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वर्ष २००६ जिला मथुरा की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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एक बार मेरे एक परिचित ने अपने किसी परिचित को मेरे पास भेजा, उसका नाम संजय था और अपनी पत्नी के साथ मेरे पास आया था, नमस्कार इत्यादि हुई तो मैंने संजय से उसके यहाँ आने का उद्देश्य पूछा,

उसने बताया," जी मेरा नाम संजय है, ये मेरी धर्मपत्नी हैं कविता, घर में दो संतान हैं और मेरे पिताजी, माता जी का देहांत गत वर्ष हो चुका है, मेरा अपना व्यापार है तेल-घी का, मेरी एक लड़की है १८ साल की, और उससे छोटा एक लड़का, अभी कोई १ महीने पहले मेरी लड़की अंकिता को उसके कमरे में किसी की मौजूदगी का एहसास हुआ, वो शीशे में देख कर अपने बाल काढ रही थी, उसने शीशे में अपने पीछे किसी को खड़े पाया, पीछे मुड़कर देखा तो कोई नहीं था! लेकिन वो घबरा गयी! उसने ये बात अपनी माँ को बताई, फिर यही हुआ कि इसको अंकिता का केवल एक वहम मान लिया गया! लेकिन उसके कोई ३ दिनों के बाद मुझे रात के समय अपने घर में बारामदे में किसी औरत को खड़े देखा, मैंने उसको आवाज़ भी दी लेकिन मेरे वहाँ पहुँचने पर कोई नहीं दिखा! लेकिन मुझे यकीन है कि वहाँ अवश्य ही कोई औरत खड़ी थी, साड़ी पहने, नीली साड़ी पहने, उम्र ४० से अधिक न होगी उसकी! ये मेरा वहम नहीं था! मै आज तक कहता हूँ! लेकिन ये बात मैंने किसी को नहीं बताई! उसके अगले दिन मेरी पत्नी को हमारे घर में लगे अमरुद के पेड़ के नीचे एक औरत को खड़े देखा! वही, वैसी ही जैसी मैंने देखी थी! कविता जब तक वहाँ गयीं वो औरत गायब हो गयी! अब हमको डर सताने लगा! घर में पूजा-पाठ करवाया, थोड़े दिन सब ठीक-ठाक रहा, लेकिन फिर एक दिन! रात के समय कोई २ बने करीब किसी ने मेरी बेटी को अपने हाथों से चेहरे पर छूकर जगाया! उसकी आँख खुली तो कोई नहीं था! उसने चिल्लाना चाहा लेकिन गले से आवाज़ ही नहीं निकली! बल्कि उसे किसी ने धक्का मार के बिस्तर पर गिरा दिया और उसके कपडे चीर-फाड़ कर दिए! अब उसके गले से आवाज़ निकली! वो चिल्लाई तो हम सभी उठ के वहाँ दौड़े! वो बेचारी रोये जा रही थी, उसने रोते-रोते सारी घटना बता दी! अब हम और बुरी तरह से घबरा गए!"

इतना बता के संजय चुप हो गए तो कविता ने बताना आरम्भ किया" गुरु जी, अभी हफ्ते भर पहले मुझे घर की रसोई में मुझको एक लड़का नज़र आया, मै बारामदे में थी, मै वहाँ गयी तो उस लड़के ने मुझे गुस्से से देखा और बोला' कभी दुबारा मिली तो जान से मार दूंगा' और बाहर निकल गया! मुझे गश आ गया, मै वहीं गिर गयी, मेरे लड़के ने मुझे उठाया!"

मैंने उनकी बात काटी और पूछा, "कोई इलाज नहीं करवाया आपने वहाँ?"


