वर्ष २००७ अम्बाला क...
 
Notifications
Clear all

वर्ष २००७ अम्बाला की एक घटना

18 Posts
1 Users
1 Likes
197 Views
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

श्रीमान अमित जी के यहाँ सारा काम धंधा चौपट हो गया था, घर में कलेश और सारे बने बनाए काम बिगड़ते जा रहे थे, करोड़ों का व्यवसाय लाखों में और लाखों से अब हज़ारों में आने वाला था! कोई प्रत्यक्ष कारण स्पष्ट नहीं पता लग रहा था, कई जातां किये गए, पूजा-पाठ कराये गए, शान्ति कर्म भी कराये गए! परन्तु कुछ काम न आया! तब उनके छोटे भाई ने ओझा और गुनियों का भी सहारा लिया, लेकिन तो भी कुछ न हुआ! तीन महीनों में ही अर्श से फर्श तक की नौबत आ गयी थी! सारा बनाया हआ उत्पाद निम्न-कोटि का पाया जा रहा था, और उनकी फैक्ट्री में गुणवत्ता में वो उस से पहले के बनाए उत्पादों से भी अच्छा था! कारण क्या था कुछ पता ही नहीं चल रहा था!

तब अमित ने किसी बड़े तांत्रिक से सलाह लेनी चाही, वे पहुंचे अपनी छोटे भाई सुनीत के साथ इलाहबाद, वहाँ उनके जानकार थे, जो इस विषय में मदद कर सकते थे, उन्होंने ही बुलाया था उनको वहाँ! उनके जानकार ने उनको एक जोगन काकी से मिलवाया, काकी मानी हुई जोगन थी, वैसे तो रहने वाली कलकत्ता की थी लेकिन इलाहाबाद उसका आना जाना लगा रहता था! काकी ने पूछा, "क्या किसी तरह का नव-निर्माण करवाया गया है वहां फैक्ट्री में?"

"जी नहीं तो" अमित ने कहा,

 "कोई तोड़-फोड़?" काकी ने पूछा,

"नहीं, ऐसा भी नहीं" अमित ने जवाब दिया,

"कोई खुदाई वगैरह?" उसने पूछा,

"जी नहीं" अमित ने कहा,

"काम कबसे बंद है?" काकी ने पूछा,

"कोई तीन चार महीने हो गए हैं" अमित ने कहा,

"हम्म! और घर में कौन कौन हैं आपके? उसने प्रश्न किया,

"मेरा परिवार है, मेरी दो बेटियाँ हैं और एक बेटा, पत्नी का स्वास्थय भी खराब है, साथ में माता जी रहती हैं और मेरा छोटा भाई सुनीत भी हमारे साथ ही रहता है, इसके परिवार में दो लड़के हैं, पत्नी है"

काकी ने ध्यान से सुना! "कोई और विशेष घटना? जो घटी ही इन दिनों के भीतर?" काकी ने पूछा,

"ऐसी तो कोई विशेष घटना नहीं हुई" अमित ने कहा,

"हाँ, एक घटना हुई, लेकिन वो स्वाभाविक ही थी" सुनीत ने बताया,

"क्या?" काकी ने पूछा, "हमारी फैक्ट्री में एक बहुत पुराना पेड़ था पीपल का, वो तूफान में गिर गया था अपने आप" उसने बताया,

"अच्छा! फिर? फिर क्या हआ?" काकी ने अब उत्सकता से पछा जैसे कोई सूत्र  मिला हो,

"जी फिर, फिर एक लकड़ी वाले को बुलाया और उस पेड़ को कटवा कर टुकड़ों में वो ले गया नौ हज़ार दिए थे उसने उसके" सुनीत ने बताया,


   
Quote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

"अच्छा! यहीं है कोई मुसीबत!" काकी ने कहा,

"मुसीबत? जी कैसी मुसीबत?" अमित ने घबरा के पूछा,

"देखिये, पुराने पेड़ों पर आत्माएं, भूत-प्रेत वास करते हैं, कुछ अच्छे और कुछ बुरे, हो सकता है कोई बुरा प्रेत या आत्मा आपको तंग कर रही हो वहाँ?" काकी ने बताया,

ऐसा सुन दोनों ने थूक गटका अब!

"जी अब क्या होगा?" सुनीत ने पूछा,

"देखते हैं, हमे वहीं जाना होगा!" काकी ने बताया,

"जी आप मदद करें हमारी, खर्चे की परवाह न करें" अमित ने कहा,

"ठीक है, मैं अभी यहाँ दो दिनों तक ठहरी हूँ, आप पता दीजिये मै आ जाउंगी वहाँ" काकी ने कहा,

"जी यदि आप कहें तो हम ले चलते हैं आपको?" सुनीत ने कहा,

"ऐसा कर लीजिये" काकी ने कहा,

और फिर दिन निर्धारित कर दोनों भाई वहाँ से उठ कर वापिस आ गए अपने जानकार के साथ उसके घर! "ये तो समस्या हो गयी सुनीत" अमित ने कहा,

भाई साहब, निजात मिल जाए तो इस से बड़ी क्या बात!" सुनीत ने कहा,

"हाँ ये बात तो है, काम धंधा ठीक हो जाए तो कसर पूरी कर लेंगे हम" अमित बोला, फिर वे दो दिन और ठहरे वहाँ और फिर वापिस आ गए काकी को अपने साथ लेके अपने घर!

अमित और सुनीत काकी को लाये अपनी फैक्ट्री! काकी ने पहले मुआयना किया वहाँ का और फिर वहाँ गयी जहां वो पेड़ उखड़ा था! वहाँ उसको कुछ अजीब सा लगा, लगा की वहां किसी की मौजूदगी है! उसने कलुष-मंत्र पढ़ा और नेत्र खोले! सामने नौ प्रेतात्माएं थीं! काफी पुरानी, वो वहीं खड़ी थीं! अमित और सुनीत को हटा दिया उसने वहाँ से और फिर काकी ने उनमे से सबसे बड़े और प्रभावी से बातें आरम्भ की!

