अहम् जानकारी थी! यहीं तो प्राण थे इस शिल्प के! मै आज तक कभी पाटण नहीं गया था! मुझे वहां की कोई जानकारी नहीं थी, मै अपने खबीस के भरोसे ही था! मै अपने खबीस से खुश हुआ और उस फिर वापिस भेजा! जाने से पहले मैंने उसको दुबारा से भोग दिया!

मै बाहर आया, मैंने शर्मा जी को इस विषय में बता दिया, उन्होंने ये जानकारी अपनी डायरी में लिख ली और फिर मै स्नान कर सोने चला गया!

सुबह उठे तो सबसे पहले शर्मा जी ने नवीन से कहा की हमको पाटण जाना है आज ही, आप टिकेट बुक कराइये जल्दी से जल्दी! नवीन ने ये शिल्प के पिता जी से कहा, तो पता चला रतन भी वहीँ पाटण का ही रहने वाला है! ये भी जानकारी अहम् थी! खैर उन्होंने टिकेट बुक कराने के लिए कह दिया और मै यहाँ अपनी तैयारियों में जुट गया! मैंने अपने सारे मंत्र, वस्तुएं, तंत्राभूषण जागृत किये और अपने बैग में रख लिए!

हम ग्यारह बजे दिन में नवीन के घर पहुंचे, पाटण जाने के लिए, मै, शर्मा जी और नवीन तैयार हुए थे! और उसी दिन हम पहले अहमदाबाद पहुंचे दिल्ली से, वहाँ से एक गाडी ली किराए पर और पाटण आ गए!

 

हम पाटण पहुच गए थे, टैक्सी वाले को उसका पैसा दे वापिस भेजा, अब एक कमरा लिया, थकावट तो नहीं हुई थी लेकिन आगे की योजना पर अमल करना था, इस से पहले कि वो असमी बाबा कुछ करता, मै अपना कार्य करना चाहता था,वो भी उसको बिना पता लगे, इसीलिए मैंने उसको अभी तक छेड़ा नहीं था! वहाँ दिल्ली से खबर आ रही थीं, शिल्पा की तबियत में लगातार सुधार हो रहा था! अब वो बैठने भी लगी थी! खाना भी खाने लगी थी! ये ख़ुशी की बात थी! दिन के पांच बजे थे, मैंने कमरे से शर्मा जी और नवीन को बाहर जाने को कहा और अपना खबीस हाज़िर किया! खबीस ने अब एक माकूल पता दिया वहाँ का जहां से ये क्रिया चलायमान थी! खबीस के बताये अनुसार ये जगह यहाँ से कोई सत्ताइस किलोमीटर दूर थी! ये जगह एक शमशान के पास थी, एक खाली पथरीली जगह! असमी बाबा ने ये जगह चुनी थी! बाबा होशियार था, जानकार था लेकिन अपने ऊपर आने वाली विपत्ति से बेखबर था! मैंने तभी शर्मा जी और नवीन को बुलाया और हम फिर उस जगह के लिए निकल पड़े! मेरे 


   
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श्रीशः उपदंडक
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खबीस ने जो बताया था हम उसी राह चले, मैंने टोर्च और आदि सामग्री ले ली थी! हमने फिर से एक टैक्सी किराए पर ली और वहाँ के लिए रवाना हो गए! आधे घंटे में वहाँ पहुँच गए! वहाँ अँधेरा घिरने लगा था, इक्का-दुक्का लोग ही वहाँ नज़र आ रहे थे, हम एक खाली जगह की तरफ गए, मैंने वहाँ शर्मा जी और नवीन को अलग किया और खबीस को हाज़िर किया, खबीस ने वो जगह बता दी!

अब मै वहाँ गया! यहाँ मरे हुए जानवर पड़े थे, बदबू के मारे कै आने लगी थी! जी उचाट हो गया था! नवीन ने तो उलटी ही कर दी! मैंने नवीन को वापिस भेज दिया! अब मैंने सामने देखा, टोर्च जलाई, सामने एक ढाक का बड़ा सा पेड़ खड़ा था! और उस पर टंगा था एक बोरा! बोरे में से जीव-द्रव्य बाहर टपक रहा था, बोरे को मजबूती से लोहे की तार से बाँधा गया था! बड़ी भयानक बदबू थी वहाँ! बोरा फटने को तैयार था! उस बोरे में कम से कम सौ से अधिक सुईं घुसेड़ी गयी थीं! ये वही सुईं थीं जिनसे शिल्पा का मारण किया जा रहा था! मैंने उस बोरे में पास से उठायी हुई एक लकड़ी को एक दग्ध-मंत्र पढ़ते हुए, उस बोरे में घुसेड़ दिया! जीव-द्रव्य की पिचकारियाँ छूट पड़ीं! फिर मैंने उस बोरे को उस लकड़ी से छेद डाला! बोरे के अन्दर का सारा कचरा नीचे ज़मीन पर गिरा! मैंने टोर्च की रौशनी में देखा, उसमे सड़ा हुआ मांस, लोथड़े और उस शिल्पा का एक फोटो मिला, एक पन्नी में लिपटा हुआ! फोटो सीलन खा गया था! मैंने उसे उसी कचरे में डाला और फिर उस पर मूत्र-त्याग किया और मारण-भंजन मंत्र पढ़े! मारण समाप्त हुआ! मारण का प्रभाव समाप्त कर दिया गया था! मै पसीने और वहाँ की गर्मी से भीग गया था! उस कचरे में बर्रों ने अपने अंडे दे रखे थे! सैंकड़ों बर्रे उड़े वहाँ से!

