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वर्ष २००६ लखनऊ की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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मित्रगण! कुछ घटनाएं अमिट होती हैं, हमेशा के लिए! ऐसी ही ये घटना है उनमे से एक! मेरे एक जानकार हैं केवल सिंह, लखनऊ में रहते हैं परिवार सहित, परिवार अच्छा-खासा बड़ा और संयुक्त है, ३ भाई साथ में ही रहते हैं और पिता जी, माताजी का देहांत कई वर्षों पहले हो चुका है, केवल सिंह एक सरकारी उपक्रम में अधिशासी अभियंता के पद पर तैनात हैं, उनकी तीन संतान हैं, २ लडकियां और एक लड़का, तीनों ही बालिग हैं और अपनी अपनी पढ़ाई कर रहे हैं! केवल सिंह के मंझले भाई अर्जुन सिंह भी एक सरकारी पद पर कार्यरत हैं, वहीं पर, उनकी भी तीन संतान है तीनों पुत्र हैं, बड़ा लड़का अपना व्यवसाय करता है, ये कहानी इसी लड़के अश्वनि की है!

अश्वनी का व्यवसाय चल निकला था, उसका व्यवसाय सिलाई-धागों से सम्बंधित है, इसी सिलसिले में अश्वनि की मुलाक़ात एक विवाहित स्त्री मूदुला से हुई, मूदुला की शादी को भी कोई एक साल ही बीता था, संतान कोई ना थी,दोनों में काफी मिलनसारिता हो गयी, ये रहने वाली कानपुर की थी लेकिन शादी के बाद अपने पति के साथ उसके व्यवसाय में हाथ बंटाया करती थी! मूदुला और अस्वनी की मिलनसारिता इतनी बढ़ी की आगे जा कर प्रेम-प्रसंग में बदल गयी! ये था तो गलत लेकिन जवान, अविवाहित अश्वनि ने इसका परिणाम न देखा और आगे बढ़ता गया! वो अपने घर भी मूदुला को संग लाने लगा, आरम्भ में तो सभी कोई कोई समस्या नहीं थी लेकिन उनके हाव-भाव को देखकर अब अश्वनि के माँ-बाप व अन्य परिवारजनों को समस्या दिखने लगी! वे लोग कभी-कभार उसको टोक दिया करते तो वो उसको सिरे से खारिज कर दिया करता! इस प्रसंग को दो वर्ष हो गए! जब भी घरवाले उसके विवाह की बात करते तो वो सदैव मना कर दिया करता!

परिवारजनों से अधिक टकराव हुआ तो उसने घर छोड़ दिया और अलग मकान लेकर रहने लग गया! व्यवसाय तो चल ही रहा था बढ़िया और फिर जवानी के जोश में कोई उचित निर्णय परिणाम के बाद ही निर्धारित होता है! अब वो और स्वतंत्र हो गया! ये प्रेम-प्रसंग आगे बढ़ता गया! दोनों आकंठ डूब गए! मृदुला के पति को इसकी कभी भनक न पड़ी न मृदुला ने कभी उसको कोई शिकायत की, वो शांत-स्वभाव वाला सीधा-सादा व्यक्ति था, समय निर्बाध गति से आगे बढ़ता रहा!

एक बार मृदुला की तबियत बिगड़ी, उसका इलाज कराया गया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ, अच्छे से अच्छे इलाज का कोई प्रभाव नहीं पड़ा, आखिर २ महीनों के बाद मूदुला ने इस संसार को त्याग दिया

अश्वनि की तो मानो दुनिया ही लुट गयी हो किसी ने जैसे उसके संसार की खुशियों में सेंध लगा दी हो! वो हतप्रभ रह गया! व्यवसाय आदि से मन उचाट हो गया, आखीर ऐसे


   
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श्रीशः उपदंडक
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करते करते व्यवसाय डूब गया, बंद करना पड़ा, अश्वनि कमज़ोर, शून्य में ताकता रहता, मृदुला के संग बिताए क्षणों और यादों के साथ उसने अपना जीवन काटना मुश्किल लगने लगा शराब पीने लगा, और आखिर उसकी हालत ये हो गयी की सारा कमाया पैसा ठिकाने लग गया, अब उसके पास वापिस घर जाने के अलावा और कोई चारा शेष न बचा! घरवालों को ये बात मालूम थी, उनको उस से सहानुभूति तो थी ही, अत: उसको घर में वापिस बुला लिया गया!

