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वर्ष २००८ ग़ाज़ियाबाद की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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ये घटना कोई अक्टूबर-नवम्बर की होगी जहां तक मुझे सही तरह से याद है! मै उस समय कोलकाता से वापिस आया था, आये हुए कोई आठ-दस दिन ही हुए होंगे, हालांकि थकावट तो दूर हो गयी थी पर विश्राम करना अच्छा लग रहा था! उस दिन रविवार था, मै भोगादि से निवृत हो कर आराम कर रहा था, कि तभी शर्मा जी आये! शर्मा जी के साथ एक सज्जन भी आये थे! नमस्कार आदि हुई और शर्मा जी ने उनका परिचय मुझसे करवाया, इन सज्जन का नाम सुरेश था, रहते थे गाज़ियाबाद में, अपना एक व्यवसाय था, बीज, खाद आदि का! वो किसी गंभीर समस्या के विषय में बात करने आये थे, शर्मा जी के एक जानकार ने उन्हें मेरे बारे में बताया था!

अब मैंने बात शुरू कि, मैंने पूछा, “सुरेश जी अब मुझे समस्या बताएं”

“गुरु जी, समस्या बड़ी विकट है, कोई समाधान नहीं निकल रहा” वे बोले,

“बताएं?” मैंने कहा,

“गुरु जी, कोई आठ महीने पहले कि बात है, मेरा परिवार और मेरे छोटे भाई रितेश का परिवार बद्रीनाथ गए थे, सबकुछ ठीक तरह से निबट गया था, हम वहाँ से घर वापिस भी आ गए, करीब हफ्ता गुजरा होगा कि मेरी बड़ी बेटी नुपुर की तबियत खराब हो गयी, पहले शुरुआत खांसी-ज़ुकाम से हुई, लेकिन बाद में समस्या बढती चली गयी” वे बोले,

“कैसी समस्या?” मैंने पूछा,

“उसका स्वास्थय निरंतर गिरता जा रहा था, हम उसको लेकर दिल्ली आगये, यहाँ भी इलाज हुआ लेकिन कोई असर नहीं पड़ा” वे बोले,

“डॉक्टर्स ने क्या बताया?” मैंने पूछा,

“डॉक्टर्स ने बताया कि उसके फेंफडों में पानी भरा हुआ है” वे बोले,

“अच्छा, फिर?” मैंने पूछा,

“जी फिर इलाज किया गया, लेकिन फिर भी कोई फायदा नहीं पड़ा” वे बोले,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“ओह! फिर?” मैंने पूछा,

हम उसको वापिस घर ले आये, यहीं इलाज करते रहे उसका, उसको समय समय पर अस्पताल ले जाते थे हम” वे बोले,

“अच्छा, फिर?” मैंने पूछा,

“हमारे पड़ोस में एक ओझा रहता हैं,एक दिन उसने जब नुपुर को देखा तो बताया कि उस पर कोई साया है” वे बोले,

“साया?” मैंने कहा,

“हाँ जी” उन्होंने कहा और पानी पिया,

“तो ओझे ने इलाज नहीं किया?” मैंने पूछा,

“जी हम तो घबरा ही गए थे, लेकिन उसकी बात हमने गंभीरता से ली और उसको एक दिन घर बुला लिया” उन्होंने कहा,

“अच्छा!” मैंने कहा.

“तब नुपुर सो रही थी, उसने नुपुर का कोई कपडा माँगा, हमने दे दिया, उसने अगले दिन जांच का परिणाम बताने को कह दिया!” वे बोले,

“तो क्या बताया अगले दिन?” मैंने पूछा,

“जी वो आया और उसने बताया कि इस लड़की के ऊपर मसान छोड़ा गया है, और ये मसान किसी अच्छे तांत्रिक ने छोड़ा है”

“मसान? मसान छोड़ा है?” मैंने हैरत से कहा,

“हाँ जी, उसने ये ही बताया था, ये सुनकर हमारे तो होश उड़ गए” वे बोले,

“तो इलाज नहीं किया उसने?” मैंने फिर से पूछा,

“नहीं जी, उसने कहा कि उसके बस में नहीं है उसका इलाज करना” वे बोले,

“ओह! तो फिर?”

