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वर्ष २००८ ग़ाज़ियाबाद की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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“शर्मा जी, मुझे नुपुर में और कोई ‘विशेषता’ भी मालूम नहीं पड़ती” मैंने कहा,

“विशेषता?” उन्होंने पूछा,

“हाँ, ऐसा होता है” मैंने कहा,

“ये तो और गूढ़ हो गया रहस्य!” वे बोले,

“हाँ!” मैंने एक लम्बी सांस छोड़ते हुए कहा,

इतने में सुरेश आये और हमको वापिस अन्दर ले गए, खाना तैयार हो चुका था, हम अन्दर चले गए तब!

“लीजिये गुरु जी, आपका प्रसाद!” सुरेश ने मझे एक शराब की बोतल देते हुए कहा!

”अरे सुरेश जी!” मैंने कहा!

वो गिलास भी ले आये और सोडा भी! महा-प्रसाद परोसा था उन्होंने!

तो मित्रगण! जम गयी महफ़िल औघड़ बाबा की!

अब उस मान्त्रिक की ग्रह-दशा खराब होने वाली थी! और प्रत्यंतर भुगतने वाले थे वो ओझा और वो गढ़ वाला बाबा!

 

“तो गुरु जी, इस जोगीराज की क्या कहानी है इसमें? वो हमारे गुरु जी का पुत्र है, मन में जिज्ञासा है जानने की” सुरेश ने पूछा,

अब तक मदिरा अपना असर दिखा चुकी थी!

मैंने कहा, “सुरेश जी! आपकी पुत्री को हानि पहुंचाने वाला आपके गुरु जी का यही पुत्र है जोगीराज!” मैंने बताया,

उन्हें हैरत हुई! लाजमी था हैरत में होना!

“वो कैसे?” उन्होंने पूछा,

“कोई लालच है उसका आपकी पुत्री से” मैंने स्पष्ट किया!

“लालच?” उन्होंने थूक गटका अब!


   
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श्रीशः उपदंडक
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कैसा लालच गुरु जी?” उन्होंने पूछा,

“ये तो मै भी नहीं जानता, लेकिन आज जान जाऊँगा, आप प्रतीक्षा करें!” मैंने कहा,

“एक बात बताइये?” मैंने पूछा,

“जी पूछिए?” वे बोले,

“वो जो ओझा है, क्या नाम है उसका?” मैंने पूछा,

“जी उसको यहाँ ओमू ओझा कहते हैं” वे बोले,

“कहाँ रहता है?” मैंने पूछा,

“यहीं पास में” वे बोले,

“ये जानता है जोगीराज को?” मैंने पूछा,

“हाँ जी, जानता है” वो बोले,

“उसको बुला सकते हैं आप यहाँ?” मैंने पूछा,

“जी कोशिश कर सकता हूँ” वो बोले,

“बुलाइये” मैंने गिलास खाली करते हुए कहा,

तब सुरेश ने फ़ोन मिला दिया उसको, फ़ोन उसी ने उठाया, उसको सुरेश ने कहा कि नुपुर की तबियत खराब है, थोड़ा झाड़-फूंक कर जाए तो आराम से सो जायेगी वो, वो मान गया, अब कहीं से हराम के चार पैसे आ रहे हों तो कौन ओझा मना करता है!

“लो शर्मा जी, हाथों की वर्जिश कर लो आप!” मैंने कहा,

“आने दो इस माँ के ** को, इसको कराऊंगा मै ओझागिरी आज!” वे बोले,

करीब पन्द्र मिनट बीते तो दरवाज़े पर दस्तक हुई! शिकार आ पहुंचा था हलाल होने को! सुरेश उठे औए उस ओझे को अन्दर ले आये, अन्दर हमे बैठे देख थोड़ा सा ठिठका, फिर संयत हो गया, बैठ गया वहीँ! इकहरे बदन का, उम्र कोई होगी उसकी पैंतीस बरस! कुरता-पायजामा पहने!

अब तक खाने-पीने से हम भी फारिग हो चुके थे!

“कहाँ है लड़की?” ओझे ने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“ऊपर है” सुरेश ने बताया,

“तो चलिए, मुझे बहुत काम है अभी” उसने कहा और अपने बैग से मोरपंखी की झाड़ू निकाल ली,

शर्मा जी ने वो मोरपंखी की झाड़ू उसके हाथ से छीन ली! ओझा ने विरोध नहीं किया, सोचा शायद नशे का असर है!

