वर्ष २०११ दिल्ली की...
 
Notifications
Clear all

वर्ष २०११ दिल्ली की एक घटना

7 Posts
1 Users
0 Likes
113 Views
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 12 months ago
Posts: 9487
Topic starter  

मित्रगण! ये समस्त संसार अनवरत चलायमान है! और सदैव रहेगा! इस संसार में नित्य जन्म-मृत्यु चक्र निरंतर चलता रहता हैं! मनुष्य तो क्या सभी जीव! प्रत्येक जीव अपना योनि-भोग भ्रमण करता रहता है! इसी चक्र को रोकना और तदोपरान्त ब्रह्मलीन होना ही मोक्ष कहलाता है! तंत्र-मार्ग इस मोक्ष-प्राप्ति का तृतीय मार्ग है! खैर! ये एक अलग विषय है!

वर्ष १९८६ में कानपुर से आया एक परिवार दिल्ली में आ के बसा, काम भी जम गया, उनका काम साड़ियों का था, काम चल निकला, कालान्तर में पैसा आया तो एक मकान भी खरीद लिया उन्होंने बच्चों की पढाई भी सुचारू रूप से हुई, इन महाशय का नाम अशोक गुप्ता है, इनकी दो लडकियां हैं बड़ी, ब्याह योग्य, पढ़ाई खतम करके बड़ी लड़की अस्मिता ने एक नौकरी कर ली थी और छोटी, कंचन, ने एक कोर्स में दाखिल ले लिया था, लड़का अभी कॉलेज में पढ़ रहा है,

अस्मिता का किसी लड़के से प्रेम-प्रसंग हुआ, ये लड़का होशंगाबाद मध्य प्रदेश का था, नौकरी यहाँ करता था, नाम था विजय, अस्मिता और विजय के बीच काफी घनिष्ठता हो गयी थी, शादी के अरमान जागने लगे थे! लेकिन दोनों ही अपने अपने घर में बात करने से डरते थे! तो अब शादी कैसे हो? अस्मिता रूपवान, गेंहुए रंग की एक सुशील लड़की थी! और विजय भाई काफी अच्छा-खासा लड़का था! इसी पशोपेश में वे दोनों रहते! लेकिन कोई हल न निकलता! नित्य घर में बात करने के वायदे होते लेकिन घर जा के सांस अटक जाती थी! कारण ये था कि दोनों के परिवार रुढ़िवादी विचारधारा के पक्षधर थे! बात की भी जाती तो उत्तर स्पष्ट था!

अब क्या किया जाए? वो किसी से बात भी नहीं करते थे, समय गुजरता रहा, अस्मिता के रिश्ते आने लगे घर में, विजय को चिंता हई! अस्मिता बार बार विजय को बात करने को कहती लेकिन जैसे अस्मिता विवश थी, वैसे ही विजय भी विवश था! घर में बात करते ही अस्मिता का घर से बाहर निकलना बंद हो जाता! विजय से मिलना भी दूभर हो जाता!

असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो गयी और फिर ऐसे ही एक दिन दोनों से एक भारी गलती हो गयी! विजय और अस्मिता फरीदाबाद में रहने वाले एक तांत्रिक के पास चले गए, अपनी ये समस्या लेकर! इस तांत्रिक का नाम असगर था, असगर का पता विजय को उसके एक मित्र अमीन ने दिया था!

असगर ने दोनों की बात सुनी फिर कहा कि काम एक महीने में हो जाएगा, पैसे लगेंगे १५ हज़ार!

विजय ने पैसे दे दिए, असगर ने विजय से उसकी एक कमीज और अस्मिता से उसका एक अन्तःवस्त्र लाने को कहा! अगले दिन दोनों अपने अपने वस्त्र ले गए!


   
Quote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 12 months ago
Posts: 9487
Topic starter  

असगर ने अमल करना शुरू किया, उसने एक दिन विजय और अस्मिता को वहाँ बुलाया और उनके ऊपर भी अमल कर दिया!

अब असगर उनको दो दो दिनों के बाद बुलाने लगा! अमल का असर शुरू हुआ, दोनों अपने हाल से बेखबर हो गए! उसने उनके ऊपर अपने गुलामों कि रूह सवार करनी शुरू कर दी! और इस तरह दोनों ही उसके गुलाम बनते चले गए।

और एक दिन अस्मिता ने अपना सबसे कीमती आभूषण खो दिया! घर में अस्मिता अब अस्मिता न रही! वो किसी से बात न करती, कपडे अस्त-व्यस्त करके रहती, उलटी-सीधी बातें करतीं! और ऐसे ही वो विजय! दोनों की नौकरियां छूट गयीं!

थोडा समय बीता, विजय गंभीर रोग का शिकार हो गया, उसके परिजन उसको लेके वापिस घर चले गए, अस्मिता का इलाज चलता रहा, लेकिन कोई फर्क न हुआ, अस्मिता ने एक दिन असगर ने तय चाल के अनुसार अस्मिता के पिता की दूकान पर अपने दो चेले-चपाटों को भेज कर अस्मिता की स्थिति को ठीक करने हेतु उसी असगर का नाम सुझाया मरता क्या नहीं करता! ये भी असगर की चाल थी! वे उसको असगर के पास ले गए, पूरे ६ महीनों तक वो उसका शोषण करता रहा!