“जी उस ओझा ने एक पता दिया हमको, एक बाबा हैं गढ़-गंगा में, उनका, हम नुपुर को उनके पास ले गए” वे बोले,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“हम्म, फिर, इलाज हुआ?” मैंने पूछा,

“बाबा ने लड़की को देखा और कहा कि उसके ऊपर मसान छोड़ा गया है, तीन रातें नुपुर को उनके शमशान में रुकना होगा” वे बोले,

“रुकना होगा? क्या मतलब?” मैंने हैरत से पूछा,

“हाँ जी, उन्होंने यही कहा था” वे बोले,

“फिर? रुके वहाँ?” मैंने पूछा,

“बाबा ने कहा कि लड़की के साथ कोई और घरवाला ने होना चाहिए, वो अकेली ही रहेगी वहाँ”

“ऐसा मैंने कभी नहीं सुना? हाँ कुछ दुष्ट-आचरण वाले ऐसा किया करते हैं, आपने क्या निर्णय लिया फिर?” मैंने पूछा,

“हम नहीं रुके वहाँ, वापिस आगये वहाँ से” उन्होंने बताया,

“सही निर्णय लिया आपने” मैंने कहा,

“जी परन्तु नुपुर का स्वास्थय बिगड़ता जा रहा था, हमने फिर एक और आदमी का पता लगाया, ये तांत्रिक थे, नाम था छंगन बाबा, वहाँ ले गए नुपुर को” वे बोले,

“अच्छा, फिर क्या कहा उस तांत्रिक ने?” मैंने पूछा,

“छंगन बाबा ने बताया कि मसान ही उसके ऊपर, एक हफ्ता लगेगा ठीक होने में लड़की को, परन्तु उसमे धन लगेगा, करीब तीस हज़ार, गुरु जी, मरता क्या नहीं करता, हमने दे दिए, हम नुपुर को रोज ले जाते उसके पास, वो उसके ऊपर झाड-फूंक करता रहता था, हफ्ता गुजरा, नुपुर के स्वास्थय में लाभ होना शुरू हो गया!” वे बोले,

“अच्छा!” मैंने कहा,

“गुरु जी कोई महिना बीता होगा कि नुपुर की तबियत फिर से खराब हो गयी” वे बोले,

“ओह!” मैंने कहा,

“छंगन बाबा ने बताया कि उसके ऊपर लगातार क्रिया हो रही है, और वो देख लेगा कि कौन करवा रहा है ये सब” वे बोले,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“अच्छा, तो क्या बताया उस बाबा ने?” मैंने पूछा,

“जी उसने बताया कि लड़की का बचना मुश्किल है अब, मसानी-क्रिया अंपा काम कर चुकी है, अब तो इसकी सेवा कर लो बस, ये सुन हमारी तो जान निकल गयी गुरु जी, मेरी पत्नी भी उसी दिन से बीमार रहने लगी है, ये क्या हो रहा है हमारे साथ? हमने तो कभी भी किसी का बुरा नहीं किया” ऐसा कहते हुए उनकी आँखों में आंसू छलक आये,

“घबराइये नहीं, अब ना घबराइये” मैंने ऐसा कह के हिम्मत बंधाई उनकी,

“बचा लीजिये गुरु जी, मेरी बेटी को बचा लीजिये, मेरे परिवार को बचा लीजिये, बदले में जो चाहोगे मै दूंगा आपको, बचा लीजिये” सिसकते हुए उन्होंने कहा,

मैंने उनका हाथ थाम और उनको साहस बंधाया, मैंने कहा, “आप अपना पता शर्मा जी को दे दीजिये, मै कल ही आता हूँ नुपुर को देखने” मैंने कहा,

“आपका बड़ा एहसान होगा आपका, हम सभी परेशान हैं, जो जहां कहता है वहाँ ले जाते हैं उसको, दवा भी चल रही है, लाभ कहीं से नहीं होता” वे बोले,

“मै देख लूँगा कि समस्या कि जड़ क्या है, चिंता ना कीजिये आप” मैंने कहा,

उनकी हिम्मत बंधी अब! जब किसी परेशान इंसान को कोई हिम्मत बंधाता है तो वो उस इंसान को अपने सबसे करीब समझता है! ऐसा ही सुरेश के साथ था!

काफी देर और बातें हुईं और फिर वो शर्मा जी को पता लिखवा कर चले गए वापिस, मैंने कह दिया था कि मै कल आ जाऊँगा उनके घर!

अब शर्मा जी ने सवाल किया,” गुरु जी, क्या लगता है? मसान है क्या?”

