वो लड़का होगा कोई बाइस या तेइस साल का, इस से अधिक नहीं था, शमशान के एक कोने में उसकी एक बड़ी गाडी कड़ी थी, उसमे एक औघड़ अपने २ साथियों के साथ बैठा हुआ था, लड़के के सामने एक चित जल रही थ, लड़का पूर्ण-नगनावस्था में, चिता-भस्म लपेटे मन्त्र-जाप किये जा रहा था, वो लगाता चिता-भोग देता, जैसा उसको उसके गुरु औघड़ ने सिखाया था! ये औघड़ काशी के पास का था, नाम था अजेय नाथ! और उस लड़के का नाम था वरुण!
मैंने अपने जानने वाले औघड़ दीपाल से पूछा उस लड़के के बारे में, " सुनो, ये लड़का कौन है?"
"ये लड़का दरअसल कानपुर के एक उद्योगपति का लड़का है, आजकल यहीं इस औघड़ अजेय नाथ के साथ रहता है" उसने बताया,
"क्यूँ? क्यूँ रहता है वो साथ इसके?" मैंने पूछा,
"आप स्वयं देख लीजिये" उसने कहा,
"साधना करवा रहा है ये औघड़ उसको?" मैंने पूछा,
"हाँ, सुना है आफी मोटी एवज मिली है इस औघड़ को" उसने बताया,
"एवज के बदले सिद्धि!" मैंने कहा,
"हाँ! ऐसा ही समझो आप" उसने बताया,
"और कोई अनहोनी हो गयी तो?" मैंने पूछा,
"ये बैठा है ना औघड़, ये कर रहा है इसका सरंक्षण!" उसने बताया,
"और इसको यहाँ आने किसने दिया? शंभू ने?"
"हाँ, सही समझे आप, वही है इस जगह का करता-धर्ता आजकल!" उसने बताया,
मित्रो! ये कहानी है काशी के पास एक शमशान की! एक लड़के वरुण की, जो साधक बनना चाहता था लघु-मार्ग से! चूंकि वो एक उद्योगपति घराने से सम्बन्ध रखता था इसीलिए धन की
कोई कमी उसके पास नहीं थी! लड़के ने स्वेच्छा से ये मार्ग चुना था और माध्यम था वो औघड़ अजेय नाथ! ऐसे औघड़ जो धन-लोलुप होते हैं!
"ये लड़का कब से आ रहा है यहाँ?" मैंने पूछा,
"कोई बाइस पच्चीस दिन हो गए आज" उसने बताया,
"अच्छा! अर्थात बिना त्रिखंड सीधा ऊर्ध्व-लोक!" मुझे हैरत हुई!
"हाँ!" उसने कहा,
"और आजकल ये क्या कर रहा है?" मैंने पूछा,
"ये महामाया साधना कर रहा है!" उसने बताया,
"अच्छा! तदोपरान्त सीधे ही यक्षिणी साधना!" मैंने कहा,
"हाँ" उसने सहमति जताई!
"ये औघड़ इसको तो मरवाएगा ही खुद भी मरेगा!" मैंने कहा,
"पता नहीं, लेकिन लड़का कुशाग्र बुद्धि है, सब कुछ सही ढंग से करता है!" उसने बताया,
अब मैंने ऑस औघड़ को देखा जो उस लड़के के एक बड़ी सी गाडी में पाँव पसारे लेता हुआ था, उसके चेले उसके पाँव दबा रहे थे!
"हरामजादा!" मेरे मुंह से निकला!
अब मुझसे रहा ना गया, मै वहाँ से उठा और उस लड़के के पास गया, उस लड़के ने मुझे देखा और अपने मंत्र पढता रहा, मेरे वहाँ जाने पर उस औघड़ के चेलों ने अपने गुरु को बताया तो वो सकपका के गाडी से बाहर निकला, दौड़ के मेरे पास आया, और बोला, "क्या परेशानी है जी आपको?"
"ये तेरा चेला है?" मैंने पूछा,
"हाँ, तो?" उसने गुस्से से कहा,
"क्या करवा रहा है तू इसे?" मैंने पूछा,
"मेरी मर्जी, तू हट यहाँ से, तू जानता नहीं मै कौन हूँ?" उसने दंभ से कहा,
"साले, कुत्ते, तू तो मरेगा ही, इसे भी मारेगा?" मैंने कहा,
"ओये सुन, गाली-गलौज ना करना, तू अभी नया नया आया है शंभू के यहाँ,इसीलिए छोड़ दिया मैंने, नहीं तो इसी चिता पर लिटा देता मै तुझे!" उसने अपने चेलों और उस लड़के को दिखाने के लिए ऐसा कहा!
"सुन हराम की औलाद, जा शंभू से पूछ कि मै कौन हूँ, फिर बात करना!" मैंने कहा,
अब वो ऐसा सुन के थोडा कसमसाया! और अपने चेलों को वहीँ छोड़ वहाँ से शंभू के पास चला गया!
अब मैंने उस लड़के से कहा, "ओ लड़के, काहे को जान गंवाता है अपनी तू?"
लड़के ने मुझे देखा और लगातार मंत्र-जाप करने लगा! ऐसा हो-हल्ला सुन कर शर्मा जी भी वहाँ आ गए!
