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वर्ष २००७ आगरे की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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सर्दियों के दिन थे! शीत-लहर से समस्त उत्तर भारत सर्दी की चपेट में था! मै अपने स्थान पर आराम फरमा रहा था! शर्मा जी भी आते रहते थे! एक दिन शर्मा जी आये, उनके साथ एक व्यक्ति भी था, नाम था सुरेंदर, उम्र होगी कोई ५५-६० साल के आसपास, शर्मा जी ने उसका परिचय कराया, और फिर मेरा परिचय भी दिया! सुरेंदर आगरा के रहने वाले थे, मिठाई का काम था उनका, पेठे बनाया करते थे! रहते भी आगरा में ही थे! शर्मा जी ने बताया कि सुरेंदर को शर्मा जी के पास एक परिचित ने भेजा है, सुरेंदर के घर में कोई ४ महीनों से गड़बड़ चल रही है, ऐसा शर्मा जी ने मुझे बताया!

"बताइये सुरेंदर जी, क्या बात है?" मैंने कहा,

"गुरु जी, आज से कोई ४ महीने पहले मेरी दूकान पर एक साधू-बाबा आये, मैंने उनको पैसे दिए तो उन्होंने खाना खाने को कहा, मैंने खाना खिला दिया, फिर वो चले गए, लकिन अगले हफ्ते फिर आ गए, मैंने फिर पैसे दिए और खाना खिलाया, उस दिन दुकान पर मेरी बहु यानि कि मेरे बड़े बेटे की पत्नी भी आई हुई थी बाबा ने पूछा कि ये कौन है? मैंने उनको बता दिया कि ये मेरे लड़के कि पत्नी है, बड़े लड़के की! बाबा ने कहा कि ये औरत तो घर का सत्यानाश कर देगी! साक्षात काल का रूप है, बड़ा लड़का मारा जाएगा वर्ष भर में, मेरी पत्नी बीमार हो जायेगी, मेरी लड़की पर संकट आ जाएगा, छोटा लड़का विक्षिप्त हो जाएगा आदि आदि ये कह के वो बाबा चले गए! मैंने घर में बताया, तो सभी के होश उड़ गए! यही निर्णय हुआ कि बाबा ही इसका उपाय सुझाए अगले हफ्ते बाबा फिर आये, मैंने बाबा से समाधान पूछा तो बाबा ने कहा कि मेरा लड़का अजय, जिसकी कि वो पत्नी है,रीता, वो दोनों और मै बाबा के बताये एक पते पर पहुंचे, ये स्थान आगरे के पास है, नाम है बाह, बहुत उजाड़ जगह ये जगह थी! हम इतवार वाले दिन रीता को लेकर वहाँ पहुंचे, वहाँ हमको बाबा मिल गए! बाबा ने हमको एक कमरे में बिठाया, फिर रीता को अपने साथ ले गए, कहा कि शुद्धि करवानी है, दोष मुक्त हो जायेगी वो, रीता पहले तो सहमी लेकिन हमारे कहने पर वो उनके साथ चली गयी! करीब १५ मिनट के बाद वो भागी भागी आई! और बोली जल्दी करो, जल्दी चलो यहाँ से! हमको कुछ समझ नहीं आया, हम उठ पड़े, अजय और रीता भाग कर बाहर चले गए, बाबा आये बोले, ये कमीन औरत ऐसे नहीं मानेगी, मैंने इसको कहा कि जैसा मै कहता हूँ वैसा कर लेकिन ये नहीं मानी! अब भुगत तू तेरा सर्वनाश हो जाएगा सुंदर! सर्वनाश! और फिर मुझे भी धक्के मार कर बाहर निकाल दिया! मेरी कोई बात नहीं सुनी बाबा ने उसके बाद!"

"रीता ने क्या बताया? वो क्यूँ भागी वहाँ से?" मैंने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"रीता ने बताया कि उससे बाबा ने कहा कि बाबा उसके साथ सम्भोग करके सब कुछ ठीक कर देंगे, वो शुद्ध हो जायेगी! इसीलिए वो भागी थी गुरु जी!" सुरेंदर ने कहा,

"साला! कमीना कहीं का!" मेरे मुंह से निकला,

"तो तुम लोगों ने उस बाबा को मार नहीं लगाई? साले की हड्डियां बिखेर देनी थीं?" शर्मा जी को ताव आ गया!