“शर्मा जी, अगर मसान होता तो अब तक मार दिया होता उसको” मैंने कहा,

“ओह, तो कोई मारण?” उन्होंने पूछा,

“कह नहीं सकता अभी, देखकर बताऊंगा” मैंने कहा,

“कौन करवा सकता है एक लड़की पर मारण?” उन्होंने कयास लगाया,

“शर्मा जी, कुछ ना कुछ तो कारण है ही” मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“हाँ, ये तो है” उन्होंने कहा,

“बताओ आठ महीने से बेचारी बिस्तर पर पड़ी है” उन्होंने अफ़सोस ज़ाहिर किया,

“हाँ, बेचारी कष्ट भोग रही है, और साथ के साथ उसके परिवारवाले भी” मैंने कहा,

“कल चल रहे हैं, कल देख लेते हैं” उन्होंने कहा,

“हाँ, मैंने इसीलिए उनको कल का समय दिया है, देरी भली नहीं” मैंने कहा,

“सही बात है” उन्होंने कहा,

अब तक शर्मा जी ने मदिरा के प्यालों में मदिरा परोस दी थी, सो, धीरे धीरे मदिराभोग करते हुए हम बातें करते रहे!

“शर्मा जी? इन्होने कितना समय बताया था? आठ महीने से?” मैंने पूछा,

“हाँ जी” उन्होंने कहा,

“हम्म, ठीक ठीक” मैंने कहा,

“कोई आंकलन?” उन्होंने कहा,

“नहीं, मै ज़रा हिसाब लगा रहा था” मैंने कहा,

“कैसा हिसाब?” उन्होंने पूछा,

“कोई भी मारण आठ महीने नहीं चलता, तो ये मारण भी नहीं है” मैंने बताया,

“ओह, इसका मतलब मामला खतरनाक है” उन्होंने कहा,

“हाँ, लगता है ऐसा” मैंने कहा,

“गंभीर हो गया मामला फिर तो” वो बोले,

“देखते हैं कल!” मैंने कहा,

उसके बाद हम खाते पीते रहे, दो चार और बातें हुईं और फिर शर्मा जी चले गए वहाँ से, उनको अब कल सुबह आना था मेरे पास करीब नौ बजे, और हमें सीधे ही सुरेश के घर जाना था!

मै उठा वहाँ से, हाथ मुंह धोये और फिर विश्राम करने के लिए चला गया!


   
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श्रीशः उपदंडक
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मेरी नींद करेब सात बजे खुली, मै स्नान करने के पश्चात सीधा ही अपने क्रिया-कक्ष में चला गया, और फिर अलख उठा दी, अलख-भोग दिया और फिर मैंने क्रिया आरम्भ करने से पहले कुछ मन्त्रों का जाप किया!

अब मैंने अपने एक महाप्रेत का आह्वान किया, करीब दस मिनट में वो हाज़िर हुआ, मैंने उसको सुरेश के घर जाकर गंध लेने के लिए भेज दिया, वो फ़ौरन ओझल हो गया, आया कोई पांच मिनट के बाद, उसने बताया कि उस लड़की के आसपास रक्षण-ढाल है, उसको वापिस आना पड़ा, मिअने उसको उसका भोग देकर वापिस भेज दिया!

रक्षण-ढाल? ये सुनकर मुझे भी अचरज हुआ! रक्षण-ढाल तो मान्त्रिक लगाया करते हैं, सात्विक मान्त्रिक! इसका अर्थ ये हुआ कि इसके पीछे कोई धुरंधर मान्त्रिक है! अब मेरा उस लड़की को देखना अत्यंत आवश्यक था! मैंने क्रिया से उठा और अलख-नमन कर वापिस आ गया!

और फिर रात बीती, सुबह आई, नौ भी बजे और शर्मा जी भी आ गए वहाँ, मै गाड़ी में सवार हुआ और हम चल पड़े सुरेश के घर की तरफ! सुरेश को फ़ोन कर दिया कि हम आ रहे हैं, और रास्ते में हैं,रास्ते में मैंने शर्मा जी को पिछली रात की जांच से अवगत करवा दिया! उन्हें भी आश्चर्य हुआ!