वो घर में भी किसी से बात न करता था, खान मिल जाए तो खा लिया न मिले तो कोई बात नहीं, २४ साल का अश्वनि ४० साल का लगने लगा! परिवारजनों को उसकी अब चिंता हुई, सभी ने समझाया, वो विवाह कर ले, व्यवसाय आरम्भ करे दुबारा, वो उसकी मदद करेंगे, लेकिन कुछ न हो सका!

अश्वनी वैसा ही रहा, अकेले बैठे रहना, किसी से बात न करना, मूदुला का नाम रटते रहना, उसके फोटो को देख कर आंसू बहाना! उसके कोमल हदय पर मूदुला नाम का चिन्ह अंकित हो चुका था!

समय बीता, मूदुला की मृत्यु को डेढ़ साल बीता अश्वनि वैसा का वैसा ही रहा, अश्वनि को देख परिवारजनों की चिंता बढ़ती रही, कोई हल न मिला!

घरवाले सभी उसकी ये दशा देख के दुखी थे कहते तो वो मानता नहीं था, बस ख्यालों में डूबा रहता! एक रात वो अपने बिस्तर से उठा और बाहर चला गया! अन्दर आया तो काफी खुश था! आ के सीधा सो गया! सुबह नहाया धोया, दाढ़ी बनायी और सभी से प्यार से मिला! सभी को बड़ी हैरत हुई! लेकिन वो उसमे बदलाव देखकर काफी खुश थे! उसके रहन-सहन में परिवर्तन आ गया! धीरे-धीरे इधर-उधर से प्रबंध कर उसने अपना व्यवसाय फिर खड़ा किया! और उसका व्यवसाय फिर चल पड़ा! वो उसी में मग्न हो गया! ऑफिस के ऊपर ही दो कमरे पड़वाये और वो स्थायी रूप से वहाँ रहने लगा! व्यवसाय में मग्न होने से घरवालों ने उसको टोका नहीं! वक़्त गुजरा, एक वर्ष और हो गया! वो घर से एकदम कट गया! एक बार की बात है,उसके पिताजी रात के समय उसके ऑफिस आये, ऊपर ही घर था, अत: वो सीढ़ी से ऊपर गए, दरवाज़ा अन्दर से बंद नहीं था, बस भिड़ा हुआ था, उन्होंने देखा घर में कोई नहीं था, हाँ गुसलखाने से नहाने की आवाज़ आ रहीं थीं, उन्होंने देखा की घर बड़े करीने से सजा है! जैसे किसी औरत ने रख-रखाव किया हो उसका! थोड़ी देर बाद अश्वनि बाहर आया! पिता से मिला और हाल-चाल आदि पूछा, उन्होंने अश्वनि से पूछा,"बेटा, हिसाब-किताब देख कर तो ऐसा लग रहा है जैसे की तुमने या तो शादी कर ली हो या शादी करने वाले हो जल्दी!"

"नहीं पिताजी, मुझे शादी नहीं करनी, आप ये बात तो भूल जाइये" वो बोला,

"क्यूँ बेटा? तुम बड़े हो घर में आखिर?" वो बोले,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"पिताजी घर में कोई कमी हो तो बता दीजिये, मै पूरी कर दूंगा, लेकिन शादी का जिक्र न कीजिये!" उसने बुझे मन से कहा,

"ठीक है जैसी तुम्हारी इच्छा" उन्होंने कहा,

बाहर तेज बारिश शुरू हो गयी, अश्वनि के पिताजी को वहीं रुकना पड़ा, अश्वनि ने उनका बिस्तर लगा दिया और वापिस अपने कमरे में चला गया!

