वर्ष २००८ अजमेर की ...
 
Notifications
Clear all

वर्ष २००८ अजमेर की एक घटना

21 Posts
1 Users
0 Likes
249 Views
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

एक तो कडकडाती ठण्ड, ऊपर से रिमझिम बारिश,  २००८ जनवरी का महिना था, और उस समय रात के ग्यारह बजे थे, श्रीमान हर्ष अपने परिवार के साथ अजमेर से जयपुर वापिस जा रहे थे, अपने आवास पर, रास्ते में भीड़ तो नहीं थी परन्तु गुजरते हुए ट्रक, बस एवं दूसरे भारी वाहन चलते हुए सड़क पर पानी की बौछार कर दिया करते थे, हर्ष का तबादला हुआ था दिल्ली से, वे एक बीमा कंपनी में एक विशिष्ट पद पर पदासीन थे! अजमेर में वो किसी विवाह समारोह में आये थे, तब तक मौसम इतना खराब नहीं था, परन्तु एक तिहाई रास्ता पार करते ही ताबड़तोड़ बरसात शुरू हो गयी थी! हर्ष धीरे धीरे अपनी गाडी चला रहे थे, साथ में उनकी पत्नी और उनकी एक बीस वर्षीया बेटी विधि थी, उनका बड़ा बेटा दिल्ली में ही रहकर पढाई कर रहा था, सड़क पर केवल गाड़ियों की हेड-लाइट का ही प्रकाश था अन्य कोई अतिरिक्त प्रकाश नहीं था, कभी कभार आगे पीछे से आती किसी गाडी का प्रकाश आ जाता था! गाडी की रफ़्तार चालीस पचास ही थी, कभी धीमे भी हो जाया करते थे वे, कारण सड़क में भरा पानी, ऐसे ही जब एक बार उन्होंने गाडी धीरे की तो उनकी नज़र सड़क के किनारे एक खोमचे पर पड़ी! वहाँ एक औरत खड़ी थी, औरत ने पीले रंग की साड़ी पहनी हुई थी, और वो बिलकुल भीगी हुई थी, ना तन पर कोई गरम कपडा था और नहीं कोई अन्य वस्त्र जिस से उस कडकडाती हुई ठण्ड से बचाव हो सके! हर्ष ने गाडी सड़क के एक तरफ रोक ली, उनकी श्रीमती जी ने मना किया लेकिन हर्ष ने गाडी रोक ली ये कह के ना जाने कौन कैसी मुसीबत में है, जब गाडी रुकी तो वो औरत भागी भागी आई, हर्ष ने गाडी की खिड़की खोली, तब उस औरत ने रोते हुए और हाथ जोड़ते हुए कहा, "भाई साहब, मेरे पति और मेरे बेटे को लूटेरों ने लूट कर बुरी तरह घायल कर दिया है, आप मुझे पुलिस स्टेशन तक छोड़ दें! आपका मै ये एहसान कभी नहीं भूलूंगी!"

इतना सुनके जहां हर्ष का दिल पसीजा वहीँ उनकी श्रीमती जी सकपकाई, उन्होंने हर्ष के कंधे पर हाथ मारा, ये जतलाने को कि चलो यहाँ से, कोई किसी मुसीबत में पड़ते हो? हर्ष ने भी उनका हाथ कंधे से हटाया और उस औरत को पीछे बिठाने के लिए गाडी का दरवाज़ा खुलवा दिया अपनी बेटी से, वो औरत गाडी में बैठ गयी, और बस अपना मुंह छिपाते हुए रोती रही, हर्ष ने उसको अपने शीशे से देखा, वो औरत कोई तीस वर्ष की होगी, किसी अच्छे परिवार से सम्बन्ध रखने वाली थी वो, करीब दस किलोमीटर आगे चलने पर एक स्थानीय पुलिस-चौकी आई, तो हर्ष ने उस औरत को उतार दिया, औरत तेजी से उतरी और सड़क पार करने लगी, हर्ष ने गाडी आगे बढ़ा दी, तब उनकी श्रीमती ने पूछा, "ना जाने कौन है, क्या है, क्यों बिठाया आपने उसको?"


   
Quote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

"इंसान ही इंसान के काम आता है श्रीमती जी" हर्ष ने कहा, दरअसल वो अभी तक उस औरत के कहे हुए वृत्तांत में ही उलझे हुए थे!

"और मान लो, वही उनकी सहयोगी होती तो?" उनकी पत्नी ने कहा,

"तो अब तक हम भी लुट चुके होते" हर्ष ने कहा,

"अब ना करना ऐसा आज के बाद" उनके पत्नी ने मुंह बना के कहा,

"किसी की मदद करना बुरी बात है क्या?" अब हर्ष को गुस्सा आया,

"नहीं, लेकिन वक़्त भी देखा जाता है" उनकी पत्नी ने कहा,

"ऐसा नहीं है" हर्ष ने जवाब दिया,

"मम्मी, पापा ने सही किया, किसी की मदद करना कोई बुरी बात नहीं है, ना जाने बेचारी वो कबसे देख रही हो किसी को अपनी मदद के लिए?" अब उनकी बेटी विधि ने अपनी माँ से कहा,

"तू चुप रह" विधि की माँ ने कहा,

"नहीं मम्मी, पापा ने सही किया" विधि ने दुबारा कहा,

"ठीक है, करो अपनी मन-मर्जी तुम बाप-बेटी" उनकी पत्नी ने कहा,

और इस तरह थोड़ी बहुत खटर-पटर के साथ वापिस आ गए वे अपने घर, घर पहुंचे तो रात का एक बज चुका था, खाना खा के आये ही थे वो तो सीधा अपने अपने कमरे में जा के सो गए!