“अब ये क्या कहानी है नयी?” उन्होंने पूछा,

“ये तो अभी वहाँ जाके पता चल जाएगा” मैंने कहा,

“भला एक मान्त्रिक ऐसा क्यूँ करेगा?” उन्होंने पूछा,

“करेगा, अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए करेगा!” मैंने कहा,

“कौन सा ऐसा उद्देश्य?” उन्होंने पूछा,

“कुछ भी हो सकता है!” मैंने कहा,

“हाँ, हो भी सकता है, कोई तो लालच अवश्य ही होगा” उन्होंने कहा,

“हाँ” मैंने भी कहा,

“कैसे कैसे लोग भरे पड़े हैं” उन्होंने कहा,

“सही कहा आपने” मैंने कहा,

“चलो आज पता चल जाएगा” उन्होंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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फिर मैंने रास्ते में एक जगह गाड़ी रुकवाई और कुछ पत्ते तोड़ लिए कनेर के और फिर चल पड़े हम आगे!

आगे जाकर हमने गाड़ी गाज़ियाबाद के लिए मोड़ दी, कुछ ही देर में में हम पहुँच गए सुरेश के घर!

 

हम सुरेश के घर पहुंचे, आदर-सत्कार सहित घर के अन्दर ले गए, वहाँ उनके छोटे भाई रितेश भी थे, सुरेश ने घर के सभी सदस्यों से मुलाक़ात करवाई, और फिर चाय बनवा दी गयी, चाय पीने के पश्चात मैंने सुरेश से नुपुर से मिलवाने को कहा, सुरेश उठे और सीढियां चढ़ने लगे, नुपुर का कमरा ऊपर था, हम ऊपर आ गए, कमरा सीढ़ियों से बायीं तरफ था, पहले सुरेश अन्दर गए, अन्दर नुपुर की बुआ जी बैठी थीं, वो बाहर आ गयीं और मै और शर्मा जी अन्दर चले गए! मैंने नुपुर को देखा, वो आँखें बंद किये हुए सो रही थी, बेहद कमज़ोर हो गयी थी, उसके पलंग पर उसकी एक तस्वीर रखी थी, उसके मुकाबले तो आधी हो गयी थी वो! मैंने साथ लाये हुए कनेर के पत्ते निकाले और उनकी एक कूची सी बना ली, एक मंत्र पढ़ा और उस कूची से मैंने उसके पलंग को तीन बार काट दिया और आँखें बंद करके मंत्र पढने लगा!

आँखें खोलीं तो मुझे उसके बिस्तर पर पीले रंग के सात सांप दिखाई दिए! सांप मुझे ही देख रहे थे! अब मै समझ गया था कि इसका क्या कारण है! मैंने अपने छोटे से बैग से एक पोटली निकाली, और शर्मा जी, सुरेश को बाहर भेज दिया, दरवाज़ा बंद कर दिया! अब भस्म को मैंने अभिमंत्रित किया और उन साँपों पर फेंक दिया! जैसे ही भस्म साँपों पर गिरी, सांप लोप हो गए! उसनके लोप होते ही नुपुर को खांसी आई बहुत तेज़, वो उठ गयी, मै कमरे से बाहर चला गया था तब तक!

“पापा! मम्मी! बुआ जी” नुपुर चिल्लाई!

मुझसे बातें करते सुरेश भागे नुपुर के पास! नीचे से उसकी माँ और वहीँ खड़ी उसकी बुआ जी भी घुस गयीं कमरे में!

फिर मै और शर्मा जी भी अन्दर चले गए! नुपुर बैठ गयी थी! घर के लोगों ने उसको बैठे हुए आज आठ महीनों के बाद देखा था! आंसू बहने लगे सभी के झर झर! मैंने माहौल की संजीदगी को समझा और शर्मा जी के साथ नीचे चला आया!

दस मिनट के बाद सुरेश आये और आते ही मेरे पाँव पकड़ लिए! छोड़े ही नहीं!

“गुरु जी! गुरु जी, आपका एहसान कैसे उतारेंगे हम!” उन्होंने सिसकते हुए कहा!


   
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श्रीशः उपदंडक
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“आप पहले शांत हो जाइये” मैंने कहा,

उन्होंने सिसकियाँ थामीं अपनी!

“सुनिए, अब कैसी है, कोई फर्क दिखा उसमे?” मैंने पूछा,

“गुरु जी, आज आठ महीनों के बाद खड़ी हुई है, उसके गले से आवाज़ निकली है ‘पापा!मम्मी!” वे बोले,

“वहाँ से अपनी पत्नी और बहन जी को बोलिए, ज़रा बाहर आ जाएँ, मैंने कुछ बातें करनी हैं नुपुर से” मैंने कहा,

“अच्छा गुरु जी” वे बोले और फिर ऊपर कमरे में जाने के लिए सीढियां चढ़ने लगे!