"कौन हो तुम?" उसने पूछा,

"हम यहीं रहते हैं" वो बोला,

"यहाँ? कहाँ?" उसने पूछा,

"पेड़ पर" उसने बताया,

"लेकिन पेड़ तो टूट गया?" वो बोली,

"हाँ" उसने कहा,

"तो अब तुम जाओ यहाँ से" काकी ने कहा,

"कहाँ जाएँ?" उसने पूछा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

"मै तुम्हे जगह दे देती हूँ" उसने कहा,

"कहाँ?" उसने पूछा,

"जहां मै चाहूँ" उसने बताया,

"नहीं, हम यहीं रहेंगे" वो बोला,

"नहीं यहाँ नहीं" उसने कहा,

"हम यहीं रहेंगे" उसने कहा,

"यहाँ मुमकिन नहीं" उसने कहा,

"यहाँ और भी आने वाले हैं" उसने बताया,

"और कौन?" उसने पूछा,

"हम कुल इक्कीस हैं' उसने बताया,

"इक्कीस? बाकी कहाँ हैं?" उसने पूछा,

"नीचे गड्ढे में" उसने बताया,

"गड्ढे में?" उसने हैरत से पूछा,

"हाँ! गड्ढे में!" वो बोला!

"गड्ढे में क्यूँ?" उसने पूछा,

"कैद है वहाँ" उसने कहा,

"कौन कौन कैद हैं?"

"मेरे बच्चे" उसने बताया,

"और?" उसने पूछा,

"और तीन परिवार" उसने कहा,

"किसने डाले वहाँ?" उसने पूछा,

"जिद्दाल ने" उसने बताया,

"कौन जिद्दाल?" उसने पूछा,

"जिद्दाल, नाहर सिंह वीर का साधक' उसने बताया,

"नाहर सिंह वीर??" उसे हैरत हुई,

"ये तो पांच हैं, कौन से वालों का साधक?" उसने पूछा,

"वजीर साहब वाला" उसने बताया,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

"कब?" उसने पूछा, "काँकड़ मेले में" वो बोला,

"काँकड़ मेला" उसने नहीं सुना था ये!

"हाँ, बरोटा वाला" उसने बताया,

"अच्छा, और तू?" उसने पूछा,

"मै हाकिम हूँ" वो बोला,

"कहाँ का?" उसने पूछा,

"बनेरू वाला" उसने बताया,

"कहाँ बनेरू?" उसने पूछा,

"पञ्च-हाट वाला" उसने कहा,

"और ये जिद्दाल?" उसने पूछा,

"बाबा जिद्दाल" उसने कहा,

"हाँ, वही, ये कहाँ का है?" उसने पूछा,

"सीकर का" उसने बताया,

और भी बातें हईं, लेकिन न तो हट रहे थे बाकियों के बिना और न ही कोई अहम् सूत्र हाथ आ रहा था! काकी को समझ नहीं आया कुछ भी!

काकी को मसला समझ नहीं आया, दरअसल वो राजस्थान और उत्तर भारत के भौगौलिक ज्ञान से भी अनभिज्ञ थी, अतः उसने मेरे एक जानकार से इलाहाबाद में संपर्क किया, और उस जानकार ने मुझसे, मेरी उस समय सीधा काकी से ही बात हुई, काकी ने भी मुझे ये ही बताया, मामला सुनकर तो काफी पराना लगता था, इसलिए मै शर्मा जी के साथ अम्बाला रवाना हो गया, अम्बाला पहुंचा तो मेरी मुलाक़ात अमित और सुनीत से हुई वहाँ काकी भी थी, वो अपनी एक और सहायिका के साथ वहीं थी! ___काकी ने सारा वृत्तांत मुझे कह सुनाया, बड़ा विचित्र सा लगा मुझे! उस पेड़ के नीचे बारह प्रेतात्माएं एक गड्ढे मै कैद थीं! और कैद किया बाबा जिद्दाल ने! बाबा जिद्दल नाहर सिंह वीर का साधक था, वजीर वाले बाबा का! कमाल की बात थी! नाहर सिंह वीर प्रबल एवं अमोघ महाशक्ति हैं! ये कुल नौ हैं, परन्तु मात्र पांच ही बंध सके, अतिरिक्त चार कभी नहीं, वो आज भी स्वतंत्र हैं और उन्हें अन्य कोई नहीं पकड़ सका! उन पांच में से एक ये हैं, जिन्हें वीर और वजीर कहा जाता है! ये किसके वजीर हैं ये नहीं बता सकता मै आपको यहाँ, जिनके ये वजीर हैं वो भी महाशक्ति हैं, जागृत हैं!

कुल मिलाकर बाबा जिद्दाल ने उनको कैद किया था, कुल इक्कीस को, लेकिन क्यों? ये था प्रश्न! इसी प्रश्न में उत्तर समाये थे! ये जो समस्या अमित और सनीत के साथ चल रही थी ये इन प्रेतात्माओं की नहीं बल्कि जिद्दाल का जाल था! जिद्दाल के जाल को काटने की कोशिश करने वाले को ये भुगतना था, परन्तु ये अमित और सुनीत बिना किये गुनाह की सजा काट रहे थे बेचारे! मैंने काकी से कहा कि वो ये जानकारी जुटाए कि आखिर वहाँ हुआ क्या था? काकी मान गयी, काकी ने वहाँ एक कमरा सुनीत से कह के ले लिया था, ये कमरा एक खाली जगह में था, वहाँ अन्य कोई व्यक्ति नहीं जा सकता था, ऐसा


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

प्रबंध किया था सुनीत ने, उस रात क्रिया में बैठी काकी, अपने प्रेत भेजे उसने जानकारी मुहैय्या कराने के लिए, उसके प्रेत गए परन्तु जिद्दाल के जाल से डर के भाग आये वापिस! भले ही जिद्दाल न रहा हो लेकिन उसका वो जाल जिसे आन लगी थी नाहर सिंह वीर की, उसकी रक्षा अभी भी नाहर सिंह वीर ही कर रहे थे! जो सम्पूर्ण जागृत हैं आज भी! बड़ी मुसीबत खड़ी हो गयी थी! खबीस भी नहीं जा सकते थे कुछ भी जानकारी लाने के लिए!

