वर्ष २०११ भोपाल की ...
 
Notifications
Clear all

वर्ष २०११ भोपाल की एक घटना

17 Posts
2 Users
0 Likes
249 Views
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 12 months ago
Posts: 9487
Topic starter  

वर्ष २०११……शीत-ऋतु अपने पूर्ण यौवन पर थी, धुंध ऐसे प्रतीत हो रही थी कि जैसे बादल संघनित होकर भूमि का आलिंगन कर रहे हों! सर्वत्र धुंध ही धुंध और नथुनों में जाती उसकी एक विशिष्ट गंध! गाडी की रफ़्तार को जैसे काठ मार गया हो! मै शर्मा जी के साथ दिल्ली की तरफ बढे चला जा रहा था, हम लोग उस समय कानपुर से निकले थे उसी रात १० बजे! कानपुर में एक विवाह के अवसर पर मै यहाँ आया था, विवाह संपूर्ण हुआ तो हमने वापसी की राह पकड़ी थी, मंद-मंद गति से गाड़ियाँ बढ़ रही थीं, लगता था जैसे की कोई एक बड़ी सी तार में कुछ ज्योति-पुंज पिरो दिए गए हों और उनको इस सड़क पर बिछा दिया गया हो! गाड़ियों कि रफ़्तार कुछ ऐसी थी कि आप हलके-हलके किसी झूले का आनंद ले रहे हों! मै इसी कारणवश शर्मा जी की सीट के साथ से उठकर पीछे वाली सीट पर आ गया था! आँखें उनिंदा थीं, परन्तु नींद भी नहीं आ रही थी, कभी नींद या झपकी आती भी तो या तो एक दम रुकने से, या गाडी की खिड़की के अन्दर आती सड़क किनारे लगे हेलोजन के खम्बो की तेज रौशनी बंद पलकों के रक्तिम आवरण का रंग बदल देती थी!

मुझे झपकी लगी ही थी की गाडी रुकने की वजह से फिर से आँखें खुल गयीं, बाहर झाँका तो शर्मा जी ने सड़क किनारे के एक ढाबे पर गाडी रोकी थी, वहाँ कुछ एक गाड़ियां और खड़ी थीं, कुछ एक ट्रक और एक दो और पेट्रोल-टैंकर्स! मै गाडी से उतरा, शर्मा जी भी उतरे, गाडी को लॉक किया और हम दोनों ढाबे के अन्दर चले गए! अन्दर भी ठण्ड असर मौजूद था, लोग कम्बल लिए, खेस लिए बुक्कल मारे बैठे थे, शर्मा जी ने २ चाय लाने के लिए कहा और हम वहाँ रखी कुर्सिओं पर बैठ गए! कुर्सियां ओंस के मारे कड़ी हुई पड़ी थीं, अब जब टिक गए सो टिक गए!

चाय आई, पहले तो चाय के गिलास हाथ में आते ही हाथों को तपन का एह्साह बेहद बढ़िया लगा! फिर हमने चाय पीना शुरू किया, मैंने घडी पर नज़र दौड़ाई तो सुबह के ४ बजे थे, दिल्ली अभी भी १०० किलोमीटर से अधिक दूर थी, हमने चाय ख़तम की और इधर शर्मा जी ने एक सिगरेट सुलगा ली, वो अपना धुआं छोड़ने में मस्त थे और मै इधर आस-पास के लोगों को देखने में! सभी ठण्ड के असर से मार खाए हुए दिख रहे थे, और अपने-अपने तरीके से ठण्ड से बचने में लगे थे!

शर्मा जी ने सिगरेट ख़तम की तो हम पैसे देकर फिर से गाडी में आ बैठे! गाडी में गर्मी का एक एहसास था! मै इस बार पीछे की सीट से उठकर शर्मा जी के साथ वाली सीट पर आ बैठा! हम


   
Quote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 12 months ago
Posts: 9487
Topic starter  

फिर से लम्बी कतार में अपनी जगह बना कर, कतार में शामिल हो गए! और फिर धीरे-धीरे रेंगने लगे!

करीब ४ घंटे के बाद हमने दिल्ली में प्रवेश किया! वही भीड़-भाड़, वही क्रंदन और वही तेज भागती इंसानी जिंदगी! सड़क पर भी एक दूसरे को पीछे छोड़ने की होड़! खैर, हम ९ बजे तक अपने स्थान पर आ चुके थे! जब हम वहाँ आये तो भी सूर्य-देव ने आँख-मिचौली खेलनी नहीं छोड़ी थी, कभी आते कभी जाते! शर्मा जी चूंकि ड्राइविंग करके आये थे तो थकावट उनके केवल चेहरे पर ही नहीं वरन शरीर से भी झलक रही थी! उन्होंने देर नहीं लगाई! फ़ौरन ही अपने गरम कपडे उतार के बिस्तर पर गिरे और रजाई तान कर सो गए! इतने में मै भी नित्य-कर्मों से फारिग होने चला गया! वापिस आया तो मै भी बिस्तर में घुस गया और रजाई में मुंह ढांप कर सो गया!

जब नींद खुली तो ढाई बज रहे थे, मैंने चाय का प्रबंध करवाया, हम दोनों ने चाय पी और हल्का-फुल्का नाश्ता किया! नाश्ता कर लेने के पश्चात शर्मा जी बोले, "गुरु जी, आज तो कहीं जाना है नहीं? आप भी आराम कीजिये, मै एक दो काम निबटा लेता हूँ, घर जाऊँगा, अगर कोई काम पड़ता है तो बुला लीजियेगा"

"ठीक है, वैसे कोई काम नहीं है आज" मैंने कहा,

"ठीक है गुरु जी, आज्ञा दें अब, मै चलता हूँ" वो बोले

"ठीक है, आप पहुँचिये" मैंने कहा,

और फिर शर्मा जी वहाँ से निकल गए!

रात कोई १० बजे शर्मा जी का फ़ोन आया, उन्होंने बताया "भोपाल से राकेश साहू का फ़ोन आया था, आपसे मिलने आ रहा है वो, सुबह कोई १० बजे पहुँच जाएगा, और मै उसको स्टेशन से लेकर आपके पास आ जाऊँगा"

"ठीक है, आप ले आइये उनको, सुबह मुलाक़ात हो जायेगी"

ये राकेश साहू हमारे एक बेहद करीबी और हंसमुख व्यक्ति थे, रहने वाले बीना के थे, लेकिन अब भोपाल जा बसे थे, वहाँ उन्होंने अपने दोनों लड़कों को बिल्डिंग-मटेरियल का काम खुलवा दिया था, काम चल निकला था, कभी-कभार साहू साहब भी वहाँ देखभाल कर लिया करते थे! कुल मिला के उनको जिंदगी आराम से कट रही थी, हो सकता है कि मिलने ही आ रहे हों, ऐसा मैंने सोचा!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 12 months ago
Posts: 9487
Topic starter  

सुबह कोई साढ़े १० बजे शर्मा जी राकेश साहू को लेकर मेरे पास आ गए! नमस्कार वगैरह हुई, हाल-चाल पूछा गया! साहू साहब के लिए चाय आ गयी! हम तीनों ने चाय पी और मैंने फिर साहू से पूछा, "और सुनाइये साहू साहब, क्या चल रहा है वहाँ? बेटे तो ठीक है?"

