दिल्ली से सोनीपत जाते समय एक जगह पड़ती है राई, राई से पहले ही कुछ गाँव भी पड़ते हैं आसपास, यहीं पर एक गाँव है, वहाँ उस गाँव में बलराम नाम के एक व्यक्ति रहते हैं अपने परिवार के साथ, खेती-बाड़ी का काम है और खेतों से भी अच्छी पैदावार हो जाती है, आसपास कुछ और भी खेत हैं और फिर कुछ पथरीला सा मैदान, इसी मैदान में एक पुराना टूटा-फूटा कुआँ पड़ता है, काफी पुराना है ये कुआं! एक बार की बात है, बलराम अपने खेतों में काम करने के लिए घर से आये, साथ में उनके उनका एक मित्र सुरेश भी था, दोनों आपस में बातें करते-करते अपने अपने खेतों में जा रहे थे, तभी सुरेश की निगाह उस कुँए पर पड़ी, चांदनी रात थी और दिखाई भी साफ़ ही दे रहा था, कुँए के पास एक आदमी खड़ा था, एक पोटली सी लिए! और वो कुँए में झाँक रहा था! सुरेश ठहरा तो बलराम भी ठहर गया, सुरेश ने बलराम के कंधे पर हाथ रखा और उसको वहाँ कुँए की तरफ इशारा किया और बोला, “शश….वो देखो उधर!”
बलराम ने भी उधर देखा, दोनों ठहर गए वहाँ ठिठक कर!
“क्या है वो?” बलराम ने कहा,
कुआँ उनसे कोई सत्तर-अस्सी फीट दूर होगा!
“लगता तो कोई आदमी ही है” सुरेश फुसफुसाया,
फिर दोनों एक पेड़ के पीछे छिप के खड़े हो गए, पेड़ की छाँव में अँधेरा था,
“ये इतनी रात को क्या कर रहा है यहाँ इस कुँए पर?” बलराम ने कहा,
“पता नहीं” सुरेश ने कहा,
वो कुँए के पास खड़ा आदमी कुँए के आसपास चक्कर लगाता और फिर पोटली ज़मीन पर रख कर कुँए में झाँकने लगता!
“ये कुँए में क्या देख रहा है?” बलराम ने कहा,
“पता नहीं, कहीं वो कोई चोर तो नहीं? जो इसमें सामान डाल रहा हो चोरी का?” सुरेश ने अंदाजा लगाया,
“हो सकता है ऐसा भी” बलराम ने बताया,
“अभी और देखते हैं” सुरेश ने कहा,
“ठीक है” बलराम ने कहा,
वो दोनों उसको करीब आधा घंटा देखते रहे और वो आदमी बार बार वही करता रहा!
फिर अचानक ही दोनों की रूह काँप गयी अन्दर तक! उन्होंने जो दृश्य सामने देखा उस से उनके साँसें अटक गयीं! कुँए में से एक लड़की निकली! लड़की कुँए में से अपना हाथ ऊपर उठाये बाहर आई और उस आदमी ने उसका हाथ पकड़ कर उसे ऊपर उठा लिया!
वहाँ उन दोनों की बोलती बंद हो गयी! आँखें फाड़ फाड़ के वो उधर देख रहे थे! दोनों ने एक दूसरे के कंधे थाम लिए थे!
किसी तरह से सुरेश ने हलकी आवाज़ में कहा, “ये यो भूत-प्रेत का चक्कर है भाई”
“हाँ……..हाँ” बलराम ने घिग्घियाई आवाज़ में कहा,
“वापिस चलें या यहीं रुकें?” सुरेश ने कहा,
“अभी यही रुको” बलराम बोला,
फिर से दोनों टकटकी लगाए वहीँ देखते रहे!
उन्होंने देखा, कि उस आदमी ने उस लड़की को गोद में उठाया और लड़की ने अपने हाथ उसकी गर्दन के आसपास लपेट लिए! फिर उस आदमी ने उसको नीचे रखा और फिर कुए की मुंडेर पर वो पोटली लेकर खोलने लगा! तभी उस आदमी और औरत ने अपने आसपास देखा और पोटली खोली! पोटली में से कुछ निकाल, लेकिन क्या निकाल ये सुरेश और बलराम न देख सके! बस इतना कि उस आदमी ने कोई माला सी निकाल कर उस लड़की को पहनाई थी!
“ये कर क्या रहे हैं?” सुरेश ने अपने गले में पहने एक ताबीज़ को पकड़ के कहा,
“प ….प…..पता……नहीं सुरेश” बलराम ने डर से कहा,
फिर मित्रगण! वो आदमी और औरत एकदम से छलांग मार कर उस कुँए में कूद गए उस पोटली के साथ!
सुरेश और बलराम दांत भींचे सबकुछ देखते रहे! उन दोनों के जाने से इन दोनों के होश वापिस आये!
उन्होंने जो देखा था वो अविश्वसनीय था! किसी को बताएँगे तो भी कौन यकीन करेगा! ये कुआँ तो वो अपने बचपन से देख रहे थे! लेकिन आजतक ऐसा कुछ नहीं देखा था उन्होंने! बचपन में जब वो अपने डंगर चराया करते थे तो ऐसा कभी देखा तो क्या सुना भी नहीं था! वो तो उस कुँए के मुंडेर पर बैठा भी करते थे! और आज भी ऐसा ही होता है! कुआँ वैसे तो सूखा है, लेकिन अन्दर झाड-झंखाड़ भरी पड़ी है! आज भी उसकी मुंडेर पर लोग सुस्ताने बैठ जाते हैं!