अब एक ही तरीका बचा था, कि स्वयं उस पेड़ के नीचे गड्ढे की जांच की जाए, आखिर वहाँ है क्या? किसलिए जिद्दाल ने वहाँ बारह प्रेतात्माएं कैद की थीं? किसलिए? कोई खजाना आदि या कोई बदला? एक एक क़दम फूंक फूंक के रखना था, नाहर सिंह वीर से नहीं टकराना था, अन्यथा कोहराम मच सकता था, अनर्थ हो सकता था!

चार मजदूर बुलाये गए, और फिर जहां से पेड़ उखड़ा था वहाँ की जगह को चौड़ा किया गया, और फिर खुदाई शुरू करवाई गयी, वहाँ लाल रंग की मिटटी निकल रही थी और वहाँ कुछ मनके आदि भी निकल रहे थे, फिर गड्ढा और चौड़ा किया गया! कुछ नहीं निकला था अभी तक! करीब चार फीट की खुदाई की जा चुकी थी!

तभी मजदूरों को नीचे एक पत्थर की पटिया दिखाई दी, पटिया समतल और काफी चौड़ी थी! तो यहाँ था वो गड्ढा! अब मजदूर हटे वहाँ से, काकी ने हटवा दिए! राज बस खुलने को ही था! क्या है नीचे? कोई अकुत खजाना अथवा कोई भयानक समस्या? हम सब सांस थामे खड़े थे! दरअसल इसका नेतृत्व काकी के हाथ में था, काकी ही कर रही थी समस्त संचालन! काकी ने मजदूरों को हटा दिया वहाँ से और एक सीढ़ी की सहायता से नीचे उतर गयी अपनी सहायिका के साथ नीचे!

अब काकी ने जांचना आरम्भ किया! एक बात स्पष्ट हो गयी, वहाँ कोई खजाना नहीं है,ये खजाने का गड्ढा नहीं है, बात कुछ और ही थी वहाँ! अब रहस्य क्या था ये काकी के हाथ में ही था सुलझाना! उस समय तो मै और शर्मा जी वहाँ मात्र दर्शक ही थे, किन्तु मन में गहन जिज्ञासा थी!

कुछ समय के बाद काकी और उसकी सहायिका ऊपर आ गए और फिर मेरे पास आई! काकी ने मुझसे कहा, " समस्या गंभीर लगती है मुझे, सूत्र हाथ तो आया है परन्तु न जाने क्या है यहाँ?"

"आप ये पटिया उखडवाइये सबसे पहले" मैंने कहा,

"हाँ अभी उखडवाती हूँ मैं, अभी मजदूर थोडा आराम कर लें" उसने कहा,

"आपके अनुसार क्या हो सकता है नीचे?" मैंने पूछा,

"खजाना तो है नहीं, बाकी जो कुछ भी है वो 'पकड़' से बाहर है" उसने बताया,

"इसका मतलब जिद्दाल का जाल अभी भी काम कर रहा है!" मैंने कहा,

"हाँ! ये जिद्दाल का जाल ही है!" उसने कहा,

"कमाल है! ये अवश्य ही जिद्दाल का कोई कारनामा है!" मैंने कहा,

"हाँ! इस पेड़ को तभी लगवाया गया होगा! पहले गड्ढा फिर पेड़!" उसने कहा,

"कुछ भी हो, ये रहस्य सुलझाइये आप!" मैंने कहा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

"हाँ, अब तो मुझे भी जिज्ञासा हो रही है" काकी ने कहा,

उसके बाद काकी उठी और फिर गड्ढे तक गयी, थोडा ओर-छोर से मुआयना किया और फिर मजदूरों को बुला लिया!

मजदूरों ने अब पटिया हटानी शुरू की, पटिया काफी भारी थी, वो उन चारों से भी नहीं उठी! सब्बल डाल डाल कर भी उठाने की कोशिश की लेकिन वो नहीं उठी, तब उसको तोड़ना ही उचित लगा, मजदूरों ने अब बजाने शुर रू किये उस पर हथौड़े, पटिया एक कोने से दरक गयी! वहीं से तोड़ना शुरू कर दिया! करीब चालीस मिनट में वो पटिया तोड़ डाली गयी! अब मै और काकी विस्मय से नीचे देख रहे थे! मजदूरों ने पटिया के टुकड़े उठाने आरम्भ किये, जब टुकड़े हट गए तो नीचे एक चाकी का पाट सा पत्थर दिखाई दिया! काकी ने मजदूरों से वो पाट हटाने को कहा, मजदूरों ने वो पाट भी हटा दिया! नीचे एक गोल सा गड्ढा दिखाई दिया करीब डेढ़ फीट गहरा! और उसमे रखा था एक काले रंग का घड़ा! घड़े के मुंह पर लोहे की बनी एक कटोरी रखी थी और उसमे छेद करके लोहे के तार से पूरे घड़े को बाँधा गया था! बाँधने वाले ने भी काफी सूझ-बूझ दिखाई थी! कहीं ओर-छोर भी नहीं दिख रहा था! लेकिन वो घड़ा अभी भी मन्त्रों में बंधा था, पहले उसके मंत्र काटे जाने थे! काकी ने एक लोहे की छड से भूमि पर मंत्र काटने के लिए, एक स्त्री की आकृति बनायी और फिर क्रम से उस स्त्री को चाकू से काटती चली गयी! लेकिन उस आकृति के वक्ष पर आके चाकू रुक गया! इसका अर्थ था ये मंत्र जो इस घड़े की रक्षा कर रहा था ये एक व्यक्ति का नहीं है! ये द्विलब्ध-मंत्र है! इसमें कोई स्त्री भी शामिल है! अब काकी ने मुझे देखा और मैंने काकी को! मै उसकी दुविधा समझ गया था! अब मैंने भी अपना खंजर निकाला और उसको अभिमंत्रित कर उस स्त्री-आकृति के वक्ष को काकी के चाकू की नोंक से मिलाकर काटा! मंत्र कट गया! अब काकी गड्ढे में उतरी! और जैसे ही उस घड़े को हाथ लगाया उसने फ़ौरन ही हाथ पीछे हटा लिया! उसके हाथ के पोर झुलस गए!