साहू थोडा चुप रहे फिर बोलना शुरू किया, "गुरु जी, आपको कुछ बताने और कुछ पूछने आया हूँ यहाँ!"

"हाँ हाँ बताइए?" मैंने कहा,

"गुरु जी, आपको तो पता है, मेरे दो लड़के हैं, बड़ा गिरीश और छोटा जतिन, दोनों ही काम संभालते हैं अब वहां, गुरु जी, ये जो मेरा छोटा लड़का है, ये किसी गुरु के चक्कर में आया था आज से २ साल पहले, वो गुरु अपने आपको सिद्ध और बंगाल से आया हुआ बताया करता था, मै उसको अधिक तवज्जो नहीं देता था और न ही गिरीश, लेकिन जतिन उसके प्रभाव में था, कहना चाइये के पूरे प्रभाव में, अभी १ साल पहले जतिन कि शादी हुई है, लेकिन लगता है कि जतिन को वो लड़की बिलकुल या तो पसंद नहीं है या फिर कोई ऐसी बात है, जो जतिन हमसे बताता नहीं, उसकी पत्नी नीलिमा काफी सुशील और सुन्स्कृत परिवार से है, लेकिन अब वो भी ४ महीनों से अपनी सास से ये कह रही है कि जतिन बदले-बदले से हैं, उस पर ध्यान नहीं देते और अपने में ही खोये-खोये रहते हैं, मुझे भी पता चला है कि, वो सच में ही उस पर ध्यान नहीं देता, न कहीं ले जाता, न कभी उसको कहीं घुमाने-फिराने को कहता है, देखिये गुरु जी, ये नया ज़माना है, यहाँ लडकियां आजकल किसी से कम नहीं, बराबर का हक है, अभी ५ दिन पहले कि बात है, जतिन पूरे दिन दिनों तक रात को घर नहीं आया, हाँ दूकान पर आता है, लेकिन घर नहीं, जब मैंने उस से ये पूछा तो उसने कहा कि वो अपने गुरु के साथ कहीं किसी पूजा में जाता है, इसीलिए वो रात को घर नहीं आता, बड़ी अजीब सी बात है! और जब उसकी बीवी ने उस से ये पूछा, तो उसने डांट के ये कह दिया कि वो उस से दूर ही रहे तो अच्छा है! ये नीलिमा से बर्दाश्त नहीं हुआ और वो गुस्से में अपने घर चली गयी है, लेकिन जतिन को इस से कोई असर नहीं पड़ा, बल्कि उसने तो यहाँ तक कहा कि ठीक है वो अपने घर में ही रहे तो उसके लिए ठीक ही है............................ ..........अब फिर से वो रात को घर नहीं आता, पिछली रात आया था लेकिन फिर सुबह जल्दी चला गया, अब उसका क्या किया जाए गुरु जी? उधर नीलिमा के पिता जी का भी फ़ोन आ रहा है कि जतिन को समझाइये! मै इसीलिए आया हूँ आपके पास, कोई रास्ता सुझाइए आप"

इतना कह के साहू साहब चुप हो गए,

"जतिन का वो कथित गुरु है कौन? मैंने पूछा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 12 months ago
Posts: 9487
Topic starter  

"अपने आपको औघड़ श्यामा कहता है वो, कहता है बंगाल से आया हूँ, सबको पछाड़ने के बाद!" साहू ने बताया,

"अच्छा! क्या आप मिले हैं उस से?" शर्मा जी ने कौतुहल से पूछा,

"हाँ एक बार मिला था उस से कोई ८-९ महीने पहले, जतिन के साथ आया था, दुकान की शुद्धि करने"

साहू बोले,

"कैसा दीखता है वो?" शर्मा जी ने पूछा,

"जी गंजा रहता है, छाती तक मालाएं पहनता है, और बाजू-बंद की तो गिनती ही नहीं!" वो बोले,

"और रहता कहाँ है?" शर्मा जी ने पूछा,

वहीँ एक झुग्गी-झोंपड़ी में रहता है, एक बंगाली चेला है उसका, उसी के यहाँ रहता है" उन्होंने बताया,

"लेकिन ये जतिन उसके संपर्क में आया कैसे?" अब मैंने पूछा,

"एक बार जतिन अपने किसी दोस्त के पिता जी के अंतिम संस्कार में गया था, तब ये श्यामा औघड़ इसको मिला था, उसने जतिन से कोई बात की और ये उसी दिन से उसका भक्त बन गया, कोई डेढ़ दो साल हो गए होंगे" साहू ने बताया,

"क्या किसी ने उसको रोका नहीं? मेरा मतलब उसके बड़े भाई, आपकी धर्मपत्नी आदि ने?" मैंने पूछा,

"कई बार मन किया, लेकिन वो नहीं मानता, कहता ही की घर छोड़ सकता है लेकिन अपने गुरु को नहीं छोड़ेगा" साहू ने बताया,

"दुकान के हिसाब-किताब में कैसा है?" शर्मा जी ने पूछा,

"वहाँ भी गड़बड़ करता है, वहाँ का पैसा भी ये अपने गुरु को दान कर रहा है" साहू बोला,

"अच्छा" शर्मा जी ने कहा,

"उम्र क्या होगी इस औघड़ की? मैंने सवाल किया,

"यही कोई ५०-५५ साल तो होगी ही" साहू ने जवाब दिया,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 12 months ago
Posts: 9487
Topic starter  

"ठीक ही, मै देखता हूँ क्या किया जा सकता है" मैंने कहा,

साहू ने उसी दिन की रिजर्वेशन करा रखी थी, वापिस भी जाना था, अभी कोई ४ घंटे बचे थे, मैंने साहू को आराम करने की सलाह दी और अन्दर भेज दिया, और उनके लिए खाना भी भिजवा दिया,

अब शर्मा जी ने मुझसे सवाल किया? "गुरु जी, समझ में नहीं आया, एक औघड़ यदि किसी महिला के साथ ऐसा करे तो युक्तिपूर्ण लगता भी है लेकिन वो इस जतिन के पीछे पड़ा है, क्यों? कोई पैसा-वैसा ऐंठने का मामला तो नहीं है ये?"

