घटनाएं लिखते-लिखते मुझे एक अत्यंत दिलचस्प घटना का कास्मरण हो आया, तो मैंने सोचा इसी घटना का अब विवरणकिया जाए! ये वर्ष२०११ फरवरी कीघटना है, मौसम मेंअभी भी ठंड कीखुमारी थी हालांकि फरवरी तक दिल्ली के मौसम में, गर्मीअपनी दस्तक देने लगती हैं लेकिन सुबह-शाम ठंड भी अपने मौजदू होने का एहसास देती रहती हैं वो दिन २२ फरवरी का था, मैं करीब दो हफ्तेसे अपने क्रिया-स्थल पर ही विश्राम कर रहा था, दिन के कोई ४ बजे होंगे, मैंऔर शर्माजी किसी साधना के विषय मेंवार्तालाप कर रहे थे, तभी मेरे एक परिचित का नॉएडा से फ़ोन आया, वो हाल-चाल पछू ने के बाद फ़ौरन ही विषय बदलते हुये, एक समस्या के बारे मेंबताने लगे, समस्या बड़ी अजीबोगरीब सी लग रही थी, और असल बात ये है कि मुझे फ़ोन पे उनकीआधी बात समझ मेआई और आधी नहीं, खरै मैंने उनकीबात सुनी और जो समझ आया वो ये था, उनके किसी जानकार के बेटे कीशादी हुई थी अभी कोई ३ महीने पहले और घर मेंतब से समस्या हो रही है, उनके किसी जानकार का लड़का काफीबीमार हो गया है और हफ्ते मेंएक बार तो अवश्य ही अस्पताल जाना पड़ता है, इस से पहलेउसके साथ कभी ऐसा नहींहुआ,
बात तो सही थी, लेकिन होता क्या हैं लोग आजकल, अगर एक डॉक्टर कीएक दवा न लगे तो दूसरे को और दूसरे कीभी न लगे तो तीसरे को दिखाते हैं!और अगर तीसरे कीभी न लगे तो फिर कोई ऊपरी चक्कर है, ऐसा समझने लगते हैं!
लेकिन मेरे ये परिचित, भारत सरकार मेंएक इंजीनियर के पद पे थे, और वैज्ञानिक दृष्टि के व्यक्ति थे, मुझे उनके तथ्योंकी जांच करनी थी और तथ्य जुटाने के लिए उनसे सम्मुख बात करना आवश्यक था...........
मैंने तब रात के समय अपने इन परिचित को फ़ोन किया, मैंने अब उनसे सारी समस्या के बारे मेंकुछ पूछा, और ये कहा किआप अगले दिन थोडा समय निकाल कर एक बार मेरे से मिल लेथोबिढ़या रहेगा, उन्होंने अगले दिन ४ बजे आने आने को कहा, मुझे ४ बजे कोई काम नहींथा इिसलए मैंने उनको हाँ कह दिया,
और अगले दिन ४ बजे वो आ गए, नमस्कार, आदि से निवतृहुये तो मैंने उनसे उनके परिचित के विषय मेंपूछा, उन्होंनेबताना शुरू किया,
"जिनकेपुत्रके बारे मेंमैंने कल आपको फ़ोन किया था, वो दरअसल मेरे साडूहैं,सरकारी नौकरी से रिटायर्ड हैं और नॉएडामेंही रहते हैं, कोई ३ महीने पहले उन्होंने अपने बड़े पुत्रका विवाहदिल्ली मेंरहने वाले एक सुसंस्कृत परिवार में किया,लड़कीअच्छी, कुशल और संस्कारयुक्तहैं जिस लड़के से इसका ब्याहहुआहै उसका नाम मोहित और लड़कीका नामअक्षिता हैं अक्षिता अपने घर मेंदूसरे नंबर पे है, उस से बड़ी एक बहिनहैजिसका कीब्याह ४ साल पहले जयपुर मेंहुआ था,वोवहीं रहती हैं लेकिन शादी के एक हफ्ते के बाद ही मोहित ने अपना पेट खराब रहने कीबात कही, वो अपनी बीवी कोलेकेशिमला गया था, वहाँ से वापिस आया तो पेट खराब हो गया, दर्दहुआ बहुतज्यादा तो डॉक्टर को दिखाया, डॉक्टर ने विषाक्तभोजन खाने