उसके बाद हम वहाँ टहलते रहे करीब पौना घंटा और उसके बाद वापिस आये वहाँ से, मै सीधा अपने कमरे में ही आया, चाय-नाश्ता आ चुका था सो हमने चाय-नाश्ता लिया!
"शर्मा जी, सीकर यहाँ से करीब चार सौ किलोमीटर होगा, और उस समय पूरा एक दिन लगा होगा जिद्दाल को वहाँ जाने में और फिर एक दिन लगा होगा उसको यहाँ आने में" मैंने अंदाजा लगाया,
"हाँ, लाजमी है" वो बोले,
"शर्मा जी, एक बात बताइये?" मैंने पूछा,
"पूछिए" वो बोले,
"आज जहां हम बैठे हैं, क्या वो उस बैजू के डेरे की ज़मीन है?" मैंने पूछा,
"क्या मतलब?" उन्होंने पूछा,
"मतलब ये कि जहां ये पेड़ है, ये किसकी ज़मीन है? बैजू की या किसी और की? अगर किसी और की है तो फिर ये मामला मैं सुलझा लूँगा अब!" मैंने बताया,
"मै समझा नहीं" वो बोले,
"बैजू ने बताया कि उनको आईने से बुलाया गया, ठीक?" मैंने बताया,
"हाँ, फिर?" वो बोले,
"तो उसने आइना कहाँ लगाया? बैजू के डेरे पर या कहीं और?" मैंने पूछा,
"हाँ, दम है बात में!" वो बोले,
"अगर बैजू के डेरे पर तो ये बैजू का डेरा है, अगर वहाँ नहीं तो कहाँ?" मैंने कहा,
"हाँ! उसको सभी अस्थियाँ चाहिए होंगी उस समय, वो कहाँ से उठा के लाया, बैजू के डेरे से या वहाँ से उठायीं और यहाँ आइना लगाया?" शर्मा जी बोले,
"हाँ! बिलकुल सही!" मैंने कहा, "हम्म! ये तो और गहरा गया राज!" वो बोले,
"मै बताता हूँ शर्मा जी, जहां हम खड़े हैं, ये बैजू का डेरा नहीं है!" मैंने बताया,
"तो फिर?" उन्हें हैरत हुई!
"ये लाल बाबा का डेरा है!" मैंने कहा,
"कैसे?" वो बोले,
"केवल लाल बाबा ही बुला सकता था बैजू और उसके आदमियों को, यदि वो खजाना ही था चाहता, लेकिन ये बात जिद्दाल को मालूम हुई होगी, कि बैजू के डेरे को तबाह किया गया है लाल बाबा द्वारा तो जिद्दाल ने फिर काले बाबा के साथ मिलकर इस डेरे को तबाह किया होगा, ना होगा बांस और ना बजेगी बांसुरी!"
मैंने बताया,
"और फिर जिद्दाल?" उन्होंने पूछा,
"जिद्दल कहाँ है, ये मुझे अभी तक नहीं मालूम, मैंने अपने मातहत ये कड़ियाँ जोड़ी हैं, आज काकी करेगी उसका पता मालूम, फिर देखते हैं कि क्या किया जाएगा आगे" मैंने कहा,
"क्या रहस्य है वाह! एक खोले सामने नया खड़ा हो जाता है!!" उन्होंने कहा,
"हाँ शर्मा जी, और अगर काकी ना कर पायी तो फिर मै उठाऊंगा अलख! मै करूंगा पता इसका, बहुत हुआ शर्मा जी! बहुत हुआ अब!" मैंने कहा!
वो दिन बड़ी बेसब्री से गुजरा! फिर रात आई और मैंने काकी से बात की, मैंने कहा,"काकी, आज राज जान लो सारा और हाँ मुझे उस से अवगत करा देना, भले ही कोई भी समय हो"
"ठीक है, मै अब अलख उठाने वाली हूँ, फिर बताती हूँ" उसने कहा और मदिरा का एक गिलास पी लिया,
अब मै वहाँ से उठा और अपने कमरे में आया, मुझे भी आवश्यक तैयारी करनी थी! अतः मैंने भी मदिरापान किया और अब मै यही सोच रहा था कि शीघ्र ही काकी अपनी क्रिया करे और मुझे बताये कि क्या हुआ? रात बीती लेकिन कोई खबर ना आई मेरे पास, मेरा मन अब खिन्न हो गया था! मै सुबह काकी के पास गया और काकी से पूछा,"कुछ पता चला?"
"हाँ, सब कुछ पता चल गया मुझे" उसने बताया,
"क्या?" मै बेचैन था जानने के लिए! उसने जो मुझे बताया वो ये था, अब जिद्दाल नहीं था कहीं भी! वो मुक्त हो गया है, जब जिद्दाल तिम्मो के साथ गया था तो उसको ये खबर लग चुकी थी कि लाल बाबा ने बैजू के डेरे पर तिम्मो का खजाना लूटने के लिए आक्रमण किया है, ये खबर उसको उसको काले बाबा ने दी थी, तब क्रोध में आये जिद्दाल ने पहले अपने गुरु और श्वसुर बैजू के परिवार को ढूँढा आइना लगा कर और उनको सुरक्षित बाँध लिया, फिर कुछ दिनों के पश्चात उसने काले बाबा के साथ मिलकर लाल बाबा के डेरे पर हमला बोला और उसको भी मौत के घाट उतार दिया, लाल बाबा के कई साथी भाग खड़े हए थे, इस लड़ाई में जिद्दाल घायल हुआ और फिर कुछ दिनों के बाद उसकी मौत हो गयी, लाल बाबा का ये डेरा अब सीकर वाले काले बाबा के हाथ में आ गया, और काले बाबा ने ही जिद्दाल से लिया कलश यहाँ गाड़ा था, काले बाबा अपने बेटे के मौत से आहत हुआ था, अतः कुछ समय पश्चात उसकी भी मौत हो गयी!
ये ज़मीन और डेरा अब काले बाबा का था, काले बाबा कि अंत्येष्टि भी यहीं की गयी थी! वो सीकर कभी ना जा सका वापिस फिर! सीकर में उसके भाई और उसके लड़के थे अब! और ये ज़मीन जो कभी लाल बाबा की थी, बाद में काले बाबा की हुई और फिर भविष्य में बियाबान हो गयी और अमित और त ने इसको बाद में खरीद लिया! काले बाबा ने ही इस घड़े और कलश पर वो तिलिस्म रचा था! जो छेड़े जाने के डर से आज भी सुरक्षा कर रहा था अपनी! ये बात आज से करीब चार सौ साल पुरानी थी!
बाद में मित्रगण, काकी ने इलाहबाद में उन इक्कीस प्रेतात्माओं का मुक्ति-कर्म कर दिया, अमित और सुनीत भी वहीं थे, और मै भी! बाद में अमित और सुनीत का व्यवसाय फलफूल उठा और आज सम्पूर्ण सुख सम्पदा है उनके पास! इतिहास के गर्त में ना जाने क्या क्या और छिपा है अभी! कभी कभी जाने-
अनजाने में इतिहास समक्ष खड़ा हो जाता है वर्तमान में, बिलकुल जीवंत होकर! ऐसे ही थे वो बैज, लाल बाबा, तिम्मो बंजारन, काले बाबा और वो जिद्दाल!
------------------------------------------साधुवाद-------------------------------------------