वो वापिस आये, और फिर मै और शर्मा जी नुपुर के कमरे में चल दिए! नुपुर अपनी पीठ पलंग की पुश्त पर टिकाये बैठी थी, अन्दर आते ही उसने नमस्ते की हमसे!

“कैसी हो नुपुर?” मैंने पूछा,

“ठीक लग रहा है मुझे अब” उसने बीमार सी आवाज़ में कहा,

“कहाँ दर्द है?” मैंने पूछा,

“गले में और पेट में” उसने कहा,

“सुरेश जी, आप आधा गिलास पानी लाइए” मैंने कहा,

वे पानी ले आये! मैंने पानी का गिलास हाथ में लिया और उसको अभिमंत्रित कर दिया!

“ये लो नुपुर ये पानी पी जाओ, दस मिनट के भीतर उलटी आएगी, तुम उलटी कर लेना, ठीक है?”

उसने गर्दन हिल के सहमति जताई,

नुपुर ने पानी लिया और पी गयी!

“सुरेश जी, एक तसला लाइए जल्दी से” मैंने कहा,

सुरेश बाहर से तसला ले आये,

“नुपुर उलटी इसमें करना, ठीक है?” मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“जी” उसने फिर से गर्दन हिलाई,

अभी कोई पांच मिनट बीते होंगे, नुपुर को उबकाई शुरु हो गयीं! उसके पास तसला रख दिया गया, उसने उलटी करनी शुरू कर दी, उलटी करने के बाद वो बिस्तर पर पसर गयी, मैंने वो तसला उठाया और बाहर चला गया! तसले में गौर से देखा! तसले में कामिया सिन्दूर से रंगे जौ के दाने दिखाई दिए! ये था नुपुर की तबियत खराब होने का कारण! जौ के दाने बाहर निकल गए थे, अर्थात अब नुपुर ठीक होना शुरू हो जायेगी! मातंग-मन्त्रों ने अपना काम कर दिया था! मैंने तब उस उलटी में भस्म की एक चुटकी डाल दी, वो अब ‘ठंडा’ हो गयी थी! मैंने सुरेश को बुलाकर वो जौ के दाने दिखा दिए! उनकी आँखें फटी की फटी रह गयीं!

“ये क्या है गुरु जी?” सुरेश ने पूछा,

“ये मोहन-पाश है सुरेश जी!” मैंने कहा,

“मोहन-पाश?” उन्हें अजीब सा लगा सुनकर,

“हाँ मोहन-पाश!” मैंने बताया,

“वो किसलिए?” सुरेश ने पूछा,

“कोई सम्मोहिनी-विद्या में बांधना चाहता है इसको” मैंने बताया,

“कौन?” उन्होंने पूछा,

“ये मै बाद में बताऊंगा” मैंने कहा,

जी अच्छा” वे बोले,

“अब आप ये समझ लो कि नुपुर ठीक हो गयी!” मैंने कहा,

“आप की कृपा है गुरु जी और हमारा भाग्य!” उन्होंने कहा,

“उसको डॉक्टर को दिखा दो, सुधार होता जाएगा!” मैंने कहा,

“जी” वे बोले,

“एक काम और, मै कल फिर आऊंगा आपके पास” मैंने कहा,

“जी” वे बोले,

“आप थोडा सामान मंगा के रखना, शर्मा जी बता देंगे!” मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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जी!” वे बोले

शर्मा जी ने सामान लिखवा दिया उनको!

 

उसके बाद हम वहाँ से वापिस आ गए, सफलता का एक चरण तो पूरा हो चुका था, अब शेष पर कार्य करना था, इसीलिए मै अपने साथ नुपुर का एक कपडा ले आया था जांच के लिए, इस से पुख्ता जानकारी मिल जानी थी! हम वापिस आये और सामग्री भी लेते आये अपने साथ, रात्रि-समय इसकी आवश्यकता थी इसीलिए!

रात्रि हुई तो मै अब क्रिया में बैठा, जांच यही करनी थी कि आखिर वो कौन मान्त्रिक है जिसने ऐसा घटिया शक्ति-प्रयोग कर डाला था उस लड़की पर, क्या मान्त्रिक ने स्वयं अपने उद्देश्य के लिए ऐसा कहा था अथवा किसी और अन्य व्यक्ति के लिए? अब मैंने अलख उठाई, अलख भोग अर्पित किया और त्रिशूल से भूमि पर एक बड़ा सा त्रिभुज काढ़ा, उसमे नुपुर का वो कपडा रखा और फिर मंत्रोच्चार किया!

