ये घटना वर्ष २००७ के आरम्भ की है! उन दिनों मै छत्तीसगढ़ आया हुआ था, रायपुर, यहीं पास में के क़स्बा है, मै यहीं आया हुआ था शर्मा जी के साथ, मुझे मेरे एक परिचित ने बुलाया था, कारण था, की उसके बड़े लड़के और उसकी पत्नी किसी रहस्यमय रोग के शिकार हो गए थे, कमाल ये था की ये दोनों एक ही दिन बीमार हुआ थे! लड़के का नाम अबे और उसकी पत्नी का नाम देविया था! लड़के की उम्र होगी कोई २७-२८ वर्ष के आसपास!
दोनों के ही मुंह पर , छाती पर और पेट पर अजीब तरह के निशान बन गए थे! ये निशान कहीं लाल, कहीं काले और कहीं हरे थे, और आकृति ऐसी थी कि जैसे किसी सांप की केंचुली होती है चिकित्सक इसको कोई एलर्जी कह रहे थे जो कि किसी जंगली फफूंद के संपर्क में आने से हुए थे!
लेकिन ना तो उसका कोई उपचार सफल हो रहा था, और ना ही कोई आराम पड़ रहा था!
उन्होंने दूसरे इलाज भी कराये लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा, मैंने उसके पिता से पूछा, "ये हालत इनकी ऐसी कब से है?"
"कोई महीने के करीब हो गया है गुरु जी, हम बड़े परेशान हैं, इनके बच्चे को भी अलग रखना पड़ रहा है, ऐसा चिकित्सकों ने कहा है" वो बोले,
"अच्छा, ये कहीं बाहर गए थे क्या जल्दी में?" मैंने पूछा,
"नहीं कहीं बाहर भी नहीं गए" वो बोले,
"काम क्या है, वही? आपके वाला?" मैंने पूछा,
"हाँ जी वही लोहे का" उन्होंने कहा,
उनका वहाँ अपने लोहे के सरियों का काम था,
"इसकी पत्नी कहीं गयी हों?" मैंने पूछा,
"नहीं जी, कहीं नहीं" वो बोले,
"कोई बुखार वगैरह आया हो?" मैंने कहा,
"नहीं जी, कुछ नहीं" वो बोले,
मैंने उनको बाहर भेजा और शर्मा जी को अन्दर बुला लिया, दोनों पति-पत्नी वहीँ बेड पर बैठे थे,
मैंने कलुष-मंत्र पढ़ा और अपने नेत्रों और शर्मा जी के नेत्रों पर प्रयोग किया!
आँखें खोलते ही, आँखें फटी कि फटी रह गयीं!
मैंने देखा कि दोनों पति-पत्नी पर सैंकड़ों, सांप के सपोले रेंग रहे थे! दीमक चल रहीं थीं अपने अंडे उठाये! भयानक दुर्गन्ध फूट रही थी वहाँ! बड़ा ही वीभत्स दृश्य था वो!
शर्मा जी का मुंह खराब हो गया वो थूकने चले गए बाहर!
शर्मा जी अन्दर आये! मैंने कलुष-मंत्र का जाप किया और मंत्र वापिस लिया! फिर से दृश्य सामान्य हो गया!
हम वापिस बाहर आ गए! शर्मा जी बोले, "ये क्या माजरा है गुरु जी?"
"ये महा-मारण क्रिया है!" मैंने बताया,
"महा-मारण?" ये क्या है?
"आदिवासिओं की मारण-क्रिया!"
"आदिवासियों की? ये कहाँ टकरा गए उनसे?" उन्होंने पूछा,
"इन्ही से कोई सुराग मिलेगा, नहीं तो हम पता लगायेंगे!" मैंने कहा,
"ठीक है गुरु जी!" उन्होंने कहा,
इतने में हमारा बुलावा आ गया, चाय आदि का प्रबंध हो गया था, हम अन्दर चले गए! रात्रि-समय मुझे क्रिया में बैठना था, तभी कुछ पता चल सकता था! मैंने शर्मा जी से अपने परिचित कह से सार सामान मंगवा लिया और उसनके यहाँ एक खाली जगह पर बने एक बड़े से कमरे को बनाया अपनी क्रिया-शाला! मै यहाँ रात्रि-समय क्रिया करना चाहता था और इसलिए मैंने वहाँ की सारी साफ़-सफाई करवा दी, अभी करीब ८ बजे थे, मैंने सोचा की चलो तनिक दोनों पति-पत्नी से वार्तालाप किया जाए, हो सकता है की कोई सुराग आदि उपलब्ध हो जाए! मै और शर्मा जी दोनों उनके पास गए, मैंने अपने परिचित के लड़के से पूछा, " अभय? मुझे एक बात बताओ, क्या आप दोनों कहीं बाहर, जंगल आदि गए थे घूमने?"