"हो भी सकता है, लेकिन अगर पैसा ऐंठने की ही बात होती तो वो उसको रातों को नहीं बुलाता शर्मा जी!" मैंने जवाब दिया,

"तो फिर क्या वजह हो सकती है?" उन्होंने फिर सवाल किया,

"दो कारण हो सकते हैं, पहला कि उस कथित औघड़ में जतिन को कोई लालच दिया हो और दूसरा वो जतिन को मोहरा बना कर अपना कोई काम सिद्ध कर रहा हो!" मैंने जवाब दिया,

"हाँ, ये संभव लगता है, इसका मतलब मामला गंभीर है" उन्होंने कहा,

"हाँ, और आज रात मै अलख में ये जानने का प्रयत्न करूँगा" मैंने कहा,

"ठीक है, तो फिर मै साहू को छोड़ कर, वापिस यहीं आ जाऊँगा गुरु जी!" वो बोले,

"ठीक है शर्मा जी" मैंने जवाब दिया!

कोई ४ घंटे बाद साहू को हमने आश्वासन दिया और शर्मा जी उसको छोड़ने स्टेशन चले गए.............. शर्मा जी साहू को छोड़कर आ गए थे, ठीक रात एक बजे मै अलख में बैठा, 'सामान' शर्मा जी ले आये थे, मैंने अलख उठायी, भोग दिया और फिर अपना एक कारिन्दा हाज़िर किया! वो हाज़िर हुआ, मैंने उसको बताया कि क्या जानकारी लानी है, वो गया और २ मिनट में आ गया! उसने बताया, कि वो औघड़ अभी एक नहर किनारे जतिन और एक औरत को लेकर बैठा है, ये औरत भी एक गुनिया है और जतिन वहाँ लेटा हुआ है, वो आगे जाके सुन नहीं सका कि क्या हो रहा है वहां, उसने भी अपनी अलख उठा रखी है, उसकी शक्तियां भी वहाँ मौजूद हैं, वो सच में ही एक औघड़ है! ये बता के कारिन्दा वापिस चला गया! जाने से पहले अपना भोग ले गया था! कारिन्दा जितना कर सकता था उतना उसने किया था! आगे उसके बस की बात नहीं थी, ये बस खबरी होते हैं,खबर देना ही इनका काम है! अब मैंने उस औघड़ को जांचने की सोची! मैंने एक आसुरिक-कन्या निशंका प्रकट करवाई, उसको उसका


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 12 months ago
Posts: 9487
Topic starter  

उद्देश्य बताया, वो चिंघाड़ती हुई उठी और एक दम फुर्र से उड़ चली, कोई १० मिनट के बाद वो आपिस आई! उसने जो खबर दी वो अत्यंत भयानक थी! उसके अनुसार--

ये औघड़ दुर्गापुर का रहने वाला था, नाम था बाबा फक्कड़ नाथ! एक हठ-योगी करत्री का प्रधान चेला था, गुरु की मृत्यु के बाद वहाँ दो खंड हो गए थे, इस में फक्कड़ नाथ हार गया था, अतः उसको स्थान छोड़ना पड़ा, लेकिन उसने कसम खायी थी, की वो इस हार का बदला लेगा, वो उसको हराने वाले औघड़ बाबा बटुक को हराएगा और वहाँ अपना झंडा गाड़ेगा! इस घटना को २ वर्ष हो चुके थे, उसने कुछ सोचा था, सोचा था कि वो वज्र-घंटा यक्षिणी को प्रसन्न करना चाहता था! उसके लिए ऐसे किसी पुरुष का रक्त और वीर्य चाहिए था जो मजबूत देह वाला, २७-२८ वर्ष कि उम्र वाला, अतिकाम वाला, जिसका ब्याह हुए एक या सवा-वर्ष ही हुआ हो! इसीलिए इसने जतिन को चुना था!

ये औघड़ अपने प्रपंच में आधा तो सफल हो चुका था, आने वाली अमावस में ११ दिन शेष थे, और वो इन्ही ११ दिनों में साधना करता था! जतिन उसके वश में था ही, स्त्री का प्रबंध उसने कर ही लिया था, थोडा लालच देकर! वो बहुत सही तरीके से और सटीक निर्णय ले रहा था, उसने जतिन और उसकी बीवी में कलह करा दी थी, और नीलिमा को उसके घर भेज दिया था!

अब हमारे पास समय कम था, मैंने शर्मा जी को सारी स्थिति से अवगत कराया! उनको भी इस प्रपंच पर बड़ी हैरत हुई! मैंने तभी कहा, "शर्मा जी आप आज ही साहू को फ़ोन कर दो, हम आज ही भोपाल आ रहे हैं!"

"मै कहे देता हूँ गुरु जी" शर्मा जी ने कहा,

तब शर्मा जी उठे और मै अपनी आवश्यक तैयारी करने में लग गया! मुझे तैयारी करते करते सुबह के ५ बज गए! फिर में सोने चला गया, सुबह १० बजे उठा, नहाया धोया, शर्मा जी ने टिकेट बुक करवा दिए थे, साहू को खबर कर दी गयी थी!

मैंने सारी तैयार करने के बाद एक अभिमंत्रित-खंजर शर्मा जी को दिया और उनको कुछ समझा दिया,वो समझ गए, उसके बाद हम अपने सामान कि पैकिंग करने में जुट गए, एक एक पल कीमती था, एक मासूम एक औघड़ के प्रतिशोध का शिकार होने वाला था और हमे उसको बचाना था हर कीमत पर!

हम स्टेशन पहुंचे, गाडी में बैठे और साहू को ये बता दिया कि हम गाडी में बैठ चुके हैं, गाडी में शर्मा जी ने एक बात पूछी, "गुरु जी, अभी तो उस औघड़ को पता नहीं है कि कोई उसको रोकने आ रहा है, लेकिन जब उसे पता चलेगा तो वो भी प्रतिक्रिया करेगा!"