"सुन लड़के, अब उठ जा यहाँ से!" मैंने धमकाया उसे!
लड़के ने अब मंत्र-जाप बंद किया और उन दोनों चेलों को देखा, और फिर उठ गया, और मुझ से बोला," आप क्यूँ मेरी साधना भंग कर रहे हैं?"
"अभी बताता हूँ, पहले अपना सामान बाँध!" मैंने कहा, "सुन लड़के, पैसे से तंत्र-मंत्र कराये तो जा सकते हैं लेकिन सीखे नहीं जा सकते, किस कमीं ने तुझे ये सुझाव दिया है? ये तेरी पढ़ाई करने की उम्र है, अपना जीवन पहले, सारी उम्र पड़ी है, सीखने के लिए" मैंने उस से कहा,
"नहीं, मै पढाई ख़तम कर चुका हूँ, जब छोटा था, तब से सीखना चाहता था मै, अब मौका मिला है, काफी भटकने के बाद" उसने बताया,
"कमाल है! वो भी कैसा पिता है जिसने तुझे मरने के लिए इस हरामजादे औघड़ के साथ सौंप दिया!" मैंने कहा,
"मुझे मेरे पिता जी ने ही आज्ञा दी है" उसने बताया,
"क्या करेगा सीखने के बाद?" मैंने पूछा,
"मै इसमें पारंगत होना चाहता हूँ, चाहे कितना भी समय लग जाए, प्राण-न्योछावर करने के लिए भी तैयार हूँ" सुने कहा,
"प्राण तो तेरे जायेंगे ही, ये मै कहे देता हूँ, तेरा हठ तुझे मार डालेगा एक दिन, थोड़ी सी चूक और तू इस संसार से विदा!" मैंने बताया,
"उसकी आप चिंता ना करें, मै अपना भला बुरा जानता हूँ" उसने कहा,
वो हाथ पर अड़ा था, बालक-बुद्धि था! और ये औघड़ उसको समझाने से तो दूर, उसको ही वेदी में झोंक रहा था! किसी भी महाप्रेत की एक लात का वार वो लड़का नहीं सह सकता था, उसकी रीढ़ की हड्डी के साथ साथ उसकी पंसलियाँ भी टूट जातीं!
"एक बात बता, तुझे त्रिखंड-सिद्ध कराया है इसने?" मैंने पूछा,
"वो क्या होता है?" उसने जवाब दिया,
"मतलब कि बिना दसवीं पास किये सीधा स्नातक की परीक्षा में बैठ गया है तू" मैंने बताया,
"नहीं कराया तो करा देंगे गुरु जी" उसने बिना संकोच उत्तर दिया!
अभी मै उस से बात कर ही रहा था कि अजेय नाथ अपने साथ शम्भू को ले आया, अजे नाथ बोला,"ये देखिये, ये है वो जो बाधा डाल रहा है" उसने मेरी तरफ इशारा किया!
शम्भू ने मुझे देखा, शम्भू की उम्र होगी कोई साठ के आसपास, आजकल वो स्थान-अवलोकन ही करता था, क्रिया-कर्म त्याग चुका था, एक आँख भी खराब हो गयी थी, शम्भू ने मुझसे कहा, "आप इधर आइये तनिक"
मै उसके साथ एक अलग जगह चला गया, और फिर वो बोला,"सुनिए, जो कर रहा है ये करने दो, ये लड़का जब कुछ देखेगा तो अपने आप ही मना कर देगा"
"अर्थात तुम इसको मरवा के ही छोड़ोगे" मैंने कहा,
"नहीं, ऐसा नहीं है, अभी इसके सामने कुछ आया नहीं है, इसीलिए जिद पकड़ के बैठा है, अब समझे आप?" उसने कहा,
"हाँ समझ गया! तुझे भी इस अजेय नाथ ने पैसा चढ़ाया है! है ना?" मैंने उसके कंधे पर थाप मारते हुए कहा,
"हाँ! अब मै क्या करता?" उसने कहा,
"इसे मना करता, कम से कम यहाँ नहीं करता ये" मैंने कहा,
"अरे नहीं, सुनिए अब अगर मै मना करता हूँ तो ये लड़का अपने पैसे वापिस मांगेगा" वो बोला,
"और वो पैसे तुम साले सब अय्याशी में हज़म कर चुके हो!" मैंने कहा,
"ऐसा ही समझ लीजिये आप!" उसने हँसते हुए कहा,
मुझे खैर कोई चिंता नहीं थी, बस इतनी कि वो मासूम मौत और जिंदगी के बीच एक पतले धागे पर चल रहा है!
"तुम साले सब हरामजादे हो, एक नंबर के कमीन आदमी, भाड़ में जाओ तुम सारे!" मुझे गुस्सा आया अब!
"अरे शांडिल्य जी, गुस्सा क्यूँ होते हो? आइये मेरे साथ" उसने मेरा हाथ खींचा और वापिस अपने कमरे में ले गया, मैंने पीछे मुड के देखा तो अजेय नाथ के चेलों ने फिर से उस लड़के के लिए आसन बिछा दिया था और क्रिया पुनः आरम्भ हो गयी थी! अजेय नाथ ने अपने त्रिशूल से जलती चिता में से कपाल निकाल कर चिता के ऊपर रख दिया था, अर्थात मसान-क्रिया आरम्भ हो चुकी थी!