"नहीं गुरु जी, कहीं नहीं गए" उसने कहा,
"अच्छा, घर में अन्य कोई गया हो?" मैंने पूछा,
"नहीं, घर में से अन्य भी कोई नहीं गया कहीं" उसने कहा,
"ठीक है, एक बात और बताओ, दुकान पर कौन कौन काम करता है तुम्हारी?" मैंने पूछा,
"करीब १० आदमी काम करते हैं वहाँ" उसने बताया,
"किसी से कोई वाद-विवाद हुआ?" मैंने पूछा,
"वाद-वाद तो किसी से नहीं हुआ, हाँ एक आदमी को काम से निकाला था" उसने बताया,
"क्या नाम था उसका?" मैंने उत्सुकतावश पूछा, मुझे अब कोई सूत्र मिलने की संभावना दिखी!
"हरदन नाम था उसका, उम्र कोई ४५-५० वर्ष थी उसकी" उसने बताया,
"ये कोई आदिवासी व्यक्ति था?" मैंने पूछा,
"हाँ, आदिवासी ही था" उसने बताया,
"कारण क्या था उसको निकालने का?" मैंने पूछा,
"वो एक अन्य आदमी की पत्नी पर गलत नज़र रखता था, मुझे ये शिकायत आई, मैंने उसको निकाल दिया" उसने बताया,
"अब कहाँ है वो?" मैंने पूछा,
"पता नहीं अब वो कहाँ है, उसके बाद उसका कोई पता नहीं" उसने बताया,
"ठीक है, मै अब देखता हूँ क्या करना है" मैंने कहा और उठ के बाहर आ गया,
"गुरु जी, अब मामला समझ में आ रहा है, लगता है, उसी हरदन ने करवाया है ये काम, महा-मारण" शर्मा जी ने कहा,
"नहीं अभी नहीं कहा जा सकता ऐसा कुछ, अभी हमने केवल एक ही पक्ष का व्यक्तव्य सुना है" मैंने कहा,
"हाँ ये तो सही बात है!" उन्होंने कहा,
"हाँ, हमको जांचना होगा" मैंने कहा,
"ठीक है, तो आज रात पता चल जाएगा की मामला है क्या?" शर्मा जी ने कहा,
"हाँ, मै आज और मालूमात करूँगा" मैंने कहा,
"ठीक है गुरु जी" शर्मा जी ने कहा,
"चलिए शर्मा जी, कीकर, पीपल और बरगद की पत्तियाँ चाहिए हमको आज, चलिए लेकर आते हैं" मैंने कहा,
"जी चलिए" शर्मा जी ने कहा,
हम उठे और बाहर चले गए, कीकर, पीपल और बरगद की पत्तियाँ ले लीं, इनकी आवश्यकता थी आज, मै पहले अभय और उसकी पत्नी को ठीक करना चाहता था! रात्रि-समय मै क्रिया में बैठा! अलख उठायी और भोगादि सम्मुख रखे! मैंने तब अपना एक तातार-खबीस बुलाया, ये खबीस दूसरों से अलग होता है, ये एक तो कहीं बंधता नहीं और जुझारू भी होता है! तातार-खबीस प्रकट हुआ! गले में लोहे के आभूषण धारण किये हुए, हाथों में लोहे के कड़े और पाँव में ताम्बे के छल्ले पहने हुए वो हाज़िर हुआ! उसने आते ही अपना भोग उठाया और लील गया! मैंने उसको सारा हाल बताया और फिर वो रवाना हुआ! करें २० मिनट के बाद दुबारा हाज़िर हुआ! उसने जो बताया वो लाजवाब जानकारी थी! और अभय ने जो हमको बताया था वो एक दम झूठी कहानी थी! उसके अनुसार--
अभय ने उस हरदन को इसलिए नहीं निकाला था की हरदन का किसी अन्य मजदूर की पत्नी से सम्बन्ध थे, बल्कि इसलिए क्यूंकि हरदन की बीवी से अभय के सम्बन्ध थे! हरदन ने उसको रंगे-हाथ पकड़ लिया था! दोनों के बीच काफी गाली-गलौज भी हुई, हरदन को अभय ने प्रलोभन भी दिया लेकिन उसने नहीं माना और अभय को दो चार हाथ भी मार दिए! हरदन की बीवी एक आदिवासी महिला थी, वो अभय के प्रलोभन में फंस गयी थी! अगले दिन हरदन अभय के पिताजी से मिलने आया, लेकिन उसके पिता वहाँ दुकान पर नहीं थे, अभय की पत्नी दुकान पर किसी कारणवश आई हुई थी, अभय से उसने अपना हिसाब माँगा, हिसाब के कोई पैसे अभय ने नहीं दिए, बल्कि उसको वहाँ से भगा दिया! हरदन उसी दिन अपने गाँव चला गया, उसने अपनी पत्नी को छोड़ दिया, उसकी पत्नी अपने घर चली गयी, हरदन ने ही इन सभी को सबक सिखाने के लिए किसी आदिवासी तांत्रिक अर्थात धंधेरा से संपर्क किया और ये मारण करवाया! अब अभय और उसकी पत्नी देविया और हरदन की बीवी इसी से ग्रस्त और इसकी चपेट में थे!