“इस से क्या होता है भाई?” शर्मा जी ने झाड़ू को हिला के पूछा,

“इस से भूत-बाधा आदि ख़तम हो जाती है” ओझे ने बताया,

“बस, इसी झाड़ू से?” उन्होंने पूछा,

“नहीं जी, मंत्र भी पढ़े जाते हैं” ओझे ने कहा,

“अच्छा जी! कमाल है!” शर्मा जी ने झाड़ू को फूंक मारते हुए कहा!

“हाँ जी, अजी बड़ा कठिन काम है हमारा!” उनसे कहा,

“कैसे?” शर्मा जी ने पूछा,

“रोज जाओ शमशान! भोग देने!” ओझे ने कहा,

“किसको भोग?” उन्होंने पूछा,

“मसान बाबा को” उसने कहा,

“ओह! जय मसान बाबा की! वैसे ओझा साहब, इस लड़की को हुआ क्या है?” उन्होंने पूछा,

“इस लड़की पर मसान छुड़वा दिया है जी, बहुत खतरनाक बात है, हमने तो हाथ खड़े कर दिए” उसने कहा,

“भाई, कैसे ओझा हो तुम? मसान को भोग देते हो और उसी से तुम्हारी ** फट रही है?” शर्मा जी ने हँसते हुए कहा!

ओझा झेंप गया!

“जल्दी करो सुरेश बाबू? मुझे देर हो रही है?” ओझे ने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“एक बात बताओ भाई ओझा जी, गढ़ वाले बाबा के पास भेजा था तुमने इनको?” शर्मा जी ने पूछा,

“हाँ, ये भाग आये वहाँ से” उसने बताया,

“अच्छा! ये डर गए होंगे” शर्मा जी ने कहा,

“हाँ जी” वो बोला,

“और डरे किस से?” शर्मा जी ने पूछा,

“इलाज से” उसने कहा,

अब शर्मा जी चुप हुए, उनके नथुने चौड़े हुए!

“क्यूंकि कोई भी शरीफ़ आदमी न तो अपनी बहू-बेटी को रात भर के लिए नहीं छोड़ेगा ऐसे घटिया मादर** बाबा के पास!” उन्होंने कहा,

“क्या? इलाज कैसे होगा फिर?” उसने कहा,

दो पल शांति रही और तभी! तभी शर्मा जी ने एक दिया खिंचा के एक ज़ोरदार झापड़ उसके सीधे गाल पर! झापड़ पड़ते ही कुर्सी से नीचे गिरता गिरता बचा! अब मै भी खड़ा हो गया था! आँखें फाड़ के कभी वो शर्मा जी को देखता और कभी सुरेश को!

“बहन के **! साले ओझा बनता है! तेरी माँ की **!” इतना कह के एक ज़ोरदार लात जमाई उसके सीने पर! ‘उन्ह’ की आवाज़ करता कुर्सी समेत पीछे गिरा वो ओझा! उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक ये क्या हो गया!

“खड़ा हो, खड़ा हो मादर**! तुझे बनाता हूँ आज ओझा मै!” शर्मा जी चिल्लाए!

वो सहमे सहमे खड़ा हुआ!

“मु……मु…..मुझे क्यों मार रहे हो बाबू जी?” उसने हाथ जोड़ के पूछा,

“बताता हूँ!” इतना कहा शर्मा जी ने और उसके बाल पकड़ के मारा उसको दीवार में!

“मुझे बताइये तो?” अब आंसू आये उसके! हाथ जोड़ के खड़ा हो गया! चेहरे पे हवाइयां उड़ गयीं उसके!

“बताएँगे हम नहीं हरामजादे! बतायेगा तू!” शर्मा जी ने जोर से कहा!


   
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श्रीशः उपदंडक
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ओझा डरा-सहमा कांपने लगा था! अब मैंने शर्मा जी को रोका! मैंने ओझा को वहाँ बैठने के लिए कहा, वो बैठ गया जैसे कोई भीरु पशु! मैंने उस से पूछा, “ओमू, जो मै पूछूंगा उसका जवाब मुझे सही सही देना, बोलो?”

“जी……..हाँ” उसने कहा और अपना गाल सहलाने लगा,

“तुझे ये बात शुरू से मालूम थी कि नुपुर पर कोई मसानी-क्रिया नहीं है, मालूम थी या नहीं?” मैंने पूछा,

“हाँ जी, मालूम थी” उसने स्वीकार किया!

“तूने नुपुर के पिता जी से कहा था कि नुपुर को गढ़ वाले बाबा के पास ले जाओ, कहा था या नहीं?”