"क्या हुआ?" मैंने पूछा,

"दहक रहा है ये!" उसने कहा,

"दहक रहा है?" मैंने पूछा हैरत से, मुझे जैसे यकीन नहीं हुआ!

"हाँ! ये घड़ा दहक रहा है!" काकी ने कहा,

अब मै नीचे उतरा!

मैंने अपना हाथ उसकी तरफ किया, वाक़ई घड़ा दहक रहा था! उसके अन्दर जैसे अंगारे भरे थे! "काकी, मुझे लगता है, जिद्दाल ने 'जोर' लगाया है यहाँ" मैंने कहा,

"हाँ! ये घड़ा ही है असली कुंजी" काकी ने कहा,

"अब इसको निकालो काकी" मैंने कहा,

"मुझे आजमाइश करनी पड़ेगी आज रात" उसने कहा,

 "कोई बात नहीं, कर लो" मैंने कहा,

"एक काम नहीं कर सकते आप?" उसने पूछ मुझसे,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

"क्या?" मैंने पूछा,

"इसको भेद जो डालो" उसने कहा,

"नहीं, मै नहीं भेदूंगा!" मैंने साफ़ कहा,

"क्यों?" उसने पछा,

"ये तो तुम भी जानती ही हो कि क्यों!" मैंने कहा,

"ठीक है, मै आजमाइश करती हूँ आज" उसने कहा,

और फिर उस घड़े को उसी चाकी के पाट से ढक दिया गया!

और फिर हम भी वापिस अपने कमरे में आ गए!

शर्मा जी से रहा न गया और बोले, "ये क्या रहस्य है?

"शर्मा जी, यहाँ एक बड़ा रहस्य उजागर होने जा रहा है!" मैंने बताया,

"वो तो लग ही रहा है, लेकिन क्या?" उन्होंने पूछा,

"मुझे भी नहीं मालूम! बस इतना कि बारह आत्माएं कैद हैं उसमे!" मैंने बताया,

"ये जिद्दाल बड़ा माहिर लग रहा है मुझे तो" वो बोले,

"हाँ! ऐसा इंतजाम किया है कि खोलने वाला खो के ही रह जाए!" मैंने बताया,

"सही कहा आपने!" उन्होंने कहा!

"आज रात आजमाइश करेगी काकी! देखते हैं क्या मिलता है!" मैंने कहा,

"हाँ, सुबह पता चल जाएगा!" वो बोले,

"वहाँ जो कुछ भी है, है आश्चर्यजनक!" मैने बताया,

"हाँ!" उन्होंने भी कहा!

"वैसे जिद्दाल ने कुछ सोच के ही ऐसा किया होगा, कि कोई छेड़े नहीं, और हमने छेड़ दिया!" मैंने कहा,

 "अब तो छिड़ ही गया गुरु जी!" वो बोले,

"चलो कोई बात नहीं! कल देखते हैं, क्या होता है!" मैंने कहा,

और फिर हमने अपने अपने गिलास में मदिरा डाली और गटक गए!

उस रात काकी ने आजमाइश की, आजमाइश का अर्थ है क्रिया करना! अमित और सुनीत किसी भी तरह से उस समस्या से निजात पाना चाहते थे अतः पूर्ण सहयोग कर रहे थे! घड़े के बारे में जानकर और हैरत में पड़ गए थे दोनों! परन्तु काकी ने उनको समझा दिया था! और उनके पास चुप रहने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प ही शेष नहीं था! सुबह उठे, नहाए-धोये, चाय-नाश्ता लिया और फिर मै काकी के पास गया, काकी तब तक सोयी हुई थी, शायद अधिक रात्रि समय तक क्रिया की थी उसने! मै वापिस आ गया वहाँ से तब!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

अब मै उस गड्ढे तक गया, गड्ढा ज्यों का त्यों पड़ा था! उसके बाद मै और शर्मा जी बाहर टहलने के लिए चले गए!

शर्मा जी ने कहा, "गुरु जी, यदि किसी को कैद किया गया होगा तो वो बारह हैं, काकी ने नौ देखे थे और, वो भी यहीं हैं, क्या वो भी कैद हैं?"

"हाँ हो सकता है कि वो भी हद-बंदी में ही हों" मैंने जवाब दिया,

"तो अगर जिद्दाल चाहता था कि वो बारह बाहर न आयें, तो इन नौ को भी क्यूँ नहीं डाला उस घड़े में? ताकि कभी किसी को पता ही न चले इस बारे में?" शर्मा ने ने चौंकाने वाला प्रश्न पूछा था!

मै ठहर गया! ये बात तो सोचने वाली थी! वो नौ क्यूँ बाहर रह गए? और अगर बाद में आये तो उन्हें कैसे पता चला कि वो कैद हैं? किसने बताया उनको?

"अरे हाँ शर्मा जी! सोचने वाली बात है, कमाल है मैंने भी ध्यान नहीं दिया इस पर!" मैंने कहा,

"मै रात से यही सोच रहा हूँ!" शर्मा जी ने कहा,

"बहुत सही सोच रहे हो आप!" मैंने भी समर्थन किया!