मैंने खबीस का शुक्रिया किया और उसको वापिस भेज दिया! मेरा मकसद पूर्ण हो चुका था!
मै अब शर्मा जी के पास गया! सारी बात विस्तारपूर्वक उनको बता दीं! उनको क्रोधावेग चढ़ गया, बस चलता तो अभय को वहीँ कमरे से खींच कर नंगा करके बीच चौराहे पे मारते! मैंने
उनको शांत रहने को कहा! शर्मा जी ने ये बातें, और विशेषकर हरदन वाली बात अभय के पिता और मत से उसी समय करने के का निश्चय किया और उठकर चले गए!
करीं आधे घंटे के बाद अभय की पिता और शर्मा जी मेरे कमरे में आये, और आते ही आँखों में विस्मयता का भाव भर लिया!
शर्मा जी ने उनसे कहा, " देखिये, हमारा मन तो है नहीं अभय को ठीक करने का, उसको उसके पाप का भुगतान तो अवश्य ही करना होगा, किसी निर्धन की विवशता का लाभ उठाने वाला व्यक्ति घृणित, त्याज्य होता है, अब मर लेने दो उसको" शर्मा जी ने गुस्से में कहा,
"नहीं गुरु जी नहीं! ऐसा न बोलो, मेरा एक ही लड़का है, उसकी एक संतान है, कम से कम उसके भविष्य के बारे में सोंचें गुरु जी" उन्होंने कहा और आँखों में आंसू उतर आये उनके!
"देखिये, आप बताएं क्या प्रायश्चित होगा उसके लिए?" शर्मा जी ने कहा,
"जो आप कहें, जैसा आप सुझाएँ" वे बोले,
"आपके पुत्र को हरदन से क्षमा मांगनी होगी, और आपको भी, आपको पूरा मामला समझना चाहिए था, और हाँ, हरदन की पत्नी को गुजारे के लिए राशि-दान करना होगा, स्वीकार है?" शर्मा जी ने कहा,
"जी स्वीकार है, जैसा आप कहें" उन्होंने कहा,
"ठीक है फिर, अब हम देखते हैं, की अब करना क्या है" शर्मा जी ने कहा,
"आपका बहुत बहुत धन्यवाद गुरु जी, अब तो ये बच जायेंगे न?" उन्होंने पूछा,
"हाँ बच जायेंगे" शर्मा जी ने कहा कारण ज्ञात हो गया था! अब वो मारण काटना आवश्यक था! ये मारण वहाँ पर मृदंग-मारण कहा जाता है! सांप की बाम्बी या दीमक की बाम्बी के पास मृदंग को धीमी ताल पर बजाय जाता है! बाम्बी के चारों ओर परिक्रमा की जाती है! धीरे-धीरे मारण अपना प्रभाव दिखाता है! ये आदिवासी मारण-विद्या कहलाई जाती है!
मैंने इस मारण-विद्या को प्रभावहीन करने के लिए आवश्यक वस्तुएं मंगवा ली थीं, इसमें ५ प्रकार का मांस, शराब, काजल, ५ प्रकार के वस्त्र और ५ चांदी के छल्ले आदि थे! बाकी का सामान मेरे पास था!