"शम्भू नाथ!" मैंने कहा,
"बोलिए?' उसने गर्दन ऊपर उठायी, वो तीन गिलास में शराब डाल रहा था, मैंने दो गिलास उठाये और नीचे गिरा दिए!
"अरे इतना गुस्सा ना करो आप" उसने कहा,
मैंने शर्मा जी से अपना बैग खोलने को कहा और मैंने अपनी मदिरा निकाल ली, पानी लिया और दो गिलास जल्दी जल्दी गटक गया, मुझे भी वहाँ एक स्थान पर साधना करनी थी!
मैंने दो गिलास और पीये और फिर बाहर चला गया, शर्मा जी वहीँ रह गए! मै अपने स्थान की ओर बढ़ चला, मुझे यहाँ तल्लीनता से साधन करनी थी, मैंने अपना आसन लगाया और साधना आरम्भ कर दी, करीब दो घंटे के बाद उठा, वो लड़का वरुण अभी भी वहीँ मंत्र-जाप कर रहा था, अजेय नाथ अपने चेलों के साथ उसकी सहायता कर रहा था, उसके मंत्र-जाप महामाया का पूजन मात्र थे, अब से तीन दिनों के बाद महामाया का आह्वान किया जाना था, और उसके लिए कोई कन्या आवश्यक थी, कन्या जिसका कौमार्य भंग न हुआ हो और जो कभी किसी भी पुरुष के साथ 'अनुचित-कर्म' में लिप्त न रही हो, ऐसी कन्या का प्रबंध ये भंगेड़ी औघड़ करा सकता था! मैंने कुछ देर तक उसके मंत्रोच्चार सुने और उसके बाद में फिर स्नान करने चला गया!
वापिस आया और फिर भोजन कर वहीँ सो गया, सुबह उठकर मै और शर्मा जी वहाँ से चले गए, वहाँ कुछ और काम भी थे, रात्रि-समय फिर से यहीं आना था, अपनी क्रिया करने, मेरी भी क्रिया चार दिनों की शेष थी अभी!
उस से अगले दिन की बात है, मुझे वो लड़का वरुण मिला, उसने मुझसे नमस्ते तो नहीं की, परन्तु आँखों से आँखें अवश्य मिलाईं! मैंने उसको आवाज़ देकर रोंका और अपने पास बुलाया, मैंने कहा, "वरुण, तुम्हारा नाम वरुण ही है न?"
"हां, मेरा नाम वरुण है" उसने कहा,
"कहाँ तक पहुंचे तुम?" मैंने पूछा,
"गुरु जी के अनुसार, अभी तीसरी सीढ़ी पर हूँ" उसने कहा,
"वरुण, तुम इतने अच्छे लड़के हो, क्या कारण है ऐसा जो इस विद्या में घुस गए हो?" मैंने पूछा,
"जी मै छुटपन से ही शौक़ीन हूँ इसका" उसने बताया,
"शौक़ीन?" मुझे सुनकर हैरत हुई,
"वरुण ये शौक़ नहीं प्राण-हरण है, जानते हो?" मैंने कहा,
"गुरु जी हैं न?" उसने कहा,
"बुरा न मानो तो कुछ कहूँ?" मैंने पूछा,
"जी पूछिए" उसने कहा,
"तुम इस औघड़ को कैसे जानते हो?" मैंने पूछा,
"मुझे मिलवाया था किसी ने" उसने कहा,
"किसने?" मैंने पूछा,
"मै बता नहीं सकता" उसने कहा,
"कोई बात नहीं! मै जानता हूँ!" मैंने बताया,
"जानते हैं?" उसने हैरानी से पूछा,
"हाँ, मै जानता हूँ" मैंने कहा,
"बता सकते हैं कौन?" उसने पूछा,
"नंगा बाबा ने, गढ़वाल वाला!" मैंने कहा,
उसने सुना तो जैसे उसके पाँव तले ज़मीन निकल गयी!
"आप कैसे जानते हैं नंगा बाबा को?" उसने पूछा,
"तुम मुझे जानते हो?" मैंने पूछा,
"हाँ शम्भू न बताया था, आप बहुत बड़े औघड़ हैं" उसने कहा,
"नहीं, मै वो नहीं कह रहा, क्या तुमने अजेय नाथ से ऐसा पूछा, मेरे बारे में?" मैंने पूछा,
"गुरु जी ने बताया नहीं मुझे पूछने पर भी" उसने बताया,
"वो बतायेगा भी नहीं" मैंने कहा,
"क्यूँ?" उसे अब उत्सुकता हुई,
"बताता हूँ, अजेय नाथ कुँए वाले बाबा का चेला है, और कुँए वाला बाबा नंगा बाबा का! है या नहीं?" मैंने पूछा,
"हाँ सही कहा आपने" उसने कहा,
"वरुण, ये न तो कोई खेल है और न कोई शौक़!" मैंने बताया,
"तुमने अभी कुछ देखा नहीं यहाँ, जब देखोगे तो साँसें थम जायेंगी तुम्हारी" मैंने चेताया उसको!