सुबह जब हर्ष उठे तो उनको रात की घटना फिर से याद आई! उन्होंने बाहर जा कर अखबार उठाया कि शायद उसमे खबर आई हो, लेकिन वहाँ ऐसी कोई खबर नहीं थी, सोचा कि शाम के अखबार में आ जाए!

फिर दफ्तर चले गए हर्ष! दफ्तर में ऐसे उलझे कि वो रात वाली कोई घटना याद ही ना रही, वापिस आये तो शाम का अखबार ले लिया, उसमे भी कोई जिक्र नहीं उसका! उन्होंने अखबार रखा और फिर घर के लिए चल दिए वापिस!

घर आये वापिस तो हाथ-मुंह धोकर स्थानीय-समाचार देखने के लिए टी.वी. खोल लिया, काफी देर तक वो खबर नहीं आई! फिर खाना आदि खा के आराम करने लग गए और रात्रि में सो गए!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

करीब पांच छह दिनों के बाद बात आई गयी हो गयी! भूल-भाल गए! फिर से वही दैनिक-दिनचर्या आरम्भ हो गयी उनकी!

एक बार की बात है, हर्ष को फिर से एक बार अपने किसी साथी के साथ जाना पड़ा अजमेर, उनकी वापसी रात को ही हुई उसी समय रात्रि को, लेकिन अब कोई बरसात नहीं थी वहाँ, सबकुछ साफ़ था, आपस में बातचीत करते हुए अपना रास्ता काट रहे थे दोनों! समय रात्रि के कोई साढ़े ग्यारह हुए होंगे, गाडी वही चला रहे थे, तभी सहसा उनकी नज़र सड़क के दूसरी तरफ गयी, वहाँ वही औरत खड़ी थी! एकदम शांत, जैसे किसी का इंतज़ार कर रही हो! उन्होंने एकदम से ब्रेक लगाए! और बाहर निकले! वो औरत गायब हो गयी!

 

हर्ष गाड़ी से उतरे तो उनके पीछे उनका मित्र भी उतरा, हर्ष दौड़ के सड़क के पार गए, दोनों तरफ देखा तो वहाँ कोई नहीं था, वो वापिस आ गए अपनी कार में, उनके मित्र ने उनसे कारण पूछा तो हर्ष ने कुछ नहीं बताया, सिर्फ इतना कहा कि मुझे लगा कोई जानकार खड़ा है वहाँ! फिर दुविधाग्रस्त हर्ष वहाँ से वापिस चल पड़े! जिस जगह हर्ष ने उस औरत को देखा था वो वही स्थानीय पुलिस-चौकी थी, पिछली घटना को कोई दस दिन से अधिक गुजर चुके थे, तो वही औरत थी क्या वो? अभी तक थाने के चक्कर लगा रही है? क्या हुआ है उसके साथ? इन सवालों में उलझ गए हर्ष!

कुछ और दिन बीते, एक बार दफ्तर में ही कुछ साथियों में कुछ चर्चा चल गयी, भूत-प्रेतों पर! कोई ऐसा किस्सा सुनाता और कोई वो किस्सा सुनाता, उन्ही में से एक थे श्रीमान राधे प्रसाद, वे रहने वाले अजमेर के थे, उन्होंने जो किस्सा सुनाया उसमे उस औरत का हुलिया और औरत के वो वाक्य हर्ष के साथ घटे किस्से से मिलते-जुलते थे! हर्ष उस समय तो कुछ नहीं बोले, लेकिन बाद में उसी दिन अवकाश के समय हर्ष ने प्रसाद को अपने कमरे में बुलाया, प्रसाद आये और वहाँ बैठ गए, हर्ष ने प्रसाद से पूछा, "प्रसाद जी, आज दोपहर में आपने एक किस्सा सुनाया था एक औरत के बारे में?''

"हाँ जी, सुनाया था" प्रसाद ने कहा,

"क्या वो सच है?" हर्ष ने पूछा,

"हाँ जी, मुझे तो लगता है कि सच है" प्रसाद ने बताया,

"क्या आपने कभी देखा उस औरत को?' हर्ष ने पूछा,

"नहीं जी, मैंने तो नहीं देखा, लेकिन मेरे छोटे भाई ने देखा है उसको" प्रसाद ने बताया,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

"अच्छा! कहाँ रहते हैं आपके ये भाई?" हर्ष ने उत्सुकता से पूछा,

"यहीं! जयपुर में ही रहता है वो, अपना काम है किताबों का उसका" प्रसाद ने बताया,

"अच्छा! कब मुलाक़ात हो सकती है उनसे?" हर्ष ने पूछा,

"परसों रविवार है, मै आ जाता हूँ आपके यहाँ निवास पर, फिर वहीँ से चलते हैं उसके घर" प्रसाद ने बताया,

"धन्यवाद!" हर्ष ने कहा,

"परन्तु, आपको क्या रूचि है उसमे?" प्रसाद ने पूछा,

"क्यूंकि मैंने भी देखा है उस औरत को!" हर्ष ने केवल इतना ही बताया, गाड़ी में बिठाने वाली बात नहीं बतायी!