कीवजह से ऐसा हुआ, ऐसा कहा, और २ दिनोंके लिए नर्सिंग होम मेंएडिमट कर दिया, डॉक्टर ने फ़ूड-पोइज़िनंग कीआशंका जताई थी, वहाँ वो ३ दिन एडिमट रहा और अगले दिन अपने घर वापिस आ गया, लेकिन अगले ही हफ्ते उसकीतिबयत फिर से रात मेंअचानक खराब हो गयी, उलटी और दस्त के कारण वोपस्त हो गया था, उसको फिर से दाखिल किया गया, ४ दिनोंके बाद वो फिर से वापिस घर आ गया, हाँ, बीच में२०-२२ दिनोंके लिए वो एक दम ठीक रहा,लेकिन एक दिन घर मेंही उसको चक्कर आया और नीचे गिर पड़ा, उसको फिर से अस्पताल ले जाना पड़ा, इस बार डॉक्टर्सने गहन-जांच कीऔर कहा कीउसके दिमाग मेंरक्त-स्राव हो रहा है, लेकिन एक बात समझ से परे है गुरुजी, शादी से पहले,वो लड़का कभी भी बीमार नहींपड़ा, अच्छास्पोर्ट्समेन था वो,हाँ बुखार और जुकाम कीबात तो मैंनहींकर रहा, लेकिन वोकभी इतना बीमार नहींपड़ा, मेरे साडूऔर साली साहिबा को संदेह है कीउस पर कोई तंत्र प्रयोग किया गया है, आप क्याकहते हैंगुरुजी? मैंने उनको आपके बारे मेंबताया तो उन्होंने ही आपसे बात करने कीसलाह दी, अब आप बताइये कीअसली कहानी है क्या?"
"अब लड़का कहाँ है? मैंने पूछा,
"वो अभी घर पर ही है, उसका इलाज चल रहा है, लेकिन असर नहीं दिख रहा, कई बार तो पेट और सर पकड़कर बुरी तरह से दर्दमेंतड़पता है"
मुझे भी कुछ समझ मेंनहींआ रहा था, कि जो लड़का शादी से पहले ठीक था, शादी के बाद ऐसा क्या हो गया?शिमला मेंभीखाना अगर खाया होगा तो अक्षिता ने भी खाया होगा, उसे ऐसा क्यूँ नहींहुआ? बात समझ से परे थी, लेकिन इसका हलढूंढना जरूरी था..........
मैंने अपने इन परिचित को कहा कि मैंकल आपके निवास-स्थान पर ७ बजे तक आ जाऊँगा, वो भी अपने निवास-स्थान परही मुझे मिलेंऔर हो सके तो अपने साडूको भी वहींबुला लेंमुझे कुछ बातेंकरनी थीउनसे मेरे परिचित बोले कि ठीक है मैंऔर मेरे साडूआपको वहीं मिलेंगे, कार्यक्रमनिर्धारितहुआ और कल ७ बजे का समय निश्चित हो गया,
अगले दिन शर्माजी मेरे पास ६ बजे शाम को पहुँच गए, और हम दोनोंवहाँ से नॉएडा के लिए चल पड़े, ७ बजे से थोडाअधिक समय हो गया था हमको वहां पहुँचते-पहुँचते, लेकिन हम वहाँ पहुँच गए, घंटी बजाई तो मेरे परिचित बाहर आये और सत्कार के साथ हमेअंदर ले गए, वहां हमे उनके साडूऔर उनकीपत्नी भी वहींमिली, चाय वगैरह आदि के बाद मैंने उनके साडूसे बातेंकी, उनका कहना भी वही था, जो कि मेरे परिचित ने कहा था, हाँ उनकीपत्नी ने एक नयी बात बतायी, उन्होंनेबताया कि जब वो अपनी पत्नी के साथ रात मेंसोता है तो उसकीतिबयत खराब होने लगती हैं लेकिन अगर वोदूर रहता हैतो उसको कोई परेशानी नहींहोती, मतलब कि तीक्ष्ण-वेदना का एहसास नहींहोता, ये बात उनके बेटे ने उनको स्वयं हीबतायी थी, ये बात अजीब तो थी लेकिन मेरे मन मेंएक संदेह घर कर गया, मैंने साडू कि पत्नी से पूछा," क्या आपकीबहू व्यवहार मेंआपके और आपके पति के लिए सही है?"