"गुरु जी कहते हैं वो संभाल लेंगे सब कुछ" उसने फिर से जिद सी पकड़ ली,
"ठीक है, तुम देख लेना, क्या होगा उस दिन जिस दिन महामाया जागेगी, उसके चौरासी महाप्रेत और बत्तीस डाकिनियाँ आएँगी उसके साथ!" मैंने बताया,
"गुरु जी कहते हैं वो संभाल लेंगे" उसने कहा, लेकिन अडिग ही रहा!
"ठीक है वरुण जब तुम्हे प्राणों का मोह ही नहीं है तो मै क्या कर सकता हूँ!" मैंने कहा,
"मैंने जो ठान लिया वो ठान लिया" उसने कहा,
"तो ठीक है, घर में खबर कर दो" मैंने कहा,
"कैसी खबर?" वो घबरा के बोला,
"अपनी मौत की!" मैंने साफ़ साफ़ कहा,
"मरना तो सभी को है, मौत से क्या डरना!" उसने छाती ठोक के कहा!
"वाह! क्या चेला है तू उसका!" मैंने कहा,
उसके बाद वो वहाँ नहीं ठहरा और वहाँ से अपने गुरु के पास चला गया, जो कि सारी तैयारियां कर चुका था! एक रात और बीती, अगली रात आई, आज श्मशान में अजेय नाथ ने एक कनात लगवा दी थी, क्यूंकि आज रात मध्य-रात्रि में वो कन्या आने वाली थी और महामाया भी जागने वाली थी! इस क्रिया का प्रारम्भ रात्रि समय एक बजकर पैंतालिस मिनट के बाद ही किया जाता है, मुझे न जाने क्यूँ उत्सुकता थी! अजेय नाथ ये कार्य करता तो उचित था, समझ में आता था, लेकिन वो लड़का? बस यही मेरी चिंता का विषय था, कारण था!
खैर, मै अपनी साधना में बैठ गया, मैंने तरी डेढ़ बजे अपनी साधना समाप्त कर ली और फिर मुझे वरुण के लिए एक अनजानी सी चिंता हो रही थी! असल में वजह ये थी कि, महामाय अगर रौद्र रूप में आ जाए तो साधक के अंड-कोषों का रक्त पीती है क्षुधा-पूर्ति हेतु! महा-विकराल साधना है इसकी!
मैंने शर्मा जी को वहाँ बुलाया और कहा, "शर्मा जी, ये बहन का मरवा देगा इस लड़के को, अब आप बताओ क्या किया जाए?"
"आप एक काम करो मारो साले की पे लात, नहीं तो मुझे बताओ, साले को उठा के अभी फेंक दूंगा किसी जलती चिता में!" वो गुस्से से बोले,
"मुझे उस औघड़ की चिंता नहीं, इस लड़के की चिंता है" मैंने कहा,
"गुरु जी, स्पष्ट कीजिये, क्या करना है?" वो बोले,
"एक काम करना, आज आप मेरे साथ रहना, और हाँ, आप मेरे साथ आइये, अभी" मैंने कहा,
"जैसा आप कहो गुरु जी!" उन्होंने कहा,
"थी का आओ फिर" मैंने कहा और उनको वहाँ से दूर एक जगह ले गया, और उनको एक जगह बिठाया और कहा, "सारे वस्त्र उतार कर भस्म-स्नान कर लो, सारे आभूषण धारण का लो, मै आपको अभी मंत्र -रक्षित करता हूँ"
उसके बाद मैंने उनको परिपूर्ण कर दिया, महामाया के लिए परिपूर्ण!
अब मैंने शर्मा जी से कहा," शर्मा जी, आओ चलो"
"चलिए गुरु जी" वो बोले,
अब हम वहाँ से चले और जहां अजेय नाथ जाप करवा रहा था वहाँ आ गए! उसने मुझे देखा और नीचे बैठने का इशारा किया! हम नीचे बैठ गए!
इतने में खबर आ गयी कि उसकी साध्वी कन्या आ चुकी है! अजेय नाथ ने अपने दोनों चेलों को वहाँ भेजा ताकि वो उस कन्या को ले आयें! वरुण जाप को पुनः दोहरा रहा था!
उसकी साधिका आई! वरुण से शरीर में दोगुनी! ये तो मुझे कहीं से भी कौमार्य-सहित न लगी!
अजेय नाथ उठा और उसके साथ आये सभी लोगों को वापिस भेज दिया! अब उस साधिका का अंग-पूजन होना था!
और फिर उसका अंग पूजा आरम्भ हुआ!
अजेय नाथ ने वरुण से भी पूजन करवाया, उसने पूजन किया और फिर हुआ क्रिया का वास्तविक स्वरुप का आरम्भ!
उस कन्या को नीचे बिठाया गया, उसके वस्त्र उतारे गए, उसको हर्द-स्नान कराया गया, और उसकी योनि का महा-पूजन हुआ!
मै क्रम से सब देख रहा था! लेकिन बोल कुछ नहीं रहा था! मै जानता था नियति का निर्णय!
तभी अजेय नाथ ने अपना त्रिशूल उठाय और गर्राया," महामाया जाग जाग!"
अब मैंने अपने और शर्मा जी के ऊपर, त्रि-आकाश मन्त्र का जाप किया और अशक्त आकर लिया!