"क्या....आपने भी?" प्रसाद चौंका अब!

"हाँ!" हर्ष ने कहा,

"ओह!" प्रसाद के मुंह से निकला,

"प्रसाद जी, ज़रा मुझे इस किस्से के बारे में बताइये ज़रा" हर्ष ने कहा,

"जी, बताता हूँ, जैसा अखबार में छपा था, आज से कोई छह साल पहले दिल्ली का एक परिवार अपनी गाड़ी में यहाँ से गुजर रहा होगा रात के करीब ग्यारह या साढ़े ग्यारह बजे, वो मियां-बीवी थे और साथ में उनका एक पुत्र, अब जो पुलिस ने बताया कि उस औरत के मर्द और पुत्र की हत्या किन्ही लूटेरों ने कर दी थी और उस औरत से सारे जेवर छीन कर, और लूटपाट कर, और औरत को भी उन्होंने गोली मार दी थी, जब तक पुलिस वहाँ पहुंची, उस औरत के पति और पुत्र की मौत हो चुकी थी, लेकिन उस औरत की साँसें अभी भी चल रही थीं, लेकिन अजमेर तक ले जाते जाते उस औरत की भी मौत हो गयी, गाड़ी पुलिस ने ज़ब्त का ली उनकी और थाने ले गयी, बस इतनी ही खबर है याद मुझे!" प्रसाद ने कहा,

"ओह! तो ये उस औरत की प्रेतात्मा है" हर्ष ने कहा,

"हाँ जी, कहते हैं उस जगह जहां हत्याएं हुई थीं, वहां आज भी वो औरत भटक रही है, उसको कई लोगों ने देखा है साहब, मेरे छोटे भाई ने भी देखा है उसको ऐसी ही एक रात को!"

"ठीक है प्रसाद जी, आप आ रहे हैं ना रविवार को?" हर्ष ने पूछा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

"हाँ साहब, मै आ रहा हूँ" प्रसाद ने कहा,

उसके बाद दोनों दफ्तर से निकले और अपने अपने घर के लिए प्रस्थान किया! हर्ष को एक अजीब बेचैनी सी होने लगी थी,कई बार इंसान को अज्ञात से जूनून सा चढ़ जाता है, उसके बारे में जाने को एक अजीब सी ललक जाग जाती है दिल में! वहीँ हर्ष के साथ हुआ था! और ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ था सन १९९९५ में हैदराबाद में, निसार मिली थी मुझे!

खैर, बड़ी बेसब्री से शनिवार का दिन काटा हर्ष ने! फिर रविवार आगया, आँख और कान दरवाज़े और डोर-बैल पर ही लगे थे! तभी डोर-बैल बजी! स्वयं हर्ष ही भागे दरवाजा खोलने, दरवाज़ा खोला तो सामने प्रसाद ही खड़े थे! चेहरे पर प्रसन्नता छलक गयी उनके!

"आइये प्रसाद जी आइये!" हर्ष ने ख़ुशी से कहा,

"धन्यवाद साहब!" प्रसाद ने कहा,

"मै आपका ही इंतज़ार कर रहा था दरअसल!" हर्ष ने कहा,

"वो, मैंने भाई को भी फ़ोन कर दिया है, वो भी हमारी प्रतीक्षा कर रहा है वहाँ!" प्रसाद ने उनको बताया!

"ठीक है, आप तब तक चाय पीजिए मै फ़ौरन तैयार होता हूँ" हर्ष ने कहा और अपने वस्त्र बदलने चले गए!

चाय आई और प्रसाद चुस्कियां लेने लगे चाय की! थोड़ी देर में हर्ष आ गए और फिर थोड़ी देर बातें करने के पश्चात वे निकल पड़े प्रसाद के घर की ओर! हर्ष, प्रसाद के साथ प्रसाद के छोटे भाई के घर करीब आधे घंटे में पहुँच गए, प्रसाद के छोटे भाई का नाम किशन है और आदमी मिलनसार भी है, किताबों का व्यवसाय है अपना, प्रसाद और हर्ष जब पहुंचे तो आदर-सत्कार के साथ स्वागत किया किशन ने! हर्ष को उसका व्यक्तित्व बढ़िया लगा! चाय आदि से फारिग हुए तो प्रसाद ने ही जिक्र छेड़ा, बोले, "किशन, तुमने बताया था कि अजमेर-जयपुर मार्ग पर तुमने एक औरत की प्रेतात्मा को देखा था, ज़रा वो किस्सा बताएं हमारे साहब को, इसीलिए आये हैं साहब यहाँ हमारे!"