"और सुनिए गुरु जी, इस घटना के बाद, मेरे बड़े बेटे का एक्सीडेंट हो गया, उसकी टांग २ जगह से टूट गयी, फिर रीता बीमार हुई, शरीर पर गिल्टियाँ पड़ गयीं हैं उसको, इलाज चल रहा है, डॉक्टर इसको टी.बी. बता रहे हैं, मेरा छोटा लड़का बीमार है, मेरी पत्नी बीमार है, उसके सीने में दर्द रहता है, कोई दिन ऐसा नहीं जब कोई दवाई न खाता हो, मेरा काम ठप्प है उसी दिन से" सुरेंदर ने कहा,

कोई ऊपरी इलाज नहीं करवाया आपने?" मैंने पूछा,

"करवाया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ, जितना करवाया उतना नुकसान बढ़ता गया!" सुरेंदर ने कहा,

"ओह! इस बाबा का नाम क्या है?" मैंने पूछा,

"बाबा देवेन्द्र नाथ" वे बोले,

"कहाँ रहता है? वहीं बाह में?" मैंने पूछा,

"पता नहीं गुरु जी! उसने वहीं बुलाया था हमको" वे बोले,

"ठीक है, चिंता नहीं करो, मै देखता हूँ क्या किया जा सकता है" मैंने कहा,

सुरेंदर की आँखों में दर्द के भाव के साथ आंसू भी आ गए!

"आप चिंता न करें, मै निबटा दूंगा आपकी समस्याएं! हिम्मत न हारें आप!" मैंने कहा!

मैंने थोडा विचार किया और फिर निर्णय ले डाला! विलम्ब करना उचित नहीं! क्रिया तो आगरे में भी की जा सकती है, बहुत जानकार हैं वहाँ!

"ठीक है सुरेंदर जी, मै आपके साथ अभी चलता हूँ!" मैंने कहा!

सुरेंदर के चेहरे पर रौशनी दमक गयी! मैंने शर्मा जी को सारा सामान बाँधने को कह दिया और स्वयं नहाने चला गया!

नहा के आया तो थोडा सशक्तिकरण पूजन किया! अभय-सिद्धि जागृत की और अपनी आवश्यक वस्तुएं उठा कर अपने बैग में डाल ली और बाहर आ गया!


   
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श्रीशः उपदंडक
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सुरेंदर ने अपनी गाडी और शर्मा जी ने अपनी गाडी स्टार्ट की और हम आगरे की ओर कूच कर गए! रास्ते में रुकते रुकाते रात को थोडा पहले आगरा पहुँच गए! हम सीधे घर ही गए! घर में घुसते ही मुझे दुर्गन्ध आई जैसे कोई जानवर मरके सड़ता है ऐसी भयानक दुर्गंध स्पष्ट था, ये परिवार किसी तांत्रिक-क्रिया का शिकार हुआ है!

मैंने एक एक करके सभी सदस्य देखे, सभी तांत्रिक-क्रिया से पीड़ित थे! अब मुझे एक कार्य सर्वप्रथम करना था! इस क्रिया का भेदन! रीता की हालत बहुत खराब थी, पूरे शरीर पर गिल्टियाँ ही गिल्टियाँ थीं इसका एक कारण था! क्रिया करने वाले ने एक खरगोश को मारकर उसमे दो देसी अंडे रखे थे, और भी सामग्री डाल कर! जिस दिन ये अंडे फूटेंगे उस दिन से ११ दिन रीता की मृत्यु संभव है! मैंने सबसे पहले रीता को अपने पास बुलाया, और भस्म का टीका लगाया! फिर उसके गले में एक माला डाल दी, और एक पीपल का पत्ता अभिमंत्रित करके उसको खिला दिया! पत्ता खिलाते ही उसको उल्टियां लग गयीं! अभिमन्त्रण ने अचूक प्रभाव किया था! करीब २० मिनट के बाद जब रीता बाहर आई तो उसकी गिल्टियाँ दबनी शुरू हो चुकी थीं! सभी की जान में जान आ गयी! वे बेचारे सभी नतमस्तक हो गए! रीता ने मेरे पाँव पड़ने चाहे तो मैंने उसको रोक दिया! मैंने कहा, "रीता, तुम अब बिलकुल ठीक हो जाओगी!"