“जी….कहा था” उसने बताया,

“और तूने ये उस कमीने जोगीराज के कहने पर किया, हाँ या नहीं?” मैंने पूछा,

“जी…हाँ” उसने कहा,

“और जोगीराज ने ही नुपुर को अभिमंत्रित लड्डू खिलाये थे, हाँ या नहीं?” मैंने पूछा,

“…………हां…” उसने संकोच से कहा,

इधर उसके खुलासे पर सुरेश की त्योरियां चढ़े जा रही थीं!

“अब एक बात और बता, इसमें क्या रहस्य है?”

वो अब चुप हो गया!

“बता ओये ओझे?” शर्मा जी ने कहा,

वो फिर चुप!

अब शर्मा जी आगे बढे और उसका गिरबान पकड़ लिया, वो सहम गया!

“बता? जो पूछा जाए वो बताता रह” शर्मा जी ने धमकाया उसको!

“बता ओमू? क्या साजिश है?” मैंने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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वो नहीं बोला!

“देख ओमू, अगर तू नहीं बोला अब, तो मै तेरा वो हाल करूँगा कि तेरा वो बाप जोगिराज भी कुछ नहीं कर पायेगा” मैंने धमकाया उसको!

लेकिन वो नहीं बोला!

“ठीक है, अब देख, देख तू तोते की तरह से कैसे बोलता है!” मैंने कहा,

मैंने भंजन-मंत्र का जाप किया! तीन बार लम्बी लम्बी साँसें लीं, आगे बढ़ा और ओझे पर थूक दिया! ओझे पर थूक पड़ते ही उसने अपना सीना पकड़ा और खांसी शुरू हुई उसे! फटी हुई आँखों से उसने आसपास देखा, मुंह बंद कर रखा था, जैसे कि उलटी रोकने की कोशिश कर रहा हो! और फिर एक तेज खांसी के धक्के के साथ उसका मुंह खुला, मुंह खोलते ही उसने खून का कुल्ला कर दिया! ये देख सुरेश के होश उड़े! ओझा घबराया और सीधा मेरे पांवों पर आकर गिरा! खून उसके कपड़ों पर रिसने लगा था! अब नाक से भी खून बहने लगा! अपनी जान को खतरा समझ उसने रोना शुरू किया और कहा, “माफ़ कर दो, मै बताता हूँ, बताता हूँ”

ऐसा कहते कहते खून के घूँट गटकने लगा!

अब मैंने भंजन-मंत्र की काट की और वो सही हो गया! लेकिन उसका रोना समाप्त नहीं हुआ!

“अब बता ओमू? क्या साजिश है?” मैंने पूछा,

“बताता हूँ, पानी पिलवा दीजिये” उसने आंसू पोंछते हुए कहा!

सुरेश ने पानी का गिलास, पानी डाल कर उसको दे दिया! उसने पानी पिया और फिर शांत हो गया, रुमाल से मुंह पर लगा खून साफ़ किया उसने!

“जल्दी बता ओमू?” मैंने कहा,

“मुझे………जोगीराज ने कहा था कि उसको ये कन्या चाहिए, तीन दिन और रातों के लिए” उसने कहा,

अब मैंने सुरेश को देखा, नथुने फड़कने लगे थे उनके!

“वो किसलिए?” मैंने पूछा,

“कोई क्रिया करनी थी जोगीराज को” उसने कहा,

“जोगीराज तो तांत्रिक नहीं, फिर क्रिया कैसी?” मैंने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“क्रिया गढ़ वाले बाबा बुग्गन को करनी थी उसके लिए” उसने बताया,

“बुग्गन ने क्रिया क्यों करनी थी?” मैंने पूछा,

“जोगीराज ने नुपुर को तीन रात की ब्याहता बनाना था” उसने कहा,

“ब्याहता? वो किसलिए?” मैंने पूछा,

“जोगीराज का एक जानकार है स्वरुप सिंह, उसके घर में कंगा देवी का वास है, कंगा देवी धन देती है, धन स्वरुप के घर में दबा हुआ है, वो धन केवल तीन दिनों की ब्याहता को ही दिया जा सकता है” उसने बताया,

कंगा देवी! अच्छा! अब मै समझ गया! ये एक तीक्ष्ण-तांत्रिक-क्रिया है! इसका अर्थ ये हुआ कि कंगा देवी तीन दिन की ब्याहता को ही वो धन देती है, परन्तु वो ब्याहता हर कन्या नहीं हो सकती! जो ब्याहता बनेगी उस लडकी के पाँव या हाथ में छह उंगलियाँ होनी चाहियें! इसका मतलब नुपुर के किसी हाथ में या पाँव में छह उँगलियाँ होनी चाहियें!

मै अचानक से पलता! और सुरेश को देखा!