तब हम वापिस चले, काकी जाग चुकी थी, नहा-धो भी चुकी थी! चाय की चुस्कियां ले रही थी! उस से नमस्कार आदि हुई तो मैंने शर्मा जी वाला प्रश्न उस से किया! वो भी चौंकी! बोली,"अरे हाँ! ऐसा कैसे हुआ?"

"ये देखना तो आपका काम है ना!" मैंने कहा,

"मैं करूंगी मालूम आज" उसने कहा,

"किस से?" मैंने पूछा,

"उस हाकिम से" उसने बताया,

"अबकी मै भी बात करूंगा उस से" मैंने कहा,

"ठीक है, दोपहर में अलख उठाऊँगी" उसने बताया,

उसके बाद मै उठा वहाँ से और फिर अपने कमरे में आ गया! अब मैंने अपनी सिद्ध-मालाएं धारण की और प्रश्न कौन से पूछने हैं इस पर विचार करने लग गया!

दोपहर हुई, मैंने अपने मंत्र जागृत किये और बाहर आया! वहाँ काकी ने अलख उठा ली थी! अलख भोग भी दे दिया गया था! अब वहाँ जाने की तैयारी थी! मै और काकी अब वहाँ चले, वहाँ काकी ने कलुष-मंत्र पढ़ा और मैंने भी! दृश्य स्पष्ट हुआ!सामने नौ प्रेतात्माएं खड़ी थीं! उनमे से एक प्रौढ़ लगता था, यही था वो हाकिम! काकी ने हाकिम बुलाया, हाकिम सामने आया, काकी ने कहा, "जिद्दाल ने यहाँ किसको कैद किया था?"

"बाबा बैजू को" उसने बताया,

"अच्छा!" काकी ने कहा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

अब मैंने काकी को पीछे किया और स्वयं आगे आया, हाकिम ने मुझे देखा और थोडा सा घबराया, परन्तु डटा रहा!

"बैजू कौन है?" मैंने पूछा,

"बैजू बाबा, बड़ा बाबा" उसने बताया,

"बड़ा बाबा?" मैंने आश्चर्य से पूछा,

"हाँ" उसने कहा,

"जिद्दाल से भी बड़ा?" मैंने पूछा,

"हाँ" उसने बताया,

कमाल था! हम तो जिद्दाल से ही भिड़ रहे थे और यहाँ उस से भी बड़ा बाबा था!

"जिद्दाल और बैजू का क्या नाता है?" मैंने पूछा,

"बैजू गुरु है जिद्दाल का" उसने बताया,

"अच्छा! अच्छा!" मुझे कुछ समझ आया!

"बैजू गुरु है जिद्दाल का! और फिर भी जिद्दाल ने कैद किया उसको?" मैंने पूछा,

"फूट का नतीजा" उसने बताया!

"अच्छा! अच्छा! एक बात और बताओ तुम्हारा किस से सम्बन्ध है? जिद्दाल से या बैजू से?" मैंने पूछा,

"बैजू से" उसने बताया,

"तुम तो हाकिम हो ना? तुम्हारा क्या सम्बन्ध?" मैंने पूछा,

"मै बैजू के डेरे का हाकिम हूँ" उसने बताया,

"अच्छा! अब मै समझा!" मैंने कहा!

"मै रखवाला हूँ" उसने बताया,

"हम्म! ठीक है!" मैंने कहा,

हमने फिर कलुष-मंत्र वापिस लिए अब! अब मै समझने लगा था वहाँ का ये रहस्य! जिद्दाल शिष्य था बैजू का, शिष्य, एक ऐसा शिष्य जो अपने गुरु से भी आगे जाना चाहता था! या उसके समकक्ष ही रहना चाहता था और उसके लिए चाहिए था कि बैजू का रास्ते से हटाया जाए! और ऐसा ही हुआ होगा! मैंने काकी को कहा कि अब उसने जो आजमाइश की है उस से अब उस घड़े को निकाला जाए!

काकी तब अपने कमरे में गयी और भस्म ले आई एक कटोरी में! फिर वो सीढ़ी से नीचे उतरी, उसने हाथ से भांपा कि घड़ा गरम है कि नहीं? घड़ा अभी भी गरम ही था! अब काकी ने भस्म की एक चुटकी ली और उस घड़े पर मारी! घड़े पर भस्म लगते ही 'छन्' की आवाज़ आई, काकी मंत्र पढ़ पढ़ कर उस घड़े पर एक एक चुटकी भस्म मारती गयी जब तक कि वो आवाज़ धीरे और धीरे होते होते आनी बंद ना हो गयी! अब घड़ा ठंडा हो गया! काकी ने हाथ लगा के देखा, वो ठंडा हो गया था! काकी ने मुझे


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

देखा, मैंने उसको इशारा किया कि वो उठा ले अब वो घड़ा! काकी ने वो घड़ा उठा लिया! उसने सीढ़ी चढ़ी और घड़ा मुझे थमा दिया, घड़े में कुछ वजन नहीं था, केवल घड़े का ही वजन था, लेकिन इसमें बारह प्रेतात्माएं कैद थीं! काकी ऊपर आई और मैंने वो घड़ा उसको दे दिया! अब काकी वो घड़ा लेके अपने कमरे में गयी! मै भी उसके साथ चला! काकी ने अपनी सहायिका और मैंने शर्मा जी को बाहर भेजा! अब घड़ा खोलने का समय था!

काकी ने ज़मीन पर कोयले से एक वृत्त खींचा और वो घड़ा उस वृत्त में रख दिया! और फिर घड़े के तार खोलने के लिए उसे जांचा, तार एक दूसरे से गूंथ कर जाल जैसा बना दिया गया था! कोई छोर ना मिला वहाँ तार का! तब मैंने शर्मा जी से एक कटर लाने के लिए कहा, वो अपने बैग से कटर लेके आ गए, मैंने वो तार अब काटने शुरू किये, मैंने कटोरी के । आसपास के तार काटे और कटोरी हटा दी उस पर से! घड़े के अन्दर झाँका, तो उसमे एक और छोटा था घड़ा था! छोटा सा पीतल का कलश जैसा! जैसा कि कोई बड़ा अगरबत्तीदान! बड़ी हैरत हुई!