“अब क्या करें बलराम?” सुरेश ने पूछा,
“घर ही चलो अब तो” बलराम ने कहा,
“फिर पानी?” सुरेश ने कहा,
“सुबह आ जायेंगे” बलराम ने कहा,
“ठीक है, सुबह आते हैं हम” सुरेश ने कहा,
बलराम ने घडी देखी तो रात के सवा बारह बजे थे!
फिर वो दोनों डरे-सहमे से उस कुँए को देखते देखते वापिस अपने घर की ओर हो लिए!
“बलराम, किसी को बताना नहीं, घर में भी नहीं” सुरेश ने कहा,
“ठीक है, नहीं बताऊंगा” बलराम ने कहा,
“हम सुबह आते हैं चार बजे, मै आवाज़ दे दूंगा तुझे” सुरेश ने कहा,
“ठीक है” बलराम ने कहा,
और फिर वो दोनों बीड़ी सुलगाते सुलगाते वापिस अपने घर की ओर हो लिए!
और फिर सुबह चार बजे से पहले ही सुरेश ने बलराम को आवाज़ दी, बलराम थोड़ी देर में बाहर आया और फिर दोनों बीड़ी सुलगाते हुए चले खेतों की ओर! पिछली घटना पर कोई बात नहीं हुई, अपनी अपनी अटकलों में उलझे थे दोनों ही! सुरेश आगे चल रहा था और बलराम थोडा पीछे, और फिर वही कुँए वाली जगह आई! सहसा दोनों ठिठक के खड़े हो गए, पीछे हटे दबे पाँव! वो आदमी और वो लड़की अभी भी वहीँ बैठे थे! उन्होंने सुरेश और बलराम की तरफ पीठ कर रखी थी! बलराम और सुरेश को जैसे काठ मार गया! दोनों हिम्मत करके पीछे हटे, एक पेड़ के नीचे आये और वहाँ से उनको देखने लगे! बड़ी हिम्मत कर दोनों ने आँखें
फाड़ के सामने देखा! वो दोनों आदमी और लड़की एक दूसरे की कमर में हाथ फंसाए बैठे थे! दीन-दुनिया से बेखबर!
“ये क्या बला पीछे पड़ गयी हमारे?” सुरेश ने कहा,
बलराम से कुछ कहते न बन पड़ा, बस उसने अपना थूक गटका!
सुरेश ने डर के मारे अपनी जेब से माचिस निकाली, उसने सुना था कि माचिस हमेशा रखनी चाहिए, बियाबान में, कोई भूत-बाधा हो तो माचिस जला लो, भूत भाग जाएगा!
“सुरेश?” बलराम ने कहा,
“हाँ” वो फुसफुसाया,
“चल वापिस चलें” बलराम ने कहा,
“नहीं अभी रुक जा” सुरेश बोला,
अब दोनों नीचे बैठ गए घुटनों के बल! और सामने देखते रहे!
“वो देख, सुरेश वो देख!” एक दम से तेज फुसफुसाया बलराम!
“ओह! ये क्या है?” सुरेश ने कहा,
उन्होंने कुँए से एक और लड़की को निकलते हुए देखा! और वो लड़की उस कुँए के चक्कर लगाने लगी! और वो आदमी और औरत वैसे ही बैठे रहे!
दोनों की ज़ुबान भी न हिली! मुंह फटा का फटा ही रह गया उनका! एक दूसरे की साँसों की भी आवाजें सुन सकते थे वो! बलराम ने घडी देखी, सुबह के साढ़े चार बजे थे!
“पाव फटने वाली है, ऐसे ही बैठे रहो” सुरेश ने कहा और बलराम को देखा,
बलराम ने केवल हाँ में अपनी गर्दन हिलाई!
और फिर मित्रगण, सुबह के कोई चार पचास पर वे तीनों एक एक करके कुँए में कूद गए! आदमी बाद में कूदा!
इधर पत्थर बने ये दोनों कंपकंपी के मारे मरे जा रहे थे! तब सुरेश ने बीड़ी सुलगायीं दो और एक स्वयं ने ली और एक बलराम को दी!
“सुरेश?” बलराम ने कहा,
“हाँ बोल?” वो बोला,
“अब तो बताना ही पड़ेगा किसी को” बलराम ने कहा,
“किसको?” सुरेश ने पूछा,
“प्रधान को” बलराम ने कहा,
“ठीक है, नौ बजे चलेंगे वहाँ” सुरेश ने कहा,
“हाँ ठीक है, नहीं तो कहीं चोट न हो जाए किसी को” बलराम ने कहा,
“सही कह रहा है तू” सुरेश ने कहा,
और फिर सुबह के नौ बजे वो दोनों प्रधान के पास गये, वहाँ गाँव के और बुज़ुर्ग और मुअज्जिज़ लोग बैठे हुए थे! उन दोनों ने जो भी गत रात्रि देखा था वो सब बता दिया! जिसने भी सुना उसीके कान गर्म हो गए! आँखें अपनी हद तक फटी ही फटी रह गयीं! तभी उनमे से एक बुज़ुर्ग मेवा ने कहा,” प्रधान जी, ये सच कह रहे हैं!”
