वर्ष २००७ जयपुर राज...
 
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वर्ष २००७ जयपुर राजस्थान की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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Topic starter  

"भला हो तुम्हारा! मेरे आदमियों ने खाना खा लिया! अब लड़का ठीक रहेगा, कोई नहीं तंग करेगा उसको!" उसने कहा,

"राणा साहब खाना खा लीजिये" मैंने कहा,

"हाँ! हाँ! मेरे परिवार को भी खिला देना" उसने कहा,

"हाँ उनके लिए भी लाया हूँ मैं!" मैंने कहा,

"चलो, अन्दर कोठरी में चलते हैं!" वो उठा और एक कोठरी में घुस गया, हम भी घुस गए, वहाँ वो बैठ गया, हमने उसके सामने खाना लगा दिया!

उसने खाना खाया! मिठाई खायी और फिर शराब भी पी! वो खुश हो गया! उसने कहा, "आज पेट भर खाना खाया है, हरकारा ही लाता है रसद, हफ्ते में एक बार बस!"

वो उठा और गुमटी की तरफ देखने लगा! फिर वो आगे बढ़ा और हम भी, हमने खाना उठाया, अपने बैग में रखा, और राणा से कहा, "ठीक है राणा साहब, हम आपके परिवार को खाना खिला कर आते हैं!"

"हाँ! जाइये, उनका हाल मुझे भी बताइये, बोलना तीन दिनों की बात है, उसके बाद वो यहाँ से निकल जायेंगे, डटे रहो!"

हम उठे और जहां राणा ने इशारा किया था वहाँ जाने लगे! हम करीब २० मिनट में वहाँ पहुंचे! बड़ी बड़ी कांटेदार झाड़ियाँ थीं यहाँ, मैंने खबीस को बुलाना ही ठीक समझा,खबीस आया, मैंने उससे पूछा, उसने कहा की यहाँ कोई नहीं है, और वो तो जिस दिन यहाँ आये थे उसी दिन काट डाले गए थे। उनकी आत्माएं मुक्त हो गयीं थीं इसका भी एक कारण था! एक माँ अपने बच्चों को उठाये अपने और अपने बच्चों के जीवन की शिक्षा मांग रही होगी, तब उन्होंने मृत्यु को साक्षात देखा होगा!

दिल पर बड़ा धक्का पहुंचा, वो राणा ना जाने कबसे उस गुमटी पर उनकी रक्षा करने पर डटा था!

मैं वापिस मुड़ा! राणा को बताया की खाना खिला दिया है, परिवार ठीक है! उससे और उनसे विदा लेके हम वापिस आ गए!

रचित ठीक हो गया था! उसको उसका कारण बता दिया गया था!

मै उसके बाद उस किले की गुमटी के पास नहीं गया जहां आज भी राणा अपने आदमियों के साथ डटा है!

वो आज भी वहाँ वही कर रहा है जो उसने अपनी मृत्यु के प्रतिक्षण में कर रहा था!

 ------------------------------------------साधुवाद!---------------------------------------------


   
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