करीब बीस मिनट के बाद आँखें खोलीं और कपडा उठाया, कपडे को सूंघा तो गेंदे के फूलों की महक आई उसमे! फिर दुबारा से सूंघा तो केसर की सी महक आई! मैंने फिर से उसी त्रिभुज में रख दिया कपडा और जल के छींटे मारने के बाद मैंने फिर से कपडा उठाया और फिर सूंघा, अबकी बार उसमे से शहद की गंध आई! बस ये प्रयोग मात्र तीन बार ही किया जा सकता है, अतः मैंने वो कपडा एक तरफ रख दिया, अब तीन गंधों का पता लग चुका था, गेंदे की, केसर की और शहद की! ये सब मोहिनी-विद्या में प्रयुक्त होने वाली आम वस्तुए हैं! परन्तु मोहिनी-विद्या कौन चला रहा था? यदि मोहन-पाश में बांधना होता तो वो उसको इस तरह से पीड़ित नहीं करता? तो फिर इसका कारण किया था? कौन है वो??

इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए मैंने अब खोजी-खबीस को हाज़िर किया! खोजी फ़ौरन ही हाज़िर हुआ! मैंने खोजी को अपना उद्देश्य बताया, कपडा दिखाया, उसने सूंघा और फिर मैंने उसको रवाना कर दिया! खोजी उड़ चला द्रुत-गति से!

खोजी वापिस आया करीब दस मिनट में! उसको जो भी पता चला था वो ये कि ये मोहन-पाश डालने वाला मान्त्रिक है महामंडलेश्वर का एक मान्त्रिक जोगीराज! और ये मुरादाबाद से थोड़ा आगे रहता है अपने आश्रम में! अब मैंने खोजी का शुक्रिया किया! उसको उसका भोग दे दिया! खोजी प्रसन्न हुआ और ठहाका लगाते हुए वापिस हो गया! रहस्य की एक कड़ी खुल गयी थी! शेष बाकी थी! अब इस जोगीराज के बारे में पता लगाना था और इस बारे में सुरेश और


   
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श्रीशः उपदंडक
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उसकी पुत्री नुपुर ही बता सकते थे! अब मै क्रिया से उठा, अलख-नमन किया और कक्ष से बाहर आ गया!

शेष रात्रि सोने में बिता दी!

प्रातः हुई,फिर करीब दस बजे शर्मा जी आ गए, मैंने उनको एक एक बात से अवगत करा दिया! ऐसी हरकत सुनकर उनको ताव तो आना ही था! बोले, “उस साले हरामज़ादे को सबक सिखाओ गुरु जी!”

“सिखाऊंगा! अवश्य सिखाऊंगा!” मैंने कहा,

“मान्त्रिक है और ऐसे दुष्कर्म?” उन्हें क्रोध आया!

“जब स्वयं-विवेक पर ऐन्द्रिक-सुख का आवरण चढ़ जाता है शर्मा जी, तब व्यक्ति पथभ्रष्ट हो ही जाता है, तब क्या मान्त्रिक और क्या तांत्रिक! और क्या अवधूत!” मैंने कहा,

“तो ये साले हराम के जने जब शक्ति संभाल नहीं सकते तो करते ही क्यूँ हैं ऐसा साधना-प्रपंच? किसी रंडीखाने के दलाल क्यूँ नहीं बन जाते?” उन्होंने ताव से कहा!

“मैंने बताया ना, जब मति मारी जाती है तो व्यक्ति को अपनी आयु, समाज के प्रति कर्त्तव्य, अपने परिवार के प्रति कर्त्तव्य एवं दायित्व, सामाजिक निज-निष्ठां का ध्यान नहीं रहता, वो किसी काम-पिपासा से बौराए हुए श्वान के भांति भटकता रहता है!” मैंने कहा!

“मेरे सामने होता तो साले को नंगा करके इसके **** में चाकी का चाक बाँध कर सड़कों पर घुमाता हरामज़ादे को!” उन्होंने गुस्से से कहा,

उनके इस वाक्य से मेरी हंसी फूट पड़ी! चाकी का चाक!