उस बेचारी के आंसू बहना शुरू हो गए! मैंने तब सभी को एक एक धागा बाँध दिया! फिर मै शर्मा जी के साथ सुरेंदर के दिए हुए एक अलग कमरे में आ गया! सुरेंदरने चाय आदि मंगा ली थी, सो हमने चाय पीनी आरम्भ की!

"गुरु जी, ये उसी बाबा का काम है क्या?" सुरेंदर ने पूछा,

"हो भी सकता है, मै आज रात पता लगा लूँगा, आप निश्चिन्त रहें" मैंने कहा,

"बचा लीजिये गुरु जी, बचा लीजिये, हमने तो किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा, मैंने तो उसको खाना भी खिलाया था" सुरेंदर ने कहा,

"कुछ नहीं होगा आपके परिवार को, चिंता छोड़ दीजिये अब आप! जहां तक उस बाबा की बात है, तो सुरेंदर  जी, जमक-हराम होने में देर ही कितनी लगती है!" मैंने कहा,

"क्या ज़माना आ गया है गुरु जी" वे बोले,

"खैर, उस बाबा का तो मै हिसाब कर लूँगा, आप चिंता न करें, वो साला जहां भी होगा पेट के बल लेटता आएगा यहाँ!" मैंने कहा,

"हमारा अहोभाग्य गुरु जी जो आपसे मुलाक़ात हो गयी" वे बोले,

"कोई बात नहीं सुरेंदर जी" मैंने कहा,

उसके बाद मै और शर्मा जी आराम करने के लिए लेट गए!


   
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श्रीशः उपदंडक
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"गुरु जी? ऐसे बाबाओं का क्या हाल होना चाहिए, ये आप मुझ पर छोड़ देना, साले का वो हाल करूंगा न खड़ा हुआ जाएगा और न ही बैठा जाएगा जिंदगी भर!" शर्मा जी बोले,

मुझे हंसी आ गयी!

"ठीक है, मै आपके हवाले कर दूंगा उसको!" मैंने हंस के कहा,

"ठीक है, बाकी मै देख लूँगा!" वे बोले,

उसके बाद थोड़ी देर हम सो गए, उठे तो ९ बज रहे थे, खाना आ गया था, खाना खाया और फिर मै आगे की रणनीति पर विचार करने लगा!

"शर्मा जी, वो अब बाह में तो होगा नहीं, अगर होगा तो कल ही दबोच लेते हैं उसको!" मैंने कहा,

"जैसा आप उचित समझें गुरु जी" वे बोले,

"ठीक है मै आज रात रवाना करता हूँ किसी को, पता लगाता हूँ उसका!" मैंने कहा,

रात को मै वहीं क्रिया में बैठ गया! कारिन्दा हाज़िर किया, उसको उसका काम बताया और रवाना कर दिया! आधे घंटे बाद वो वापिस आया! और लाया ख़बरों का पुलिंदा! मैंने कारिंदे को शुक्रिया कर और उसका भोग कल को देने का कह कर वापिस भेज दिया! कारिंदे ने बताया कि उस बाबा देवेन्द्र ने ही ऐसा काम करवाया है, भरतपुर में है वो आजकल, और जिसने किया है वो भी भरतपुर में ही रहता है, पकड़ वाला आदमी है! नाम है काली तांत्रिक!

पकड़ वाला काली तांत्रिक! अबोधों को दंड देने वाला तांत्रिक शक्तियों और विधियों का दुरुपयोग करने वाला तांत्रिक

मैंने सब-कुछ शर्मा जी को बता दिया! उनको भी गुस्सा आ गया! बोले, "अब क्या करना है गुरु जी? हुक्म फरमाइए!"

"अभी बताता हूँ! मै ज़रा उस काली तांत्रिक को जांच लूँ ज़रा! कितना माद्दा है उसमे!" मैंने कहा!