“लो शर्मा जी, काम ख़तम! शिल्पा के प्राण छूट गए यहाँ से!” मैंने वहीँ बैठते हुए कहा!

“गुरु जी! ये बहुत अच्छा हुआ! महान हो आप!” शर्मा जी ने कहा,

“नहीं शर्मा जी! उस बच्ची के प्राण बच जाएँ तो मै अपने आपको धन्य मानूंगा!” मैंने कहा,

“गुरु जी, अब तो निश्चित ही बच गए! बच गयी शिल्पा!” उन्होंने मुझे उठाते हुए कहा,

मै उठा और शर्मा जी का हाथ पकड़ के वहाँ से बाहर आ गया! अब अगर असमी चाहता तो भी कुछ नहीं कर सकता था!

हम वहाँ से वापिस आये! नवीन की उल्टियां अभी तक थमी नहीं थीं! तब उसने कुछ दवाइयां ले लीं!

मै और शर्मा जी फिर स्नान करने गए और फिर बाद में हमने भोजन किया! मदिरापान भी किया! तत्पश्चात हम सो गए!


   
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श्रीशः उपदंडक
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हम सुबह उठे! सुबह उठे तो एक आनंद वाली खबर आई हमारे पास! शिल्पा अब ठीक हो गयी थी! मात्र शारीरिक कमजोरी ही थी उसे! इस से मुझे परम शान्ति का आनंद प्राप्त हुआ! अब मेरा एक कार्य और शेष था! असमी बाबा को सबक सिखाना!

 

रात्रि-समय मैंने कुछ और तैयारियां कीं, अब मेरा लक्ष्य था उस असमी बाबा को ढूंढना और उस से मिलना, उसका सबक भी सिखाना था! और फिर रतन से भी मिलना था! रात्रि-समय हमने आराम किया और आगे की नीति तैयार की!

सुबह उठे, दैनिक-कार्यों से निवृत हुए, और फिर मैंने शर्मा जी और नवीन को बाहर भेजा, और अपना खबीस हाज़िर किया, खबीस हाज़िर हुआ, मैंने उसको उस असमी बाबा का पता निकालने के लिए भेजा, खबीस गया और शीघ्र ही वापिस आ गया! उसने मुझे एक दम सटीक जानकारी दी! ये जानकारी मैंने शर्मा जी को दे दी और उन्होंने ये जानकारी एक कागज़ पर लिख ली! अब हम होटल से बाहर निकले, हमने फिर से एक टैक्सी किराए पर ली और चल पड़े उधर जहां इस मारण का मुख्य अपराधी था अर्थात असमी बाबा! हम करीब डेढ़ घंटे में वहाँ पहुंचे, ये जगह पुरानी धुरानी सी थी, यहाँ देखते ही पता चलता था कि कोई शरीफ आदमी यहाँ तक शायद ही आता हो!

हम वहाँ गए, जंगली पेड़ लगे हुए थे, ज़मीन ऊंची नीची सी थी वहाँ, कुछ तिलकधारी आदमी भी थे वहाँ लेकिन साधू कोई न था, वो हमको पीछे मुड मुड कर देखते थे, लेकिन हम अपनी राह चलते रहे! काफी आगे आये, मैंने जानकारी वाला कागज़ निकाला, और फिर वहाँ से दायें मुड गया, दायें मुड़ते ही एक कच्चा सा रास्ता दिखाई दिया, हम इसी पर चल दिए, वहाँ सामने से दो औरतें आती दिखाई दीं, मैंने उनमे से एक से पूछा कि ये असमी बाबा कहाँ है तो उन्होंने बता दिया, बस अब हमारे सामने हमारी मंजिल थी! हम आगे गए! हमारे सामने एक जगह आई, जैसे कोई पुरानी सी धर्मशाला, हम इस से घूमके अन्दर की तरफ चले, पीले रंग की दीवारों पर काई लगी थी, काफी पुराने किस्म की धर्मशाला सी थी ये! अन्दर आये तो कही कहीं चूल्हा जल रहा था, लग रहा था जैसे खानाबदोश लोगों ने डेरा डाला हो वहाँ!