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 12 months ago
Posts: 9487
Topic starter  

"हाँ, वो अवश्य करेगा!" मैंने हंस के कहा,

"तो इस से जतिन पर क्या असर पड़ेगा? क्यूंकि वो जतिन को छोड़ना नहीं चाहता, और हम जतिन को छुडाने जा रहा हैं!" उन्होंने कहाँ,

"हाँ लेकिन पहले मुझे जतिन को उसकी पहुँच से निकालना होगा, उसकी ८१ दिनों की साधना विफल होगी, वो भड़केगा, बस यही समय होगा उसको ठंडा करने का! मैंने जवाब दिया! हम भोपाल पहुंचे, साहू और उनका बड़ा बेटा गिरीश हमको लेने स्टेशन पहुँच गए थे, नमस्कार आदि से अभिवादन हुआ, गिरीश ने हमारा सामान उठा कर गाडी में रखा और हम वहाँ से साहू के घर की तरफ चल पड़े, रास्ते में साहू ने बताया कि जतिन अब रात को नहीं आता, दिन में कभी-कभार आता है, बड़े भाई से लड़-झगड़ कर पैसे ले जाता है, मन-मर्जी से घर आता है, फिर बिना किसी को बताये चला जाता है, और नीलिमा के बारे में तो उसने अभी तक कुछ पूछा भी नहीं! मै जानता था, कि जतिन स्वयं अपने वश में भी नहीं है, वो वही सब कर रहा है जो उस से वो औघड़ करवा रहा है, मैंने साहू से कहा, " साहू साहब, अब हम आ गए हैं, देखते है कि क्या माजरा है, ऐसा क्यूँ हो रहा है उसके साथ"

"बस गुरु जी अब आपका ही सहारा है" साहू ने हाथ जोड़ कर कहा,

तकरीबन पौने घंटे बाद हम साहू के घर पहुँच गए, साहू का घर काफी एकांत में था और लड़कों कि शादी के बाद साहू ने अपना पुराना मकान बेच कर ये नया मकान खरीदा था, मैंने साहू को एक अलग कमरा देना को कहा, गिरीश ने वो कमरा हमको दे दिया, गिरीश ने अपनी पत्नी को चाय के लिए कहा और थोड़ी देर बाद चाय आगई, चाय पीने के बाद मै नहाने गया फिर शर्मा जी, उन्होंने खाने के लिए पूछा तो मैंने खाना बाद में काहने को कह दिया!

अब मै कमरे में गया, अपना सामान निकाला, ये मुकाबला किसी प्रेत, महाप्रेत, जिन्न आदि का न होकर एक प्रबल औघड़ से था, वो भी औघड़ था, सारी विद्याएँ जानता था, जो औघड़ वज्र-घंटा यक्षिणी को प्रसन्न करना चाहता हो वो सच में ही एक प्रबल औघड़ होने का सूचक था!

वज्र-घंटा यक्षिणी अति-तीक्ष्ण यक्षिणी मानी जाती है, इसकी साधना समय औघड़ को प्रत्येक पल अपनी जान जाने का भय रहता है, वो कहीं चूक न हो इसके लिए पहले से ही सावधान रहता है, अपनी दूसरी शक्तियों से वो स्वयं को घेरे रहता है, रक्षा-सूत्र में बंधा रहता है, उसका भेदन अत्यंत मुश्किल होता है! यदि कोई भी औघड़ अपनी अलख के सामे किसी से भी भिड़ जाए तो विजय अवश्य ही प्राप्त करता है अब चाहे सामने कोई सी भी कैसी भी शक्ति उसके सामने हो! और, ये औघड़ तो प्रतिशोध कि अग्नि में झुलस रहा था! ये किसी से भी भिड़ने को तैयार था!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 12 months ago
Posts: 9487
Topic starter  

मुझे हर क़दम सावधानी से उठाना था, मैंने अपनी शक्तियों का आह्वान किया, उनको जांचा-परखा! और चुन-चुन के उनका चुनाव किया! मैंने शर्मा जी को भी अभि-मन्त्रण से

सशक्त किया, और उनके साथ ४ पहरेदार तैनात कर दिए! परन्तु उनका ध्यान रखना भी मेरा प्रथम उद्देश्य था! रात गहराई, ११ बजे, जतिन आज फिर नहीं आया था, मै अब औघड़ की साधना में व्यवधान डालना चाहता था! मैंने एक आसुरिक-शक्ति का आह्वान किया! और उसे वहाँ रवाना कर दिया! उसने औघड़ के जब चक्कर लगाए तो उसने अपने त्रिशूल की नोंक उसको दिखाई! विघ्न पड़ गया था! औघड़ खड़ा हुआ, उसने अपने पात्र से रक्त निकाला और इस आसुरिक-शक्ति पर दे मारा! वो शक्ति लोप हो गयी! लेकिन वो औघड़ अब भांप गया था!! वो ये जान गया था कि कोई है जो उसकी इस साधना के विषय में जान चुका है! औघड़ अब क्रोध में आ गया था!! उसने सोचा भी नहीं था की कोई उसका रास्त रोकेगा! मै शर्मा जी के साथ उस कमरे में बैठा क्रियाएं कर रहा था और वहाँ भी दृष्टि जमाये बैठा था, उस औघड़ ने अपना चारों तरफ देखा फिर आकाश में देखा, उसने अपना त्रिशूल अग्नि में डाल कर मंत्र पढने लगा! मै समझ गया की वो 'भेदन-क्रिया मंत्र' का जाप कर रहा है, मैंने भी प्रति-भेदन मंत्र पढना शुरू किया, उस औघड़ ने अब अपना त्रिशूल अग्नि में से निकाल कर रक्त के थाल में डाला और पूरब दिशा में छिड़क दिया! जब तक मै अपने प्रति-भेदन मंत्र का जाप पुरा करता, रक्त के छींटे हमारे पूरे कमरे में फ़ैल गए! ये उस औघड़ की चेतावनी थी हमको! मैंने प्रति-भेदन मंत्र का जाप कर अपने त्रिशूल को आकाश में ताना और मंत्र-प्रहार किया! मंत्र-प्रहार होते ही रक्त के छींटे कमरे से गायब हो गए! वहां औघड़ का त्रिशूल हाथ से छूट गया! वो समझ गया की किसी ने प्रति-भेदन का प्रयोग किया है! औघड़ बौखला गया! उसने फिर से त्रिशूल उठाया, और ज़मीन पैर एक वृत्त खींचा और मंत्र पढ़ते हुए उसके अन्दर कूद गया! और चिल्लाया ' तू जो भी है, तेरा मै सर्वनाश कर दूंगा!' और ये कह के वो मंत्र-जाप में मग्न हो गया! मै समझ गया की अब ये अपना प्रहार करेगा, मुझे स्वयं भी संभालना था और शर्मा जी को भी संभालना था! मैंने एक ढाल-मंत्र का जाप करते हुए, अपने और शर्मा जी के ऊपर एक ढाल ढँक दी, अभी कुछ देर तक, जब मै उसकी क्रिया का जवाब देता, का समय मिल जाता!