“सुरेश जी? एक बात बताइये? क्या नुपुर के किसी हाथ या पाँव में छह उंगलियाँ हैं?” मैंने पूछा,

“हाँ जी, उसके बाएं पाँव में छह उंगलियाँ हैं” सुरेश ने बताया!

अब मैंने ओझे को देखा! ओझा डर के मारे दोहरा हुआ!

“तो ओमू, ये है असली कहानी! ये है तुम तीनों तिकड़मों का जाल! इसी कारण नुपुर की सेहत खराब की गयी! उसको बेसुध रखा गया! धन के लालच में तुम एक मासूम की जान का दांव लगा बैठे! वो तो तुम सफल हो भी जाते, अगर एन वक़्त पर सुरेश जी न उस बुग्गन बाबा का कहा मान लिया होता! बुगन और जोगिराज का गन्धर्व-विवाह कराया जाता, उसको वहीँ रखा जाता, फिर उसको जोगीराज उस स्वरुप के यहाँ ले जाता तीन दिन बाद! और कंगा देवी वो धन दे देती उसको! हो सकता है कि वो इसका शारीरिक-शोषण भी करता! वाह! क्या तिकड़म लड़ाया है तुमने मात्र उस मिट्टी के लिए! तुमको तो धन मिल जाता लेकिन इस लड़की का क्या होता? जोगीराज इसको सही नहीं करता तब भी! और वो बेचारी मासूम तुम्हारे धन के लिए बलि चढ़ जाती! और तुझे भी थोड़ी भीख मिल जाती! लेकिन कमीन आदमी! क्या तू भूल गया कि कमीन की मदद के लिए कोई नहीं आता! हाँ, किसी मासूम की मदद के लिए रचियता कहीं न कहीं से मदद भेज ही देता है! यदि कुछ दिन और निकलते ऐसे ही तो वो बेचारी धीरे धीरे


   
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श्रीशः उपदंडक
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मृत्यु का ग्रास बन जाती! तुम तीनों का पाप क्षमा के योग्य क़तई नहीं, अब तू मुझे ये बता कि मै तेरा क्या करूँ? बुग्गन और जोगीराज की नियति तो मैंने तय कर ही दी है!” मैंने ओझे की आँखों में आँख डाल कर कहा!

“मा……फ कर दीजिये” उसने मरी मरी आवाज़ से कहा!

” नहीं तू माफ़ी के लायक नहीं है” मैंने कहा,

“मै मर जाऊँगा…………..मेरी औलाद हैं छोटी छोटी” उसने अब रोना शुरू किया!

“नुपुर भी किसी की औलाद है, है ना?” मैंने कहा,

“मै लालच में आ गया था, मुझे माफ़ कर दो” उसने हाथ जोड़ते हुए, रोते हुए कहा!

“तेरा तो लालच ठहरा और यहाँ किसी की जान जाती!” मैंने कहा,

“रहम करो मुझ पर, मै हाथ जोड़ता हूँ, पाँव पड़ता हूँ” उसने फफक फफक कर कहा,

“आगे से ऐसा काम करेगा?” मैंने पूछा,

“नहीं, कभी नहीं, मुझे मेरी औलाद की कसम” उसने रोते हुए कहा,

“ठीक है, अलग कर ले जोगीराज और बुग्गन से अपने आपको, अगर उनको खबर की तो मै तेरा वो हाल करूँगा कि जिंदगी भर चारपाई पर लेटा रहेगा!” मैंने कहा,

“कभी नहीं करूँगा ऐसा काम” उसने सिसकते हुए कहा,

“चाल जा, भाग यहाँ से अब!” मैंने कहा!

वो पाँव पड़ता हुआ, गिड़गिडाता हुआ, गुहार लगाता हुआ भागा वहाँ से! मोरपंखी की झाड़ू भी वहीँ छोड़ गया!

 

ओझा की तो ओझागिरी निकल गयी थी! वो भाग छूटा था जैसे पिंजरे से चूहा भाग छूटता है! अब हिसाब करना था उस बुग्गन बाबा से! गढ़ वाला बाबा! मैंने सुरेश से कहा, “सुरेश जी, आप तियार हिये, हमको अभी इसी वक़्त गढ़ निकलना है”

“अभी हुई गुरु जी मै तैयार” सुरेश ने कहा और कमरे से बाहर चले गये!


   
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श्रीशः उपदंडक
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थोड़ी देर में ही उनकी कामवाली अन्दर आ गयी, मै और शर्मा जी कमरे से बाहर निकल गए! शर्मा जी ने पूछा,”इस बुग्गन की भी बजा देते हैं फूंकनी!”