"हाँ हाँ,बिलकुल सही है,बिलकुल सगी बेटी कि तरह से ध्यान रखती है हमारा'' वो बोली,इसकीतस्दीक उनके पति ने भी की,
लेकिन इस से मेरा संदेह और गहरा हो गया था, मैंने उनसे एक बात और पूछी, "बुरा न मानेतो मैंआपसे कुछ पछू सकता हूँ?
"हाँ, हाँ बेझिझकपूछिये आप!" उनके साडूने कहा,
"क्या आपने लड़कीके परिवार के बारे मेंऔर खासकर अक्षिता के बारे मेंशादी से पहले पूरी जानकारी जुटाई थी? मैंने पूछा,
"जी जानकारी, देखिये ऐसा है कि इस लड़कीके पिता मेरे दफ्तर मेंही कार्यरत थे, मेरा उनसे स्नेह था, अच्छीमित्रता थी, औरऐसे ही मैंकई बार उनके घर पर भी जाया करता था, और वो भी मेरे घर आया करते थे, उनके घर पे जाते समय उनकीबेटीहमारे सामने आया करती थी, लड़कीसुंदर, पढ़ी-लिखी, ज्ञानवान और सुसंस्कृत थी तो मैंने अपने मित्रसे इस लड़कीकारिश्ता अपने लड़के के लिए मांग लिया, उन्हेंमंजूर था तो इसीलिए शादी हो गयी"
मैंने बिना कोई प्रतिक्रिया दे अपनी गार्डन हाँ में हिलाई और फिर बोला,
"क्यामैंआपकीबहूसे मिल सकता हूँ?’’
"क्यूँनहीं,आप अभी चलिये" वो बोले,
"अभी तो नहीं, हाँ मैं परसोंआपके पास ८ बजे तक पहुँचजाऊँगा, आप मिलेंगे वहाँ? मैंने सवाल किया,
"जरूरमिलूँगा, और आपकीप्रतीक्षा रहेगी"
इतना कहने के बाद थोड़ी देर मेंही मैंऔर शर्माजी, वहाँ से निकल पड़े..
वापसी मेंशर्माजी गाडी चला रहे थे और मेंउनके बगल वाली सीट पेबैठा था, हवा मेंठंडक थी तो मैंने अपनी तरफ वाली खिड़कीबंद कर दी, शर्माजी बड़े ध्यान से कही सोचविचारमेंमग्न थे, मैंने उनकीतरफ देखा तो भी वो सामने ही देखतेरहे, हाँ उनके चश्मेंपे सामने से आती हुईगाड़ियोंकीचमक जरूर नज़र आ रही थी, आखिर मैंने ही चुप्पी तोड़ी, मैंने कहा,"शर्माजी, आपका क्या कहना है इस बारे में?
उन्होंने बिना मेरी तरफ देखे बोला, " गुरुजी, कुछ बातेंहैं,जो समझ मेंनहींआ रही, मैं उन्हीं के सिरे जोड़ने कीकोशिश कररहा था"
"कौन सी बातें?" मैंने कहा,
वो बोले, "पहली तो ये कीमोहितअक्षिता को साथ लेकेशिमला गया था, जब साथ लेके गया, रहा, तो खाना भी साथ ही साथखाया होगा, तो ये फ़ूड-पोइज़िनंगमोहित को ही क्यूँहुई? अक्षिता को नहीं?"
"और दूसरी?" मैंने उत्सुकता से पूछा!
"दूसरीये ,कीवो लड़का शादी के पहले फिट-एंड फाइन था, तो शादी के महज़ ३ महीनो के भीतर ऐसा क्या हो गया कीवोअब आधा ही रह गया?"