मैं अलख उठायी, अलख भोग दिया! अपने त्रिशूल को अभिमंत्रित किया और शराब का भी अभिमन्त्रण किया! मैंने दिक्-वाहिनी को प्रकट किया! ये सर्पविष-मोचिनी शक्ति होती है,
इसका प्रयोग इसीलिए किया जाता है! ५ प्रकार का मांस-भोग ये लेती है! उसके बाद इसके मंत्रोपचार से शराब अभिमंत्रित की जाती है! वो शराब मारण-विद्या से ग्रसित के शरीर पे छिडकी जाती है! मारण-विद्या का शमन हो जाता है!
मुझे ये क्रिया सम्पूर्ण करने में पूरे ४ घंटे लगे लेकिन क्रिया सफल हो गयी! मैंने वहीँ अलख के पास बैठा रहा, सुबह होने में अभी २ घंटे से अधिक समय था, मै वहीँ अपने आसन पर सो गया!
जब उठा तो ६ बज रहे थे, मैंने शर्मा जी को बुलाया, और कहा, " शर्मा जी, आप अभय के पिता जी को कहकर अभय को यहाँ मेरे पास भेज दीजिये, उसके बाद आप उसकी पत्नी को यहाँ भेजिए"
"ठीक है मै कहता हूँ और भेजता हूँ दोनों को यहाँ" उन्होंने कहा और वो उनको बुलाने चले गए!
थोड़ी देर बाद वे अभय को मेरे पास ले आये! मैंने उसको अपने सामने बिठाया और कहा, "क्या आपके पिता जी ने आपको कुछ बताया?"
"हाँ.............हाँ जी, बताया" उसने नज़रें झुक के कहा,
"अपने किये पर पछतावा है या नहीं?" मैंने कहा,
"जी...........हाँ.........है" उसने रोती सी सूरत बना के कहा,
"ठीक है, मै तुम पर विश्वास कर रहा हूँ, उसके बाद प्रायश्चित अवश्य ही करना, समझे?" मैंने थोडा कड़क होते हुए कहा,
"जी अवश्य" उसने कहा,
मैंने तब उसके ऊपर मंत्र पढ़ते हुए शराब के छींटे डाले तीन बार, फिर एक चांदी का छल्ला पहना दिया! सूर्यास्त तक उसके निशान समाप्त हो जाने वाले थे, अब मैंने उसको बाहर भेज दिया और शर्मा जी से कहकर उसकी पत्नी को बुला लिया अन्दर, वो आ गयी, सर पर पल्लू ढक कर मेरे सामने बैठ गयी, मैंने पूछा, "क्या आपको ज्ञात है की आपके पति महोदय ने क्या दुष्कृत्य किया है?"
"जी मुझे पता चला है, ये अत्यंत दुखद है" उसने कहा,
"आप भी इस के लपेटे में आ गयीं हैं देविया जी, आप इनका भविष्य में ध्यान रखियेगा, ठीक है?"
"हाँ, जी हाँ गुरु जी अवश्य" उसने कहा,
मैंने वही क्रिया देविया पर भी दोहराई और उसको भी बाहर भेज दिया, और कहा की मै एक घंटे के बाद उनको देखने आऊंगा, स्नानादि से परहेज रखें,
तब मै वहा से उठा और स्नानादि के लिए चला गया! वापिस आने पर चाय आदि का प्रबंध हो चुका था, मैंने और शर्मा जी ने चाय पीनी आरम्भ की!
अब मुझे उन दोनों का अवलोकन करना था, अभी थोडा ही समय शेष था.... मै और शर्मा जी उनके कमरे में गए, मैंने कलुष-मंत्र का प्रयोग किया! नेत्रों पर अपने और शर्मा जी के, आँखें खोलीं तो दृश्य स्पष्ट हो गया, अब कोई सपोले या दीमक नहीं थीं! यानि की मारण थम गया था! राहत की सांस ली मैंने! लेकिन अभी वो जड़ काटनी थी जहां से ये आरम्भ हुआ था! मैंने अभय से हरदन का पता पूछा, उसने बता दिया, अब मैंने अभय के पिताजी को अपने साथ लिया, और हरदन के घर के लिए निकल पड़े,
हरदन का घर वहाँ से कोई ४०-५० किलोमीटर दूर दक्षिण में था, हमने वहीँ जाना था, एक छोटा से गाँव था, रास्ते भी कच्चे ही थे, काफी परेशानी हुई थी हमे! खैर, हम उसके गाँव पहुंचे, गाडी ले जाने का रास्ता नहीं था, गाडी एक जगह अलग कड़ी करनी पड़ी, पैदल ही चले, एक आद से पूछा तो उसने उसका घर बता दिया, बता क्या दिया भले आदमी ने स्वयं हमको अपने पीछे आने को कहा और उसके घर में भी पूछने चला गया!