करीब रात्रि ग्यारह बने अश्वनि ने अपने पिता जी का दरवाजा खटखटाया, उसके पिताजी की आँख लग चुकी थी, दरवाज़ा खोला तो देखा तो बाहर अश्वनि खड़ा था, एक थाली में खाना लिए!

"अरे! इतनी रात को क्यूँ तकलीफ की बेटा!" वो बोले,

"आप भूखे होंगे, इसीलिए खाना लाया मै, खा लीजिये" उसने खाना और पानी रखते हुए बोला!

और बाहर चला गया,

अश्वनि के पिता जी ने खाना खाया और सो गए! रात को कोई तीन बने लघु-शंका हेतु उठे, अभी बाहर जाने ही वाले थे, उन्हें किसी औरत के हंसने का आवाज़ आई अश्वनि के कमरे से, वो औरत काफी तेज हंस रही थी और अश्वनि भी! वो चकित हुए फिर सोचा कोई जानकार या फिर कोई और चक्कर होगा, वो गुसलखाने तक चले गए और निवृत हो कर वापिस आ गए,

सुबह उठे और अश्वनि से विदा लेकर घर चले गए। घर जाकर सारी बात उन्होंने अपनी धर्मपत्नी को बता दी, उनको भी बड़ी हैरत हुई! उन्हें ये अच्छा नहीं लगा, वो अगले दिन अश्वनि के पास पहुँच गयीं! अश्वनि उन्हें ऊपर आने कमरे में ले गया,

उन्होंने सारी बात अश्वनी से कही, अश्वनि से सुनी, फिर बोला, " माँ तुम्हारा बेटा खुश है अब बहुत, खोयी हुई खुशी लौट आई है, मुझसे न छीनो अब"

"तेरी खुशी में हमारी ख़ुशी है, लेकिन ये तो बता वो औरत कौन थी तेरे साथ रात में?" वो बोली,

अश्वनि चुप रहा, वो फिर बोलीं, वो फिर चुप रहा,

"सुन तू शादी कर ले उससे, हमे कोई ऐतराज़ नहीं होगा!" वो बोली,

"मैंने शादी कर ली है" उसने कहा,

"अच्छा!! कौन है वो, मिलवायेगा नहीं?" उन्होंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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वो चुप रहा! वो फिर बोलीं मिलवाने के लिए! वो फिर चुप रहा! अब जैसे ही वो उसको पकड़ के उठा रही थीं तभी! तभी उनको किसी ने धक्का मारा! धक्का लगा वो नीचे गिरी! लेकिन हैरत ये! अश्वनि ने उठाया नहीं! जब उनकी आँखें खुली तो अश्वनि के साथ उसके गले में हाथ डाले बैठी थी मूदुला!

उसकी माताजी के होश उड़ गए, वो बेहोश हो गयीं, किसी तरह से अश्वनि ने अपनी माँ को वापिस घर भेजा ये कहके की अब उसे कोई तंग न करे, वो बिलकुल खुश है, कोई न आये उसके पास!

अश्वनि की माता ने ये सारी बातें घर में बतायीं, घर में हडकंप मच गया!

क्या किया जाए? क्या किया जाए? सभी का हाल खराब था! तब केवल सिंह ने शर्मा जी को फोन किया और सारी घटना से अवगत करवाया, और शर्मा जी ने मुझे, मुझे बहुत अचम्भा हुआ! एक पढ़ा-लिखा, सुसंस्कृत लड़का, अच्छा व्यवसाई, जानते हुए भी ऐसा कर रहा है!