वो औघड़ खड़ा हुआ, उसने ज़मीन पे थूका तीन बार, फिर अपना पेशाब लेकर उसने मिट्टी को आटे की तरह से गूंथा, मै समझ गया वो अमोघ-मारण क्रिया करने वाला है! फिर उस औघड़ ने उस गुंथी हुई मिट्टी को एक मानव-आकृति का रूप दिया! और अपना हाथ चीर कर उसके मुख पैर रक्त की धरा छोड़ दी! फिर उसने एक मंत्र पढ़कर उस आकृति में अपना त्रिशूल घोंप दिया! 'भड़ाम' की आवाज़ हुई वहाँ और यहाँ मै और शर्मा जी इस आघात से एक दूसरे से पहले टकराए फिर कोई १० फीट दूर जा गिरे! उसने फिर से त्रिशूल निकाला और एक बार फिर आघात किया! इस बार फिर आवाज़ हुई, अब की मै और शर्मा जी फिर से धडाम गिरे! मैंने


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 12 months ago
Posts: 9487
Topic starter  

तभी उसके तीसरे प्रहार को रोकने के लिए, अपना त्रिशूल लिया और एक चाक़ू से अपना अंगूठा चीर कर उसके मध्य-खंड पर डाल दिया! अब औघड़ ने त्रिशूल निकाला और फिर से मंत्र पढ़कर प्रहार किया, लेकिन अबकी बार वो उछला और करीब ५ फीट हवा में उछला और नीचे गिरा, नीचे गिरते ही उठा और वो जतिन की तरफ भागा! उसने जतिन के बन्ध खोलने शुरू किये, मैंने फिर से एक बार फिर प्रहार किया! औघड़ का त्रिशूल हाथ से गिरा और रक्त के थाल में गिरा और वो थाल अलख में गिरा, अलख में गिरते ही वो औघड़ जतिन को छोड़ अपना त्रिशूल लेने भागा! उसने त्रिशूल उठाया, भयानक क्रोध में उसने एक शक्ति प्रकट की, अपने बाएं पटल की एक लट तोड़ी और अलख में फेंक दी! उसने उस शक्ति को हमारे पास भेजा, मैंने उसकी शक्ति को रास्ते में रोका तो मेरी शक्ति उसके आगे क्षीण पड़ने लगी! जैसे मै उसको देख रहा था, वैसे वो भी मुझ पर नज़र बनाए रख रहा था, मैंने तभी महा-प्रलापी का आह्वान किया, महा-प्रलापी प्रकट हुई, उसने उसकी भेजी शक्ति को वापस किया, लेकिन इस बीच वो जतिन के बंधन खोलने में सफल हो गया! जतिन के बंधन खुलते ही, उसने स्तम्भ्कारी शक्ति का प्रयोग किया और वहाँ सब कुछ शांत हो गया, अब न वो कुछ कर रहा था न मै! उस रात हमने काफी मुकाबला किया था उस प्रबल औघड़ का! मैंने तब शर्मा जी से कहा," शर्मा जी, अगर हम इस घर में रहे तो हमारी जान के साथ साथ यहाँ रहने वालों की भी जान को खतरा है, हमे यहाँ से जाना होगा, जहां मै अलख जला सकूँ, आज वो औघड़ भारी पड़ा हम पर क्यूंकि मेरे पास यहाँ साधन नहीं हैं, आप ये सारी बातें आज ही साहू को बता दो,बोलना की उसका लड़का जिंदगी और मौत के बीच फंसा हुआ है, और उसको कहो की अगर वो किसी शमशान में प्रबंध करा सकता है तो ठीक है, नहीं तो शर्मा जी, आप यहाँ भोपाल में सुल्हड़ बाबा को बोलना, कहना मैंने कहा है, वो प्रबंध करा देगा, आने वाली रात को ये औघड़ पूरी तैयारी से आएगा"

"ठीक है मै अभी बताता हूँ, आप ठहरिये" बोलके शर्मा जी उठे और साहू को बुला कर बातें करने लगे,

बोले, "साहू ने कहा की सारा सामान आ जाएगा, लेकिन शमशान के लिए उनके पास कोई संपर्क नहीं है, तो मैंने उनको फिर मना कर दिया"

"ठीक है, आप सुबह सुल्हड़ से बात कर लेना" मैंने कहा,

"शर्मा जी, आप साहू के साथ नीचे जाइए, उसका एक कपडा ले आइये, और हाँ ये ज़रूर समझाना की कल रात ११ बजे के बाद घर से कोई भी बाहर न निकले, सही से समझाना आप"

"ठीक है, मै अभी आता हूँ" ये कह कर वो फिर चले गये,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 12 months ago
Posts: 9487
Topic starter  

साहू को सारी बातें बता कर शर्मा जी मेरे पास आ गए, मैंने कहा, "शर्मा जी जो मै कहता हूँ वो आप साहू से कह के कल दिन में मंगा लीजिये"

"बोलिए गुरु जी" वो बोले और पेन जेब से निकाल कर कागज़ पर नोट करने लगे,

मैंने कहा, "एक काला बकरा, ५ काले देसी मुर्गे, सवा किलो साबुत उड़द की दाल, एक नया कुल्हाड़ा, तीन रंग के फूलों की २१ मालाएं, एक बड़ा थाल, एक बड़ा चाक़ू या चापड़, लाल सिन्दूर, ५ काली चुन्नियाँ, ३ बोतल शराब! ये मुझे कल दोपहर तक मिल जानी चाहियें! सारा सामान!"

"जी ठीक है गुरु जी" शर्मा जी ने कहा,

शर्मा जी ने ये सामान लिखा और साहू को बताने फिर चले गए, मुझे आज रात क्रिया करनी थी, इसीलिए मैंने शर्मा जी के अतिरिक और किसी को अन्दर आने से मना कर दिया, मैंने सुबह ९ बजे तक क्रिया ज़ारी रखी, सारी तैयारियां कर लीं!

दोपहर तक सारा सामान आ गया, सिवाय बकरे और मुर्गों के, वो सीधे सुल्हड़ के ठिकाने पर पहुँच दिए जायेंगे, ऐसा साहू ने बताया, शर्मा जी ने सुल्हड़ बाबा को बता दिया था की आज रात वो उनके ठिकाने पर क्रिया करने आयेंगे!