   
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श्रीशः उपदंडक
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"जी उसी दिन हमने इलाज करवाया अब उसने जो बताया उससे और डर गए हैं हम" संजय ने कहा,

"क्या बताया?" मैंने पूछा,

"उसने बताया कि उस घर में ७ प्रेतात्माएं वास कर रही हैं! ४ औरत हैं, २ लड़के और एक बच्चा, वो चाहते हैं कि तुम ये मकान खाली कर दो, क्यूंकि ये मकान उनका है" संजय ने कहा,

"तो क्या इलाज करने वाले ने उनको वहाँ से भगाया नहीं?" मैंने पूछा,

"उसने कहा वो असमर्थ है उनको वहाँ से भगाने में" कविता ने कहा,

"ठीक है आप अपना पता लिखवा दीजिये, मै देखता हूँ कि क्या किया जा सकता है" मैंने उनको आश्वस्त किया, संजय ने पता लिखवा दिया,

"लेकिन गुरु जी, मै ५ दिन पहले वो मकान छोड़ चुका हूँ, एक दूसरी जगह रह रहा हूँ, विवशता है, क्या करूँ, सभी की चिंता है मुझे" संजय ने कहा,

"चिंता न करो, आप उसी मकान में वापिस आ जायेंगे" मैंने कहा,

ऐसा सुनकर उन दोनों के चेहरों पर संतोष का भाव आ गया!

"आपका ही सहारा है गुरु जी, मेरे काम-धंधे पर भी असर हो रहा है" संजय ने कहा,

"ये तनाव के कारण है, आप निश्चिन्त हो जाइये अब" मैंने कहा,

वे उठे और मुझसे पूछा, "गुरु जी कब आयेंगे आप वहाँ?"

"मै कल आ जाऊँगा आपके पास, आज मै जांच लेता हूँ" मैंने कहा,

"जैसी आज्ञा गुरु जी आपकी" उसने कहा,

इसके बाद वे दोनों विदा लेके चले गए, मैंने शर्मा जी को वहाँ आने के लिए फोन कर दिया, वो १ घंटे में मेरे पास पहुंचने वाले थे.......

एक घंटे बाद शर्मा जी मेरे पास आ गए! मैंने उनको सारी बातों से अवगत करा दिया, शर्मा जी भी तैयार हो के आये थे, मेरा उनसे फ़ोन पर ये कहना की एक घंटे में पहुँच जाओ का अर्थ वो जानते हैं! वो सामान ले आये थे, मै वहाँ मथुरा में देखना चाहता था की मसला क्या है वहाँ!

मैं रात्रि समय अपनी अलख में बैठा! और अपना एक कारिन्दा हाज़िर किया, कारिन्दा हाज़िर हुआ, अपने भोग लिए और मेरे बताये स्थान के लिए रवाना हो गया!


   
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श्रीशः उपदंडक
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करीब आधे घंटे के बाद कारिन्दा हाज़िर हुआ! उसने बताया की घर खाली पड़ा है, वहाँ कोई भी नहीं है!

इसका अर्थ ये थे की वहाँ अभी कोई प्रेतात्मा नहीं है! कमाल था! मैंने क्रिया समाप्त की और वहाँ से उठ गया! शर्मा जी से कहा की वो सुबह वहाँ चलने के लिए तैयार हो जाएं। और मैंने उनको कारिंदे से हुए बात-चीत बता दी,

अगले दिन मैं संजय को खबर करवा दी की हम दिल्ली से निकल रहे हैं और नियत समय पर वो हमको वहीं मिले,

हम मथुरा से थोडा सा आगे पहुंचे थे, यहीं का पता था ये, हम आगे बढे तो संजय वहाँ मोड़ पर खड़ा मिला, हमने उसको बिठाया और वो हमको वहाँ लेकर चल पड़ा, करीब आधे घंटे के बाद हम वहाँ उस पते पर पहुँच गए!