मैंने शर्मा जी से कहा, "शर्मा जी, या तो ये लड़का उसको अपनी जान से भी ज्यादा चाहता है या ये मानसिक रूप से अशक्त हो गया है"

"हाँ गुरु जी, उसको लगता है, मृदुला फिर से जिंदा हो गयी है!" वे बोले

"शर्मा जी, इस मनुष्य के मस्तिष्क में समस्त ब्रह्माण्ड की शक्तियां विद्यमान हैं! केवल खोजने वाला चाहिए। जब मस्तिष्क किसी विषय को बिना किसी तर्क के सही मान लेता है, तब ऐसा होना अवश्यम्भावी है! अश्वनि के साथ भी यही है!" मैंने कहा,

"परन्तु ये अनुचित है" वो बोले,

"हाँ! परन्तु अश्वनि इसको उचित मान बैठा है!" मैंने कहा,

"तो मै इनको क्या जवाब दूं अब?" उन्होंने पूछा,

"बोलो, कि हम उनके पास परसों तक आ जायेंगे, तब तक अश्वनि से कोई बात न करें" मैंने बताया,

"ठीक है, मै कहे देता हूँ" उन्होंने कहा और केवल सिंह को फोन कर दिया,

मैंने यहाँ अपने जाने की सभी तैयारी की और क्रिया करके सशक्त बना दिया शर्मा जी को और स्वयं को भी!

नियत समय पर हम लखनऊ पहुँच गए, वहाँ सन्नाटा बरपा था! केवल सिंह और अर्जुन सिंह ने हमको एक कमरे में ठहराया,


   
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श्रीशः उपदंडक
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और हम वहाँ आराम करने हेतु लेट गए, अर्जुन और केवल ने हमे अश्वनि के बारे में और भी बातें बतायीं, कई बातें हदय को छू लेने वाली एवं कई मूर्खतापूर्ण थीं!

अगले दिन मैंने और शर्मा जी ने शाम की तैयारियां आरम्भ की, आज रात हमे अर्जुन के साथ अश्वनि के पास जाना था, उस मृदुला को देखना था! जो इस भोले भाले युवक को फंसाए बैठी थी!

शाम ढलने पर अर्जुन और उसकी पत्नी हमको अश्वनि के ऑफिस ले गए, ऑफिस अब बंद था, इसका मतलब अश्वनि अब अपने घर में था, मृदुला के साथा अर्जुन पहले स्वयं ऊपर चढ़े, दरवाज़ा इस बार अन्दर से बंद था, मैंने दरवाज़ा खटखटाया, अन्दर से क़दमों की आवाज़ आई, बोला, "कौन है?"

"मैं हूँ बेटा, तुम्हारा पिता" अर्जुन ने आवाज़ लगायी,

उसने दरवाज़ा खोला, और जैसे ही उसने हमको देखा, उसने दुबारा दरवाज़ा बंद करने के लिए जोर लगाया! दरवाज़ा हमने बंद नहीं होने दिया! वो वहाँ से भागा अपने कमरे की तरफ! और अन्दर से दरवाज़ा बंद कर लिया!

अर्जुन और उनकी पत्नी ने कई आवाजें लगायीं लेकिन उसने दरवाज़ा नहीं खोला! तब मैंने, शर्मा जी और अर्जुन ने मिल के दरवाज़ा तोड़ दिया! मैंने अर्जुन और उनकी पत्नी को वहाँ पीछे रोका और मैं स्वयं शर्मा जी के साथ अन्दर चला गया, अन्दर अश्वनि बिस्तर पर बैठा था, गुस्से में घूर रहा था!

"कैसे हो अश्वनि?" मैंने कहा,

वो चुप रहा! कभी मुझे देखता कभी शर्मा जी को!

"कैसे हो अश्वनि?" मैंने प्रश्न दोहराया!

"मै ठीक हूँ, तुम कौन हो, क्या करने आये हो?" उसने पूछा,

"बता दूंगा, रुक जाओ!" मैंने कहा और शर्मा जी के साथ सोफे पर बैठ गया!

"मूदुला कहाँ है?" मैंने पूछा,

"यहीं है, क्यों? क्या काम है उस से?" उसने पूछा,

"उसको उसके घर छोड़ने आये हैं हम अश्वनि!" मैंने कहा,

"ये..........ये है उसका घर!" उसने गुस्से में कहा,

"नहीं अश्वनि! ये तो एक मनुष्य का घर है, किसी प्रेत का नहीं!" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"सुनो तुम लोग जो भी हो, निकल जाओ यहाँ से, नहीं तो जान से मार दूंगा" उसने ऐसा कहा, और खड़ा हो गया, पास में रखा एक चाकू उठा लिया!