ये प्रधान ने सुना तो उसके साथ ही साथ वहाँ सभी को भी झटका लगा!
“कैसे?” प्रधान ने पूछा,
“जो इन्होने देखा, वो मैंने भी देखा था, आज से कोई तीस बरस पहले” मेवा ने बताया,
“क्या देखा था?” प्रधान ने हैरानी से और उत्सुकता से पूछा!
“मै एक रात शहर से आ रहा था, साइकिल से, मेरे पास एक संदूकची भी थी छोटी सी, वो मैंने पीछे बाँध रखी थी, धीरे धीरे गाँव की ओर आ रहा था” मेवा ने बताया,
“फिर? फिर क्या हुआ?” प्रधान ने पूछा,
“अचानक से मैंने देखा कि उस पुराने कुँए पर एक औरत बैठी है, वो अपना सर झुकाए बैठी थी, मै रुक गया वहीँ” मेवा ने बताया,
“अरे फिर क्या हुआ?” एक बुज़ुर्ग ने पूछा,
“मै साइकिल से उतरा और एक बिटोरे के पीछे छिप गया, तब मैंने देखा कि एक और आदमी उस कुँए से बाहर निकला, और उस औरत के पास जाके बैठ गया!” मेवा ने बताया,
“आगे क्या हुआ?” प्रधान ने बैठे बैठे करवट बदलते हुए पूछा,
“इतने में एक और लड़की कुँए से बाहर आई और कुँए के चक्कर लगाने लगी, जैसे कि इन दोनों ने बताया है” मेवा ने कहा,
सब चुप थे!
“जी उसके बाद वो तीनों एक एक करके कुँए में कूद गए, अपनी एक पोटली के साथ, और जी मै भागा फिर वहाँ से प्रार्थना करता करता और घर आके ही सांस ली!” मेवा ने बताया,
अब प्रधान को गवाही भी मिल चुकी थी! निश्चित तौर पर बलराम और सुरेश सच कह रहे थे!
अब प्रधान साहब हो गए भौंचक्के! क्या किया जाए? स्वयं देखा जाए पहले? हाँ! ये उचित रहेगा! पहले स्वयं ही जांचा जाए! प्रधान साहब के मन में उत्सुकता तो थी ही थी परन्तु भय भी घुस चुका था अन्दर! और जब भय मन में घुस जाता है तो सबसे भारी हो जाता है! धरातल बन जाता है मस्तिष्क का! उचित विचार, उचित निर्णय एवं विवेक हिचकोले खाने लगते हैं! वहाँ बैठे लोगों में से भी दो लोगों ने भी हामी भर दी, कि आज रात स्वयं ही देखा जाए! फिर करेंगे कोई कार्यवाही!
रात हुई, सभी प्रधान के घर की चौपाल में डेरा जमाये बैठे थे! रात के बजे अब बारह! प्रधान जी ने अपने गले में अपने गुरु जी का दिया हुआ ताबीज़ धारण किया और चल पड़े उस कुँए की तरफ! ये कुल पांच लोग थे!
वहीँ पहुंचे, उन्ही पेड़ों के पास! सामने देखा, कुँए पर कोई भी नहीं था, सभी वहीँ टकटकी लगाए बैठे थे! तभी कुँए में से एक आदमी बाहर आया, अपने साथ एक पोटली लिए हुए! प्रधान साहब की तो किल्ली निकलते निकलते रह गयी! सभी एक दूसरे से सटे हुए सामने का नज़ारा देखते रहे! वो जो देख रहे थे मात्र आँखों तक ही सीमित नहीं था! हृदय में स्पंदन किसी धौंकनी के समान हो रहा था! लगता था कि कहीं बैठ ही न जाए! फिर निकली वो लड़की! उसके बाद दोनों उस कुँए की मुंडेर पर बैठ गए! फिर निकली दूसरी लड़की! वो कुँए के चक्कर लगाने लगी! वे पाँचों अपने मुंह में अपनी उंगलियाँ दबाये आँखें फाड़ फाड़ के सामने देख रहे थे!
तभी वो चक्कर लगाती हुई लड़की रुकी और उसने नीचे अपनी गर्दन करते हुए वहाँ देखा जहां वे पाँचों बैठे हुए थे! लड़की को ऐसा करते देखा प्रधान साहब के साथ साथ सभी को अब किसी अनहोनी की आशंका सताने लगी! कंपकंपी छूट गयी! हाथ-पाँव में पसीने आ गए सभी के!
वो लड़की थोडा सामने आई और फिर पीछे पलटी, और उसने फिर उस आदमी से कुछ कहा, उस आदमी ने गौर से उन छिपे हुए पाँचों को देखा, दूसरी लड़की ने भी देखा, इधर इन पाँचों की जान सूखी! उस आदमी ने तब वो पोटली खोली और उसमे से एक चाक़ू निकाला बड़ा सा! और उन पाँचों की तरफ चला!