"और तीसरी?" मैंने फिर पूछा,
"तीसरी और सबसे बड़ी बात ये कि, मोहित ने एक बात अपनी माँ से कही कि वो जब अक्षिता के साथ सोता है तो उसकोपरेशानी ज्यादा होती हैं और जब दूर रहता है तो इतनी परेशानी नहींहोती? इसका क्यारहस्य है ये मैंनहींसमझ पा रहा!"
"आप समझ तो गए हैं" मैंने कहा!
"अगर इस कहानी मेंकोई सबसे बड़ा संदिग्ध है तो ये लड़कीअक्षिता ही है, लेकिन उस से बात कियेबिना हम किसी नतीजेपे नहींपहुँच सकते, उस से मिलना बेहद ज़रूरी है मैंने उनसे कहा,
इतना कह कर शर्माजी ने अपनी गाडी एक जगह रोकी, और एक रेस्तरां कि ओर बढ़ गए, थोड़ी देर मेंआये तो हाथ मेंएकपैकेट था, और २-३ दोने, उन्होंने गाडी मेंघुस कर वो पैकेट खोला और खाने का सामान बाहर निकाला, ये निरामिष-भोजनथा, अर्थाततांत्रिक-भोजन, आप समझ ही गए होंगे! उन्होंने गाडी मेंअपनी सीट के पीछे से १ बोतल शराब निकाली और दो गिलास! हमने बड़े-बड़े २-२ पेगवहीं खींच लिए! और फिर आगे बढ़ चले..........
करीब १० बजे मैं अपने विश्राम-स्थल पर शर्माजी के साथ पहुंचा, आते ही अलख-भोग दिया और अपने कमरे मेंआ गया, शर्माजी साथ ही थे, हम आराम से बैठे और शराब के मजे लेते रहे, रहस्य इतना अजीब था कि हम डेढ़ बोतल पी गए लेकिन रहस्य के रोमांच ने केवल सुरूर ही सुरूर किया था, नशा नहीं! आज शर्माजी यहाँरुकने वाले थे, और हम दोनोंदेर रात तक इसीविषय पर बातेंकरते रहे! करीब २ बजे हम सोने चले गए!
सुबह यही कोई १० बजे शर्माजी अपने किसी कार्यसे चले गए और चूँकि उनको शाम को आना था, तो मैंने उनसे नहींपूछाकि उनको क्या और कहाँ काम हैं मैं उनके जाने के बाद अपने अन्यकार्योंमेंलग गया, काफी व्यस्तता भरा जीवन होता है मनुष्य का, जीवन भर व्यस्त!
शाम को ६ बजे शर्माजी आ गए थे, उनके आते ही मैं भी गाडी मेंबैठा और नॉएडा कि तरफ रवाना हो गए, एक सवा घंटे मेंहमअपने परिचित के यहाँ पहुंचे, उनको अपने साथ लिया और उनके साडू के घर कि तरफ चल पड़े, आधे घंटे मेंहम उनके यहाँपहुँच गए थे, वो हमको बाहर ही मिल गए, अभिवादन हुआ, और वो हमको अपने घर के अंदर ले गए, अपने ड्राइंग-रूम में बिठाया, ड्राइंग-रूमअच्छा-ख़ासा सजा था, धार्मिक-पेंटिंग्सलगी हुईथींवहाँ! देखने से पता चलता था कि ये किसी धार्मिक-व्यक्ति का ही आवास हैं थोड़ी ही देर मेंउनकीपत्नी भी वहाँ आ गयी, नमस्कार किया और वहाँ बठैगयी, इतने मेंही एकलड़कीचाय लेके आ गयी, पता चला ये साडू साहब कि छोटी लड़कीहैं चाय के बाद मैंने मोहित कि माँ से अक्षिता को बुलानेके लिया कहा, उन्होंने २-३ आवाजें दी लेकिन अक्षिता नहींआई, तब वो खुद उठीऔर उसको लेने चली गयी, करीब ६-७मिनट के बाद वोवापिस आ गयीऔर बोली कि अक्षिता शर्मारही हैं मैंने कहा कि कोई बात नहींहम पहली बार जो आये है इसीलिए शर्मारही होगी शायद, लेकिन अक्षिता के न मिलने के इस कारण ने मेरे मन मेंजो संदेह था पुख्ता किया औरउसको और बल मिल गया, शर्माजी ने एक रहस्यमयीदृष्टिसे मुझे देखा और मैंने व्यंग्यात्मक रूप से उनका आँखोंही आँखों मेंसमर्थन किया.