"ये क्या है अब?" काकी ने उसको बाहर निकाला और बोली,

"मुझे भी नहीं पता!" मैंने कहा,

"इसका तो कहीं ढक्कन भी नहीं दिख रहा?" काकी ने उलट पलट के देखा उसे!

"बड़ी अजीब सी बात है ये तो" मैंने कहा और वो छोटा सा कलश अपने हाथ में लिया!

मैंने कलश देखा गौर से, उस पर हलकी हलकी रेखाएं सी खिंची हुई थीं! लेकिन कोई ढक्कन या उसको खोलने का कोई और सूत्र नहीं दिख रहा था!

मैंने वो कलश वापिस उस घड़े में रख दिया! ये तो वही हुआ, कि आसमान से गिरे और खजूर में अटके!

तभी मुझे ख़याल आया! मैंने वापिस निकाला वो कलश बाहर और उसके पैंदे को देखा, वहाँ एक फूल बना था और वो फूल सात पत्तियों वाला था, अर्थात उसके फलक सात थे! फिर मैंने वो रेखाएं गिनीं, कुल रेखाए इक्कीस थीं, ये तो किसी बीजक के जैसा था! इक्कीस को। भाग किया सात से तो आया तीन, यानी की तीसरे रेखा पर है इसका ढक्कन! या तीसरी रेखा से ही मिलेगा कोई सूत्र!

मैंने तीसरी रेखा को ध्यान से देखा, फिर एक सुई ली और उस तीसरी रेखा के ऊपर उसे कुरेदा! वहाँ मुझे छोटा सा खांचा दिखाई दिया, मेरी धडकनें बढी अब! मैंने उस तीसरी रेखा से ऊपर उसको चूड़ी की तरह घुमाया, वो बहुत मजबूत था, मैंने दोनों हाथों से जान लगा दी, लेकिन खुला नहीं! फिर मैंने अपना रुमाल निकाला और घुमाया, वो घूम गया! जैसे ही घूमा मै ठहर गया! मैंने काकी को देखा और काकी ने मुझको! "काकी यदि इसको रात को खोलें तो?" मैंने कहा,

"ठीक है" उसने कहा,

"ऐसा है ना, रात में यदि कोई बात भी हुई तो संभाली जा सकती है" मैंने कहा,

"ठीक है, जैसा आप कहो" काकी ने कहा,

"रात को आऊंगा मै अब फिर, तुम बडिया बाँध लेना" मैंने कहा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

"ठीक है" उसने कहा,

फिर मै वहाँ से बाहर आ गया! शर्मा जी को जिज्ञासा थी सो उन्होंने पूछा, "क्या हुआ गुरु जी?" तब मैंने सारी बात बताई उन्हें! उन्हें भी हैरत हुई!

"कमाल है! ताले में ताला!" वो बोले,

"हाँ शर्मा जी" मैंने कहा,  

"मानना पड़ेगा!" वो बोले,

"ये बात तो है, मानना पड़ेगा" मैंने बताया,

"पता नहीं क्या रहस्य है, तीन दिनों में कुछ हाथ नहीं लगा!" वो बोले,

"शर्मा जी, जब तक वो कलश नहीं खुलेगा कूछ पता नहीं चलने वाला!" मैंने कहा,

"हाँ जी! चलो रात कौन सी दूर है!" वो बोले!

और फिर रात आई! मै तब साढ़े ग्यारह बजे तक सभी मंत्र जागृत कर चुका था, ना जाने कब क्या हो जाए! क्या ज़रुरत आन पड़े! मै तकरीबन पौने ग्यारह बजे काकी के पास जा पहंचा! शर्मा जी को वहीं कमरे में छोड़ दिया! काकी ने अपनी सहायिका को भी बाहर भेज दिया और कमरा बंद कर लिया! अब मैंने और काकी ने अपने अपने वृत्त खींचे, कोयले से और भस्म से चिन्हित किया! अलख-नाद करते हुए मैंने और काकी ने काल-भोग दिया और फिर काकी ने उस घड़े में से उस कलश को बाहर निकाला! उसने कलश मुझे दिया और फिर मैंने वो कलश अपने हाथ में लेते हुए, रुमाल की सहायता से खोल दिया! जैसे ही खोला, उसमे से धूम्रपात हुआ! वलय-रुपी धूम्र! मुझे अपनी आँखें बंद करनी पड़ गयीं! आँखें खोली तो सामने वो बारह प्रेतात्माएं खड़ी थीं! ऊंची ऊंची और कद्दावर प्रेतात्माएं! उनमे से सात पुरुष थे और शेष पांच स्त्रियाँ! अब हम भी खड़े हो गए! उनमे से एक के केश नीचे कमर तक थे! सफ़ेद और काली मिश्रित दाढ़ी! गले में मालाएं डाले हुए! अस्थि-माल धारण किये हुए! ऊपर का बदन नग्न और नीचे काले रंग की धोती धारण किये हुए! वो देखने में ही चांडाल-महाप्रेत सा लग रहा था!

"कौन हो तुम?" काकी ने पूछा,

"मै बैजू बाबा!" उसने कहा तो जैसे गर्जना सी हुई!