“हाँ! इसीलिए जा रहे हैं! धन के सपने ले रहा होगा इत्मीनान से!” मैंने कहा,

“हाँ! तो सपना सच होने वाला ही है उसका आज!” उन्होंने हंस के कहा,

इतने में ही सुरेश जी भी आ गए तैयार हो कर! साथ में ‘सामान’ भी ले आये थे, उन्होंने अपनी गाड़ी निकाली और हम तीनों उसमे बैठ कर चल पड़े गढ़ की तरफ!

हम हापुड़ पहुंचे, वहाँ एक ढाबे के सामने रुके, वहाँ हाथ मुंह धोया और फिर थोडा सा मदिरापान कर लिया! तदोपरान्त वहाँ से फिर आगे चल पड़े!

और फिर हम पहुँच गए गढ़! सुरेश जी ने उसका डेरा तो देखा ही था, इसीलिए गाड़ी बुग्गन के डेरे के लिए दौड़ा दी! करीब आधे घंटे में हम बुग्गन के डेरे में पहुँच गए! पीपल और जामुन के बड़े बड़े पेड़ खड़े थे वहाँ, दो तीन पक्के कमरे बने थे और बाकी सीमेंट की चादर डालकर आवास बना लिए गए थे! अन्दर घुसे हम! कुछ सेवादार और सेविकाएँ वहीँ अपना अपना काम कर रहे थे, कुछ लोग आये भी हुए थे अपना ‘इलाज’ करवाने के लिए, वहाँ दो गाड़ियां भी खड़ी थीं और कुछ सभ्रांत लोग भी!

हम वापिस अपनी गाड़ी में जा बैठे, थोडा विश्राम ही कर किया जाए, सोचा! आगे मेहनत भी करनी थी ना! इसीलिए! इस बीच मैंने सुरेश को समझा दिया की क्या कहना है और क्या नाटक करना है! थोड़ी देर में वहाँ से लोग छंटने शुरू हुए, और धीरे धीरे इस्क्का-दुक्का ही बचे! अब हम बाहर निकले! बुग्गन बाबा का ‘इलाज’ करने! सुरेश जी चले आगे आगे और मै और शर्मा जी उनके पीछे पीछे! मैंने हकम्बढाल-मंत्र से बुग्गन का सामर्थ्य जांच लिया था! एक आद भूत-प्रेत अवश्य था उसके पास! कुछ और भी हो सकता था, परन्तु उस समय यही थे उसके पास! सुरेश दो-तीन सीढियां चढ़कर ऊपर चढ़े, हम भी चढ़ गए! वो एक कमरे में घुसे तो हम भी घुस गए! सामने काले रंग के चोगे में अंट-शंट मालाएं पहने, कोई मूंगे की, कोई स्फटिक की कोई रुद्राक्ष की! कम से कम पचास मालाएं! धूनी प्रज्ज्वलित थी! गुग्गल की धूप-बत्ती जल रही थी! बुग्गन बाबा अपने आसन पर बैठा था, सामने दरी पड़ी थी आगंतुकों के लिए, उनके बैठने के लिए! बड़ी बड़ी तस्वीरें जड़ रखी थीं दीवारों पर! कमरे में ही शमशान बना रखा था बुग्गन बाबा ने!

जब बुग्गन ने सुरेश को देखा तो बांछें खिल उठीं उसकी! चेहरे पर एक चौड़ी सी मुस्कान आ गयी! देखते ही बोला, “आइये सुरेश! बड़े दिनों के बाद याद आई बाबा की!”


   
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श्रीशः उपदंडक
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“बस बाबा धक्के खा रहे हैं हम तो!” सुरेश ने कहा,

“बाबा ने तो पहले ही कहा था! यहीं आओगे!” उसने ज़मीन पर हाथ मारते हुए कहा!

“हाँ बाबा, गलती हो गयी, क्षमा कर दीजिये” सुरेश ने कहा,

“अब कैसी है वो?” बुग्गन ने पूछा,

“वैसी ही है बाबा जी, बस मरने की क़सर बाकी है” सुरेश ने नाटक करते हुए कहा,

“उसको लाये हो अपने साथ?” उसने पूछा,

“आपकी आज्ञा लेने आया था जी मै तो, ये मेरे जानकार हैं, इनको छोड़ने जा रहा हूँ दिल्ली, यहाँ से गुजरा तो मै यहाँ चला आया” सुरेश ने बताया,

“अच्छा किया! अब ले आ लड़की को, और हाँ कामे से कम सात दिन रहना होगा उसको यहाँ, अब तुम क्या जानो की कितनी मेहनत है इसमें, काम कर रहा हूँ ये भी क्या कम है?” उसने कहा,

“आप के पास तभी तो आया हूँ मै बाबा जी” सुरेश ने कहा!