अपने सामने साक्षात मौत देखा भागे सभी वहाँ से चिल्लाते हुए! कोई कहीं और कोई कहीं! जिसको जहां जगह मिली वो वहीँ भाग पड़ा! प्रधान जी ने ऐसी दौड़ लगाई के सीधे अपने घर ही जाके रुके! सभी की जान बच गयी थी!
सुबह सब मिले प्रधान जी के यहाँ! बैठक हुई! निर्णय हुआ कि दिन में वहाँ एक शान्ति-कर्म करा दिया जाए! सभी वहाँ आयें! और इस तरह दिन में कोई ग्यारह बजे वहाँ शांति-कर्म संपन्न करा दिया! आशा की कि अब वो प्रेतात्माएं वहाँ से मुक्त हो जायेंगी अथवा शांत हो जायेंगी! परन्तु प्रश्न ये था कि अब ये कौन जांचे कि प्रेतात्माएं शांत हो गयीं? तब एक सेवा-निवृत फौजी जगदीश को ये कार्यभार सौंपा गया! वो रात को देख कर आएगा कि वहाँ प्रेतात्मा हैं या नहीं!
रात हुई! बारह बजे! और जगदीश चला उन्ही पेड़ों की तरफ! वहीँ खड़ा हो गया! कुछ देर बीती! तब कुँए में से दो लडकियां बाहर आयीं! लेकिन वो आदमी नहीं आया! जगदीश पीछे हटा! जैसे ही पीछे हटा तो देखा वो आदमी वहीँ खड़ा था! फौजी के पीछे, खंजर ताने! फौजी की निकली चीख अब! फौजी गिर नीचे! हाथ जोड़ के गुहार लगाने लगा! उस आदमी ने खंजर वापिस रखा म्यान में और अपने कपड़ों में खोंस लिया! फिर फौजी के पास गया और बोला, “तंग न करो हमे”
“ठी……ठी…….ठीक…….है……..” फौजी ने भयवश कहा,
उसके बाद वो आदमी वहाँ से चला गया कुँए की तरफ और उन दोनों लड़कियों के साथ कुँए में कूद गया!
फौजी को उसने जिंदा छोड़ दिया था! सभी को बताने के लिए कि उनको कोई तंग न करे! फौजी उठा और भागा गाँव की तरफ! हाँफते हाँफते प्रधान के घर पहुंचा! जब सभी ने फौजी की हालत देखी तो सभी घबरा गए! ये तो पता चल ही गया था कि शांति-कर्म असफल हो गया था! कोई भी प्रेतात्मा वहाँ से नहीं गयी थी! तब फौजी ने स्वयं को संयत करते हुए सिलसिलेवार साड़ी कहानी बता दी! प्रधान साहब तो चौंके ही, लेकिन वहाँ मौजूद सभी लोग डर गए! अब किया हो? कैसे मिले छुटकारा इस घनघोर समस्या से? ये प्रश्न सभी के दिमाग पर हावी हो गया! बात गाँव में फ़ैल गयी! लोग कतराने लगे वहाँ से गुजरने में, रात को आना-
जाना बंद हो गया वहाँ! लोगों ने दूसरे रास्तों से आना शुरू कर दिया खेतों में! लेकिन एक भय सदा उनके साथ ही रहता!
थोडा वक़्त गुजरा! दो तीन महीने गुजरे! तब गाँव के तीन नौजवानों ने कुँए की छानबीन करने की ठानी! इन तीनों के नाम क्रमशः रवि, पुनीत और अनिल थे! तीनों शहर में पढ़े लिखे थे और आधुनिक विचारधारा वाले लड़के थे वो!
तीनों लड़के अपने साथ आरी, कुल्हाड़ी, टोर्च और एक मजबूत रस्सी लेके कुँए पर आये दिन में! कुँए में झाँका, कुआँ काफी गहरा था, झाड-झंखाड़ उगी थी उसमे! रवि ने रस्सी वहाँ पास के एक पेड़ में बाँधी, और फिर खुद की कमर में लपेटी! और फिर नीचे लटक गया कुँए में! झाड-झंखाड़ साफ़ किये! तीनों ने लगातार काम किया! तब जाके वहाँ नीचे का तल दिखाई दिया, लेकिन वहाँ काई लगे पुराने से पत्थर पड़े थे और कुछ नहीं! पुनीत टोर्च लेके नीचे उतरा! और नीचे और नीचे! वो तले पर आ गया! हाथ में कुल्हाड़ी थी, जो भी पौधा आदि मिलता तो काट देता वहीँ, नीचे भी ढेर हो गया था झाड-झंखाड़ का! तीनों आपस में बातें करते रहे, हौंसला-अफज़ाई होती रही! अब पुनीत ने वहाँ कुल्हाड़ी से नीचे टटोलना शुरू किया! लेकिन उसको ये मुश्किल काम लगा और फिर वो बाहर आ गया! अब तीनों काफी थक गए थे! अतः घर वापिस चल दिए! शेष कार्य कल के लिए नियत कर दिया!