मैं  गाडी से नीचे उतरा, उतारते ही मुझे एक अजीब सा एहसास हुआ लगा मै कहीं पुराने समय की किसी जगह आ गया हूँ! अन्दर ऐसी शान्ति पसरी थी जैसे की मरघट में होती है, केवल वहाँ खड़े पीपल के पेड़ों पर बैठे पक्षी और पत्तों की ही आवाज़ आ रही थी! मैंने मकान को आजू-बाजू सब जगह से देखा, मकान काफी बड़ा था, करीब ७००-८00 गज में बना हुआ, मैंने ताला खुलवाया और अन्दर गया!

मैंने शर्मा जी को अपने साथ लिया और संजय से सभी कमरों की चाबियाँ, और संजय को गाड़ी में ही बैठे रहने को कह दिया, कमरों में से सामान हटा दिया गया था, क्यूंकि संजय ने कहीं और मकान ले लिए था, और यहाँ जो मुसीबत थी उसके कारण!

मैंने तभी कलुष-मंत्र पढ़ा और अपने और शर्मा जी के नेत्रों पर अभिमन्त्रण किया! और आँखें खोल दी! अब हम अन्दर चले, अन्दर आते ही मैंने वहाँ एक छोटे लड़के को ज़मीन पर बैठे हुए देखा, वो पीठ हमारी ओर किये, जैसे ज़मीन पर कुछ लिख रहा हो, ऐसे बैठा था, हम आगे बढे, हमारे क़दमों की आहट हुई, उसका ध्यान बंटा, उसने सर पीछे मोड़ के हमको देखा और वो उठ के खड़ा हो गया!

"क्या नाम है तेरा?" मैंने पूछा,

"रवि" उसने बताया,

तभी बारामदे में कोई और भी आया, एक जवान लड़का! वो भी इस लड़के के साथ खड़ा हो गया! मैंने पूछा,

"तू कौन है?"

"अमित" उसने कहा,

"कितने हो यहाँ तुम?" मैंने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"हम ग्यारह हैं यहाँ" उसने जवाब दिया,

"यहाँ कब से हो तुम?" मैंने पूछा,

"हम तो यहीं पर हैं शुरू से" उसने कहा,

"नहीं, यहाँ कोई और रहता है, ये मकान तुम्हारा नहीं है" मैंने कहा,

"ये मकान हमारा ही है" उसने गुस्से से कहा,

"नहीं, ये मकान संजय का है, तुम लोगों ने कब्ज़ा किया है इस पर!" मैंने कहा,

"नहीं, बल्कि उसने कब्ज़ा किया है हमारे मकान पर!" उसने कहा,

"कौन सा मकान? ये वाला?" मैंने पूछा,

"हाँ, ये वाला ही" उसने कहा,

यहाँ कोई कहानी छिपी थी अवश्य और मुझे संजय ने ये बताया नहीं था खैर, मैंने इस लड़के से कहा,"सुन, मैं दुबारा आऊंगा यहाँ, सबको बता देना बाबा आया था यहाँ"

इतना कह के मै वहाँ से शर्मा जी के साथ बाहर आ गया!

मै और शर्मा जी बाहर आ गए, और सीधे गाडी में बैठे, चाबियाँ संजय को दी मैंने संजय से पूछा," संजय, ये मकान तुमने कब लिया?"

"जी कोई ९ साल हुए हैं" उसने कहा,

"अच्छा, किससे लिया था?" मैंने पूछा,

"एक जानकार थे अब स्वर्गवासी हो गए हैं, उन्ही की रिश्तेदारी में से किसी का था ये मकान" उसने बताया,

अब मैंने अन्दर घर में हुई बातें संजय को बतायीं, संजय का माथा ठनका! बोला, "गुरु जी वो कहते हैं की वो यहाँ शुरू से रह रहे हैं?"