“ठीक है, बाबा काम कर देगा तेरा, ले आ लड़की को! कब लाएगा? मुझे तैयारी भी करनी है” उसने कहा,

“सात दिन किसलिए लगेंगे बाबा जी?” अब मैंने पूछा,

“उस लड़की पर मसान सवार है, उसका गर्भाशय खा जाएगा, किसी काम की नहीं रहेगी लड़की, मेहनत करनी पड़ेगी, रात रात भर, इसलिए” उसने कहा,

“मसान सवार है?” मैंने नाटक करते हुए पूछा,

“हाँ, मसान!” उसने भस्म का कटोरा उठाते हुए कहा,

“किसने छोड़ा मसान लड़की पर बाबा जी?” मैंने पूछा,

“छोड़ा है किसी ने, पता कर लूँगा क्रिया में” उसने कहा,

“क्या बहुत खतरनाक होता है मसान?” मैंने पूछा,

“हाँ, भूतों का राजा होता है, प्रेतों का राजा!” उसने कहा,


   
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“ओह! अब क्या होगा?” मैंने फिर से नाटक किया!

“ये बाबा हटा देगा मसान उस लड़की से!” उसने छाती ठोंक कर कहा!

“अच्छा? कमाल है!” मैंने कहा,

“ये बाबा कमाल ही करता है!” उसने कहा और देसी शराब की बोतल निकाल ली, और एक आदमी को आवाज़ देकर पानी लाने को कह दिया! अब मैंने और शर्मा जी ने एक दूसरे को देखा! और फिर मैंने बाबा से कहा, “ओ बुग्गन बाबा! खड़ा हो हरामज़ादे? खड़ा हो?”

मेरा ऐसा कहना सुनकर उसको गुस्सा आ गया! खड़ा हुआ तमतमाकर और बोला,”क्या बोले बे तू?”

“हरामज़ादे, कुत्ते की औलाद” मैंने कहा,

अब वो जैसे ही मेरी तरफ बढ़ा, मै एक दिया लापड़ उसके कान पर! वो पीछे हटा और कुछ मुझे मारने के लिए ढूँढने लगा! मैंने फ़ौरन ही भंजन-मंत्र पढ़ा और मुंह में थूक इकठ्ठा कर लिया! और जैसे ही बुग्गन एक डंडा उठाकर आया, मैंने थूक दिया उस पर! थूक पड़ते ही उसने धक्का खाया और पीछे जाकर गिरा! अब वो घबराया! समझ गया की मै कुछ हूँ!

“कौ….कौन हो तुम?” उसने घबरा के पूछा!

“अभी बताता हूँ, ठहर जा!” मैंने कहा,

इतने में ही एक आदमी पानी का जग और एक गिलास लेकर अन्दर आया! उसने बाबा को देखा तो झटपट से पानी और गिलास नीचे रखा और बाबा के पास खड़ा हो कर हम तीनों को देखने लगा!

 

बुग्गन और उसका वो चेला आँखें फाड़ कर हमें देख रहे थे! वो प्रतीक्षा कर रहे थे कि मै आगे क्या करने वाला हूँ! मैंने अब बुग्गन से कहा,”तुमने एक साजिश रची जिसमे तुमने मोहरा बनाया इस लड़की को!”

“साजिश? कोई साजिश नहीं रची हमने” उसने कहा,

“तो फिर सात दिन क्यों?” मैंने पूछा,

“उसके इलाज के लिए सात दिन तो लगने ही हैं” उसने कहा,


   
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“कौन सा इलाज करना ही, मै सब जानता हूँ! तुमने उस लड़की कोई तीन दिन की ब्याहता बनाना था, शादी रचाता वो जोगीराज! उसके बाद जोगीराज उस लड़की को ले जाता अपने आश्रम, इलाज के बहाने, और फिर तुमको धन मिलता, स्वरुप सिंह के घर वास करने वाली कंगा देवी से! है ना?” मैंने कहा,

ये खुलासा सुन कर अब घबराया बुग्गन! मुंह से शब्द नहीं निकले उसके! बगलें झाँकने लगा!

“तूने जोगीराज के साथ मिलके उस लड़की को मृत्यु-द्वार तक पहुंचा दिया, इसका फल तो तुझे भुगतना ही होगा बुग्गन, ना जाने कल कोई और नुपुर आ जाए तुम्हारे लपेटे में! अब बता मै क्या करूँ तेरा?” मैंने पूछा,

“मा……..माफ़ कर दीजिये, गलती हो गयी, अब नहीं होगा ऐसा कभी” उसने हाथ जोड़ के कहा!