"अच्छा! हाँ मैंने देखा था, न केवल देखा था बल्कि बात भी की थी, साथ बिठाया भी था, मै तो आज भी डर जाता हूँ, रात में सफ़र नहीं करता वहाँ से आज भी!" किशन ने बताया,

"किशन, आप मुझे आरम्भ से बताइये, क्या हुआ था?" हर्ष ने उत्सुकता से पूछा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

"साहब, मै अजमेर से निकला था उस रात, गाडी में पीछे कुछ सामान रखा था, जब मै एक खोमचे के पास से निकला तो वहाँ एक औरत खड़ी थी, बदहवास सी" उसने बताया,

"क्या पहना था उसने?" हर्ष ने पूछा,

"पीले रंग की साड़ी और पीले रंग का ब्लाउज" किशना ने ज़रा ध्यान लगा कर बताया,

"अच्छा, फिर क्या हुआ?" हर्ष ने पूछा,

"उसने हाथ दिया मेरी गाड़ी को, पहले तो मै घबराया, कि इतने बियाबान में ये औरत क्या कर रही है यहाँ अकेली? कौन है?" किशन ने बताया,

"फिर?" हर्ष ने आँखें गोल करते हुए पूछा,

"जी, फिर उसने कहा कि लुटेरों ने लूटपाट की है उनके साथ और उसके पति और बेटा घायल पड़े हैं, और मै उसको पुलिस-चौकी तक छोड़ दूँ"" किशन ने कहा,

"फिर?" अब प्रसाद ने पूछा,

"फिर, मैंने उसको अपनी बायीं सीट पर बिठा लिया, सारे रास्ते वो चेहरा छिपाए रही, रोती रही, लेकिन बोली कुछ नहीं" किशन ने बताया,

"अच्छा, फिर?" हर्ष ने पूछा,

"फिर साहब सामने पड़ी पुलिस-चौकी! उसने दरवाज़ा खोला और बोली 'आपका बहुत बहुत एहसान' और आगे बढ़ गयी, मैंने गाड़ी आगे बधाई और जब मैंने पीछे मुड़ के देखा तो वो गायब थी! मेरे तो होश उड़ गए साहब! कंपकंपी छूट गयी मेरी! बुखार सा चढ़ गया!" किशन ने बताया,

"अच्छा! ये कब की बात होगी?" हर्ष ने पूछा,

"साहब हो गया करीब एक साल" किशन ने बताया,

हर्ष को ये किस्सा जैसे और झकझोर गया! उसको जैसे इस किस्से ने बाँध लिया अपने पाश में!

वो वहाँ से उठे और प्रसाद को लेकर घर आ गए अपने! प्रसाद को खाना खिला के ही भेजा वहाँ से!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

प्रसाद तो चला गया, लेकिन हर्ष के मन में तूफ़ान मचा गया! हर्ष ने और जानकारी जुटानी चाहि! हैरत इस बात की कि उसको डर नहीं था, या उस औरत से डर लग नहीं रहा था! क्यूंकि उस औरत ने किसी का बुरा किया हो, ऐसा कोई किस्सा वहाँ नहीं हुआ था!

हर्ष उस दिन अपने एक मित्र के पास गए, ये मित्र उनके अधिवक्ता हैं, हर्ष ने उनसे उनकी मातहत उस दुर्घटना के विषय में कुछ जानकारी उपलब्ध कराने की बात कही, तब उनके अधिवक्ता मित्र ने उनको उक्त जानकारी देने के लिए आश्वासन दिया!

करीब एक हफ्ते के बाद, वो अधिवक्ता मनीष, हर्ष के पास आये और उस दुर्घटना के मुख्य-बिंदु उनको बता दिए, उस औरत का नाम शालिनी था, वो दिल्ली के पटपड़गंज की रहने वाली थी, उसके पति और पुत्र की मौत वहीँ मौके पर हो गयी थी, परन्तु शालिनी की मौत अस्पताल ले जाते समय रास्ते में हुई थी, उस समय उस औरत शालिनी ने पीले रंग का ब्लाउज और साड़ी पहनी हुई थी! इस से अधिक कोई जानकारी उपलब्ध नहीं थी!

इस जानकारी से उस औरत का नाम तो पता चल गया था लेकिन और अधिक कोई अहम् जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी थी! और हर्ष को जैसे जुनून सवार हो गया था! अब कैसे और जानकारी जुटाई जाए?

अब उन्होंने एक निर्णय लिया! वो स्वयं ही बात करेंगे उस औरत शालिनी से, हो सकता है कि बात बन ही जाए! कैसा अजीब सा जुनून था उनका भी!

करीब चार दिनों के बाद उनको मौका मिला अजमेर जाने का, सोच एक पंथ और दो काज! वो चल दिए अजमेर, काम निबटाया और फिर ठीक उसी समय वो चले वापिस जयपुर के लिए! धीरे धीरे चलते हुए वो उसी खोमचे के पास आ गए! उन्होंने आसपास देखा तो कोई नहीं था वहाँ, वो गाड़ी से उतरे और फिर आसपास देखा! लेकिन कोई नहीं दिखाई दिया! मायूसी से वापिस गाड़ी में बैठे और गाड़ी आगे बढ़ा दी, शीशे में देखा तो उनको लगा कि वो औरत उनके पीछे वाली सीट पर बैठी है!!! उन्होंने झटके से पीछे देखा, वहाँ कोई नहीं था! अब पहली बार जुनून में भय का भाव शामिल हुआ!