"हाँ, यही बताया उन्होंने," मैंने कहा,

"हो सकता है गुरु जी, मुझे भी संदेह है, क्यूंकि आज से कोई साल भर पहले मैंने अपने मकान के पिछले हिस्से को बनवाया है, वहाँ पहले एक पुराना सा घर बना था, टूटा फूटा, वहाँ हम अक्सर नहीं जाया करते थे, वो हमको गिराना पड़ा था, अब मैंने वहाँ पर दो तीन कमरे बना दिए हैं"

"अच्छा, हाँ ये वजह हो सकती है, क्यूंकि तुमने उनका घर तोडा, तो वो यहाँ चले आये!" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"लेकिन वो तो एक साल पहले की बात है? यहाँ वो हमे एक महीने पहले नज़र आये, ऐसा क्यूँ?" संजय ने पूछा,

"बताता हूँ, ये जो भटकती हुई प्रेतात्माएं होती हैं, इनको दिन, वर्ष, समय, रात आदि नहीं पता होता! इनको केवल अपना वो ही समय याद रहता है जब तक वो जीवित थे, वो उसी से जुड़े रहते हैं, यहाँ भी ऐसा हुआ है, घर टूटा, बनने में समय लगा, इस बीच वो यहाँ नहीं होंगे, इसीलिए भटकती-आत्माएं कहा जाता है इनको, कभी यहाँ कभी कहाँ, और ये तो ग्यारह है, मुझे असामयिक मृत्यु के शिकार लगते हैं सब के सब ये यहाँ कभी-कभार आते हैं, लेकिन आते पक्का हैं! और ऐसा ही है, मेरे कारिंदे को भी ये घर खाली मिला था!" मैंने बताया

"अच्छा गुरु जी, मै समझ गया!" संजय ने कहा,

"अब मुझे इनसे बात करनी होगी दुबारा असलियत जानने के लिए, आप एक काम कीजिये, हमको एक ऐसी जगह ठहराइए जहां मै 'काम' कर सकूँ अपना, क्रियादि" मैंने कहा,

"ठीक है, मै आपको ऐसी जगह ही ठहराता हूँ" उसने कहा और हम वहाँ से निकल पड़े,

वो हमको एक दूर-दराज के क्षेत्र में ले गया, ये उसके खेत थे, वहाँ उसके भाई के और उसके खेत थे, पांच छह कमरे बने थे वहाँ, आराम की जगह थी, एकदम नितांत! उसने हमको एक कमरे में ठहरा दिया, और फिर मैंने शर्मा जी को थोडा आवश्यक सामान लाने के लिए संजय के साथ भेज दिया!

मै वहीं पलंग पर लेट गया और आगे की योजना पर क्या करना है, इसकी रण-नीति बनाने लगा!

आधे घंटे बाद शर्मा जी सामान लेकर आ गए! संजय खाना आदि भी ले आया था, मैंने संजय को कल सुबह आने के लिए कह दिया, संजय चला गया, शर्मा जी बोले,"क्या मामला हैं ये गुरु जी? कुछ समझ में नहीं आ रहा है!"

"हाँ शर्मा जी, एक आद हो तो समझा भी जाए, यहाँ तो ग्यारह हैं!" मैंने कहा और खाना, खाना शुरू किया, शर्मा जी ने मदिरा भी निकाल ली थी, मैंने वहाँ मसान-भोग दिया और उस कमरे में फिर बाद में एक चौकोर स्थान को साफ़ किया! वहाँ चारों कोने पर लोहे की कीलें गाड़ दी! फिर वहाँ अपने बाएं हाथ में एक गड्ढा कर के अलख की जगह बना दी! शेष सामान वहीँ रख दिया!

"ठीक है शर्मा जी, अब देखते हैं की ये कहानी है क्या!" मैंने कहा,

"ठीक है गुरु जी" वे बोले,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"कल जब हम वहाँ जायेंगे तो उनसे बातें करेंगे, हम ये जानेंगे की वो चाहते क्या हैं!" मैंने कहा,

"हाँ, कुछ पता तो चले" वे बोले और मेरा मदिरा का गिलास आगे मेरी तरफ बढ़ा दिया!