वो जो सादवी थी, उसको मदिरा, मांस और धतूरे का रस पिलाया गया, वो कुछ समय पश्चात उन्मत्त हो गयी! नृत्य-मुद्रा में आ गयी!
अब मैंने शर्मा जी से कहा, "अब आप देखना. कुछ क्षणों पश्चात यहाँ फूल गिरेंगे, फिर हाड-मांस!"
"ये बहन का क्या कर रहा है?" वो बोले.
"अपनी मौत का आह्वान!" मैंने कहा!
"ओह! गुरु जी, आज इस लड़के को मैंने अच्छी तरह से जान गया हूँ, पागल है!" उन्होंने कहा,
"शर्मा जी, अगर महामाया का आज आह्वान हुआ, तो समझ लीजिये ये लड़का जिंदा नहीं आज!" मैंने बताया!
"ओह गुरु जी, ऐसा न होने दीजिये आप!" वो बोले,
"रुकिए! तनिक रुकिए!" मैंने कहा,
अब उस साधिका को मदिरा पिलाई गई!!! साधिका को चिता के सम्मुख लाया गया, उसको महामाया प्रवेश हेतु तैयार किया जा रहा था, साधिका मजबूत देह वाली थी, उन्मत्त होने पर ही उसका रूप पता चल रहा था, अब अजेय नाथ ने उसमे शक्ति-प्रवेश हेतु मंत्रोच्चार आरम्भ किया और वरुण को अपने चिमटे से स्पर्श करता रहा, वरुण अजेय नाथ के सिखाये मंत्रो का जाप कर रहा था, उसके चेहरे पर घबराहट और चिंतित होने के भाव स्पष्ट थे!
साधिका निरंतर झूमे जा रही थी, उठ उठ कर नृत्य-मुद्रा में आ जाती थी, और हम सभी साधकों को घूरती जाती थी! शनैः शनैः उसमे शक्ति-संचार होता जा रहा था! तभी अचानक से वो उठी और फिर भूमि पर लेट गयी! फिर अचानक उठ गयी! उसमे महामाया सहोदरी उर्मिक्षा का प्रवेश हो गया था!
अजेय नाथ उठा और अपना चिमटा हवा में उठा के लहराया! आगे बढ़ा और साधिका के पास गया! साधिका ने उसको उसके बालों से पकड़ कर नीचे गिरा दिया! और फिर उसकी छाती पर चढ़ बैठी! और मुंह से आलाप करने लगी! ये तो मात्र अभी उर्मिक्षा ही थी! बत्तीस सहोदारियों में से सबसे छोटी! जो महामाया-प्रवेश हेतु साधिका की देह को शुद्ध करने सबसे पहले आती है!
वो साधिका अजेय नाथ की छाती पर बैठी हुई जोर जोर से उछल रही थी, अजेय नाथ के मंत्र ज़ारी थे! यहाँ वरुण अत्यंत चकित भाव से अजेय नाथ और उस साधिका को घूरे जा रहा था!
मैंने तब शर्मा जी को देखा वो भी वो दृश्य देखे जा रहे थे! मैंने कहा, "देखिये शर्मा जी, शक्ति-संचार-कर्म आरम्भ हो चुका है!"
"हाँ गुरु जी, प्रत्यक्ष है!" उन्होंने कहा,
"उस लड़के को देखिये तनिक!" मैंने कहा,
"हाँ घबरा सा गया है!" वो बोले,
"हाँ, अजेय नाथ उर्मिक्षा को संभाल रहा है और आगे का मार्ग प्रशस्त कर रहा है!" मैंने बताया,
"अच्छा!" उन्होंने कहा,
तभी साधिका उठी और और भूमि पर गिर गयी! अजेय नाथ उठा और उसको नमस्कार किया! अजेय नाथ ने वरुण को बुलाया और साथ ही साथ मंत्रोच्चार भी करवाता रहा, वरुण उस
साधिका को देखे जा रहा था! अब उसमे ह्रौं-मुंडी आने वाली थी! ह्रौं-मुंडी महामाया की एक और सहोदरी है जो महामाया का स्थान साफ़ करती है! ये ह्रौं-मुंडी अत्यंत क्रोधित होती है! साधक को मारती-पीटती है, कभी कभार लहू-लुहान भी कर देती है!
अजेय नाथ तत्पर था! और वरुण का हाथ थामे हुआ था! तभी अचानक से साधिका उठी, अपने बाल अपने मुंह में डाले और फिर रौद्र-नृत्य आरम्भ किया! ह्रौं-मुंडी आ चुकी थी!
मैंने अब खड़ा हुआ और शर्मा जी को भी खड़ा किया! शर्मा जी को अपने पीछे किया और फिर अपना त्रिशूल अभिमंत्रित कर लिया! उधर अजेय नाथ ने भी ऐसा ही किया! वरुण को अपने पीछे खड़ा किया और स्वयं ह्रौं-मुंडी के समक्ष खड़ा हो गया!