“कोई बात नहीं, देखते हैं कितना बड़ा मान्त्रिक है, पता चल जाएगा!” मैंने कहा,

“मुझे तो ऐसा गुस्सा आ रहा है कि साले की दाढ़ी पकड़ के, नंगा करके बीच चौराहे पर बरतन मंजवाने बिठा दूँ!” उन्होंने कहा!

मेरी फिर से हंसी फूट पड़ी!

“चलिए, अब चलते हैं सुरेश के घर” मैंने कहा,

“हाँ गुरु जी, चलिए” उन्होंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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शर्मा जी ने गाड़ी स्टार्ट की और हम फिर चल पड़े सुरेश के घर की ओर, सुरेश को अपने आने की इत्तला कर दी थी शर्मा जी ने, ये भी पूछ लिया था कि नुपुर पहले के अपेक्षा बहुत अच्छी है अब! ऐसा सुनकर अच्छा लगा हमको!

हम करीब पौने घंटे में पहुँच गए वहाँ! सुरेश हमको वहीँ खड़े मिले! नमस्कार करने के पश्चात हम घर के अन्दर घुसे, उनकी पत्नी और उनके बेटे-बेटियों ने भी नमस्कार किया! हम वहाँ एक कमरे में जा बैठे!

“अब कैसी है नुपुर?” मैंने पूछा,

“आपके आशीर्वाद से बहुत ठीक है!” उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा,

“खाना खाया उसने?” मैंने पूछा,

“हाँ जी, हल्का-फुल्का खाया है, कल हम उसको ले गए थे डॉक्टर के पास, डॉक्टर ने कुछ दवाईयां दीं हैं और कहा है कि लड़की के तबियत में चमत्कारिक रूप से सुधार हुआ है!” वे बोले,

“चलिए अच्छा हुआ!” मैंने कहा,

“सब आपकी कृपा है गुरु जी!” उन्होंने हाथ जोड़ के कहा,

अब तक चाय आ गयी! हम चाय पीने लगे! तभी मैंने उसने प्रश्न किया, “सुरेश जी, एक बात बताइये?”

“जी पूछिए?” उन्होंने कहा,

“मुरादाबाद में कौन है आपका जानकार?” मैंने सीधे सीधे ही पूछा,

“जी वैसे तो कोई नहीं, कोई रिश्तेदार नहीं, हाँ हमारे परिवार के गुरु जी हैं वहाँ” उन्होंने बताया,

“कौन हैं?” मैंने पूछा,

“उनको अमरनाथ बाबा कहते हैं सभी” उन्होंने बताया,

“क्या उम्र होगी?” मैंने पूछा,

“यही कोई सत्तर-पचहत्तर वर्ष” उन्होंने बताया,


   
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मुझसे आश्चर्य हुआ!

“और ये जोगीराज कौन है?” मी सवाल किया,

“ये, ये इनका मंझला पुत्र है जी” उन्होंने कहा,

“उम्र क्या होगी?” मैंने पूछा.

“यही कोई चालीस वर्ष” वे बोले,

“हम्म! ठीक है” मैंने कहा,

“वो तो हमारे घर भी आते रहते हैं” वो बोले,

“कौन?” मैंने पूछा,

“जोगीराज जी” उन्होंने बताया!

मुझे मेरा लक्ष्य और प्रश्न का उत्तर मिल गया था! शंका का समाधान हो गया था!

 

“पिछली बार कब आया था ये जोगीराज?’ मैंने पूछा,

“कोई दस दिन पहले आये थे, नुपुर का हाल पूछने” वे बोले,

“अच्छा! तो जब नुपुर की तबियत जब खराब थी, तब आपने इस जोगीराज को नहीं बताया था की नुपुर की तबियत खराब है?” मैंने पूछा,

“बताया था” उन्होंने कहा,

“फिर? क्या बोला वो?” मैंने पूछा,

“बोले कि कोई औघड़ी-क्रिया लगती है, और उनके पास इसकी कोई काट नहीं है, वो बता देंगे शीघ्र ही कि किसके पास जाएँ” उन्होंने बताया,

“कभी बताया?” मैंने पूछा,

“हाँ, बताया था” वे बोले,

“क्या बताया था?” मैंने पूछा,

“उन्होंने ही हमे गढ़-गंगा वाले बाबा का पता बताया था” उन्होंने कहा,


   
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अब मुझे झटका लगा! वो गढ़-गंगा वाला बाबा भी इस जोगीराज का सहयोगी है! और वो ओझा भी उसीका चमचा है! इसीलिए उसने एक हफ्ते रुकने के लिए कहा था! क्या साजिश थी! सोची समझी साजिश! जोगीराज का महाजोग!