"शर्मा जी, एक काम करना आप, संजय को अन्दर नहीं लाना न ही आने देना, समझे क्यूँ?" मैंने कहा,

"हाँ मै जानता हूँ, उसको खतरा है जान का" वे बोले

"हाँ, हम कुछ करेंगे तो वो भड़केंगे और हमारा नुक्सान नहीं लेकिन संजय का नुक्सान कर सकते हैं।" मैंने कहा,

मैं रात्रि समय फिर से क्रिया में बैठा! अलख उठायी, भोग दिया और ऐन्द्रिक-मंत्र जाप किया! अभय-वरण का जाप किया!

सौन्खियिकी-मंत्र जाप किया और अपने को सशक्त किया! समस्त तंत्राभूषण का पूजन किया और उनको अभिमंत्रित किया! बाल-कपाल और पूर्ण-कपाल को रक्त और मदिरा भोग दिया! फिर दोनों कपालो को अपने त्रिशूल के फलों पर टांग दिया! क्रन्दिका-वार्तालाप किया उनसे! फिर उनको मदिरा में नहलाया!

क्रिया समाप्त करने में मुझे ३ घंटे लग गए! अब मैंने शर्मा जी को बुलाया और उनसे कहा, "ये सारा सामान इत्यादि आप बैग में रख ले, लाल पोटली बाहर ही छोड़ दें, मै तब तक स्नान करके आता हूँ"

"जी गुरु जी" उन्होंने कहा और सामान भरने लग गए, मै स्नान करने चला गया!

सुबह संजय आ गया! मैंने संजय को गाड़ी में बैठने को कहा, फिर मैंने और शर्मा जी ने अपने-अपने तंत्राभूषण धारण कर लिए! मै महा-सिद्ध मंत्र पढ़कर वहाँ से रवाना होने के लिए तैयार हो गया और हम रवाना हो गए।

हम संजय के घर पहुंचे, संजय को सख्ती से ताकीद की कि वो गाडी से बाहर न आये जब तक कि हम न कहें! और मै शर्मा जी को लेकर अन्दर ताला खोलकर ले गया! अन्दर पहुँचते ही मैंने कलुष-मंत्र का जाप किया और उससे अपने और शर्मा जी के नेत्रों को अभिमंत्रित किया! अमरूद के पेड़ के पास, मैंने ४ औरतों को देखा, चारों हमे ही देख रही थीं! चारों ने साड़ियाँ पहन रखी थी, तभी हमारे पास से कल वाला लड़का गुजरा और फिर एक एक करके सभी वहाँ आ गए, वहाँ वे लोग ग्यारह ही

थे!

उनमे से एक मर्द हमारी ओर बढ़ा, हाथ में एक डंडा उठाये, हमारे पास तक आया और थोडा पहले ही रुक गया! फिर बोला, "कौन हो तुम? तुम पहले भी आये थे यहाँ?"


   
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श्रीशः उपदंडक
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"हम तो बता ही देंगे कि हम हैं कौन! पहले तू बता तू कौन है?" मैंने कहा,

"रमण सिंह नाम है मेरा" उसने कहा,

"अच्छा, और वो कौन हैं?" मैंने पूछा,

"एक मेरी बीवी है और दो मेरी बहन हैं" उसने कहा,

"और वो लड़का कौन है?" मैंने पूछा,

"वो छोटा मेरा बेटा है और वो मेरा छोटा भाई" उसने कहा,

"तो तुम लोग यहाँ से जाते क्यूँ नहीं? क्यूँ किसी को तंग करते हो?" मैंने कहा,

"एक तो हमारी जगह छीन ली, और हमे कह रहे हो?" उसने गुस्सा किया,

"कौन सी तुम्हारी ज़मीन? ये ज़मीन तो संजय ने, यहाँ के मकान-मालिक ने खरीदी है ९ साल पहले?" मैंने कहा,