हम ठीक ८ बजे सुल्हड़ के पास पहुँच गए, सुल्हड़ वहीँ मिला, हमारा इंतज़ार करता हुआ, नमस्ते वगैरह हुई और मै शर्मा जी के साथ अन्दर चला गया, गिरीश के लाये बकरे और मुर्गों को भी सुल्हड़ के सेवकों ने अन्दर भिजवा दिया..................... मै अन्दर गया शर्मा जी के साथ, वहाँ सारा सामान रखा, फिर हम नहाने गए, नहाने के बाद हमने अपने पूजा--स्थल को साफ़ किया, कीलन किया, कीड़ा-काँटा-शूल भंजन किया, एक बर्तन में चिता-भस्म डाली, फिर पूर्णतया नग्न हो गए, मैंने फिर अपने त्रिशूल से शर्मा जी के पूरे शरीर को रक्षा-आवरण से ढक दिया, और फिर मैंने भी अपना त्रिशूल लिया और वही क्रिया अपने ऊपर दोहराई, मैंने फिर पूजा स्थल पर एक मंत्र पढ़ कर एक मुर्गे की बलि दी, उसके रक्त भस्म में मिला कर लेही की तरह मिश्रण बनाया गया, फिर मैंने और शर्मा जी ने अपने शरीर के हर अंग को इस से सुसज्जित किया! उस मुर्गे के कटे सर की दोनों आँखों में धागा पिरोकर एक माला तैयार की और उसमे एक शक्ति का वास करा कर शर्मा जी के गले में डाल दी, फिर मैंने दूसरा मुर्गा लिया और एक एक करके चारों मुर्गे बलि चढ़ा दिए, अब मैंने अलख तैयार की, अलख भड़की और मैंने मंत्राहुती कर अलख को नमस्कार किया! मुगे के कटे सर से ४ मालाएं और बनायीं, एक स्वयं, शक्ति-वास कराके धारण की और बाकी तीन अपनी अलख के तीनों तरफ चढ़ा दीं! अब मुर्गों के पंख छीले और सामग्री के लिए वहीँ ढेरी बना के रख लिए! उनका मान अलख के पास


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 12 months ago
Posts: 9487
Topic starter  

रखा, उनकी कलेजी निकल कर एक माला बनायी और अपनी अधिष्ठात्री का आह्वान कर धारण कर ली!

फिर मैंने एक चाक़ू लेकर अपनी दोनों पिंडलियों का रक्त निकाला, एक सकोरे में रखा, फिर शर्मा जी से ऐसा ही करने को कहा, उन्होंने भी ऐसा ही किया, रक्त निकाल कर एक सकोरे में अपने आगे रख लिया!

इसके बाद मैंने बकरे का पूजन किया उसका एक कान का टुकड़ा काटा और अलख में डाल दिया, और फिर एक ही झटके में बकरे की बलि दे दी, खून का फव्वारा छूटा , मेरी समस्त शक्तियों ने गडगड़ाहट की! मैंने फिर कुल्हाड़े से उसके चारों पाँव काट के अलख के आगे रख दिए! और उसकी जुबां काट कर अपनी माला में पिरो ली! मैं अब मगन हुआ अपनी शक्तियों को जागृत करने के लिए, वो एक एक करके मेरे ऊपर सवारी करने लगीं! मै अपनी माला में पिरोये हुई बकरे की जुबां को अपने रक्त के सकोरे में डुबोता और उस शक्ति का मंत्र पढता जाता! कोई कोई शक्ति मुझे इतने आवेग से आहत करती की मै नीचे गिर जाता तो शर्मा जी मुझे उठा लेते! मुझमे शक्ति संचार हो गया! मैंने वहाँ पड़े दो कच्चे मुर्गे अलख में सेंके और एक शर्मा जी को दिया और एक स्वयं खाने लगे! ये महा-प्रसाद था शक्तियों को खुश करने के लिए!

जब हम निबटे तो मैंने अपने सामान से एक कपाल निकाला, मंत्र पढ़े, उसने मदिरा डाली और पी गया! शर्मा जी को भी ऐसा करना था, मैंने उनको वो कपाल पकडाया और मदिरा भोग लिया उन्होंने भी!

वहाँ वो औघड़ भी आज पूरी तैयारी के साथ आया था, आज वो अपने एक चेले को भी लाया था, लेकिन आज वहां जतिन नहीं था! औघड़ आके बैठा! चेले ने अलख उठा दी थी! उसने अलख में शुरू का एक मंत्र पढ़ते ही अपने रक्त कि बूँदें टपका दीं! ये मेरे लिए काम कर गया! ये औघड़ 'कौलिक-तंत्र' का औघड़ था! वाह! मै हंसा जैसे कि किसी खजाने कि चाभी मिल गयी हो! उसको दिखाने के लिए मैंने अपनी जुबां को छेद के अलख में अपना रक्त टपकाया! उस औघड़ कि भृकुटियाँ तन गयीं! वो भी समझ गया, ये उस औघड़ और मुझ औघड़ के बीच का युद्ध नहीं ये कौलिक और कपालछेदन का युद्ध था!

उसने ज़मीन पर एक वर्ग खींचा, और उसमे मानव-अस्थि के नौ टुकड़े डाले, फिर गौर से देखा और एक टुकड़ा उठाया, उस पर थूका और फिर चाट लिया, यानि कि उसने मुझे ये बताया कि आज एक ही जिंदा रहेगा या तो वो या मै!

उसने एक शराब की बोतल निकाली, आधी गटक गया, और बाकी में अपना पेशाब भर दिया!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 12 months ago
Posts: 9487
Topic starter  

मैंने अपनी एक बोतल निकाली और मैंने आधी गटकी और बाकी में अपना हाथ काट के रक्त मिला दिया!

वो औघड़ चिल्लाया, 'जय प्रचंड-माद्रे! जय प्रचंडमाद्रे'

मै भी चिल्लाया, ' जय रूद्र-माद्रे! भुवन रूद्र-माद्रे!

वो औघड़ हंसा और हँसते हँसते खड़ा हुआ! और फिर बैठ गया!

उसने अपने चेले को बुलाया और उस से बोरे में से कुछ लाने को कहा, उसका चेले ने बोरा खोला और उसमे से एक धाधल-कछुआ निकाला! फिर उसने उसको उल्टा किया और उस पर बैठ के शक्ति-संचारण करने लगा!

मै ये जानता था कि वो धाधल-कछुआ अवश्य ही निकालेगा! क्यूंकि इन कौलिक औघड़ों में शक्ति-संचारण इसी के द्वारा होता है! वो उस पर से हटा और कछुए कि गर्दन अपने चाक़ू से काट दी! कटी गर्दन उसने अलख में डाल दी! और फिर उस कछुए का रक्त एक बर्तन में इकठ्ठा किआ और कछुए को भूनने लगा!

तब मै खड़ा हुआ, बकरे के दो भाग किये, बकरे का कलेजा लिया और उसका सारा रक्त पी गया, फिर मैंने वो कलेजा अपने त्रिशूल पर टांग दिया! फिर मैंने अपना मूत्र एक खाली बोतल में डाला और अपने चारों ओर एक घेरा बना दिया!

औघड़ समझ गया कि आज मुकाबला बराबर वाले से है! उसने एक समझदार औघड़ होने का परिचय दिया, उसने अपना त्रिशूल ज़मीन से उखाड़ कर उसके फाल ज़मीन में गाड़ दिए! इसका अर्थ था कि मै अगर चाहूँ तो उसकी इस वज्र-घंटा साधना में शामिल हो सकता हूँ, आधा फल मुझे भी मिलेगा!