"शालिनी?" हर्ष ने कहा,

कोई जवाब नहीं आया,

"शालिनी? मत घबराओ, कहाँ हो? मेरे सामने आओ?" हर्ष ने कहा,

लेकिन न कोई आया और न ही कोई कुछ बोला! कोई नहीं था वहाँ! संभवतः ये उनके मस्तिष्क का ही वहम था, जिसने उस औरत का कपोल-चित्र बना दिया था! काफी देर वहाँ ठहरने के


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

बाद उन्होंने गाड़ी आगे बढ़ाई, शीशे में देखा तो अब कोई नहीं था वहाँ! वो धीरे धीरे गाड़ी चलाते चले गए, फिर आई वो पुलिस-चौकी, वो वहाँ धीमे हुए, वहाँ भी कोई नहीं था, अब वो आगे चले और जयपुर में प्रवेश कर गए, घर पहुंचे और गाड़ी को ताला लगाया, फिर अपने घर में घुस गए! दिमाग में अभी भी शालिनी के ही ख़याल आ रहे थे उन्हें! खैर, अपने कमरे में गए और सो गए!

अगली सुबह दफ्तर आये और काम-काज में मशगूल हो गए! फिर किसी कम से एक बार उनका दिल्ली आना हुआ, दो चार दिन यहाँ ठहरे और फिर वापिस चले गए, लेकिन अभी तक शालिनी का ख़याल उनको आता रहता था!

एक दिन की बात है, वो अपने दफ्तर में देर रात तक काम कर रहे थे, साथ में उनके दो चार और साथी भी थे, एक साथी नया नया आया था अजमेर से! नाम था विमल, फिर से बात एक बार भूत-प्रेतों पर चल निकली! अब विमल ने भी वो ही किस्सा बताया कि कैसे उसने रास्ते के खड़ी हुई एक प्रेतात्मा को देखा था, उसे यकीन तब हुआ था जब वो चलते चलते गायब हो गयी थी! ये सुन हर्ष के कान खड़े हो गए! बोले, "विमल, कब की बात है ये?"

"साहब हो गए कोई छह महीने" उसने बताया,

"क्या हुआ था?" उन्होंने पूछा,

"साहब, मै और मेरा एक दोस्त एक बार जयपुर जा रहे थे, हम दोनों ने शराब पी हुई थी, तो गाने सुनते हुए आराम आराम से चल रहे थे, मै एक जगह रास्ते में लघु-शंका निबटाने उतरा तो मैंने थोड़ी दूर पर एक औरत को खड़े देखा, मुझे हैरानी तो हुई, लेकिन मैंने सोचा कि होगी कोई मुसाफिर ही, मै फिर अपनी गाड़ी में आके बैठ गया वापिस" विमल ने बताया,

"अच्छा, फिर?" हर्ष को अब उत्सुकता हुई!

"फिर मैंने गाड़ी आगे बढ़ाई, उस औरत को हम पार कर गए.........." विमल ने कहा ही था कि हर्ष ने टोक दिया!

"एक मिनट विमल, एक बात बताओ, उसने पहना क्या हुआ था?" हर्ष ने पूछा,

"साहब, जहां तक मुझे याद है, उसने पीले रंग का ब्लाउज और साड़ी पहनी थी, वो भी पीले रंग की" विमल ने बताया,

"अच्छा, फिर क्या हुआ आगे?" हर्ष ने पूछा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

"हमने उस औरत को पार कर लिया, बात आई गयी हो गयी! लेकिन जब हम कोई बीस किलोमीटर आगे गए तो हमे वो औरत फिर से दिखाई दी! वहीँ सड़क किनारे खड़ी हुई! वहीँ औरत! वही कपडे!" विमल ने जोश से बताया!

"अच्छा!!! फिर?" हर्ष ने पूछा,

"मैंने गाड़ी धीमे की, उस औरत की तरफ, लेकिन गाड़ी रुकते रुकते उस से आगे निकल गयी, हमने पीछे मुड़ के देखा तो वहाँ वो औरत थी ही नहीं! हम समझ गए, ये तो कोई भूत-प्रेत है, हम जी फिर भागे वहाँ से! सीधा जयपुर आके ही होश लिया हमने!" विमल ने बताया,

"अच्छा! और कभी उसके बाद देखा उसको?" हर्ष ने पूछा,

"नहीं साहब! मै उसके बाद नहीं गया कभी वहाँ" विमल ने बताया,

अब फिर से जिज्ञासा का सागर कुलांचें भरने लगा हर्ष के दिल में! फिर से ख़याल बनने लगे दिल में!

उन्होंने विमल से कहा, "विमल? चलो एक बार मेरे साथ"

"कहाँ साहब?" विमल ने हैरत से पूछा,

"वहीँ, उस औरत को देखने" हर्ष ने कहा,

"ये क्या कह रहे हैं साहब!" विमल को आश्चर्य हुआ!

"क्या हुआ?" हर्ष ने पूछा,

"साहब, भूत-प्रेत का मामला है, आप क्या करोगे?" विमल ने पूछा,

"ऐसे ही, सोचा एक बार देख लिए जाए!" हर्ष में हँसते हुए कहा,

"अरे नहीं साहब!" विमल ने कहा,

"डरो मत, मै हूँ न साथ!" हर्ष ने कहा,

अब फंसा विमल! एक तो वो उसके अधिकारी! ऊपर से प्रेत का डर!

"कब चलना है साहब?" विमल ने कहा,

"इस रविवार रात को चलते हैं" हर्ष ने कहा,

"ठीक है जी" विमल ने कहा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

उसके बाद काम ख़तम किया उन्होंने और सभी अपने अपने घर चले गए! रास्ते में हर्ष को उसी औरत के ख़याल सताने लगे!