अगले दिन ये तीनों मजबूत जीवट वाले नौजवान वापिस आये कुँए पर! इस बार अनिल नीचे उतरा! वे दोनों बाहर खड़े रह गए, अनिल का सैलफ़ोन-कैमरा चालू था! जब अनिल आधे रास्ते में था तब उसको कुछ सुनाई दिया! कुछ फुसफुसाहट सी! उसने ऊपर खड़े दोस्तों को मुंह पर हाथ रख कर चुप रहने को कहा, अनिल ने सुना ‘तंग न करो हमे, तंग न करो हमे’ इतना सुनना था कि अनिल बौखलाया और हल्दी जल्दी ऊपर चढ़ने लगा! उसका फ़ोन भी नीचे गिर गया! ऊपर खड़े दोस्त भी घबरा गए! अनिल बाहर आया और भाग अपने दोस्तों के साथ! एक जगह रुक कर उसने सारी बात बता दी अपने दोस्तों को! सभी का मुंह पीला पड़ गया भय के मारे! अब तीनों ने तौबा कर ली वहाँ जाने से! लेकिन ये बात उन्होंने किसी को भी न बतायी!
गाँव में कुँए का आतंक फ़ैल गया था!! कोई न गुजरता वहाँ से! अब प्रधान पर दबाव बढ़ने लगा! अब प्रधान साहब भी क्या करते! कोई सरकारी काम होता तो कुछ किया भी जा सकता था, लेकिन इसमें प्रधान जी क्या करें?
फिर एक बार प्रधान साहब को एक खबर लगी की किसी गाँव में एक पेड़ के ऊपर भी ऐसी ही एक बल थी, तब एक तांत्रिक को बुलाया गया था सोनीपत से! उसने तीन दिनों में ही वो बला
पकड़ ली थी और अपने साथ ले गया था! उस तांत्रिक ने काम कर दिखाया था! इसीलिए अब प्रधान साहब ने अपने दो आदमी लिए और उस गाँव जा पहुंचे! वहाँ के प्रधान से उस तांत्रिक का पता लिया और चल पड़े सोनीपत!
सोनीपत पहुंचे, तांत्रिक के पास गए, मुलाक़ात हो गयी! तांत्रिक को सारी बात बतायी गयी! तांत्रिक ने एक रकम तय की और अगले दिन गाँव आने को कह दिया! अब प्रधान जी खुश! ख़ुशी ख़ुशी चले आये गाँव वापिस!
और अगले दिन फिर वो तांत्रिक भी आ गया! उसके साथ उसके दो चेले भी आये! तांत्रिक का उचित सम्मान किया गया, दावत कराई गयी! फिर तांत्रिक को वो कुआँ दिखवाया गया! तांत्रिक अपने दोनों चेलों के साथ कुआँ देखने चला गया! तांत्रिक ने कुँए की जांच की! मंत्र पढ़कर सरसों के दाने फेंके! और थोड़ी देर वहीँ बैठा! फर उठा और उसने बताया की यहाँ जो भी है वो बहुत खतरनाक प्रेतात्माएं हैं! इसीलिए वो ये काम आज नहीं कल करेगा, आज वो उनको देखेगा स्वयं!
और फिर हुई रात! रात के साढ़े बारह बजे! तांत्रिक ने अपना सामान लिया और अपने चेलों के साथ चल दिया कुँए पर!
वहीँ वे तीनों उन पेड़ों के पास रुक गए! वहाँ कुँए पर वो आदमी और वो दोनों लडकियां बैठे थे! तांत्रिक आगे बढ़ा वहाँ से! उसके चेले पीछे पीछे चले! वहाँ उस आदमी ने तांत्रिक को देखा तो खड़ा हो गया, लडकियां अन्दर कूद गयीं! तांत्रिक कुँए के पास आ गया! वो आदमी वहीँ डटा था! तांत्रिक ने जेब से पढ़ी हुई सरसों मारी फेंक कर! वो हवा में उड़ा और अगले ही पल एक लात मारी खींच कर तांत्रिक को! तांत्रिक गिरा पीछे जाकर! तांत्रिक के चेलों को उठा उठा के पटकी मारी! हालत खराब कर दी उनकी मार मार के! वो आदमी आया तांत्रिक के पास और बोला,” आज छोड़ रहा हूँ तुझे, अगर दुबारा कभी यहाँ आया तो फाड़ के दो कर दूंगा तुझे!”
तांत्रिक कांपा अब! मुंह से बोलती नहीं निकली उसके! तब वो आदमी भी जाकर कुँए में कूद गया! किसी तरह से रगड़ रगड़ कर वो अपने चेलों के पास आया, उन्हें उठाने की कोशिश की लेकिन वो बेहोश पड़े थे! तांत्रिक भी फिर वहीँ गिर गया!
अगले दिन जब तांत्रिक की नींद खुली तो वो प्रधान के घर में एक कमरे में पड़ा हुआ था, उसके चेले वहीँ लेटे थे, एक को होश आ गया था और उठ के बैठ गया था, दूसरा अभी भी बेहोश था!
अब तांत्रिक उठा, दर्द के मारे कराह पड़ा! बदन में अथाह दर्द था! अब प्रधान आया, बोला, “बाबा आज सुबह ही उठा के लाये आप सभी को, क्या हुआ था?”
भाई, वो बला बहुत ताक़तवर है, सुकर है हमे जान से नहीं मार उसने” उसने बताया,
बला ताक़तवर है, ये सुनके प्रधान की हवा सरकी अब! अब क्या होगा??
इसके बाद उसके दूसरे चेले को भी होश आ गया, बाद में वे तीनों वापिस अपने अपने घर चले गए!