"और ये कौन हैं?" काकी ने उन औरतों को देख के कहा,

"ये तीन मेरी पत्नियां हैं, और वो मेरी पुत्रियाँ!" उसने जवाब दिया,

"और ये अन्य पुरुष?" काकी ने पूछा,

"ये चार मेरे पुत्र हैं और वो दोनों हाकिम के पुत्र" उसने बताया,

"तुम्हे किसने कैद किया?" काकी ने पूछा,

 "जिद्दाल ने" उसने बताया,

"जिद्दाल कहाँ है?" अब मैंने पूछा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

"मुझे नहीं मालूम" उसने कहा,

"जिद्दाल ने क्यूँ कैद किया तुम सबको?"

"सीकर के काले बाबा के कहने पर कैद किया" उसने बताया,

"काले बाबा से उसका क्या सम्बन्ध?" मैंने पूछा,

"वो काले बाबा का पुत्र है" बैजू बोला,

"पुत्र?" मुझे हैरत हुई अब!

"वो तो तुम्हारा शिष्य है ना?" मैंने पूछा,

"हाँ शिष्य भी और दामाद भी" उसने बताया,

"दामाद?" मुझे एक और हैरतअंगेज जानकारी मिली!

"हाँ, वो लड़की उसकी पत्नी है, कजरी" उसने बताया,

अब और रहस्य बढ़ गया! जिद्दाल ने अपने श्वसुर को तो मारा ही अपनी पत्नी को भी मारा था! इसके पीछे अवश्य ही कोई बड़ा राज छिपा था!

"तो जिद्दाल ने कत्ल किया तुम्हारा?" मैंने पूछा,

"नहीं!" उसने कहा,

"नहीं????????" अब मैं घूमा! मेरे दिमाग में हथौड़े घनघना उठे! मैंने काकी को देखा और काकी ने मुझे! यदि जिद्दाल ने नहीं मारा तो इनको फिर मारा किसने? कहीं काले बाबा ने तो नहीं?

"काले बाबा ने तो क़त्ल नहीं किया सबका?" मैंने पूछा,

"नहीं उसने भी नहीं" बैजू बोला,

"तो फिर कौन है वो?" मैंने पूछा,

"पंच-हाट वाले अवधूत बनेरू बाबा ने" उसने बताया,

"अवधूत बनेरू बाबा? ये कौन है?" मैंने पूछा,

"बनेरू का लाल बाबा, लाल बाबा अवधूत" उसने बताया,

 बहुत उलझा हुआ मामला था! दो नए पात्र आ गए थे, सीकर वाला काले बाबा और बनेरू का लाल बाबा अवधूत!

"इस लाल बाबा से तुम्हारी क्या दुश्मनी?" मैंने पूछा,

"खजाने की दुश्मनी थी" उसने बताया,

"खजाना? कौन सा खजाना?" मैंने पूछा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

"तिम्मो बंजारन खजाना रखती थी हमारे यहाँ, ये बात लाल बाबा को पता लग गयी थी, वो यहाँ भवानी-मंदिर आया करती थी"

"अच्छा तो खजाने के लिए ही हुई ये खूंरेजी?" मैंने पूछा,

"हाँ" उसने कहा, "तो क्या लाल बाबा ले गया खजाना?" मैंने पूछा,

"जब तक लाल बाबा आया तिम्मो डिगर चुकी थी, उसने नहीं माना" उसने बताया,

"तो तुमने मुकाबला नहीं किया उसका?" मैंने पूछा,

"किया लेकिन वो डेढ़ सौ से अधिक थे" उसने कहा,

"और ये जिद्दाल कहाँ था?" मैंने पूछा,

"तिम्मो के साथ हिस्सा लेने गया था"

"हिस्सा? वो यहाँ क्यूँ नहीं लिया तुमने?" मैंने पूछा,

 "वो काले बाबा को देती थी हिस्सा" उसने बताया,

रहस्य और गहरा होता जा रहा था! इतिहास पुनः आमंत्रित कर लिया था मैंने जैसे वर्तमान में!

"काले बाबा को हिस्सा देती थी वो तिम्मो बंजारन, और काले बाबा देता होगा अपने बेटे जिद्दाल को और जिद्दाल लाता होगा यहाँ, यही ना बैजू बाबा?" मैंने पूछा,

"हाँ, ऐसा ही है" बैजू ने कहा,

"तो तब जिद्दाल पहुँच चुका था सीकर?" मैंने पूछा,

"पता नहीं वो तिम्मो के साथ दोपहर में निकला था" बैजू ने बताया,

"तो इसका मतलब ये हुआ कि तुमको जिद्दाल के बारे में मालूम नहीं कि वो कहाँ है अब?" मैंने पूछा,

"हाँ किसी को पता नहीं" उसने बताया,

"अच्छा एक बात और, जिद्दाल ने तुमको ढूँढा था?" मैंने पूछा,

"हाँ आईने से लाया था हमको वापिस" उसने बताया,

'आइना' एक विधि है तंत्र में! इसमें हाज़िर किया जाता है किसी को भी यदि उसकी कोई अस्थि आपके पास हो, केवल अस्थि से, अन्य किसी भी वस्तु से नहीं!

"तो जब वो तुमको वापिस लाया तो उसने तुम्हे कैद किया, क्यूँ?" मैंने पूछा,

"अवधूत लाल बाबा से बचाने के लिए" उसने बताया,

अब!! अब समझा मै सारा रहस्य! जब जिद्दल वापिस आया होगा तब उसको ये पता चला होगा, उसने आनन-फानन में आइना-विधि अपनाई होगी और सभी को लाया होगा वापिस! और लाकर यहाँ इस कलश में इतनी क्लिष्ट विद्या से बाँध दिया होगा इन बारह को और बाहर तैनात कर दिया होगा उन नौ को! उसने बाहर इसीलिए छोड़े होंगे वे नौ कि यदि वो इनको मुक्त नहीं कर सका तो कोई अन्य इनको


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

मुक्त कर ले, वो नहीं चाहता था कि ये किसी और के हाथ लग जाएँ! मेरे अन्दर जिद्दाल के प्रति जो विष खौला था अब वो शांत हो गया था! जिद्दाल के प्रति आदर उमड़ आया मेरे ह्रदय में अब!