“अच्छा! और क्या आपने जोगीराज को बताया कि गढ़-गंगा वाले बाबा ने क्या कहा था और आपने क्यूँ मना किया था?” मैंने पूछा,

“हाँ जी बताया था मैंने, बड़े क्रोधित हुए, कहने लगे अब नहीं आना हमारे पास, हमने अपमान किया है उनका आदि आदि” उन्होंने बताया,

“हम्म! तो ये है माजरा!” मैंने कहा,

“क्या माजरा गुरु जी?” उन्होंने हैरत से पूछा,

“बताता हूँ, हमे नुपुर के पास ले जाइये” मैंने कहा,

“चलिए न गुरु जी” वे बोले और हमे साथ लेकर नुपुर के कमरे में ले गए, नुपुर चादर ओढ़े सो रही थी, सुरेश ने उसको आवाज़ देकर जगाया, वो जाग गयी, उसने नमस्ते की और हमने उसका जवाब भी दिया!

“अब कैसी हो?’ मैंने पूछा,

“पहले से ठीक हूँ” उसने बताया,

“अब दर्द तो नहीं?” मैंने पूछा,

“नहीं” उसने संकोचवश कहा,

“नुपुर, मै कुछ पूछना चाहता हूँ तुमसे, कुछ नहीं छिपाना, शरमाना भी नहीं, ठीक है?” मैंने पूछा,

“ठीक है” उसने कहा,

“जोगीराज को जानती हो?” मैंने पूछा,

“हाँ, हमारे गुरु जी हैं” उसने बताया,

“वो यहाँ आते हैं तुम्हारा हाल पूछने?” मैंने पूछा,

“हाँ, आते हैं” उसने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“याद करो, करीब आठ महीने पहले, जब आप सब लोग बद्रीनाथ से आये थे तो जोगीराज ने तुम्हे कुछ खिलाया था, प्रसाद वगैरह?” मैंने पूछा,

“वहाँ से आने के बाद हमने भंडारा करवाया था, जोगीराज भी आये थे” उसने कहा,

“कुछ खिलाया था?” मैंने पूछा,

“हाँ, लड्डू खिलाये थे दो” उसने बताया,

उसने जवाब दिया और मैंने और शर्मा जी ने एक दूसरे की शक्ल देखी!

“घर में किसी और को भी दिए थे या खिलाये थे?” मैंने पूछा,

“जी ये नहीं पता मुझे” उसने कहा,

अब मैंने सुरेश से पूछा,”क्या आपको भी दिए थे लड्डू?”

“नहीं जी, वो आये थे, पूजा की और चले गए थे भोजन-सामग्री बंधवा कर ले गए थे अपने साथ” उन्होंने खुलासा किया!

तो यहाँ लड़ाया था तिकड़म उस तिकडमबाज मान्त्रिक ने!

“ठीक है, नुपुर, अब आराम करो” मैंने कहा,

अब हम वहाँ से निकले और बाहर आ गए! आ कर मै और शर्मा जी घर से बाहर आ गए, गाड़ी में बैठे तो शर्मा जी ने गुस्से से कहा, “इसकी बहन को **!!! हरामज़ादा खेल गया खेल! ”

“शर्मा जी, ये खेल वैसा नहीं है जैसा आप सोच रहे हैं” मैंने कहा,

“मतलब?” उन्होंने विस्मित हो कर पूछा,

“मतलब बताता हूँ, सुनिए, यदि उस मान्त्रिक को अपनी काम-पिपासा शांत करनी होती तो वो इतना लम्बा प्रपंच नहीं लड़ाता! ऐसे लोगों के पास बहुत प्रबंध होते हैं! और फिर वो ओझा, गढ़ वाला बाबा, वो हफ्ता भर रुकना, ये सब एक साजिश है नुपुर के साथ!” मैंने कहा,

“ओह! सही कहा आपने, मेरी समझ में अब आया, कोई छिपा हुआ खेल है इसमें, लेकिन क्या खेल है, ये समझ में नहीं आ रहा!” उन्होंने सिगरेट का धुंआ छोड़ते हुए कहा,

“जब यहाँ तक आ गए तो वहाँ भी पहुँच जायेंगे!” मैंने कहा,

“हाँ गुरु जी!” वे बोले,


   
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