वहाँ थोडा सा माहौल गंभीर हो गया, मेरे परिचित और उनके साढ़ूसाहब के चेहरे से ये भाव देखा जा सकता था, लेकिन मैंनेविषय बदला और उनके साढ़ूसे कहा, "कोई बात नहीं, अक्षिता से हम बाद मेंभी मिल लेंगे, आप मुझे एक बार बेटे से मिलवा दीजिये"
वोफ़ौरन ही उठे और बोले, "जी हाँ, आइये, इस तरफ"
हम सभी साढूसाहब के पीछे चल पड़े, वोआखिरी मेंबने एक कमरे कि तरफ इशारा करते हुये बोले, "ये है, मोहित का कमरा"
अभी हम, कमरे मेंघुसने ही वाले थे कि अक्षिता तेज़ी से कमरे से बाहर निकली और इस तेज़ी मेंवो शर्माजी के कंधे से टकरागयी, लेकिन न तो उसने 'सॉरी' ही कहा और न ही 'नमस्ते' चलो हमसे न सही तो कम से कम मेरे परिचित भी वही थे, उनकेससुर भी वहीं थे, उनसे तो कर ही सकती थी! ये बड़ी अप्रत्याशित सी बात थी, लेकिन मैंने ध्यान न देकर, अंदर जाना ही उचित समझा, हम अंदर गए, अंदरमोहित, अपनी कमर के पीछे एक तकिया लगाए बैठा था, उसने नमस्कार किया अपनीगार्डनहिला के , हमने भी वैसे ही नमस्कार किया, मैंने थोडा पास जाकेमोहित को देखा, मुझे देखते ही सर मेंझटका लगा! येबेचारा तो किसी मारण-विद्या का शिकारहुआ था!! ये मारण-तंत्रके पूर्वोत्तर समयाविध के बीच झूल रहा था! लेकिनइसको कौन मारना चाहेगा? मैं थोडा उसके कार्यऔर मित्र-वर्गके बारे मेंऔर अधिक जानना चाहता था, मैंने कमरे मेंआस -पास देखा तो, हाथ से बनी एक अनगढ़ सी कोई ६ इंच के आकार वाली एक काली मूर्तिपे मेरी निगाह रुक गयी, मैंने उसकोउठा के देखा, इस मूर्तिका पेट अंदर से खाली था, मैं अब समझ गया था! मैं थोड़ी देर बाद मोहित को जल्दी ठीक हो जाने कीबात कह कर बाहर वापिस आ गया, जैसे ही हम बाहर निकले, अक्षिता झट से अंदर घुस गयी! यानि कि वो दरवाज़े के बाहरखड़े हो कर हमारी बातेंसुन रही थी! अब मेरा संदेह और मज़बतू हो गया! मैं फिर से ड्राइंग-रूम मेंआकेबठै गया, मैंने साढूसाहब कि पत्नी से एक पेन और एक कागज़ लाने को कहा, जल्दी ही मुझे दोनों मिल गए, मैंने कागज़ पर एक ज़ीका काढ़ाऔर एक यंत्रबना दिया, ये यंत्रमैंने साढूसाहब कि पत्नी को दिया और ये कहा कि ये कागज़ आप मोहित के तकिये मेंतब रखेंजब अक्षिता वहां न हो, उन्होंने धीरे से अपनी गर्दन हिलाई, और कागज़ अपने हाथ मेंरख लिया,अब मेरा वहां ठहरने का कोई औचित्य शेष नहींथा, हमने उनसे विदा ली और वापिस चल दिए,
वापसी मेंमेरे परिचित ने मुझसे पूछा, "कोई घबराने वाली बात तो नहींहै न गुरुजी?"