"बैठ जा आराम से, साले एक झापड़ मारूंगा तो दीवार फाड़ता बाहर जाएगा, समझा?" मैंने खड़े हो कर कहा!

अश्वनि शांत हो गया और बैठ गया!

वो डर के बैठ गया लेकिन आँखें फाड़ता हुआ हमें देखता रहा! मुझे उसकी इस हालत पर तरस भी आया लेकिन ये सर्वदा अनुचित है! मैंने उससे कहा, "अश्वनि, मेरी आवाज़ सुनाई दे रही है?"

"हाँ, सुन रहा हूँ" उसने कहा,

"तेरी पत्नी कहाँ है?" मैंने पूछा,

"गयी हुई है" उसने कहा,

"कहाँ गयी है?" मैंने पूछा,

वो चुप हो गया!

"कहाँ गयी है?" मैंने जोर से पूछा,

"वो रात को आती है ग्यारह बजे" उसने कहा,

"तूने उससे शादी की है?" मैंने पूछा,

"हाँ, हाँ की है। उसने कहा,

"कब की शादी?" मैंने पूछा,

"२ साल हो गए" उसने कहा,

"एक प्रेतात्मा से?" मैंने कहा,

उसने एक झटका खाया और उसका बदन ऐंठा! यानि कि मृदुला की आमद हो गयी! मैंने अपनी घडी देखी ११ से ऊपर का समय था!

अश्वनि अपने दोनों हाथ एक दुसरे में फंसा के बोला, लेकिन एक औरत की आवाज़ में, "इसे क्यूँ तंग कर रहे हो तुम लोग? तुम हो कौन? कहाँ से आये हो? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यहाँ आने की?"

"आवाज़ नीची करके बोल ओ औरत, अभी तेरी हेकड़ी निकाल लूंगा मै, समझी?" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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मेरा उत्तर सुन कर वो उठा, धीरे धीरे मेरी तरफ बढ़ा, मै उठा, जैसे ही मेरे पास आया हाथ उठाने मैंने एक झापड़ रसीद किया उसको! वो फर्श पर गिरा! अचानक से उठा! चुटकी बजाते हुए बोला, "निकल जाओ यहाँ से, अभी, जिकल जाओ"

"निकालूँगा तो मै तुझे, कमीन औरत!" मैंने कहा,

"क्या कर लेगा तू?? तू आखिर है कौन?" उसने गुर्राते हुए बोला,

"अभी बताता हूँ तुझे, रुक!" मैंने कहा

तभी मैंने वहाँ अपने दो खबीस हाज़िर किये! धुंघरू पहने हुए! दोनों मेरे आसपास खड़े हो गए! अश्वनि उनको देखा बिस्तर में दोहरा हो गया! डर के मारे कांपने लगा!

"अब बता कमीन औरत, क्या करूँ तेरा?" मैंने कहा,

"मुझे इससे अलग न कर, ये मेरे बिना और मै इसके बिना मर जायेंगे!" उसने कहा,

मैंने अपने खबीस वापिस भेजे! और फिर मैंने उससे कहा, "तू तो पहले ही मर चुकी है, अब इसको क्यों मार रही है?"

"इसको लेके जाउंगी अपने साथ, हमेशा के लिए, हमारा प्यार अमर रहेगा!" उसने कहा,

"एक मर्द और एक औरत-प्रेतात्मा का ये कैसा प्यार?" मैंने पूछा,

"प्यार प्यार होता है! इसके प्यार ने मुझे बुलाया है, मै इसी के लिए आई हूँ वापिस, ये मेरे साथ खुश है, मै इसके साथ, तुम क्यूँ अलग करते हो हमें?" उसने कहा,

'अलग तो होना ही होगा तुझे, ये जीवित मनुष्य है और तू भटकती हुई प्रेतात्मा!" मैंने कहा,