"ठीक है गुरु जी कर दो साले का मुख-भंजन!" वो बोले,

"संपूर्ण-भंजन करूँगा उसका!" मैंने कहा,

उसके बाद मै क्रिया में बैठा, ना अलख थी, न भोग इत्यादि! इसीलिए अधिक कुछ नहीं कर पाया था उस रात! बस शक्ति पूजन किया था! अवरोध तोडा था! उसके बाद मै और शर्मा जी सोने चले गए! कार्यक्रम अगली रात्रि के लिए तय हो गया था!


   
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श्रीशः उपदंडक
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बाबा वज्रनाथ के स्थान से मै क्रिया करूँगा!

सुबह मै शर्मा जी के साथ वज्रनाथ के पास गया और मिला! वज्रनाथ को बताया तो वो तैयार हो गया! सामग्री और सामान वहाँ उपलब्ध थे! मैंने रात को आने की कह के उससे विदा ली!

रात्रि-समय मै वहाँ पहुंचा! उस दिन अमावस की रात थी, प्रत्येक तांत्रिक इस रात में शमशान में क्रिया करता है, ये शक्ति जागरण क्रिया होती है! मैंने भी पहले वज्रनाथ के साथ ये पूजन किया और फिर अपने एक चुने हुए स्थान पर चला गया! यहाँ मैंने अपना आसन लगाया, तंत्राभूषण धारण किये! सामान इत्यादि सामने रख दिए, अलख उठायी और भोग दिया! ब्रह्म अट्टहास किया और फिर क्रिया आरम्भ कर दी!

मैंने सबसे पहले अपने एक खबीस को हाज़िर किया, उसे उसका काम बताया और रवाना कर दिया! रवाना होने से पहले ५ किलो गोश्त खा गया था! ये खबीस का भोग होता है! प्रत्येक हाजिरी पर भोग लेता है! खबीस वापिस आया! वो काली तांत्रिक के पास नहीं जा सका था, वहाँ कोई गन्दा काम चल रहा था, इसीलिए वो वापिस आ गया! मैंने उसको वापिस भेज दिया! मैंने तब महाप्रेत को प्रकट किया! वो प्रकट हुआ! अट्टहास लगाया! मैंने उसको उसका काम बताया और खाजा कर दिया! महाप्रेत काम होने के बाद भोग लेता है!

महा-प्रेत आया वापिस! उसने बताया कि काली-तांत्रिक अपनी क्रिया में कंकाल-मालिनी का आह्वान कर रहा है, अत: वो विवश था, वापिस आ गया! हाँ, एक जानकारी बहुत काम की थी! बाबा देवेन्द्र भी वहाँ मौजूद था! मुझे जो जानना था, जान लिया!

कंकाल-मालिनी शमशान कि शक्ति होती है, प्रत्येक तांत्रिक इसका पूजन करता है! मैंने महाप्रेत को भोग दिया और वापिस भेज दिया!

अब मैंने अपना त्रिशूल उठाया! और भूमि पर बाबा देवेन्द्र का नाम लिखा! और उस पर मूत्र-त्याग कर दिया! झुक कर उस गीली मिट्टी से एक आकृति बनायी और सामने रख दी! साही के कांटे अभिमंत्रित किये! मंत्रोच्चार आरम्भ किया! २१ कांटे अभिमंत्रित किये मैंने! फिर मैंने एक काँटा उस आकृति के पाँव में घुसेड दिया! प्राण-सृजन हेतु अपनी ऊँगली को ब्लेड से चीरकर उस पर दो बूंद रक्त गिर दिया! अभीष्ट हुआ! बाबा देवेन्द्र के पाँव में शूल उठा!

वो दर्द के मारे दोहरा हो गया! पाँव पकड़ के ज़मीन मे लेटने लगा!