"नहींअब नहींहैं लेकिन यदि आपने मुझसे संपर्कन किया होता तो अवश्य ही होती, लेकिन अभी मैंआपको नहींबतासकता"
"ठीक हैआप जैसा उचित समझे वैसा करें,आपको पूरा सहयोग प्राप्तहोगा, हमने उनको उनके घर छोड़ा, उन्होंने अंदर आनेकि थोड़ी ज़िद सी की ,लेकिन समय न होने के कारण उनसे विदा ली,
और मैंऔर शर्माजी वापस मुड चले अपने स्थान को ओर.........
मैंऔर शर्माजी रात को कोई १० बजे वापिस अपने स्थान पर आ गए, हाथ-मुंह धो कर पहले अलख-भोग दिया, और एकबोतल और निकाल ली, मैंने शर्माजी को आज यहींरोकना था अपने पास, काफीबातों पर विचार करना था, मैंने शर्माजी सेपूछा," शर्माजी, एक बात बताईये, कोई नवविवाहिता अपने पति को क्यूँ मरवाना चाहेगी?
वो थोड़ी देर चुप रहे और फिर बोले,"मैंने काफीसोचा-विचार, और मेरी समझ मेंतो ये आ रहा है कि हमेंअक्षिता के बारे मेंकुछऔर मालमू करना चाहिए, लेकिन अक्षिता हमसे बात करने के लिए तैयारही नहींहै"
"हाँ ये तो है मैंने अपना पेगख़तम करते हुये कहा,
"शर्माजी, मैंने मोहित के कमरे मेंएक अनगढ़ खाली पेट वाली काले रंग से पुती जो मूर्ति देखी हैवोउत्तर-पश्चिमी राजस्थानी मारण विद्या मेंप्रयोग होती है,हिमाचल मेंभी इसका प्रयोग होता है, अगर ऐसा कुछ है तो हमको अक्षिता को राजस्थान सेजोड़ना होगा!"
और ये कहते ही मैं जैसे उछल सा पड़ा! मैंने कहा, "शर्माजी, आपको याद होगा मेरे परिचित के साढूने बताया था कि अक्षिताकि बड़ी बहिन जयपुर मेंब्याही हैं याद हैआपको?"
"हाँ! हाँ, बताया था!!" वो हैरत से बोले!
अब कड़ियाँ जुड़ने लगी थी, अब तो अक्षिता के बारे मेंअधिक जानकारी जुटाने कि आवश्यकता थी, एक सिरा तो हमारे हाथमेंआ गया था, लेकिन दूसरा सिरा कहाँ बंधा है ये नहींपता चल रहा था!
"चलिये शर्माजी, ये भी पता चल जाएगा!" मैंने हंसके कहा!
और फिर देर रात तक हम बातेंकरते रहे हो खा-पी के सो गए..
अगले दिन मैंने अपने परिचित को फ़ोन किया, और कहा कि आप एक बार अपने साढूको मेरे यहाँ लेकेआईये, कुछ अत्यंत आवश्यकबातेंकरनी है,उन्होंने कहा कीकल इतवार हैं वो दिन मेंकोई १२ बजे उनको लेते आयेंगे, अब मैंकल का इंतज़ारकरने लगा, शर्माजी अभी भी वहींथे, वो अब अपने काम से निकलने वाले थे,मैंने उनको कल के बारे मेंअवगत कराया और उनको कल दिन में१२ बजे से पहले आने को कह दिया, और फिर वो चले गए,
करीब १ बजे मेरे पास मेरे परिचित का फ़ोन आया, उन्होंने कहा कि कल हमारे जाने के बाद अक्षिता का व्यवहार बदल गयाथा, वो किसी से बात नहींकर रही थी, और आज सुबह से ही उसने अपने मैके जाने की ज़िद पकड़ ली थी, और अभी थोड़ी देरपहले ही वो अकेली ही अपने मैके चली गयी हैं अब तो मेरा संदेह यकीन मेंबदल गया! अब सारे तथ्यसे अपने परिचित औरउनके साढूसाहब को अवगत कराने मेंकोई हिचक नहींथी, मैंने फ़ोन करके शर्माजी को भी यही बता दिया!