घर पहुंचे, रात हो चुकी थी काफी सो, सो गए!

सुबह उठे, फिर दैनिक-क्रियाकलापों में लग गए और फिर दफ्तर चले गए! दफ्तर में विमल से मुलाक़ात हुई तो फिर से उसको याद करा दिया!

"विमल, इतवार को पक्का?" हर्ष ने कहा,

"हाँ साहब, जैसा आपका हुक्म!" विमल ने मुस्कुरा के कहा!

इसके बाद अपने अपने कार्यों में लग गए सभी! और फिर इतवार भी आ गया! हर्ष स्वयं पहुँच गए विमल के आवास पर उसको लेने! उत्सुकता तो थी ही अतः सबकुछ समय पर कर रहे थे! अब विमल थोडा घबराया तो लेकिन अपनी पत्नी से हर्ष का परिचय करा कर और कह कर कि कोई विभागीय कार्य है, जिसके वजह से वे आज रात अजमेर में ही रहेंगे, ऐसा कह के वे दोनों रात को निकल लिए वहाँ के लिए! रास्ते में अपना डर मिटाने के लिए शराब खरीद ली और गाडी में बैठ पीता रहा, शराब पीने से भूत-प्रेत सवारी नहीं कर सकते, ऐसा उसने सुना था किसी से!! अब हर्ष ने गाडी दौडाई, इधर विमल दनादन गिलास पर गिलास खींचे जा रहा था शराब के! फिर बोला, "साहब फिर सोच लीजिये, कोई अनहोनी न हो जाए?"

"कैसी अनहोनी विमल?" हर्ष ने पूछा,

"मैंने सुना है तंग करने पर प्रेतात्मा भड़क जाती हैं, फिर उठा-पटक कर देती हैं" उसने बताया,

"अरे ऐसा नहीं है, और हम कौन सा तंग कर रहे हैं उसको?" हर्ष ने कहा,

"साहब, अब डर तो लगता ही है न!" विमल ने नशे में बोला!

गाडी फर्राटे से दौड़े जा रही थी! तभी विमल ने फिर पूछा," साहब, आपने देखी है वो प्रेतात्मा?"

"मैंने केवल देखी ही नहीं, अपनी गाडी में भी बिठाई है वो प्रेतात्मा!" हर्ष ने कहा,

"क्या?????" विमल चौंका!

"हाँ!" हर्ष ने बताया,

"कब साहब?" विमल ने मुंह फाड़ कर पूछा!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

"अभी कोई महीने डेढ़ महीने पहले" हर्ष ने कहा,

और फिर हर्ष ने सारी घटना बता दी विमल को! जो भी घटा था उनके साथ!

"बहुत हिम्मत वाले हो साहब आप!" विमल ने कहा,

"हिम्मत की बात नहीं विमल, हमने जब उसकी मदद की तो वो हमें क्यूँ मारेगी-पीटेगी?" हर्ष ने कहा,

"लेकिन साहब अब अगर दुबारा हम मिलेंगे उस से तो वो सोचेगी कि हम उसको या तो तंग करने आये हैं या फिर पकड़ने" विमल ने कहा और फिर से एक पैग खींचा!

"कुछ नहीं होगा विमल, तुम देखते रहो" हर्ष ने कहा,

और मित्रो, ऐसे नोंक-झोंक करते करते वे पहुँच गए उस खोमचे के पास! ये खोमचा दरअसल एक गाँव से आते एक रास्ते पर बना था, और स्पष्ट था कि किसी मांस की दुकान है, मुर्गे की, तब हर्ष ने गाडी सड़क के एक तरफ लगी दी और सिगरेट सुलगा ली, नशे में झूमता विमल भी अभी गाडी रुकने पर जैसे होश में आ गया था!

"आ गए साहब हम वहाँ?" विमल ने खिड़की से झाँक के देखा,

"हाँ विमल" हर्ष ने कहा और घडी देखी, रात के ग्यारह बजे थे!

दोनों टकटकी लगाए घूर रहे थे वो खोमचा! लेकिन अभी तक कोई हरकत नहीं हुई थी वहाँ!

आधा घंटा और बीता, कुछ नहीं हुआ, सड़क के दोनों तरफ गाड़ियां फर्राटे से दौड़े जा रहीं थीं! विमल बाहर तो झाँक रहा था लेकिन दिल उसका बैठा जा रहा था!

"विमल?" हर्ष ने कहा,

"जी.....जी....साहब?" विमल ने कहा,

"डर लग रहा है?" हर्ष ने पॊओछ,

"न.....न.....नहीं साहाब....आअप......हो न यहाँ?" विमल ने कहा घबराते हुए!

"घबराओ मत!" हर्ष ने कहा,

"जी...साहब!" विमल ने कहा,

तब आधा घंटा और बीता! और तब!!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

"तब हर्ष को खोमचे से आगे एक औरत बैठी हुई दिखाई दी! एक ईंट के ढेर पर! हर्ष ने गौर से देखा, हाँ! वो वही थी! हर्ष ने विमल के कंधे पर हाथ लगाया, विमल बाहर देख रहा था तब दूसरी तरफ, जब उसने देखा वहाँ जहां हर्ष ने इशारा किया था, तो उसकी ज़ुबान बंद हो गयी! मुंह से चालीसा निकलने लगा उसके! कोई शब्द समझ आता और कोई नहीं!