अजेय नाथ ह्रौं-मुंडी के मंत्र पढ़ रहा था, विदाई-मंत्र! तभी साधिका ने अपने बाल मुंह से निकाले और एक घनघोर अट्टहास किया! उशर वरुण की कंपकंपी छूटी! अजेय नाथ भूमि पर चौकड़ी मार के बैठा और वरुण को भी बिठाया! साधिका उठी और एक जोर की लात मंत्र पढ़ रहे अजेय नाथ की छाती में मारी, उसकी आवाज़ रुंध गयी, वो भूमि पर गिर पड़ा! उसके अस्थि-माल टूट पड़े! अजेय नाथ के ऊपर प्रहार भीषण हुआ था, उसको संभलने में समय लगा! किन्तु उधर वरुण ने अजेय नाथ के सिखाये मंत्र निरंतर पढ़े! ह्रौं-मुंडी ने खड़े-खड़े ही हिलना और आलाप करना आरम्भ किया! और चिता और हम सभी साधकों के चारों ओर नृत्य करना आरम्भ किया!
अब तक अपनी छाती सहलाता अजेय नाथ भी संभल गया और फिर से बैठ गया! साधिका फिर से वहाँ आई! और वरुण के पीछे खड़ी हो गयी! भयानक अट्टहास किया और फिर नीचे बैठे वरुण की पीठ पर थूका! और बैठ गयी! वरुण उसका वजन बड़ी मुश्किल से सह रहा था! किन्तु मंत्र पढना ज़ारी रखा!
साधिका उठी, वरुण के सामने आई और फिर से पीछे गयी! पीछे जाते ही साधिका ने वरुण की कमर पर एक जोर की लात जड़ी! वरुण आगे की ओर उछल गया! चेहरे के बल नीचे गिरा! नाक की नकसीर फूट पड़ी! उसने अपने बहते रक्त को अपने हाथों से साफ़ किया! बस यहीं उस से भयानक गलती हो गयी!
अपने हाथ से रक्त पोंछने का अर्थ था ह्रौं-मुंडी को चेतावनी देना! उस से युद्ध करना! अजेय नाथ समझ गया! वो उठा और वरुण के ऊपर लेट गया! ह्रौं-मुंडी क्रोधित हो गयी! क्रंदन करती हुई वो दोनों पर टूट पड़ी! उसने दोनों को उठाया और भूमि पर दे मारा! अजेय नाथ के मुख से मंत्रोच्चार टूट गए और वरुण चारों खाने चित हो गया! बेहोश! ह्रौं-मुंडी ने अजेय नाथ का त्रिशूल उठाया और अजेय नाथ के सर पर दे मारा! सर से रक्त-धारा फूट पड़ी! मई शर्मा जी को
ले कर पीछे मुद गया, थोडा सा! परन्तु मेरे हिलने से उसने ये भांप लिया और वो त्रिशूल लेकर अब मेरे और शर्मा जी की तरफ मुड गयी! वहाँ वरुण और अजेय नाथ भूमि पर पड़े थे, उसके चेले जैसे पत्थर बन गए थे! और यहाँ साधिका त्रिशूल उठाये मेरी तरफ बढ़ रही थी, तेज तेज साँसें लेती हुई! भयावह माहौल हो गया था, और कोई मार्ग न देख अब मुझे क्रिया में कूदना पड़ा! मैंने त्रिकाल-वाहिनी मंत्र पढ़कर अपना त्रिशूल साधिका के समक्ष कर दिया! इस मंत्र का प्रयोग शक्ति-आह्वान और वापसी के लिए किया जाता है! ह्रौं-मुंडी उसकी देह छोड़ गयी! साधिका धडाम से भूमि पर गिरी! भूमि पर गिरते ही उसने मूत्र-त्याग कर दिया! मूत्र-त्याग करते ही वो अचेत भी हो गयी!
मै दौड़ के अजेय नाथ के पास गया, वो उठ बैठा था, अपने सर पे अपने केश और केशों के ऊपर अपनी कमर पर बंधा अंगोछा बाँध लिया था, मैंने उसके पास गया और कहा, "संभाल अजेय नाथ, स्थिति संभाल!"
वो सकपकाया और अपना त्रिशूल ढूँढने लगा, मैंने उसको उसका त्रिशूल कहाँ है, बता दिया, उसने त्रिशूल उठाया और फिर वरुण की तरफ लपका! वरुण नीचे पड़ा हुआ था, उसने मंत्र पढ़ा और वरुण के माथे पर लगा दिया! वरुण एक झटका खाके उठ गया, आसपास देखा और फिर साधिका को नीचे पड़े देख घबरा गया! मै तब चिल्लाया,"अजेय नाथ, क्या तू इस हालत में है की क्रिया आगे बधाई जा सके?"
"हाँ, मै कर लूँगा, लेकिन तुम भी यहीं रहना, ध्यान देते रहना!" उसने कहा,
अब उसने वरुण को हाथ देकर उठाया और फिर से बिठा दिया चिता के समक्ष! वरुण की सिट्टी-पिट्टी गम हो गयी थी! डर के मारे सिहर गया था वो लेकिन अभी भी डटा हुआ था, अवश्य ही बुद्धि उसकी कुंदित हो गयी थी अथवा ये उसकी लगन और हठ ही था! उसनका मत्रोच्चार आरम्भ हुआ पुनः! मै वापिस फिर वहीँ साधक-स्थली पर बैठ गया जाकर जहां शर्मा जी बैठे हुए थे!