अब समस्या बढ़ गयी थी! प्रधान की तो जैसे प्रधानी पर बन आई थी! मुसीबत आन पड़ी थी सर पर बड़ी भारी!
एक दिन प्रधान जी को पता चला की फलाने गाँव में एक बाबा आये हुए हैं, बड़े माने हुए हैं और जिन्नात उनकी सेवा किया करते हैं! प्रधान की आँखों में चमक आई!
प्रधान उसी समय पहुँच गए फलाने गाँव जहां वो बाबा पधारे हुए थे! सारी समस्या बता दी बाबा को! बाबा मुस्कुराया और बोला,” कोई बात नहीं हम देख लेंगे कौन है वहाँ!”
“आपकी बड़ी कृपा होगी महाराज!”
“कोई बात नहीं, हम बैठे हैं” बाबा ने कहा,
“बाबा कब दर्शन होंगे आपके?” उसने पूछा,
“हम कल आ जायेंगे” बाबा ने कहा,
“कोई साजो-सामान या सामग्री?” उसने पूछा,
“हाँ मेरा ये चेला लिखवा देगा आपको” बाबा ने कहा,
तब चेले ने प्रधान को सार सामान लिखवा दिया! प्रधान ने लिख लिया और फिर बाबा से बोला, “बाबा बहुत विकट समस्या है ये, समाधान आपके हाथों ही होगा इसका, मुझे विश्वास है”
“अरे चिंता न करो इतनी अब” बाबा ने कहा,
तब प्रधान बाबा को नमस्कार कर वहाँ से चला गया, सामग्री खरीदने, सामान खरीदने!
और फिर मित्रगण! वो दिन आ गया जब बाबा जी आये गाँव में! रास्ते में कुआ भी दिखा वही! लेकिन प्रधान साहब ने बाबा को सीधे अपने घर ले जाने की ठानी! अपने ही घर ले गया! बाबा जी का खूब आदर-सत्कार हुआ वहाँ! बाबा को सारे मिष्ठान एवं दूध, घी, दही आदि परोसे गए!
बाबा जी ने भी खूब आशीर्वाद बांटे! क्या छोटे और क्या बड़े! सभी लोग-बाग खुश थे बाबा के आने से, कि चलो अब इस समस्या से तो निजात मिल ही जायेगी अब शीघ्र ही! उसके बाद बाबा और उनके ख़ास चेलों ने आराम किया!
संध्या-समय, बाबा उठे और प्रधान से वो कुआँ दिखाने को कहा, बाबा के साथ प्रधान और उनके चले चल पड़े! अब जब बाबा साथ हैं तो फिर किसी भूत-प्रेत का क्या डर!
कुँए तक आये सभी लोग! बाबा ने पूछा, “प्रधान जी, क्या यही है वो भुतहा-कुआँ?”
“हाँ बाबा! यही है वो, हमारी तो जान पैर बन आई थी एक दिन” प्रधान ने सहमते हुए कहा!
“कोई बात नहीं, अब बाबा आ गया है यहाँ!” बाबा ने कहा,
“आपका ही सहारा है बाबा जी, बस!” उसने कहा,
“चिंता मत करो! अब आपका गाँव भय-मुक्त हो जाएगा!” बाबा ने हिम्मत बंधाई उसकी!
तब बाबा ने सभी को वहाँ से हटा दिया और फिर कुँए के तीन चक्कर लगाए! फिर कमंडल में से भभूत निकाली और उसको अभिमंत्रित कर कुँए की मुंडेर पर सात जगह रख दिया!
“लो प्रधान जी! सारी समस्या ही ख़तम!” बाबा ने कहा,
“सब आपके कारण संभव हुआ है ऐसा बाबा जी” प्रधान ने बाबा के पाँव पकड़ते हुए कहा,
उसके बाद बाबा वापिस चले! प्रधान जी ने तो ढिंढोरा पीट दिया कि अब गाँव भय-मुक्त हो गया है! कोई भी आओ जाओ! अब कोई चिंता नहीं! सभी खुश हो गए! बाबा ने तो चमत्कार कर दिया! बाबा ने अब वहाँ से प्रस्थान करने को कहा तो प्रधान न उनको जाने नहीं दिया! प्रधान के अति-आग्रह के पश्चात बाबा जी ने प्रधान का आतिथ्य स्वीकार कर ही लिया!
फिर आरम्भ हुआ बाबा जी का प्रवचन! सभी ने आनंद उठाया! उसके बाद बाबा जी भोजन आदि खाने के पश्चात शयन-कक्ष में चले गये! उनके चेलों का पलंग भी वही लगा दिया गया था!
अब कुछ खुराफाती लोगों ने सोचा कि चलो आज रात को कुआँ देखके आयें कि वहाँ क्या वो भूत अभी भी हैं या नहीं? दो लोग वहाँ के लिए साढ़े बारह बजे निकले, दोनों थे शराबी! कुँए तक पहुँच गए और फिर उसके बाद उनकी हुई पिटाई! उन्हें कुछ नज़र नहीं आया, बस खून ही
निकालते रहे मुंह से! ज़ाहिर था प्रेतात्माएं अब भड़क गयीं थीं! उनमे से एक भाग अपनी जान बचाने के लिए, लेकिन एक वहीँ पड़ा रहा बेहोश!