मैंने तब एक दूसरा काँटा लिया और आकृति के एक हाथ में बींध दिया! अब वो चिल्लाया हाय हाय करता! इससे पहले कि काली समझ पाता, बाबा बेहोशी की कगार पर जा पहुंचा! तांत्रिक उठ कर आया और उसने बाबा को देखा! बाबा को देखते ही उसने मंत्र


   
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श्रीशः उपदंडक
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पढ़े और और अपना चिमटा उसके हाथ पाँव पर रख दिया! उसको आराम पड़ गया! भौंचक्का हो कर खड़ा हुआ! तब तांत्रिक ने चारों ओर देखा फिर आकाश को देखा! वो दरअसल मेरे कारिंदे या प्रेतादि को ढूंढ रहा था! उसे कोई नहीं । मिला! उसने बाबा को अपने साथ लिया और अपने स्थान पर ले गया! मुझे जो तांत्रिक को जतलाना था, जता दिया था मैंने! अब उसने मारण-क्रिया की ओर ध्यान लगाया! रीता के मारण की! वो अवरुद्ध हो चुकी थी!

तब उस तांत्रिक ने अपने झोले से एक कपाल निकाला और कुछ मानव-अस्थियों के टुकड़े! उसने अभिमन्त्रण कर इनको भूमि पर कपाल के ऊपर गिराया और आँखें मूंद लीं! वो मेरा पता ले रहा था! करीब १० मिनट बाद उसने आँखें खोली और जोर से दहाड़ा 'मेरा रास्ता रोकने वाले आज तेरा रास्ता मैं रोक दूंगा! तू मुझे जानता नहीं नहीं जानता कि मै हूँ कौन!" उसे मेरा पता लग गया था और मुझे हंसी आ गयी!

उस तांत्रिक ने एक याला-चुडैल बुलाई वो प्रकट हो गयी! उसने उसको अपनी ऊँगली काट कर रक्त चटाया! वो हुई उन्मत्त! तांत्रिक ने उसको मेरे मारण हेतु भेजा! मैंने यहाँ एक खल-प्रेत को बुला लिया! खल-प्रेत परम शक्तिशाली और अचूक वार करने के निपुण होता है! खल-प्रेत-सिद्धि में १०९ दिन साधक तीन तरह की कलेजियों को अपने रक्त के छींटे देता है! चुडैल इत्यादि उसके लिए बालक सामान हैं! इस प्रेत की साधना १०९ दिनों की होती है! उसके बाद सिद्ध होता है! वो मुस्तैद हो गया! वहाँ से याला चली और यहाँ खल-प्रेत ने मोर्चा संभाला! याला जैसे ही आई, वहाँ ठहर गयी और भाग के वापिस हो गयी! तांत्रिक के समक्ष प्रकट हुई और लोप हो गयी!

तांत्रिक की सांस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे ही रह गयी! मैंने अपना खल-प्रेत वहाँ भेजा! वो वहाँ प्रकट हुआ! तांत्रिक ने अपनी अलख में से राख उठाकर जीभ पर रख ली! खल-प्रेत वहाँ से वापिस हो गया! खल-प्रेत भस्म-भक्षी को कुछ नहीं कहता! ये ही उसकी काट है! तांत्रिक खेला खाया था!

खल-प्रेत मेरे समक्ष प्रकट हुआ और मैंने उसको वापिस भेज दिया! वहाँ तांत्रिक ने सब कुछ छोड़कर प्राण-रक्षण क्रिया आरम्भ की! उसने मानव का कटा हुआ हाथ अपने झोले से निकाला! वो किसी पन्नी में लिपटा हुआ था! उसने पहले इस हाथ को चूमा फिर अपने माथे पर लगाया और साथ बैठे बाबा और अपने दोनों चेलों पर! फिर अलख के सामने एक प्याला शराब का उड़ेल कर उसमे वो हाथ रख दिया!

इस कटे हाथ से प्रेत-वार, डाकिनी-शाकिनी वार असफल होते हैं! लेकिन दूसरी शक्तियां नहीं! मैंने कंक-मालिनी शक्ति का आह्वान किया! वो प्रकट हुई! उसको भोग दिया! और वो दौड़ पड़ी अपने लक्ष्य की ओर! तांत्रिक के आगे प्रकट हुई! तांत्रिक के होश उड़ गए! कंक-मालिनी का उसने केवल नाम ही सुना था, देखा आज पहली बार