अब मै वहाँ से उठा और काकी को कहा कि इनको फिर से कलश में डाल एक और जांच करनी है! मै वहाँ से आ गया वापिस अपने कमरे में, सहायिका बाहर ही बैठी थी एक फोल्डिंग-पलंग पर, मैंने उसको आधे घंटे के बाद वापिस जाने को कह दिया! मुझे अन्दर आते देख शर्मा जी ने फ़ौरन सवाल दागा, "क्या हुआ कुछ पता चला?"

तब मैंने शर्मा जी को सारा वृत्तांत बता दिया! सुनकर वो भी दंग रह गए!

"ओह! ये तो बड़ा दुःख भरा वाक्या है गुरु जी!" वो बोले,

"हाँ शर्मा जी, सोचा क्या था और हुआ क्या!" मैंने कुर्सी पर बैठते हुए कहा,

"तो अब देर किस बात की है?" वे बोले,

"हाँ अभी देर शर्मा जी!" मैंने कहा,

"कैसी देर?" उन्होंने पूछा,

"जिद्दाल की खोज!" मैंने कहा,

"ओह!" उनके मुंह से निकला,

"आखिरी कड़ी वही है शर्मा जी" मैंने बताया,

"लेकिन कैसे पता चलेगा?" उन्होंने पूछा,

"इनमे से तो कोई नहीं जानता कि वो कहाँ है? इसीलिए हमे अपने मातहत मालूम करेंगे" मैंने कहा,

"ठीक है गुरु जी" वो बोले,

अब मै चाहता था उस जिद्दाल को ढूंढना, ये भरे समंदर में से एक ख़ास मछली लाने वाली बात थी! काम था तो असंभव परन्तु प्रयास तो अवश्य ही करना था!

"गुरु जी, उसने क्या बताया, तिम्मो बंजारन?" शर्मा जी ने पूछा,

"हाँ, यही" मैंने कहा,

"मुझे अंदेशा है कि कहानी में वो भी मौजूद है!" वो बोले,

"कैसे?" मैंने उनकी इस अटपटी सी बात के विषय में जानना चाहा,

"तिम्मो बंजारन काले बाबा को हिस्सा देती थी, किसलिए? इसीलिए कि वो लूट का माल यहाँ रखवाती थी?" उन्होंने मुझे भी संशय में डाला अब!

"तो फिर किसलिए?" मैंने पूछा,

"अच्छा, मान लिया, लेकिन सामान तो वो यहाँ रखती थी बैजु के डेरे पर और हिस्सा जिद्दाल के बाप को? समझ नहीं आया" उन्होंने कहा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

"बात तो सही है, लेकिन हो सकता है कि दोनों में कोई सांठ-गाँठ पहले ही हो गयी हो? बैजु की और काले बाबा की?" मैंने जवाब दिया,

"तो लाल बाबा किस से चिढ़ता था, काले बाबा से ये बैजू बाबा से?" उन्होंने कहा,

"अरे नहीं, वो केवल खजाना लूटना चाहता था, बस!" मैंने कहा,

"अगर वो लूटना चाहता तो रास्ते में ही घेर के लूट लेता खजाना!" वो बोले,

"नहीं, तिम्मो बंजारन के पास अपने भी आदमी होंगे, एक से एक क्रूर!" मैंने कहा,

"हो सकता है, लेकिन मुझे संदेह में यही तिम्मो लगती है" उन्होंने शक का एक और घड़ा मेरे सर पर रख दिया! और उलझन हो गयी!

इसी कशमकश में काफी देर हो गयी रात को, कोई भी सटीक निष्कर्ष ना निकला, इसी उमड़-घुमड़ में सारी रात गुजर गयी, थोड़ी बहुत नींद भी आई तो भी आँख खुलने पर विचारों के नए नए आयाम आने लगते थे!

खैर सुबह हुई, नित्य-कर्मों से फारिग हो मै पहुंचा सीधा काकी के पास, काकी भी रात भर सो नहीं पायी थी शायद, उसकी आँखें भी बोझिल थीं! काकी मुझे देख मुस्कुराई और बोली, "कुछ पकड़ में आया?"

"नहीं काकी, कुछ भी नहीं" मैंने गर्दन हिलाते हुए कहा,

"मैंने ऐसा रहस्य कभी नहीं देखा" उसने कहा,

"हाँ, मैंने भी नहीं देखा, एक के बाद एक नयी परत खुलने लगती है!" मैंने बताया,

"ये जिद्दाल का पता ढूंढना होगा हमको" उसने कहा,

"हाँ, मेरा भी यही विचार है" मैंने भी समर्थन किया उसका,

"मै आज पता करती हूँ उसका" वो बोली,

"धूमिका को जगाओगी?" मैंने कहा,

"नहीं, भेजती हूँ किसी को" उसने कहा,

"ठीक है, आज मालूम कर लो और किस्सा अब ख़तम करो" मैंने कहा,

"हाँ, आज कर दूँगी" उसने कहा,

फिर मै वहाँ से उठा और आ गया अपने कमरे में, रहस्य उजागर करने में आज चौथा दिन लगने वाला था, इस से पहले मैंने कभी आपने आपको इतना लाचार नहीं पाया था! शर्मा जी और मै बाहर गए टहलने के लिए तब शर्मा जी ने मुझसे पूछा, "गुरु जी, इस कहानी में इतने मोड़ आये हैं, इतने पेंच आये हैं कि हर मोड़ पर आने तक एक नया मोड़ सामने आ

"अब तो काकी भी परेशान है, कह रही है आज कहानी ख़तम करेगी वो" मैंने बताया,

"कैसे भी हो, निष्कर्ष निकलना चाहिए" वो बोले, "हाँ शर्मा जी" मैंने कहा,


   
ReplyQuote
Page 1 / 2
Share:
error: Content is protected !!
Scroll to Top