मैंने तब अपना त्रिशूल उखाड़ा और उसको फिर दुबारा गाड़ दिया! इसका अर्थ था कि प्रस्ताव मैंने ठुकरा दिया! तब उसने अपनी एक लट तोड़ी और अग्नि-भेंट कर दी, मैंने भी ऐसा ही किया, लेकिन अग्नि भेंट करने से पहले मैंने उसको मुंह में रख के ११ बार अपने थूक से गीला किया था! ये देख वो औघड़ क्रोध में आ गया! उसने एक शक्ति प्रकट की और मेरे पास भेजी! मैंने उस शक्ति का सम्मान किया उस शक्ति ने मेरा नाम पूछा, मेरी उम्र पूछी, मैंने जवाब दे दिया और मैं उसको सम्मान सहित भेज दिया! उस औघड़ ने जब ये सुना तो एक जोर का अट्टहास लगाया! अब मैंने अपनी शक्ति वहाँ भेजी, उस औघड़ ने वो शक्ति पकड़ ली! उसे नहीं छोड़ा! और उसको अपनी नाभि में स्थापित कर दिया! मुझे क्रोध आया, मैंने प्रचंड-रुपी सर्प कन्या प्रकट कि और वहाँ भेज दी, औघड़ समझ नहीं पाया और मेरी उस सर्प-कन्या ने उसको नीचे गिराया, वो उठा


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 12 months ago
Posts: 9487
Topic starter  

और अपने मंत्र से उसने उसको भी क़ैद कर लिया! मुझे काटो तो खून नहीं! वो हंसा और अट्टहास किया!

मै नहीं चाहता था कि पहला वार मै करूँ, उसकी जब शक्ति आई तो मैंने उसको सम्मान देकर वापिस भेज दिया था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया! शर्मा जी तब बोले, "गुरु जी, ब्रह्म-उच्चाटन प्रयोग करो, ये मुझे आदमी खतरनाक लग रहा है!"

मैंने कहा, " घबराओ मत! ये साले कौलिक दीखते बड़े हैं लेकिन शर्मा जी, ये मेरे सामने भीख मांगेगा!"

उस औघड़ ने एक माया-काया को उत्पन्न किया! उसके स्तनों से दूध पिया! माया-काया ने उसको आशीर्वाद दिया और मदमत्त होकर नाचने लगी! उसकी माया-काया भयानक रूप में नृत्य कर रही थी, और वो औघड़ अट्टहास लगाए जा रहा था, मैंने महा-प्रलापी प्रकट की और उसको भेज दिया! उसने जाते ही माया-काया को भेद डाला! माया-काया लोप हो गयी! औघड़ का मुंह खुला रह गया! महा-प्रलापी ने औघड़ और उसके चेले को एक ऐसा प्रहार किया कि दोनों वहाँ से दूर जा गिरे! औघड़ उठा और खुद को संभाला, और फिर से अपने आसन पर आके बैठ गया! उसने भुना हुआ कछुए का मांस निकाला और उस मांस को अभिमंत्रित किया! उसने महा-चंडालिनी का आह्वान किया और जोर जोर से अट्टहास किया! जो औघड़ महा-चंडालिनी को प्रकट कर सके उसका दर्ज़ा तंत्र में ऊंचा होता है, इस औघड़ ने उसको प्रकट कराके मुझे ये दिखा दिया था! मैंने तब अपने यहाँ पड़े बकरे के अंडकोष चाक़ू से काटे, उनको अभिमंत्रित किया और मैंने महा-चांडाल को प्रकट किया! उसके प्रकट होते ही उस औघड़ के रोंगटे खड़े हो गए! दो रौद्र-शक्तियां भक्षण हेतु तत्पर थीं! जिसकी शक्ति लोप हो जायेगी ,वो दूसरे के झोली में गिर जायेगी! लेकिन उस औघड़ ने महा-चंडालिनी को नहीं भेजा उसको हाथ जोड़ के वापिस भेज दिया! मैंने भी हाथ जोड़ कर भूमि-स्पर्श कर महा-चांडाल को वापिस भेजा! तब उस औघड़ ने एक मानव-अस्थि को अभी-मंत्रित किया, उसको अलख में त्रिशूल को नोंक पर फंसा कर शक्ति-पात किया! मुझे जबतक समझ आता तब तक मेरे पूजा स्थल पर मानव देह के कटे फटे अंग बरसात के रूप मे आके गिरे! हाथ, पाँव, आँखें, जिगर, गुर्दे, आंतें उनका मेद मेरे यहाँ आके भर गया! मुझे क्रोध आया, मैंने अलख की ठंडी राख ली, अभी-मंत्रित की, अपने रक्त के सकोरे में डुबो कर, एक चुटकी बना कर आकाश में फेंक दी! मानव-अंग लोप हो गए और उनसे टपकता मेद भी! ये देख औघड़ चौंका! मैंने तब अपने सामान से एक नपुंसक मनुष्य कि हड्डी निकाली, और उसकी चिता की भस्म भी! खड़े हो कर उनका अभी-मन्त्रण किया! और औघड़ के स्थान हेतु फेंक मारी! औघड़ के पास, इसका कोई जवाब नही था, वहाँ चिता कि जलती भस्म की बारिश हो गयी! जले हुए अंग वहां गिरने लगे! मैंने जान-बूझकर नपुंसक व्यक्ति की हड्डी और चिता भस्म ली थी इसकी काट केवल इसी से संभव थी! लेकिन


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 12 months ago
Posts: 9487
Topic starter  

उस कौलिक-औघड़ ने भस्मासुरी-विद्या प्रयोग किया और वो बरसात थम गई! मै इस औघड़ कि शक्ति का लोहा मान गया! अगर इसके सामने कोई और होता तो ये उसके अनगिनत टुकड़े कर देता!

उसने भस्मासुरी को हमारे ऊपर वार करने भेजा! मैंने शीघ्र ही कात्री-विद्या का प्रयोग किया! वो भस्मासुरी धूम्र रूप में आकाश से मेरे समक्ष प्रकट हुई! पूरी वहाँ की ज़मीन हिला दी! मेरी कात्री विद्या ने उसकी दिशा मोड़ी और भस्मासुरी सीधे आकाश की ओर रवाना हो गयी! कात्री-विद्या से आने वाली मारण-शक्ति को प्रतिबिम्ब-गंतव्य दिखा दिया जाता है और वो अपने लक्ष्य कि ओर भयानक गर्जना करती ही बढती चली जाती है, ये प्रतिबिम्ब-गंतव्य सदैव उसे सम्मुख ही रहता है और उसको नष्ट किये बिना वो कोई दूसरा अभिमन्त्रण नहीं स्वीकार करती! इस औघड़ कि मैंने ये भस्मासुरी उस से विमुख कर दी थी!