   
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श्रीशः उपदंडक
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था! तांत्रिक और उसके चेले घबरा गए! तांत्रिक ने कटा हाथ उठाया और कंक-मालिनी की ओर किया! कंक-मालिनी ने एक लात मारी जोर से उसको! वो उड़ के गिरा कोई २० फीट! उसका सर फट गया! टांग टूट गयी! एक आँख फूट गयी! उसका हाल बदहाल हो गया! चेले थर थर काँपे अपने गुरु का ये हाल देख करा चेले भागे अपनी जान बचाने! गुरु को बचाने नहीं खड़ा रहा बाबा! बाबा ने डर के मारे मूत्र विष्ठा-त्याग कर दिया! मेरी कंक-मालिनी अपना काम कर चुकी थी! मैंने तांत्रिक को निबटा दिया था! और इस बाबा से मै स्वयं निबटना चाहता था! अत: कंक-मालिनी वापिस आ गयी! मेरे समक्ष प्रकट हुई और फिर लोप!

मै क्रिया से उठ गया! रात के दो बज चुके थे, रात्रि मैंजे औरशर्मा जी ने वहाँ काटी! सुबह वज्रनाथ का धन्यवाद करके हम सुरेंदर के घर की ओर चले! सुरेंदर हमारा बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे! हमने वहाँ जाकर स्नान किया और नाश्ता किया! फिर सारी बात सुरेंदर को बता दी!

वो अश्रुपूर्ण नेत्रों से हमको कोटि कोटि धन्यवाद देने लगे! मैंने कहा, "सुरेंदर जी, हमे आज ११ बजे दोपहर में भरतपुर जाना है! दोनों महारथियों से मिलना भी है और वो मारण भी निष्फल करना है"

"जैसी आपकी आज्ञा गुरु जी, जैसी आपकी आज्ञा" उन्होंने हाथ जोड़ कर कहा,

हम उसी दिन ११ बजे भरतपुर के लिए निकले! भरतपुर वहाँ से ५४ किलोमीटर पड़ता है, सो एक घंटे में ही हम पहुँच गए! एक बोतल शराब खरीदी और वहाँ मैंने और शर्मा जी ने पी! फिर एक खाली जगह अपना सुजान कारिन्दा हाज़िर किया! मैंने उसको उन दोनों के पते लाने को कह दिया! कारिन्दा हुआ रवाना और ३-४ मिनट में ही आ गया! कारिंदे ने बताया कि वे दोनों कुम्हेर-गेट में हैं, एक खाली जगह पर, वहाँ उनके अतिरिक्त दो लोग और हैं! मैंने कारिदे का शुक्रिया किया और रात में भोग देने को कह दिया! और वो वापिस हो गया!

"शर्मा जी, ये लो पता, और दौड़ा दो गाडी सीधे अन्दर वहाँ!" मैंने कहा,

शर्मा जी ने उस पते के पास जाके गाडी खड़ी कर दी! गली पतली थी और आबादी भी ना के बराबर ही थी! उस गली के अंत में एक टूटा-फूटा जर्जर मकान था, मकान था तो बड़ा लेकिन था बेहद पुराना! हम उसके अन्दर गए! अन्दर एक लकड़ी का दरवाज़ा लगा था, हमने धक्का दिया तो वो खुल गया!

अन्दर गए तो देखा एक चारपाई पर एक आदमी लेटा पड़ा था! सरपर पट्टी बंधी थी! एक बाजू और एक टांग पर प्लास्टर चढ़ा था! यही था वो काली तांत्रिक! हम उसके पास पहुंचे तो वो सो रहा था! दवाइयों का असर था शायद! तभी वहाँ एक और व्यक्ति आया! सुरेंदर ने उसको पहचान लिया! ये ही बाबा था!


   
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श्रीशः उपदंडक
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बस फिर क्या था! शर्मा जी ने बाबा का पकड़ा गिरेबान और दनादन लात घूसे मारने शुरू कर दिए। दो चेले भागते भागते आये तो मैंने उनको डांट के वहाँ खड़ा रहने को कह दिया! मैंने उनको कल रात की बात याद दिला दी! अब लगे वो थर्राने! शर्मा जी ने बाबा का चेहरा सुजा दिया लात मार मार के! वो अपनी जान की गुहार लगाने लगा! "गलती हो गयी बाबू! गलती हो गयी!" वो चिल्लाता रहा!