"नहीं, ये क्या कह रहा है? दिमाग खराब है तेरा? ये सारी ज़मीन मेरी है!" उसने कहा,

"पहले कभी होगी तेरी, अब नहीं है, समझा?" मैंने कहा,

"सर फाड़ दूंगा तेरा, तू जानता नहीं है मुझे समझा?" उसने कहा, "चल पीछे हो यहाँ से, तुझे मै बताता हूँ कि मै हूँ कौन और तू कौन है, एक ज़रा!" मैंने कहा

और तभी अपने दो खबीस वहाँ हाज़िर किये! ख़बीसों को देखकर वो पीछे भागा! और उन औरतों के साथ खड़ा हो गया! सभी एक दूसरे से चिपक गए! अब मै आगे बढ़ा, वो हमको घूर रहे थे, ऐसे जैसे कि न जाने आगे क्या होने वाला है!

"रमण सिंह! क्या हुआ?" मैंने हंस के कहा,

"तू जा यहाँ से, इनको भगा, भगा इनको" उसने कहा,

"ये नहीं भागेंगे बल्कि तुम भागोगे यहाँ से, समझा?"

मेरे खबीस आगे बढे, वो चिल्लाए! गुहार लगाई! मैंने ख़बीसों को वहीं रोक दिया!

मैंने रमण सिंह के साथ खड़ी सभी प्रेतात्माओं को देखा, मैंने रमण सिंह से कहा, "बहुत भटक लिए तुम लोग घर जाना चाहते हो?"

"घर? ये है हमारा घर" उसने घबरा के बोला,

"नहीं, अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी तो न जाने कब तक ऐसे ही घूमते रहोगे सारे लोग, बोलो क्या कहते हो?" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"हम यहाँ रहते हैं" वो लड़का बोला,

मै जानता था, सच्चाई से ये अनभिज्ञ हैं, और ये अनभिज्ञता इनको न जाने कब तक यहीं रोके रखेगी! अत: मुझे कोई ठोस निर्णय लेना था, मैंने मंत्र पढ़ा कर उनको जड़ किया, और अपने ख़बीसों से कह कर उन सभी को कैद करवा लिया! मेरे पास

और कोई दूसरा विकल्प था ही नहीं! अब रमण सिंह को मेरा सामर्थ्य भी पता चल जाएगा और कैद कैसी होती है ये भी पता चलेगा!

सारी प्रेतात्माएं कैद हो चुकी थीं, उनमे विरोध-भावना नहीं दिखाई दी थी, इसलिए मैंने वहाँ उस स्थान को मन्त्रों द्वारा कीलित किया और अब बाहर आ गया, मैंने शर्मा जी से संजय को बताने के लिए कह दिया, शर्मा जी ने सारी बात संजय को बता दी!

सब कुछ ठीक हो चुका था, लेकिन ये ग्यारह लोग थे कौन? संजय को पता नहीं था, तो हमने उस जगह का इतिहास खंगालना शुरू किया, वहीं के एक बुजुर्ग व्यक्ति ने बताया की एक व्यक्ति था यहाँ रमण सिंह के नाम का, यहाँ अपने परिवार के साथ रहा करता था, कोई ९-१० साल पहले, और उसकी मृत्यु एक सड़क हादसे में हो गयी थी पूरे परिवार सहित, जब वो कुल्लु-मनाली गया था बस लेकर, यहाँ एक आद मौत और हुई थी!

तो ये था रहस्य! मै उसी दिन यमुना नदी के तट पहुंचा, एक पूजा की और ख़बीसों से एक एक प्रेतात्मा छुडवाई और उसका मुक्ति-कर्म कर दिया! वो ग्यारह प्रेतात्माएं अब मुक्त हो चुकी थीं

संजय का घर शुद्ध हो चुका था वो तीसरे दिन अपने घर वापिस आ गया! मुक्ति-कर्म के ग्यारह दिन बाद उसने मेरे कहे अनुसार एक बड़ा भंडारा करवाया!

उन्ही ग्यारह की शान्ति के लिए!

------------------------------------------साधुवाद!---------------------------------------------


   
rajeshaditya reacted
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