जो भाग कर आया था वो सीधा गया प्रधान के पास! रो रो के सारी बात कह सुनाई! प्रधान ने जब ये सुना तो उसकी हवा सरकी! वो चला अब बाबा की ओर! दरवाज़ा खटखटाया तो बाबा का एक चेला आया बाहर! प्रधान ने एक ही सांस में सारी बातें कह सुनायीं! बाबा को जगाया गया, बताया गया तो बाबा राजी हो गए वहाँ कुँए पर जाने के लिए! बाबा ने अपने चेले लिए अपने साथ और पहुंचे कुँए पर! वहाँ वो शराबी बेहोश पड़ा था, चेलों ने उसको उठाया और एक तरफ कर दिया! फिर आगे चले! बाबा ने कमंडल लिया अब हाथ में और कुछ भभूत निकाली और गर्राए,” कौन है यहाँ? सामने आये मेरे!”
कोई नहीं आया!
“कौन है वो प्रेतात्मा जो भोले-भाले इंसानों को मारती है? आये मेरे सामने?” बाबा चिल्लाए!
कोई नहीं आया!
“डर गया बाबा से?” बाबा ने चेतावनी दी!
फिर भी कोई नहीं आया वहाँ!
“यदि आजके बाद मैंने कुछ ऐसा वैसा सुना तो यहीं भस्म कर दूंगा तुमको” बाबा चिल्लाए!
तभी एक चेले ने कलाबाजी सी खायी और बाबा के सामने खड़ा हो गया! आँखें चौड़ी कर ली! जोर जोर से साँसें लेने लगा और बोला, “पुजारी है, इसीलिए छोड़ रहा हूँ नहीं तो फाड़ के सुखा देता तुझे!”
अब बाबा समझ गए! वो प्रेतात्मा उनके चेले में प्रवेश कर चुकी है!
“कौन है तू?” बाबा ने पूछा,
“चला जा यहाँ से!” चेला दांत भींच के बोला!
“मुझे बता अपना नाम?” बाबा ने कहा,
“चला जा पुजारी, आखिरी बार कह रहा हूँ” चेला गुर्राया!
तब बाबा ने भभूत उठाके मारी चेले के ऊपर! चेला यथावत खड़ा रहा! अब बाबा को भी भय सताया!
“चला जा पुजारी चला जा, क्यों बे-मौत मरना चाहता है तू?” चेला बोला,
अब बाबा जी घबरा गए! एक आद मंत्र याद किया ही था के चेले ने उनका कमंडल हाथों से पकड़ के फेंक दिया! बाकी चेले आये बचाने तो उस चेले ने करनी शुरू की तीनों की ज़बरदस्त पिटाई! कुछ न कर सके वे तीनों! तब उस चेले ने बाबा के बाल पकडे और लेके भागा! बाबा चिल्लाए! अब प्रधान आदि की सूखी जान कि ये क्या हो गया! बाबा जी को कैसे बचाएं हम?
उधर उस चेले ने बाबा को नीचे गिराया और बाबा की छाती में दनादन लातें बरसानी शुरू कर दीं! बाबा चिल्लाए ‘माफ़ कर दो!, माफ़ कर दो!’ लेकिन वो चेला नहीं मान रहा था! लात पे लात मारे जा रहा था! अचानक से चेले ने एक झटका खाया और बाबा के ऊपर गिर पड़ा! प्रेतात्मा ने चेले को छोड़ दिया था! तब प्रधान आदि लोग आये और उनको उठा के ले गए वहाँ से! सभी को प्रधान के घर लाया गया! बाबा की हालत बहुत खराब थी! मुंह और नाक से खून बह रहा था! अंदरूनी चोटें लग गयीं थीं बाबा जी को! उनको गाडी में लादा गया और ले जाया गया अस्पताल!
तो मित्रो बाबा जी का किस्सा तो यहीं ख़तम हो गया! बाबा जी का मान-सम्मान उस भड़की हुई प्रेतात्मा ने तार तार कर दिया था! जान बच गयी थी यही काफी था! लेकिन अब प्रधान साहब की चिंताएं बढ़ गयीं थीं! अब क्या होगा? कुछ अफवाहें दूसरे गाँवों तक भी पहुँचने लगी थीं! इस से प्रधान के गाँव की जग-हंसाई होने का डर था! बहुत परेशान था बेचारा प्रधान!
तब मित्रगण! वो जो लड़के थे तीनों, उनमे से एक लड़का पुनीत मेरे किसी जानकार के संपर्क में आया, पुनीत ने ये वाला किसा आखिर उसको बता ही दिया! मेरे जानकार ने मुझसे बात की, मैंने मामला देखने के हाँ कर दी, लेकिन बिना बुलाये तो मई वहाँ नहीं जाने वाला था! तब पुनीत ने जब वो गाँव गया तो प्रधान को मेरे बारे में बताया! अब अँधा कहा चाहे! दो आँख! पुनीत मेरा नंबर ले ही गया था, अतः प्रधान ने मुझे फ़ोन किया और सारी बातें बता दीं! मुझे भी रूचि उत्पन्न हुई इस कहानी में और उस कुँए में! आखिर बात तय हो गयी और मैंने इतवार का कार्यक्रम बना लिया!