शर्मा जी ने उस बाबा को गिरेबान से उठाया और बोले, "माँ****द! कुत्ते! कमीज इंसान! साले तुझे आज ही गाड़ दूंगा ज़मीन में!" और फिर से दनादन घूंसे, लात, जूते बरसाना शुरू कर दिया! बाबा ने नाटक किया बेहोश होने का, ज़मीन पर अचेत गिर पड़ा! अब तक तांत्रिक की भी नींद खुल गयी! शर्मा जी उसकी तरफ मुड़े और बोले, "साले तू ही है न वो तांत्रिक जो कल रात उठा के पटक दिया गया?"

तांत्रिक भौंचक्का था! उसके लग रहा था कि कल तो जैसे-तैसे बच गया! आज नहीं बचेगा!

उस तांत्रिक ने किसी तरह से उठने की कोशिश की लेकिन उठ न सका! बोल सकता था नहीं क्यूंकि दांत भी टूट गए थे! मुंह में सूजन थी! मैंने शर्मा जी को वहाँ से हटाया और मंत्रोच्चार किया! और फिर उस तांत्रिक के ऊपर वो मंत्र फूंक दिया! उसका बदन ऐंठ गया! और वो अचेत हो गया! मैंने तांत्रिक को खाली कर दिया! उसके भूत-प्रेत भागे वहाँ से! अचेत वो इसलिए हुआ क्यूंकि अब वो जीवन-पर्यन्त लकवा ग्रस्त ही रहेगा! उसका ये रोग उसकी मृत्यु पर ही समाप्त होगा! या मेरे हटाने से!

बाबा नीचे पड़ा था! मैंने उसकी कमर में एक लात मारी! मैंने उसको उसके बालों से उठा कर खड़ा किया! उसने मुझसे नज़रें मिलाई! लेकिन बोला कुछ नहीं! केवल अपने दोनों हाथ जोड़े उसने! मैंने कहा, "कुत्ते! तेरा जैसा इंसान वैसे जीने लायक नहीं है, लेकिन मै तुझे मारूंगा नहीं! तुझे जीवन भर अपने किये पर पछतावा हो इसीलिए तुझे जिंदा छोडूंगा!"

मैंने उसको धक्का मारा वो नीचे गिरा! अब मैंने प्रबल-तामसिक-मंत्र का जाप किया! और उसके नेत्रों को फूंक दिया! उसकी दृष्टि हमेशा के लिए समाप्त हो गयी! मैंने फिर मंत्र पढ़ा और फिर उसके पेट पर एक आड़ी रेखा खींची! उसका कमर से नीचे का हिस्सा शून्य हो गया! वो चिल्लाता रहा! "मुझ पे रहम करो! रहम करो" लेकिन मैंने एक न सुनी!

फिर मै उन चेलों की तरफ मुड़ा! चेले हाथ जोड़ के नीचे बैठ गए! मैंने कहा, "जाओ वो खरगोश ले आओ अभी!"

वो उठे और दौड़े खरगोश लेने! थोड़ी देर में वो एक बोरा ले आये! भयानक बदबू आई! मैंने उसको खुलवाया और अंडे फोड़ दिए! मारण समाप्त हो गया!


   
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श्रीशः उपदंडक
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फिर हम वहाँ से लौट आये! पापियों को सजा मिल चुकी थी!

आगरा पहुंचे! सभी को आशातीत लाभ हुआ था! सभी स्वस्थ हो गए थे! उनकी लाख ज़िद के बाद भी हम वहाँ नहीं रुके! और विदा लेके वापिस दिल्ली की ओर रवाना हो गए!

रास्ते में खाना खाया और मदिरापान किया! सब ठीक हो गया था!

मित्रो! तंत्र ऐसे ही तांत्रिकों द्वारा कलंकित होता है! और मै ऐसे तांत्रिकों का बहुत बड़ा शत्रु हूँ!

एक हफ्ते बाद सुरेंदर हमारे पास आये! ३१ हज़ार रुपये लेकर! ज़िद करने के बाद मैंने वो पैसे रख लिए और बाद में एक अंध विद्यालय और अनाथ-आश्रम में दान कर दिए!

------------------------------------------साधुवाद!--------------------------------------------


   
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