थैला अचानक फट पड़ा हो! अब मुझसे रहा न गया! मै उठा, कराल-मंत्र पढ़ा और अपना त्रिशूल तीन बार भूमि पर मारा! साधिका ने मुझे देखा और वरुण को नीचे छोड़ा और मेरी तरफ बढ़ी! भयावह रूप मे! मै भी आगे बढ़ा और शर्मा जी को वहाँ से भागने को कह दिया, शर्मा जी वहाँ से भागे! अब वहाँ केवल मै और वो साधिका ही थे! महामाया क्रोधित थी! अत्यंत क्रोधित! साधिका दौड़ के मेरे सामने आई, मैंने त्रिशूल आगे किया, वो ठहरी! मैंने तभी विमोचिनी का आह्वान किया! महामाया ने आकाश की ओर देखा और फिर मेरी तरफ! विमोचिनी प्रकट हुई और महामाया शांत!
साधिका नीचे गिरी! अकड़ी और शिथिल हो गयी! मैंने विमोचिनी को नमन किया और विमोचिनी वापिस हुई!
अब मैंने जा कर वरुण को देखा, उसकी हालत खराब थी, वो दोनों चेले भाग कर शभू और दूसरे लोगों को ले आये थे, अजेय नाथ अचेत पड़ा था और वरुण भी, सभी ने उन दोनों को उठाया और गाडी में डाला और फ़ौरन ही अस्पताल ले गए उनको, मैंने साधिका को देखा, वो अचेत पड़ी थी, तब तक साधिका की सरंक्षिका आ चुकी थी, उसने और मैंने मिल कर उसको उठाया और फिर कमरे में ले गए!
उस रात मै शर्मा जी के साथ वहीँ रहा, स्नान आदि के पश्चात हम सो गए और फिर मेरी नींद सुबह आठ बजे खुली, शम्भू आ चुका था, मैंने शम्भू से उन दोनों का हाल पूछा, दोनों अस्पताल में दाखिल करा दिया गए थे, मैंने अस्पताल का पता लिया और वहाँ से निकल पड़ा,
अस्पताल पहुंचा, अजेय नाथ को होश आ गया था लेकिन वरुण अभी भी बेहोश था, उसने मुझ से आँखें मिलाईं, और कुछ देर में उसकी आँखों में आंसू आ गए!
मित्रगण, मै वहाँ और दो दिन ठहरा, अपनी साधना पूर्ण की और नित्य ही जाकर दोनों को देखा, वरुण को भी होश आ गया था लेकिन किसी से बात नहीं कर पा रहा था, वरुण के परिजन भी वहाँ आ गए थे, मैंने सभी को देखा,
दो दिनों के बाद मेरी वापसी हुई दिल्ली और अगले दिन मुझे खबर मिली कि वरुण की स्थिति बिगड़ने के कारण उसकी मौत हो गयी, अजेय नाथ बच गया था,
मित्रगण! तंत्र न खेल है न शौक़! जो शक्तियां आपको शक्ति प्रदान करती हैं वही चूक होने पर आपके प्राण भी हर सकती हैं!
मै वरुण को यही समझाना चाहता था, परन्तु उसके खोखले हठ ने उसके प्राण ले लिए!
----------------------------------साधुवाद---------------------------------