अगले दिन वो लोग आधे घंटे पहले ही आ गए, मैंने उनको बिठाया, और कुछ बताने से पहले साढूसाहब से कुछ प्रश्न पूछने कीसोची, मैंने पूछा, "एक बात बताइए, अक्षिता ने पढाई कितनी कीह?ै "
"उसने दिल्ली यूनिवर्सिटी से बी.कॉम किया हैवो बोले,
"और कुछ?" मैंने पूछा,
"हाँ उसने एक कोर्सभी किया था होटल-मैनेजमेंटका" वो बोले,
मेरी आँखेंचमक गयी! मैंने पूछा, "कहाँ से?"
"जयपुर से" वो बोले,
"और इस बीच वो रही कहाँ?" मैंने सवाल किया,
"अपनी बड़ी बहिन के यहाँ" वो बोले,
"अच्छाअच्छा!" मैं बोला!!!!
अब मेरे मन मेंजो सवाल थे वोमूर्त रूप लेने लगे थे!!.
अब और कुछ कहने कीबात नहींबची थी, मैंने अपने संदेह साढूसाहब के सामने जाहीर कर दिए, सुनके उनके भी होश उड़गए, लेकिन मैंने अपनी बात तर्कके साथ रखी थी, थोड़े से विचलितहोके उन्होंने कहा,
"अब क्या होगा गुरुजी? मेरे बेटे को बचाओ, कैसे भी, कैसे भी?" उनके आँसू छलक आये थे, शर्माजी ने उनको दिलासा दी,
और आश्वासन दिया कीमोहित को अब कुछ नहींहोगा,
"आप अभी अपने घर मेंफ़ोन कीिजये, और अपनी पत्नी से बोलिए कीमोहित के कमरे मेंजो वोमिट्टी कीमूर्ति रखी है उसकोउठा के घर के बाहर फेंकदीजिये" मैंने साढूसाहब से कहा,
उन्होंने तभी फ़ोन किया और पता चला कीवोमूर्ति वहां कहींभी नहींहैं इस बात से साढूसाहब को अब पक्का यकीन होगया कि उनके बेटे कीइस हालत के पीछे कौन है!
वो बड़े भरी मन से बोले, "गुरुजी, मेरे बेटे को बचा लो, हमको तो कुछ पता ही नहींहै कीहो क्या रहा है, अब आपका हीसहारा है गुरुजी"
"आप चिंता न कीजिये, जो कुछ बन पड़ेगा मैं अवश्य करूंगा" मैंने उनका हाथ थाम के कहा,
थोड़ी देर और बातेंहुईंऔर वे लोग वहां से चले गए, मैंने शर्माजी से कहा, शर्माजी, आप सामग्री इत्यादि कीव्यवस्था कीजिये, मैं 'किसी' को रवाना करना चाहता हूँ, सारी हकीक़त जानने के लिए, १ घंटे के बाद उन्होंने सारीव्यवस्था कर दी,मैं क्रिया मेंबैठा, और 'किसी' को रवाना कर दिया, करीब आधे घंटे के बाद मुझे साड़ी हकीक़त मालमू हो गयी, वोहकीक़तजो सच मेंही बहुत कडवी थी, इंसानी जूनून कीएक ऐसी हकीक़त जिसमें किसी भी दूसरे इंसान की ज़िंदगी का कोई मोलनहींहोता!
आइये मैंआपको इस हकीक़त से रूबरू कराता हूँ...