"नहीं, नहीं! ये मेरा है, मै इसकी हूँ" उसने कहा,

"इसका मतलब तू आराम से नहीं मानने वाली, है न?" मैंने कहा,

"क्यूँ मानूं मै? इसका और मेरा क्या कुसूर?" उसने कहा,

"हाँ! कुसूर इसका तो नहीं है, हाँ तेरा ज़रूर है!" मैंने कहा,

"जहीं कोई कुसूर नहीं है मेरा" उसने कहा,

"अभी बताता हूँ, किसका कुसूर है!" मैंने कहा,

मैंने अपनी जेब से एक नींबू निकाला! उसको काटा! और फिर मंत्र पढ़कर निचोड़ दिया! अश्वनि का बदन ऐंठा! ".......मर गयी, मर गयी मै.........मुझे बचाओ" वो कराहती रही!


   
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श्रीशः उपदंडक
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"तुझे जीवन भर ऐसे ही तडपाऊंगा कमीन औरत! अब बता जाती है या नहीं??" मैंने कहा,

"पहले ये अंगार बंद करो, मै जल रही हूँ, मुझे बचाओ!" उसने चिल्ला के कहा,

मैंने मंत्र पढ़ा और उसका प्रभाव हटा लिया!

"अब बता, क्या चाहती है तू?"

अब मेरे पास दो ही विकल्प थे, या तो अश्वनि को उसके हाल पर छोड़ दो या, इस मूदुला को पकड़ के कैद कर लो, मैंने शर्मा जी से सलाह ली तो उनके अनुसार इसको कैद करना ही सही था, कम से कम लड़का तो सही हो जाएगा!

मैंने अपने खबीस फिर बुलाये, वो हाज़िर हुए, और मेरे पास खड़े हो गए!

खबीसों को देखकर मूदुला रोने लग गयी बोली, "मुझ पर रहम करो, मुझे इसके साथ रहने दो, ये मर जाएगा मेरे बिना, रहम करो"

"रहम कैसा? तूने कौन सा रहम किया इस पर? तू तो सुखा रही है इसे? ये इस संसार के योग्य नहीं रहेगा, तूने जानते हुए भी ऐसा किया, इसका दंड तो तू भुगतेगी ही" मैंने कहा,

"सुनो, सुनो, मै तुम्हे धन, गढ़ा-धन दे दूंगी, जिंदगी भर नहीं ख़तम होगा तुमसे, जो चाहोगे मै कर दूँगी, मुझे इसके साथ रहने दो बस" उसने कहा,

"नहीं मूदुला, तेरा संसार अलग है अब और इसका संसार ये, ये संभव नहीं है" मैंने कहा,

"सुनो, आलम बाग में एक घर है, वहाँ ५६ घड़े हैं सोने से भरे हुए, मै तुमको वहाँ ले चलती हूँ निकाल लो, ले जाओ सारा!" उसने तेजी से कहा,

"मुझे कोई सोना-चांदी नहीं चाहिए मृदुला" मैंने हंस के कहा,

"तो क्या चाहिए, मुझे बताओ, मैं लाके दे दूंगी!" उसने कहा,

"मैंने कहा जा, कुछ नहीं चाहिए मुझे!" मैंने कहा,

"मुझे मत ले जाओ, मत ले जाओ, मै विनती करती हूँ, पाँव पड़ती हूँ" उसने कहा और फफक-फफक कर रो पड़ी!

कैसा रिश्ता था ये! कैसा प्रेम! कौन सा प्रेम!

"अब तैयार हो जा मूदुला, मै तुझे निकाल रहा हूँ" मैंने कहा!

"नहीं, नहीं, ऐसा न करो, ऐसा न करो" उसने कहा और हाथ जोड़ के गुहार लगाती रही! मैंने अपने खबीस को कहा और खबीस ने उसको अश्वनि के शरीर से बाल पकड़ के बाहर खींच लिया!


   
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श्रीशः उपदंडक
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वो अब भी रो रही थी, हाथ जोड़े गुहार लगा रही थी!

मैंने खबीस से उसको कैद करने के लिए कहा और खबीस ने पकड़ कर उसको धक्का मारते हुए कैद कर लिया! खेल खत्म!