वो बाहर आया तो उसने बताया की हरदन किसी खेत पर काम करने गया है, कोई एक-डेढ़ घंटे में आ ही जाएगा! हम वहीँ बैठ गए, उन्होंने हमारा काफी अच्छा सत्कार किया! अपने हिसाब से!
डेढ़ घंटे के बाद हरदन वहाँ आ गया, पहले तो हमको देख के घबराया, लेकिन उसने अपने आपको संयत कर लिया, उसने हमे नमस्कार किया, हमने भी! हमने अपना अपना परिचय दिया!
मैंने उस से कहा, "हरदन, तुम्हारे साथ जो हुआ मुझे पता चल गया, और ये काफी गलत हुआ"
"बाबू जी हम गरीब आदमी हैं, कहाँ जाएँ, किस से कहें?" उसने मायूसी से कहा,
"मै जानता हूँ की गलती तुम्हारी नहीं थी, तुम्हारे साथ अन्याय हुआ" मैंने कहा,
"किस से कहें बाबू जी, कलेजे पे बट्टा रख लेते हैं हम लोग" उसने कहा,
फिर अभय के पिता जी ने भी उसको आश्वस्त किया और विश्वास में लिया! वो बेचारा गरीब आदमी रो पड़ा!
मैंने उस से कहा, "हरदन, तूने करिया कहाँ से चलवाई?"
ये सुनके वो हैरान हो गया! थोड़ी देर चुप रहा और बोला,"मेरे चाचा ने ये करिया चलवाई थी, मैंने मना भी किया लेकिन वो नहीं माना"
"कोई बात नहीं करिया चलनी बंद कर दी मैंने, लेकिन तुम्हारे चाचा से मिलना है मुझे, बटिया वो ही फोड़ेगा, ये ज़रूरी है" मैंने कहा,
"वो उठा और सामने के घर में से एक ६० वर्ष के एक व्यक्ति को ले आया, उसने मालाएं आदि धारण कर रखीं थीं, माथे पर तिलक लगा रखा था! हरदन ने उसका परिचय करवाया,
"क्या नाम है तुम्हारा?" मैंने पूछा,
"सुम्मन नाम है मेरा" उसने बताया,
"करिया तुमने चलाई?" मैंने पूछा,
"हाँ, मैंने चलाई थी, हरदन के संग गलत जो हुआ?" उसने कहा,
"बात तो तुम्हारी ठीक है, तुम्हे एक से बदला लेना था, तुमने अभय की बीवी पर भी करिया चलाई? क्यूँ?" मैंने पूछा,
"वो भी संग थी इसके, ये जो अभय है, चलानी पड़ी मुझे" उसने कहा,
"मैंने करिया बंद कर दी है, अब तुम बटिया फोड़ दो" मैंने कहा,
"ना फोडूं तो?" उसने कहा,
"तो मै तुम्हे फोड़ दूंगा, फोड़ना पड़ेगा" मैंने कहा,
"हरदन के संग न्याय करो पहले" उसने कहा,
"हरदन के साथ न्याय हो जाएगा सुम्मन" मैंने कहा, नीचे बैठा हरदन बेचारा मायूस था! मैंने कहा, "हरदन तू कल से फिर नौकरी पर आ जाना, तुझे कोई कुछ नहीं कहेगा"
उसने एक नज़र मुझ पर डाली और एक नज़र अभय के बाप पर, अभय के पिताजी बोले, "हरदन, तू कल से आ जाना काम पर, कोई तुझे कुछ नहीं कहेगा, मै हूँ वहाँ पर, तुझे कोई परेशानी हो तो तू सीधे मुझे ही बताना, तेरी समस्या निबट जायेगी!"
हरदन थोडा खुश हो गया, उसके चेहरे के भाव बदल गए, मै समझ गया की हरदन को अपनी नौकरी दुबारा पाकर ख़ुशी हुई है!