सामने से आते एक लड़के से असमी बाबा के बारे में पूछा, उसने बताया कि आगे जाने पर बाएं हाथ पर एक कमरा है, वहीँ है वो, हम वहीँ चले, उस कमरे के सामने आ गए! अन्दर एक तख़्त पर बाबा बैठा हुआ था, यही असमी बाबा! नीले रंग का चोगा पहने, माथे पर त्रिपुंड बनाए! हाथों और पाँव में कड़े पहने! सर पर कपडा बांधे! उम्र होगी कोई पचपन या साठ साल! भगौड़ा-औघड़ सा लगता थे वो!


   
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श्रीशः उपदंडक
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उसके सामने तीन औरतें बैठी हुईं थीं! हम अन्दर आये! तीनों औरतें खड़ी हुईं और बाहर चली गयीं! बाबा खड़ा हुआ और बोला,”आइये, किसने भेजा आपको यहाँ?”

“आपका नाम कौन नहीं जानता बाबा!” शर्मा जी ने कहा,

अपनी तारीफ़ सुनकर बाबा ने अपना चिमटा खड़खड़ाया!

“आइये, बताओ क्या काम है इस बाबा से?” उसने अपनी सफ़ेद दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए कहा,

“काम तो बहुत है बाबा, बहुत काम!” शर्मा जी ने हाथ जोड़ते हुए कहा!

बाबा ने सोचा के कोई मोती ही मुर्गी फंस गयी जाल में!

“बताओ, क्या काम है? व्यापार में रुकावट है, बीवी से झगडा है, कोई प्रेमिका का मामला है?” बाबा ने आँखें झपकाते हुए कहा, मुस्कुराते हुए!

“बाबा, मामला इस से भी ज्यादा गंभीर है” शर्मा जी ने कहा,

“किसी को मारना है क्या?” वो गंभीर होते हुए बोला,

“हाँ बाबा, अब कैसे कहूँ?”” शर्मा जी ने कहा,

“अरे बेहिचक कहिये आप!” बाबा ने कहा,

“पता नहीं आप ऐसा काम करते हो भी कि नहीं?” शर्मा जी ने कहा,

“करता हूँ मै! मेरा मारा पानी नहीं मांग सकता, केवल मौत मांगता है!” बाबा ने अपनी जांघ पर हाथ मारते हुए कहा!

“अच्छा बाबा! फिर तो काम बन जाएगा!” शर्मा जी ने कहा,

“हाँ, ज़रूर बनेगा!” उसने कहा,

“ठीक है बाबा! मै बताता हूँ, ये जो मेरे साथ आये हैं न, इनका नाम है नवीन, इनकी भांजी बीमार है, हमको लगता है कि उसके ऊपर भी कुछ करवाया गया है, तो ये उस आदमी को जानते हैं, जिसने वो काम करवाया है, अब ये चाहते हैं कि आप उसका काम तमाम कर दें!” शर्मा जी ने कहा,

बाबा कुछ समझ न सका, बोला,”अच्छा! नाम तो बताओ उसका?”


   
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श्रीशः उपदंडक
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“रतन नाम है उसका, यहीं रहता है पाटण में” अब शर्मा जी खड़े हुए!

 

“रतन?” अब बाबा चौंका!

“क्यूँ बाबा? ये नाम सुना है क्या आपने?” शर्मा जी ने पूछा,

“हाँ ……………..हाँ ….. सुना सा लग रहा है” बाबा झेंपते हुए बोला,

“वो आता है क्या यहाँ?” शर्मा जी ने पूछा,

“हाँ….आया तो था…” बाबा अब घबरा के बोला,

“किसलिए आया था साला यहाँ?” शर्मा जी ने गुस्से से पूछा,

अब बाबा चुप हो गया! उसको मामला समझ आने लगा था!

“ओ बाबा, तेरी माँ की ****! ये बता, वो साला क्यूँ आया था वो यहाँ?” अब शर्मा जी आये ताव में!

बाबा ने गाली सुनी तो खड़ा हो गया! बोला, “ये क्या बदतमीजी है?”

“मै बताता हूँ क्या बदतमीजी है!” शर्मा जी ने खींच के एक तमाचा जड़ा बाबा के कान पे! बाबा गिरा तख़्त से नीचे!

“कौ…..कौन हो तुम??” बाबा की जान अटकी अब!

“वही तो बताने आये हैं साले हरामजादे इतनी दूर से हम!” शर्मा जी आगे बढे और बाबा को उठाया! बाबा की छूटी अब कंपकंपी!

“मुझे समझाइये तो सही?” बाबा ने हाथ जोड़े!

“शिल्पा, वो लड़की तूने जिसका ठेका उठाया था मारने का! याद आया कुत्ते?” शर्मा जी ने एक और दिया हाथ उसकी गुद्दी पर!

“हाँ………हाँ…………याद आया, मै आज ही ठीक कर दूंगा, क्षमा कर दो” अब गिड़गिडाया वो!


   
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