"विमल?" हर्ष ने कहा,

"ह ...ह....ह....ह.....हां....आं" विमल ने डरते सहमे कहा!

"श्श्श्श........." हर्ष ने अपने होठों पर ऊँगली रख के कहा,

विमल ने चुचाप अपनी गर्दन हिलाई!

"विमल, यहीं बैठना, मै अभी आया" हर्ष ने कहा,

विमल के मुंह से शब्द न निकले केवल गर्दन हिलाई! नशा काफूर हो गया उसका!

तब हर्ष ने धीरे से गाड़ी का दरवाज़ा खोला और धीरे से बाहर आये!

"विमल, घबराना नहीं, मै आता हूँ अभी" हर्षा ने कहा,

"जी.......जी....साहब" कांपते कांपते विमल ने कहा!

और फिर हर्ष बढ़ गए उसकी तरफ! उस प्रेतात्मा की तरफ! विमल आँखें फाड़ फाड़ कर सामने देख रहा था, नशा तो उसका अब उड़ चुका था! 'दिमाग खराब हो गया है साहब का' उसके मुंह से निकला, उसने एक जोर से सांस ली, लेकिन हिला नहीं अपनी सीट से! उधर हर्ष चल पड़े उस प्रेतात्मा शालिनी की तरफ! वो गाडी से करीब पैंतीस-चालीस फीट दूर होगी! हर्ष गाडी की लाइट्स बंद करके गए थे! हर्ष अब पहुँच गए उस प्रेतात्मा की तरफ! कोई चार फीट पास आके ठहर गए और बोले, "कौन हो तुम?"

उस शून्य में और सड़क की ओर घूरती प्रेतात्मा ने अपनी गर्दन घुमाई और हर्ष की ओर देखा! हर्ष को एक सर्द एहसास हुआ! पाँव जैसे ज़मीन में धंस गए, न आगे जा सकें और न पीछे ही! हर्ष के सवाल का जवाब उस प्रेतात्मा ने नहीं दिया! हर्ष ने दुबारा पूछा,"कौन हो तुम?" उनके पूछने का अंदाज जैसे मदद वाला था!

उस प्रेतात्मा ने जवाब नहीं दिया!

हर्ष को अब घबराहट हुई, विमल के कहे शब्द ध्यान में आये! कि वो सोचेगी कि हम उसको तंग कर रहे हैं! उनका एक मन हुआ कि इसी तरह पीछे हट जाएँ और वापिस गाडी में बैठ जाएँ!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

और दूसरा मन कहता कि उस से सवाल पूछना जारी रखें! दूसरे मन की विजय हुई और हर्ष ने फिर से सवाल किया,"कौन हो तुम?"

उसने फिर जवाब नहीं दिया! वो अधर में अटकी प्रेतात्मा क्या जवाब देती? उसने गर्दन नीचे की और अपने पेट से अपनी साड़ी हटाई, वहाँ खून के निशान थे, जैसे कि वहाँ उसको गोली मारी गयी हो! मजबूत दिल के इंसान हर्ष ने गौर से देखा, वहाँ एक घाव सा था, निःसंदेह ये गोली लगने का घाव ही था, उन्होंने फिर पूछा,"क्या मै आपकी कोई मदद कर सकता हूँ?"

उसने कोई जवाब नहीं दिया, बस सड़क की ओर घूरती रही!

"कौन हो तुम? ये तो बताओ?" हर्ष ने पूछा,

उसने अपने हाथ से सामने की ओर इशारा किया, हर्ष ने सामने देखा वहाँ कोई नहीं था! केवल झाड-झंखाड़ और एक आद पेड़ ही थे वहाँ! वो लगातार वहीँ इशारे कर रही थी! हर्ष को कुछ समझ नहीं आया!

"मुझे अपना नाम तो बताओ?' हर्ष ने कहा,

"शालू" उसने धीरे से जैसे कराहते हुए कहा,

"शालू?" हर्ष ने कहा,

"हाँ" उसे बताया,

"कहाँ रहती हैं आप?" हर्ष ने पूछा,

"दिल्ली" उसने बताया,

"तो आप यहाँ कैसे?" हर्ष ने पूछा,

"मेरे पति और मेरा बेटा, यहीं आयेंगे" उसने कहा,

"कहाँ गए हैं वे?" हर्ष ने पूछा,

उसने फिर पीछे की तरफ इशारा किया लेकिन कहा कुछ नहीं!

"क्या मै आपकी मदद कर सकता हूँ कुछ?" हर्ष ने पूछा,

उस प्रेतात्मा ने हर्ष को देखा और फिर चिल्लाई, "कौन हो तुम?"

हर्ष उसके इस बदले रूप से डर गए और घबरा गए!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

वो प्रेतात्मा उस ईंट के ढेर पर खड़ी हुई अब और फिर बोली,"कौन हो तुम?"

"जी.....जी.......मै हर्ष हूँ" उन्होंने कहा,

"कौन हर्ष?" उसने पूछा,

अब क्या जवाब दें वो? इस प्रश्न का जवाब वो देते भी तो भी उस प्रेतात्मा को समझ नहीं आता!