मंत्रोच्चार करते हुए अजेय नाथ उठा और साधिका के पास गया, उसके पास जाकर उसने उस साधिका का मूत्र-स्राव देखा, वो पलटा और शराब लाकर उसकी योनि को धो दिया और फिर एक मंत्र पढ़कर उसने साधिका के माथे पर अपना त्रिशूल लगाया, साधिका उठ बैठी!
उसने साधिका को उठाया और फिर चिता के समक्ष बिठा दिया! फिर से ह्रौं-मुंडी आने वाली थी! क्रिया का आरम्भ यहीं से होना था अब!
चिंतित से बैठे शर्मा जी ने मुझसे पूछा, "गुरु जी, क्या फिर से ह्रौं-मुड़ी आएगी?"
"हाँ शर्मा जी, उसे मैंने जागृत नहीं किया था, मैंने तो केवल उसको वापिस भेज था, क्षमा मांगते हुए" मैंने बताया,
"क्या लगता है आपको आगे ये कर लेगा?" उन्होंने पूछा,
"लड़के का पता नहीं, हाँ अजेय नाथ कर लेगा" मैंने बताया,
"लेकिन गुरु जी, अबकी बार ह्रौं-मुंडी ने एक बार और वार किया तो लड़के के प्राण-पखेरू उड़ जायेंगे, प्रतीत होता है" वे बोले,
"अजेय नाथ ऐसा नहीं होने देगा" मैंने कहा,
"अच्छा!" उन्होंने कहा,
वहाँ फिर से ह्रौं-मुंडी के मंत्र पढ़े गए, वरुण को समझाया गया, और फिर से महामाया के आह्वान की क्रिया आरम्भ हुई!
बैठी हुई साधिका, भूमि पर लेट गयी! टाँगे और हाथ चौड़ा लिए! अब ह्रौं-मुंडी आने वाली थी, ये उसकी पहचान है! ह्रौं-मुंडी का प्रवेश हुआ और फिर साधिका उठ खड़ी हुई! आलाप और अट्टहास करते हुए उसने फिर से नृत्य करना आरम्भ किया! ह्रौं-मुंडी स्वयं आठ दाकिनियों द्वारा सेवित होती है! भयानक शक्ति है! इसके प्रसन्न होते ही महामाया का प्रवेश होता है! महामाया यदि प्रसन्न हो जाए तो सिद्धि प्राप्त हो जाती है! उसके बाद समस्त सिद्धियों में साधक की सहायता करती है! इसी कारण से महामाया का आह्वान किया जाता है!
मै दूर बैठा था कोई बारह फीट दूर, मेरे साथ शर्मा जी भी थे, ह्रौं-मुंडी के आते ही मैंने उनको अपने पीछे खड़ा कर लिया! ह्रौं-मुंडी ने अट्टहास किया और फिर वरुण को बालों से पकड़ कर खींचा! उसको खड़ा किया और चिता के चारों और स्वयं नृत्य करते हुए उसको चक्कर कटवाने लगी! अजेय नाथ निरंतर मंत्र पढता रहा! तभी, साधिका ने वरुण को धक्का दिया, वो छह फीट दूर जाके गिरा! वो वहाँ तक अपनी टांगें चौड़ा करके लंगड़ी चाल चलते हुए वरुण के पास गयी! उसको फिर बालों से पकड़ा और फिर फेंक के मारा! वरुण के मंत्र टूट गए केवल अजेय नाथ डटा रहा वहाँ!
साधिका ने फिर से वरुण को उठाया और अजेय नाथ के ऊपर फेंक के दे मारा! वरुण की चीख निकल गयी! अब अजेय नाथ उठा और अपना त्रिशूल अभिमंत्रित किया! और फिर साधिका के पास गया! साधिका ने उसको नीची गर्दन करते हुआ गुर्राते हुए देखा और आगे बढ़ी! तभी अजेय नाथ ने अपना त्रिशूल आगे किया! उसने त्रिकाल-वाहिनी मंत्र का प्रयोग करते हुए
साधिका की ओर अपना त्रिशूल किया था! ह्रौं-मुंडी वापिस हुई और साधिका धम्म से नीचे गिरी!
वहाँ वरुण की हालत खराब हो गयी थी! कंकड़-पत्थर आदि से शरीर छिल गया था! चोटें लग गयीं थी, नाक, मुंह और छाती पर गिरा रक्त-जम गया था! लेकिन अजेय नाथ सफल हो गया था इस बार! अब आखिरी सीढ़ी आ पहुंची थी! अब स्वयं महामाया का प्रवेश होना था! अजेय नाथ मेरे पास आया और बोला, "धन्यवाद"
"कोई बात नहीं!" मैंने कहा,
"अजेय नाथ, अब आखिरी चरण आ पहुंचा है!" मैंने बताया,
"हाँ, और मै सफल हो जाऊँगा अब" उसने कहा,
"अच्छा है अजेय नाथ!" मैंने कहा,
अजेय नाथ वहाँ से गया और भूमि पर एक वृत्त खींचा, उसके अन्दर साधिका को बिठाया! बिठाया क्या उठा के उसके अन्दर लिटा दिया, साधिका उन्मत्त थी, आँखें बंद किये लेटी हुई थी उस वृत्त के अन्दर! अब उसने वृत्त के इर्द-गिर्द छह मांस के थाल रख दिए, चार पात्र रक्त के और चार पात्र मदिरा के!
