मैं वहीं रुका रहा आधा घंटा कम से कम! और तब, एक एक करके, वे नौ के नौ वहाँ आते चले गए, सभी के सभी किसी न किसी चोट या दुर्घटना के शिकार ही थे, सभी के सभी! अनंत काल तक अटकने के लिए विवश थे! स्वीटी को गोद में उठाया हुआ था नुपुर ने! ये कुल नौ ही थे! मैंने दो बार पूछा था, और गुहार भी लायी थी, कि कोई और हो, तो अवश्य ही मिले, आये वहां, लेकिन और कोई नहीं आया था उधर!
"बस, अब सब समाप्त!" कहा मैंने,
हालांकि, मेरे ये शब्द उनके लिए कोई मायने तो रखते न थे, लेकिन मेरे शब्द उन्हें कुछ सुकून तो दे ही रहे थे! अब ये उनकी पसंद थी, कि वो स्वयं मांदलिया में आ जाएँ या फिर मैं ही उनको उठाऊँ! उन्होंने ज़्यादा बहस न की, शायद, उकता भी गए थे वे सभी, अपने इस भटकाव से! न कोई ओर और न कोई छोर! बहुत समय बीत चुका था! शेष कोई इच्छा बाकी न थी उनकी! मैंने कई बार पूछा, और फिर वे सभी एक एक कर, मांदलिया में प्रवेश करते गए! आज ये स्थान, निर्जन हुआ था!
हम अगले दिन रवाना हो गए, यमुना नदी के तट पर पहुँच कर, उनका विधान आरम्भ करवाया! ये विधान एक घंटे तक चला! वुर इस प्रकार, वे सभी एक एक करके, परमधाम की ओर अग्रसर हो गए! निमित्त भोज की क्रिया भी पूर्ण करवा दी! यही उद्देश्य था और उद्देश्य पूर्ण हो गया था!
इस संसार में, मानो तो सब अपने, और न मानो तो कोई किसी का नहीं! ये संसार, पहले भी था, आगे भी रहेगा! तो क्यों न कोई कार्य ऐसा कर ही जाएँ, जिसकी छाप सदियों तक न सही, कुछ वर्षों तक भी रहे, तो सौभाग्यशाली में गणना हो सके! ऐसा ही कुछ किया था मैंने! वे जहां भी हों, कुशल से हों!
साधुवाद!