अश्वनि बेहोश पड़ा था! मैंने अर्जुन और उसकी पत्नी को दूसरे कमरे से बुला लिया और कहा, "मूदुला का खेल खत्म अब, मैंने उसको कैद कर लिया है, अब मेरा भी काम समाप्त हो गया, और आपका आरम्भ, आप अब अश्वनि को समझाइये, ये आपका काम है!"

वो दोनों बेचारे रोते हए मेरे पांव पड़ने झुके तो मैंने और शर्मा जी ने उनको उठा लिया और शर्मा जी बोले, "इसको अभी होश आ जाएगा, आप यहीं रहो, हम दूसरे कमरे में जाते हैं!"

हम उनको वहाँ छोड़ कर दूसरे कमरे में आ गए! अश्वनि को होश आया, उठते ही बोला, "मृदुला? क्या बात है आज खाना नहीं बनाया, मुझे भूख लगी है!" उसने अपने सामने बैठे माँ बाप को पहचाना भी नहीं!

मै वापिस वहाँ आ गया, उसने मुझको भी नहीं देखा! मैं समझ गया! उस प्रेतात्मा का प्रभाव इसमें है! वो कुछ छोड़ गयी है! मैंने तामूल-मंत्र पढ़ा, पानी पर अभिमंत्रित किया, और उस पर डाल दिया! पानी पड़ते ही वो चिल्लाया और वहाँ उल्टियां करने लगा! उसने मूत्र-त्याग भी कर दिया! १७ मिनट के बाद फिर बिस्तर पर ढेर हो गया! अर्जुन और उनकी पत्नी ने वहाँ की साफ-सफाई करदी, अश्वनि सो गया था! हमने भी रात वहीं बैठे-बैठे गुजार दी!

सुबह अश्वनि उठा, उसने अपने माँ-बाप को नमस्कार किया! और हमें भी! फिर अचानक से बोला, "माँ? मूदुला चली गयी क्या? मुझे बिना बताये?"

मुझे झटका लगा! मैंने उसका रूहानी इलाज तो कर दिया था, मानसिक इलाज में मै असमर्थ था!

मेरी सलाह पर उन्होंने उसको एक मानसिक-चिकित्सालय में दाखिल करा दिया!

हम वहाँ से विदा लेकर दिल्ली आ गए! अश्वनि के सलामती की ख़बरें हमको मिल ही जाती थी, वो अस्पताल से छुट्टी ले चुका था, सामान्य भी हो गया था! मुझे खुशी हुई! चलो एक मनुष्य कि जिंदगी बच गयी थी!

एक रात की बात है, करीब तीन बने मेरी आँख खुली, मैंने अपने सामने अश्वनि को खड़ा पाया! मुझे जैसे काठ मार गया! मैंने कहा, "अश्वनि?"


   
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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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"जी हाँ" उसने कहा, उसने हाथ जोड़े और फिर बोला, "आप मूदुला को आज़ाद कर दीजिये, हम दोनों चले जायेंगे, हमेशा के लिए"

मैं ये सुनके अवाक रह गया!

आनन्-फानन में मैंने अपने ख़बीसों से मूदुला को आज़ाद कर दिया! दोनों एक दूसरे से मिले गले लग कर! और फिर हाथ जोड़ कर नमस्ते और धन्यवाद करते हए लोप हो गए! मै उसके बाद सो नहीं पाया!

सुबह ६ बने शर्मा जी का फोन आया, कि अर्जुन का फोन आया था, अश्वनि ने रात में नदी में कूद के जान दे दी है, पुलिस ने उनको थाने बुलाया है!

अब पाठकों, आपसे एक सलाह मांगता हूँ मैं, उनका मै क्या करूं? अगर मुक्त न होना चाहें तो?

और हां, क्या मैंने मूदुला को छोड़ कर सही किया?

सलाह की प्रतीक्षा में!

------------------------------------------साधुवाद!--------------------------------------------


   
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(@thakur-rajesh)
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सादर नमन, आप को कोटिशः नमन 


   
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