अब वरुण और अजेय नाथ ने मंत्रोच्चार आरम्भ किया! अटूट-मंत्रोच्चारण! तेज तेज मंत्र पढ़े जा रहे थे! वरुण पूर्ण रूप से सहयोग कर रहा था, अजेय नाथ को महामाया प्रसन्न करनी थी और सिद्धि उसने वरुण को दिलानी थी! ये था उसका वास्तविक उद्देश्य!
शर्मा जी ने मुझसे पूछा, "गुरु जी, अब कब तक महामाया प्रवेश होगा?"
"अभी कम से कम एक घंटा लग जाएगा" मैंने बताया,
"अच्छा! तब तक मंत्र निरंतर पढ़े जायेंगे?" वो बोले,
"हाँ, निरंतर!" मैंने कहा,
फिर आधा घंटा बीता! और फिर और समय बीता! रात्रि के साढ़े तीन बज गए! तभी साधिका उठ के बैठ गयी! उसने चारों तरफ मुड-मुड के देखा और फिर अपने आसपास रखे थाल देखे! वो खड़ी हुई! रक्त-पात्र उठाये और पी गयी फिर मदिरा-पात्र उठाये और खाली कर दिए! अजेय नाथ सचेत हो गया! महामाया-प्रवेश हो चुका था!
मै भी सचेत हो गया! शर्मा जी को जस का तस बैठे रहने दिया! साधिका उठी और चिता की ओर बढ़ी! उसने चिता से उठता धुंआ अपने नथुनों में खींचा और समाया! फिर से वृत्त के पास आई और मांस का एक थाल उठाया और एक एक टुकड़ा चबाने लगी! उसने दो थाल मांस खा लिया और अब उस तरफ मुड़ी जहां से मंत्रोच्चारण हो रहे थे! वो आगे बढ़ी! पहले वरुण को घूर के देखा और फिर अजेय नाथ को! उसने अट्टहास किया! और फिर भूमि पर लेट गयी! उनके सामने! ये उसका प्रणय-निवेदन था! अजेय नाथ ने वरुण को उठाया, उसको मदिरा पिलाई और अपने त्रिशूल से उसको सशक्त किया! लेकिन वरुण का मारे भय के रंग पीला पड़ गया! उस लड़के को समझ ही नहीं आया क्या किया जाए! खैर, वो आगे बढ़ा और साधिका के पास जाके खड़ा हो गया! अब साधिका ने एक ज़ोरदार अट्टहास लगाया और उसको नीचे खींच लिया! वरुण साधिका के ऊपर गिरा! साधिका ने उछाल मारी और वरुण के ऊपर चढ़ गयी! लेकिन वरुण शिथिल था! उसने ऐसी परिस्थिति पहले कभी न देखी थी! और कभी सोचा भी न होगा! अजेय नाथ ने उसको बताया होगा लेकिन इस समय वरुण का शरीर उसका साथ छोड़े जा रहा था! वरुण को शिथिल देख महामाया को क्रोध आया और उसने उसके पेट पर एक लात मारी खींच कर! वरुण दोहरा हो गया! अब तो साधिका ने उसको मारना-पीटना आरम्भ किया!
मित्रगण! बस इसी स्थिति के लिए मैंने उसको चेताया था, गुरु आपके साथ पूरा सहयोग करता है, लेकिन यदि शिष्य पर भय व्याप्त हो जाए तो इसमें शिष्य के चित में गुरु के प्रति आदर व विश्वास का अभाव झलकने लगता है! अजेय नाथ ने सीधे ही उस लड़के को महामाया से प्रणय के लिया दांव पर लगा दिया था! अजेय नाथ ने ये गलत निर्णय लिया था! और अब इसका खामियाज़ा अब ये लड़का झेल रहा था! अजेय नाथ खड़ा हुआ! वो स्थिति को भांप गया था! इस से पहले की अजेय नाथ उस साधिका के पास पहुंचे साधिका ने वरुण को उठा के जलती हुई चिता में फेंक दिया, वो पहले से ही पीड़ा में था, अजेय नाथ पलटा और तेजी से वरुण को चिता से बाहर निकाला, वरुण झुलस गया था बुरी तरह, उसके बाल, लिंग और हाथ झुलस गए थे! जब अजेय नाथ ने वरुण को उठाया तो साधिका ने दौड़ कर अजेय नाथ को बालों से पकड़ा और उसको भी चिता में फेंक दिया! इस से पहले की वो कुछ करे, जलती लकड़ियों ने उसको बुरी तरह से झुलसा दिया! किसी तरह से उठा तो साधिका ने फिर से उसको उठाया और दूर फेंक मारा! उसकी साँसें अब टूटने लगीं! जहां गिरा वहाँ अपनी गर्दन के अलावा न पाँव हिला सका और न ही हाथ! उसके चेले वहाँ से भाग पड़े अपने गुरु को छोड़ कर! अब साधिका के सामने हम तीन थे, मै, शर्मा जी और नीचे पड़ा वरुण!
साधिका ने नीचे गिरे हुए वरुण को देखा और उसको उसकी टांग से पकड़ के ऊपर उठाया और तीन चार लातें उसके सर में मारीं, उसके मुंह और सर से रक्त ऐसे टपका जैसे पानी भरा कोई