तब मैंने अभय के पिताजी से कहा, "सुनिए आप हरदन को कुछ पैसे दे दीजिये, ये अपनी ससुराल जाकर अपनी बीवी को ले आएगा, वो बेचारी कष्ट भोग रही है अपने आदमी के लिए, उसने अपने आदमी को सही रखने के लिए अभय की बात मानी होगी, वो उसके प्रलोभन में आ गयी!"
अभय के पिता जी ने अपनी जेब से उसको ५,००० रुपये दे दिए और कहा, "सुन हरदन, तेरा हिसाब भी कल हो जाएगा, ब्याज सहित"
हरदन ने रुपये रख लिए! शर्मा जी ने उस से उसकी बीवी को क्षमा करने के लिए कहा, हरदन को बात समझ में आ गयी!
"चलो सुम्मन, बटिया फोड़ो अब" मैंने उठते हुए कहा,
सुम्मन उठा, हरदन भी उठा और हम सबके साथ गाडी में बैठ कर दूर चल पड़े, कोई ५ किलोमीटर जाकर सुम्मन ने गाडी रुकवा दी, वो हमको लेके नीचे एक खायी सी में ले गया, आगे चलने पर वहाँ एक बहुत बड़ी बाम्बी दिखाई दी! ये ही वो बाम्बी थी! जहां सुम्मन अपनी करिया चलाया करता था!
सुम्मन नीचे बैठ, ज़मीन पर थूका और अपने थूक से उसने एक वृत्त खींचा, फिर उस पर बैठ गया और मंत्र पढने लगा! कोई आधे घंटे बाद उठा और बोला, "बटिया फोड़ दी"
मैंने जांच की, हाँ, बटिया फोड़ी जा चुकी थी!
हम वापिस चले! हरदन और सुम्मन को उनके गाँव के पास छोड़ दिया, हरदन कल वापिस काम पर आने को कह गया था!
"सुनिए जनाब, अब जो होना था हो गया! अब कोई भी, कैसी भी गड़बड़ ना होने पाए, अभय पर नज़र रखना हमेशा" शर्मा जी ने अभय के पिता से कहा,
"नहीं साहब, कुछ नहीं होगा अब ऐसा, मै आपको विश्वास दिलाता हूँ!" वे बोले,
"ठीक है, एक काम करना, कल अभय की पत्नी के हाथों से कुछ कपडे इत्यादि हरदन की पत्नी को दिलवा देना, भला काम है" शर्मा जी बोले,
"अवश्य गुरु जी अवश्य" वे बोले,
रास्ते में एक जगह रुके और अभय के पिता ने 'सामान' खरीद लिया! आज रात्रि हम तीनों का 'महा-भोज' था!
इसके बाद हम घर पहुंचे, वहाँ मैंने अभय और उसकी पत्नी को देखा, निशान धीमे-धीमे धूमिल हो रहे थे! मात्र शारीरिक निशान ही बचे थे, अन्दर से भर चुके थे!
अभय की पत्नी पाँव छूने झुकी तो मै हट गया, हाँ अभय को छूने दिए!
मैंने अभय को उसकी पत्नी के सामने ही अच्छाई और बुराई का भाषण सुना दिया!
उसके बाद हम बाहर आ गए! उन्होंने सामान तैयार करवाने के लिए भेज दिया था!
मै स्नान करने चला गया! अगले दिन हरदन आ गया अपनी बीवी के साथ, कोई दोपहर बाद! मैंने उसको अभय के घर पर ही बुला लिया था! मैंने अभय से अपने सामने ही हरदन से माफ़ी मंगवा दी, हरदन की बीवी से भी उसने माफ़ी मांग ली! मैंने अभय के पिता जी से हरदन का हिसाब करने के लिए कह दिया, हिसाब करवा दिया! अभय की बीवी ने हरदन की बीवी को नए कपडे इत्यादि भी दिए! किस्सा ख़तम हो गया था!
रात्रि समय हमने हरदन को भी बुला लिया, हमने मिल-बाँट के खाना खाया! हरदन की बीवी के लिए भी खाना बंधवा दिया गया था! अंत भले का भला!
मित्रो! कभी भी किसी को प्रलोभन ना दीजिये! निर्धन का सम्मान कीजिये! उनको हिकारत की निगाह से ना देखिये! व्यक्ति को उसके कपड़ों से नहीं आंकिये उसके गुणों से आंकिये! कभी किसी का अपमान ना कीजिये! अमीर-गरीब रचियता ने बनाए हैं! और रचियता कभी भी त्रुटिपूर्ण कार्य नहीं करता!
------------------------------------------साधुवाद-------------------------------------------