“ऐसी गलती की माफ़ी नहीं दी जाती, सजा दी जाती है!” मैंने कहा,

“दया कीजिये मुझ पर” उसने फिर से हाथ जोड़े!

“दया? जैसी दया तूने की थी उस लड़की पर?” मैंने कहा,

“मुझसे गलती हो गयी बहुत बड़ी” उसने कहा,

“हाँ, गलती तो हुई, इसीलिए मैंने पूछा, क्या करूँ तेरा?” मैंने कहा,

“छोड़ दीजिये मुझे, रहम कीजिये” उसने अब घबरा के कहा!

“शर्मा जी, बताइये, क्या करूँ इसका?” मैंने शर्मा जी से पूछा,

“इसको करो पहले खाली और फिर लगाओ इस धुलाई, ऐसे इंसान माफ़ी के लायक नहीं, ये हरामज़ादे हैं, ये कभी बाज नहीं आयेंगे गुरु जी!” शर्मा जी ने कहा,

 

ये सुनकर बोलती बंद हो गयी बुग्गन की! हाथ जोड़कर खड़ा हो गया, आँखों में भय लिए!

अब मैंने भंजन-मंत्र पढ़ा, उसको जागृत किया और मुंह में थूक इकठ्ठा किया! और आगे बढ़ा बुग्गन की तरफ! बुग्गन घबराया, बोलती बंद उसकी! मैंने थूक फेंक दिया उस पर! थूक पड़ते ही उसने दो झटके खाए और ज़मीन पर गिर पड़ा! बुग्गन का ये हाल देखा चेला लगा भागने! चेले को शर्मा जी ने पकड़ लिया और उसे वहीँ खड़े रहने को कह दिया! वहाँ, बुग्गन तड़प रहा


   
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था, उसके पूरे शरीर में प्रदाह-अग्नि भड़की थी! बीच बीच में अपने हाथ जोड़ लेता था, मदद की गुहार के लिए! मैंने अपनी जेब में रखी पोटली से भस्म निकाली, और उसको अभिमंत्रित किया, और फिर उस पर फेंक दी! उसके शरीर ने धनुषाकार लिया और ऐंठ गया! फिर एक झटके के साथ शांत हो गया! वो खाली हो गया था अब! उसकी समस्त विद्या उसका साथ छोड़ गयी थी! बुग्गन बेहोश हो गया था!

“चलिए शर्मा जी! ये बेकार हो गया, आज के बाद ये केवल भीख ही मांगेगा!” मैंने कहा,

“चलिए गुरु जी, मिल गई हरामज़ादे को अपने किये की सजा!” वो बोले,

वहाँ खड़ा उसका चेला थर थर काँप रहा था!

अब मै, शर्मा जी और सुरेश वहाँ से निकले, और गाड़ी में बैठ गए! गाड़ी स्टार्ट की और वहाँ से निकल गए!

“अच्छा किया गुरु जी आपने!” सुरेश ने कहा,

“करना पड़ता है सुरेश जी, ना जाने ये कमीने लोग किस किस का शोषण करते” मैंने कहा,

”बहुत उचित निर्णय लिया गुरु जी आपने!” सुरेश बोले,

अब हम मुख्य-सड़क पर आ गए थे,

“सुरेश जी, गाड़ी मुरादाबाद की तरफ मोड़ लीजिये, अब रह गया है ये जोगीराज!” मैंने कहा,

“अवश्य गुरु जी!” सुरेश ने कहा,

मुरादाबाद वहाँ से कोई डेढ़ सौ किलोमीटर के आसपास ही होगा, हमारी गाड़ी सरपट दौड़ने लगी मुरदाबाद के लिए!

“गुरु जी, हमने कभी सोचा भी नहीं था, कि ऐसा भी हो सकता है, भेड़ के लिबास में भेड़िये हैं ये सब!” सुरेश ने कहा,

“हाँ सुरेश जी, सही कहा आपने, भेड़ के लिबास में भेड़िये!” मैंने कहा,

“ना जाने कितने लोग शोषित किये होंगे इन भेड़ियों ने आज तक, बनते हैं अपने आप को धर्म-गुरु!” अब शर्मा जी ने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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रास्ते में गाड़ी रोक कर एक जगह से पटल भरवा लिया हमने, वहीँ एक दुकान से चाय भी पी ली हमने! और फिर आगे बढ़ चले!