इतने पर भी वो औघड़ घबराया नहीं! हाँ, चकित अवश्य था! वो खड़ा हुआ और नृत्य-मुद्रा में अपने पाँव पटके उसने तब भूमि पर त्रिशूल-प्रहार कर ९ कापालिक-कन्याएं उत्पन्न कीं, और उनको हमारे स्थान की ओर भेज दिया! मैंने तब बकरे के वो चारों पाँव अलख में डाले और उन जलते हुए पांवों की दुर्गन्ध में एक अभि-मन्त्रण किया! मैंने ४ कुंचक-डाकिनियों का आह्वान किया! अपने मुंह चौडाये वो उत्पन्न हुईं और मैंने उसको इशारे से वहाँ भेज दिया! कापालिक-कन्याएं वापिस भागीं!

औघड़ विस्मित हो गया! उसने अपने आसन पर अपना एकत्रित मूत्र छिड़क दिया और अपने और अपने चेले के ऊपर बिखेर दिया! डाकिनियों से भयानक अट्टहास किया! औघड़ आँखें फैला के उनको देखता रहा, उसने अपने को और अपने चेले को सुरक्षित कर लिए था! डाकिनियाँ वहाँ उनके प्राण लेने को डटी हुईं थीं, मूत्र सूखने से पहले उसको इनको प्रभावहीन करना था, नहीं तो अब उनका नाश निश्चित था!

उसने तब एक चाक़ू लेकर ज़मीन पर तीन बार थूक कर एक और अभि-मन्त्रण किया! उसने अपनी झोली में से मृत शिशु की कलेजी निकाली, और उसको चाक़ू से काट कर ४ भाग किये! उसने एक एक भाग अपने माथे पर छूकर अलख में समर्पित कर दिया! उसने ४ विलोचिनी-शाकिनियाँ उत्पन्न कर डालीं! अब विस्मित होने की बारी मेरी थी!

उसने उनको अपने त्रिशूल से इशारा किया और मेरी डाकिनियों के पीछे दौड़ा दिया! मेरी डाकिनियाँ वहाँ से भागीं! और मेरे समक्ष प्रकट हो गयीं! मैंने तभी विमोचिनी-शाकिनी का आह्वान किया,वो प्रकट हुई तो औघड़ की शाकिनियाँ वहाँ से भागीं, लेकिन उस औघड़ ने बचाव का रास्ता छोड़ रखा था! उसने अपने बचाव में कूष्मांडा-गणिका को प्रकट कर रखा था! मेरी विमोचिनी वहाँ से भाग खड़ी हुई! कूष्मांडा-गणिका का जो औघड़ आह्वान कर सकता है


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 12 months ago
Posts: 9487
Topic starter  

वो कुछ भी करने में समर्थ होता है! इस गणिका का प्रति-उत्तर एक गणिका से ही संभव था, मैंने आज पहली बार अपने दादा श्री प्रदत्त गणिका का प्रयोग करना था! या यूँ कहें कि करना पड़ रहा था! मैंने अपने शरीर के ११ अंगों का रक्त-लिया, उनको समस्त मांस के लिए हुए टुकड़ों पर छिड़का, अपने दोनों हाथों से एक स्त्री-आकृति बनायी और अपना त्रिशूल उसकी योनि-स्थल में प्रविष्ट करा दिया! भयानक आवाज़ हुई! धूमावती-महाविक्राला प्रकट हुई! उसकी चमक के आगे हमारी आँखें मिचमिचा गयीं! मैंने उनको शाष्टांग-नमस्कार किया और उनसे आँखें न मिलाते हुए, भूमि पर अपना प्रयोजन बता दिया! उन्होंने अपना त्रिशूल ऊपर किया और अपने गंतव्य की ओरे प्रस्थान कर गयीं! धूमावती-महाविक्राला को देख कूष्मांडा-गणिका लोप हो गयी! वो औघड़ और उसका चेला आसन छोड़ के भागे, यदि वे बहते पानी में शरण ले लें तो बचाव संभव था अन्यथा आज नाश अवश्यम्भावी है! औघड़ सीधे नहर की ओर भागा लेकिन बीच में ही धूमावती-महाबिक्राला ने उस पर आघात कर दिया! वो चिलाया ' क्षमा विकराला क्षमा!' और दोनों घुटनों पर बैठ गया! धूमावती-महाविक्राला उसका भक्षण करने को आतुर थीं, मैंने प्रार्थना की कि फक्कड़ नाथ को क्षमा कर दीजिये! मेरे आंसूं फूट पड़े! मैंने रोते-रोते क्षमा प्रार्थना की! तब धूमावती-महाविक्राला ने अट्टहास किया, औघड़ को देखा और उसकी समस्त शक्तियों का नाश कर दिया! फिर जाते जाते उनकी एक सहोदरी ने औघड़ के वक्ष पर लात मारी, उसकी पसलियाँ रीढ़ से अलग हो गयीं! उन्होंने भयानक अट्टहास किया और लोप हो गयीं!

सब ख़तम हो चुका था! मै जहाँ था वहीँ कि वहीँ गिर पड़ा, शर्मा जी और सुल्हड़ के सेवकों ने मुझे उठाया और अन्दर ले गए,

वहां, कोई दो घंटे के बाद उसके चेले को होश आया, उसने अपने गुरु की हालत देखी और फफक-फफक के रोने लगा! उसके गुरु ने ४० वर्षों की औघड़-साधना क्रोधावेश और प्रतिकारयुक्त मलिनता से खो दी थी! जतिन उसके स्थान पर ही था, जहां वो औघड़ उसको रख के आया था, जतिन का सम्मोहन टूटा, वो वहाँ से भाग के सीधा अपने घर आ गया! जतिन का सारा सम्मोहन भंग हो चुका था!

मै अगले दिन सुबह साहू के पास आया, जतिन ने मुझे देखा और मेरे पाँव पकड़ लिए! मैंने उसको समझाया कि गृहस्थ-निर्वाह से बढ़कर कुछ नहीं और वो नीलिमा से क्षमा मांगे! वो उसको क्षमा कर देगी!

साहू परिवार में खुशियाँ लौट आयीं! जाने से पहले मै उस औघड़ से मिलना चाहता था, मै उसके स्थान पर गया, वो पट्टियां लपेटे लेटा हुआ था, ५-६ लोग वहाँ खड़े थे, उन्होंने हमको रास्ता दिया! औघड़ उठा, और मुझ से दृष्टि मिलाई, उसकी आँखों से अश्रु-धारा फूटी लेकिन मुंह


   
ReplyQuote
Page 1 / 2
Share:
error: Content is protected !!
Scroll to Top