"जी मै आपको पुलिस-चौकी ले गया था एक महीने पहले" हर्ष ने डरते हुए जवाब दिया,

"किसलिए?' उसने अपनी गर्दन टेढ़ी करते हुए पूछा, और उसका ये रूप देखा हर्ष की रूह कांपी किसी अनहोनी के लिए!

"आपने कहा था कि आपके पति और बेटा घायल पड़े हैं, लुटेरों ने लूटपाट की है आपके साथ और आपको पुलिस चौकी छोड़ना है" हर्ष ने कहा,

"कब कहा था मैंने?" उसने फिर गुस्से से पूछा,

"जी...एक महीने पहले?" हर्ष ने कहा,

"तो तू जानता है कि मेरे पति और मेरा बेटा कहाँ है, अब बता कहाँ हैं वो?" उसने कहा और ईंट के ढेर से नीचे उतरी!

"जी...........जी..........मै नहीं जानता" हर्ष ने कहा,

प्रेतात्मा उसको घूरते हुए चुप हो गयी!

उधर अब विमल को मात्र हर्ष ही दिखाई दे रहे थे, वो प्रेतात्मा नहीं, विमल समझ ही नहीं पा रहा था कि वहाँ हो क्या रहा है?

"मुझे पुलिस-चौकी छोड़ दो, वहाँ मेरे पति और मेरे बेटे को लुटेरों ने घायल कर दिया है, छोड़ दो मुझे, आपका ये एहसान कभी नहीं भूलूंगी मै" अब उसने हाथ जोड़ के कहा, विनती की रोते रोते,

हर्ष एक बार फिर से घबरा गए, ये क्या माजरा है? पल में कुछ और पल में कुछ? तभी उनके मष्तिष्क ने काम किया और वो बोले, "ठीक है, मै छोड़ देता हूँ आपको, आइये, मेरे साथ आइये" इतना कह हर्ष पलटे अपनी गाडी की तरफ!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

हर्ष चले तो वो प्रेतात्मा रोते रोते उनकी गाडी में बैठ गयी, हर्ष ने घबरा घबरा के उसको बिठाया पीछे सीट पर, यहाँ विमल की बोलती बंद हो गयी थी, वो आँखें बंद किये मन ही मन कुछ पढ़े जा रहा था!

हर्ष ने गाडी बधाई और फिर तेजी से चले, आधे घंटे से थोडा पहले पुलिस-चौकी दिखाई दी, हर्ष ने गाडी रोकी तो उस औरत ने दरवाज खोला और बोली," आपका बहुत बहुत धन्यवाद, अब बच जायेंगे वो दोनों" इतना कह वो सड़क पर मुड़ी और गायब हो गयी!

हर्ष को काटो तो खून नहीं! विमल जैसे अचेत हो गया था! जान बचने पर थोडा संयत होकर हर्ष ने आँखें बंद किये विमल के घुटने पर हाथ मारा और बोले, "विमल, चली गयी वो" विमल को जैसे यकीन ही नहीं हुआ! उसने फ़ौरन ही आजू-बाजू में देखा, इधर-उधर, मुंह फाड़े! "अरे विमल, गयी वो" हर्ष ने कहा,

"आज तो मौत को करीब से देख लिया साहब जी" विमल ने कहा,

"हाँ विमल, मुझे भी एक पल को यही लगा था" हर्ष ने कहा,

"अब ना कहना साहब जी, मै नहीं आने वाला अब, अब कि बार तो प्राण ले ही लेगी वो हमारे, आज तो बच गए हम, आखिर हमारे परिवार भी है साहब" विमल ने धन्यवाद किया ऊपरवाले का!

अब गाड़ी दौड़े जा रही थी जयपुर की तरफ! वे बातें करते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे!

जयपुर में घुसे, फिर हर्ष ने विमल को छोड़ा उसके घर और फिर अपने घर के लिए निकल पड़े, उस प्रेतात्मा का वो बिगडैल रूप उनको रह रह कर याद आ रहा! घर पहुंचे तो जी उचाट था उनका, यदि कोई गलती हुई होती तो आज यहाँ, घर में ना होते वो! ऐसे ऐसे ख़याल आते जा रहे थे दिमाग में! लेकिन रोग तो लग ही चुका था उनको जिज्ञासा का!

अगले दिन दफ्तर पहुंचे हर्ष! वहाँ विमल मिला, अभी तक रात वाली घटना का भय था उसे, हर्ष से नमस्ते आदि हुई तो हर्ष ने कहा, "कैसी कटी रात विमल?"

"कहाँ कटी साहब, रात भर डरावने डरावने ख़याल आते रहे मुझे तो, आज सुबह मंदिर होकर आ रहा हूँ, तब जाके थोड़ी शान्ति मिली है" विमल ने बताया,

तब हर्ष अपने कमरे में चले गए! लेकिन रात वाली घटना ने झकझोड़ रखा था उन्हें! तभी उनको ख़याल आया अपने छोटे भाई आलोक का, वो ऐसे ही कामों में लगा रहता था, कभी किसी बाबा के साथ तो कभी किसी तांत्रिक के साथ! उसको भी सीखने का बहुत शौक़ था,


   
ReplyQuote
Page 1 / 2
Share:
error: Content is protected !!
Scroll to Top