अक्षिता ने होटल-मैनेजमेंटके कोर्सके लिए आवेदन किया था जयपुर में वोमंजूरहुआ, और उसको वहां दाखिला मिल गया,ठहरने कीकोई परेशानी थी नहींसो घरवालोंको कोई आपत्तिनहींहुई, रहना उसको अपनी बड़े बहिन के घर मेंही था, औरऐसा ही हुआ, समय बीता, अक्षिता राजस्थान के लड़के के संपर्कमेंआई वहाँ, वो गंगानगर का रहने वाला था, समय के साथ-साथ दोनोंमेंप्रेम हो गया, अथाह प्रेम, लेकिन अक्षिता ये प्रेमज़ाहिर न कर सकी किसी के भी साथ, वो लड़का भी अक्षिता केलिए सब-कु छ करने को तैयार था, सब-कुछ! वोअक्षिता के लिए और अक्षिता उसके लिए प्रेम मेंआकंठ डूबे थे, ऐसे ही एकबार जब अक्षिता ने अपने प्रेमी को बताया कीघरवाले उसकीशादी कीतैयारी कर रहे हैतो उसके प्रेमी को दुःख होना लाज़मीथा, उसने कहा कीअक्षिता अपने घर मेंखुलके बात करे, लेकिन अक्षिताने साफ़ मन कर दिया, वो किसी भी तरह अपने पिता कीअवमानना नहींकर सकती थी, ये उसने अपने प्रेमी को बता दिया, उसके प्रेमी ने सोच-विचार किया, और इसी तरहये दिन अक्षिता और उसके प्रेमी के लिए पशोपेश मेंबीते, अक्षिता को सगाई के लिए दिल्ली जाना पड़ा, लेकिन सगाई के बादउसको जयपुर आना पड़ा, अपने कोर्सके समाप्तहोते ही, कोर्स-सर्टिफिकेट आदि के लिए, अक्षिता से उसका प्रेमी मिला, दोनों के बीच मुलाक़ात हुई, कहते हैंकीप्रेमअँधा होता हैंऔर यही हुआ, यहाँ प्रेम मेंवोदोनोंअंधे हो चुके थे, उसका प्रेमी किसी तांत्रिक से एक मारण-विद्या के विषय में मिला और उस तांत्रिक ने उसको वोमिट्टी कीमूर्ति दी, उसके पेट में, अभिमंत्रित बीजथे बाजरे के , जो कीप्रत्येक शनिवार को एक ख़ासमात्रमें निकालने थे, जैसे ही उस मूर्तिका पेट खाली होगा,जिसके प्रयोग हेतु वोअभिमंत्रितहुई हैं वो धीरे -धीरे मृत्यु के करीब होता जाएगा, और ६ महीने मेंवोव्यक्ति मृत्यु का ग्रास बन जाएगा! येप्रपंच था अक्षिता और और उसके प्रेमी अजय का!...............
ये बात अक्षिता कभी नहींबताने वाली थी, इसीलिए वोमूर्तिवहां से ले गयी थी अपने साथ, ताकि किसी कीपकड़ मेंवो आयेनहींऔर ये ही वजह थी कीजब भी वो उसको प्रयोग नहींकरती थी मोहित सही रहता था! और जब करती थी तो उसकी तबीयत खराब हो जाती थी, पहले प्रयोग उसने शिमला में किया था!..............
मैंने दोबारा अपने परिचित, उनके साढूऔर उनकीपत्नी से बात की, मैंने उको सलाह दी कीआप एक बार अक्षिता से बात करेंखुल के, लेकिन सब प्रयास विफल हो गए, वो बात करने के लिए तैयार नहींथी और मैं मोहित को मरने देने के लिए तैयार नहींथा! २ महीने बीते, मैंने अक्षिता का प्रयोगविफल कर दिया था, मोहितबिल्कुल ठीक हो गया था,
एक दिन,
मेरे पास उनके साढूका फ़ोन आया, अक्षिता ने डाइवोर्सफाइल कर दिया था, और इस तरह आपसी सहमती से, कानूनी प्रक्रिया से तलाक मंजूर हो गया!
अक्षिता का क्याहुआ? क्या उसने अपने प्रेमी से विवाह किया या नहीं, ये मुझे पता नहींचला, और न मैंजानना चाहता था,मैंने अपना धर्म निभाया था, जो मैंकर सकता था वो किया, मोहित कीजान बच गयी थी, इस का मुझे संतोष था,
आज मोहित साड़ी पुरानी बातेंछोड़ के अपने बिजनेस मेंमशगलू हैं परिचित से मालमू पड़ा हैकीउसकीशादी कीकहीं दुबारा बात चल निकली हैं!
शानदार आगाज गुरुदेव।