मै इतवार को दस बजे वहाँ पहुँच गया! प्रधान को देखा और मिला, प्रधान के साथ ही साथ वहाँ सभी लोग मायूस बैठे थे, मुझे उन दोनों के बारे में भी बताया, अर्थात चेताया कि उनके साथ क्या हुआ था! अब मैंने पूछा, “सबसे पहले यहाँ उनको किसने देखा था?”
जी मैंने, आज से तीस बरस पहले” मेवा ने कहा और सारा किस्सा सुना दिया! बड़ा अच्छा ख़ासा वाकया सुनाया उसने!
“और उसके बाद?” मैंने पूछा,
“जी हमने!” सुरेश और बलराम बोले और सारी कहानी सुनाई,
“और किसी ने?”
“जी नहीं, बाबा की भभूत के बाद वो दिखना ही बंद हो गए, मामला और खतरनाक हो गया है जी अब” प्रधान ने बताया,
“अच्छा!” मैंने कहा और मै समझ गया कि वो प्रेतात्मा अब कुपित हो गयी हैं!
“पुनीत? उस दिन क्या सुना था तुमने?” मैंने पुनीत से पूछा,
पुनीत थोडा सकपकाया और फिर बोला, “जी अनिल ने सुना था, ‘तंग मत करो हमे, तंग मत करो हमे’ यही सुनाई दिया था”
“प्रधान जी, इसीलिए वो भड़क गयी हैं!” मैंने बताया,
“जी अब क्या होगा?” प्रधान घबराया,
“मै देखता हूँ कि क्या चाहते हैं वो लोग” मैंने बताया,
“क्या करना होगा हमे?” प्रधान ने पूछा,
“आपको कुछ नहीं करना” मैंने बताया,
“कोई सामग्री आदि?” उसने पूछा,
“वो ये शर्मा जी बता देंगे आपको” मैंने बताया,
“अच्छा जी!” प्रधान ने कहा और फिर शर्मा जी ने सारा सामान लिखवा दिया प्रधान के आदमी को!
“प्रधान जी चलिए कुआँ दिखाइये” मै उठके खड़ा हुआ और बोला,
“जी चलिए गुरु जी” प्रधान भी खड़ा हो गया,
अब मै, शर्मा जी और प्रधान चल पड़े कुँए की तरफ! कुआँ दिखाई दे गया, काफी पुराना लखौरी ईंटों से बना हुआ कुआँ था वो!
“अच्छा तो ये है वो कुआँ!” मैंने कहा,
हाँ जी यही है” प्रधान ने कहा,
फिर मैंने कुँए में झांक कर देखा, शर्मा जी ने भी देखा! काफी गहरा कुआ था वो!
मैंने कुँए को गौर से देखा, स्थापत्य कला बादशाही समय की लग रही थी, उसकी मुंडेर और उसके आसपास लगा पत्थर भी उसी समय का लग रहा था, कुल मिलाकर ये कुआँ कम से कम सौ-डेढ़ सौ साल पुराना तो होगा ही! तब वहाँ कोई गाँव रहा होगा जो वक़्त क साथ साथ ख़तम हो गया या फिर उसका रूप बदल गया है! कुँए का ताल नहीं दिखाई दे रहा था, धूप जहां तक पहुँच रही थी वहीँ तक उसकी गहराई दिख रही थी, उस से आगे नहीं! मै वहाँ से वापिस चला, आसपास का दृश्य भी देखा, फिर वापिस आ गया प्रधान के यहां, अब थोडा आराम किया, भोजन किया और फिर कुछ समय के लिए सोने चला गया, जब उठा तो छह बज चुके थे, मैंने स्नान किया, फिर शर्मा जी ने भाई, उसके बाद में एक अलग जगह पर बैठा, अपना बैग खोल और एक एक वस्तु अभिमंत्रित कर ली!फिर मैंने शर्मा जी को बताया, “शर्मा जी, पता नहीं कौन सी और कैसी रूह से पाल पड़ेगा, आप मेरे पीछे ही रहना, हिलना नहीं, जब तक मै न कहूँ”
“जैसी आपकी आज्ञा गुरु जी!” उन्होंने कहा,
उसके बाद मैंने ताम-मंत्र, कलुष-मंत्र, एवंग-मंत्र एवं तामसी-विद्या जागृत की और स्वयं को और शर्मा जी को भी सशक्त किया! और अब मुझे प्रतीक्षा थी उस समय की जब हमारे सामने वो भड़की हुई प्रेतात्माएं आएँगी!
रात हुई, फिर ग्यारह बजे, मैंने अपना त्रिशूल उठाया और निकल पड़ा वहाँ से शर्मा जी के साथ, और किसी को साथ नहीं लिया, प्रधान जी ने काफी कहा लेकिन मैंने मन कर दिया, मै और किसी को अपने साथ मुसीबत में नहीं डालना चाहता था! अब मै और शर्मा जी वहाँ एक पेड़ के नीचे बैठ गए, मैंने एक स्थान पर अपना त्रिशूल गाड़ दिया और कुँए पर निगाह राखी आरम्भ कर दी! अब मैंने कलुष-मंत्र का जाप किया और अपने और शर्मा जी के नेत्र पोषित कर लिए! और दृष्टि सामने गढ़ा दी!