“गुरु जी? अब तो ठीक रहेगी नुपुर?” सुरेश ने पूछा,

“हाँ, मुसीबत की शाख तो काट दी हैं अब तना काटना है, तना ये जोगीराज!” मैंने कहा,

“इस साले का भी वैसा ही हाल करना! खून फेंकता रहे साला!” शर्मा जी ने कहा,

“आप देखते रहिये” मैंने कहा,

सुरेश ने घड़ी में समय देखा और फिर रफ़्तार बढ़ा दी गाड़ी की!

 

हम मुरादाबाद पहुँच गए! शाम ढल चुकी थी, आश्रम अभी भी कोई दस किलोमीटर दूर था, राते में भीड़-भाड़ काफी थी, किसी तरह से हम निकले वहाँ से और पहुँच गए आश्रम! आश्रम में बत्तियां जल चुकी थीं! काफी अच्छा-ख़ासा आश्रम था बाबा अमरनाथ का, जोगीराज के पिता का! बाबा अमरनाथ को मालूम भी ना होगा कि उसका बेटा क्या गुल खिला रहा है! आश्रम के बाहर ही गाड़ी लगाई सुरेश जी ने, और हम गाड़ी से उतरे अब!

“लीजिये गुरु जी, ये है वो आश्रम” सुरेश ने कहा,

“ठीक है, आप यहाँ से परिचित हैं, अतः आप चलिए सबसे आगे, और हम दोनों आपके पीछे” मैंने कहा,

“ठीक है” वे बोले और अन्दर जाने लगे,

अन्दर गए तो वहाँ काफी लोग थे, कुछ लोग दूर से आये भी हुए थे, धर्मशाला जैसा माहौल था वहाँ!

“किसी से पूछिए, वो जोगीराज कहाँ मिलेगा?’ मैंने सुरेश से कहा,

“मै पूछता हूँ अभी” सुरेश ने कहा और एक सेवादार को रोक कर उस से जोगीराज का अता-पता पूछा, सेवादार ने इशारा करके बता दिया! सुरेश वापिस आये हमारे पास,

“आइये गुरु जी, यहाँ आइये” सुरेश ने कहा,

“चलिए” मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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हम थोडा आगे चले, इर एक गलियारे में प्रवेश किया, वहीँ आगे कुछ कक्ष बने हुए थे, हम उन्ही में से एक के सामने रुक गए,

“मै देख कर आता हूँ अभी” सुरेश ने कहा और अन्दर चले गए, फिर बाहर आये और इशारा करके हमको बुलाया, हम उनके पीछे चल पड़े! सुरेश चार पांच कक्ष पार कर गए और फिर एक कक्ष के सामने खड़े हो गए, यहीं था वो जोगीराज! हम अन्दर गए, अन्दर अपने पलंग पर लेटा था जोगीराज! दरम्याने कद का, दाढ़ी रखे हुए! वो हमको देख चौंक पड़ा! बैठ गया उठ कर! और बोला, “आइये सुरेश जी आइये!”

इसका अर्थ ये था कि इसके पास अभी तक बुग्गन की कोई खबर नहीं पहुंची थी! वो इत्मीनान से था! बुग्गन को चौबीस घंटे से पहले होश आना भी नहीं था वहाँ!

“और कैसे हैं आप? बेटी कैसी है अब आपकी?” उसने प्रश्न किया,

“क्या बताऊँ, वही समस्या है, बेटी की हालत ठीक नहीं है, मरने की कगार पर है अब तो” सुरेश ने कहा,

“अब गलती आपकी है ना? ओमू ने जहां भेजा आपको, आप डर के मारे भाग आये वहाँ से!” उसने हँसते हुए कहा,

मुझे इतना क्रोध आया उसको देख कर कि मन तो कर रहा था सर फाड़ दूँ उसका उसी क्षण!

“हाँ जी, गलती हो गयी हमसे” सुरेश ने कहा,

“अभी भी समय है, ओमू से बात कर लो, वो उस आदमी से दुबारा पूछ लेगा, नहीं तो वो आदमी ऐसे काम नहीं करता” उसने कहा,

“जी मै बात कर लूँगा ओमू से” सुरेश ने कहा,

“और यहाँ कैसे आये? मुरादाबाद आये हो क्या?” उसने पूछा,

“हाँ जी, किसी काम के सिलसिले में आया हूँ यहाँ, ये मेरे मित्र हैं, इन्ही के साथ काम कर रहा हूँ” सुरेश ने कहा,

“बढ़िया है” उसने कहा,

“वैसे वो आदमी मान तो जाएगा ना?” सुरेश ने बात फिर से विषय पर ला दी!

“हाँ हाँ मान जाएगा! अरे हम बैठे हैं ना!” उसने हंसके कहा,


   
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