अस्मिता के माँ-बाप उस से पूछते तो वो कहता कि इलाज चल रहा है, १० जिन्नों का साया है, अगर नहीं माने तो इसको जान से मार देंगे!

अस्मिता के माँ-बाप इस हालत पर आंसू बहाते रहते! वो सत्य से अनभिज्ञ थे, उनको ज्ञात ही नहीं था कि असली कहानी है क्या! बेचारे! चिकित्सा में खर्च करते और असगर के ऊपर भी! दयनीय हालत थी उसकी!

तब उन्होंने मेरे एक परिचित श्रीमान राघव से बात की, राघव ने सारी बातें सुनीं और मुझे फोन किया विषय कन्या से सम्बंधित था, और वो भी अविवाहित और जैसे कि मुझे बताया गया कि उस पर जिन्नती साया है, ये मामला गंभीर लगा मुझे, मैंने राघव से कहा कि वो इनको लेके मेरे पास आ जाएँ फ़ौरन!

वो उसी दिन दोपहर बाद मेरे पास आ गए, सारा किस्सा बताया, मैंने गौर से एक एक बात सुनी एक बात अजीब लगी, अगर जिन्नाती साया है तो जिन्नात ने असगर को रोका क्यूँ नहीं इलाज करने में? या तो असगर ताक़तवर आदमी है या फिर नाटकबाज! मैंने अस्मिता के पिता से कहा, "ठीक है, मै कल आपके घर आता हूँ, देखता हूँ कहानी है क्या"

बेचारे अस्मिता के पिता के आंसू निकल आये! मैंने हिम्मत बंधाई उनकी! दिलासा दी कि काम हो जाएगा आप चिंता न करें!

मैंने सारी बात शर्मा जी को बताई, वो भी तैयार हो गए!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 12 months ago
Posts: 9487
Topic starter  

हम अगले दिन ११ बजे सुबह उनके घर पहुँच गए अस्मिता अपने कमरे में ही थी, चाय वगैरह आई, हमने चाय पी और मै, शर्मा जी और अस्मिता के पिता अन्दर अस्मिता के कमरे में गए! अस्मिता के चेहरे पर हवाइयां उड़ गयीं! मुंह फाड़ कर देखने लगी, मुंह से शब्द नहीं निकले! मै भांप गया! मैंने फौरन अपने खबीस हाज़िर किये और अस्मिता के पिता जी को बाहर भेज दिया!

मेरे खबीस डटकर खड़े हो गए! मैंने कहा, "अस्मिता!"

उसने आँखें फाड़ फाड़ के देखा! कभी मुझे, की मेरे ख़बीसों को! मैंने फिर आवाज़ दी, "अस्मिता!"

वो चुप बैठी रही जैसे सांप सूंघ गया हो! मैंने फिर कहा, "अस्मिता, अगर जवाब नहीं देगी तो ज़बरदस्ती जवाब देना पड़ेगा फिर तुझे! अब अपना नाम बता तू!"

"शबनम नाम है मेरा" उसने डर के कहा,

"अकेली है यहाँ?" मैंने पूछा,

"नहीं हम १४ हैं यहाँ" उसने कहा,

"किसने बिठाया?" मैंने कहा,

"असगर बाबा ने" उसने कहा,

"कौन असगर?" मैंने पूछा,

"फरीदाबाद वाले बाबा असगर" वो बोली,

"क्यूँ बिठाया उसने?" मैंने पूछा,

वो चुप हो गयी, मै आगे गया और उसके बाल पकड लिए! और बोला, "जवाब दे?"

"ये उसकी रखैल है" उसने कहा,

मैंने और शर्मा जी ने एक दूसरे को देखा!

"और कितनी रखैल हैं उस माँ******द की? मुझे अब गुस्सा आया,

"६ और हैं, ऐसी रखैल" उसने बताया!

"अब तुम्हे भी रखैल बना देता हूँ मैं इन ख़बीसों की, ठीक है?" मैंने कहा,

"नहीं! मै पाँव पडूं, हाथ जोडूं, हमे बख्श दो, हम तो उसके हुक्म की तामील करती हैं, इसमें हमारी क्या गलती?" उसने रोके

कहा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 12 months ago
Posts: 9487
Topic starter  

"तुम्हारा तो मै वो हाल करूंगा की आज के बाद बोलती बंद हो जायेगी तुम्हारी सब की!" मैंने कहा,

और तब मैंने अपने ख़बीसों से कह के उनको लात घूसों से पिटवा कर सभी को पकड़ के कैद करवा लिया!

अस्मिता ठीक हो गयी!

अब मैंने अस्मिता के पिता को बुलाया, लेकिन उनको बताया कुछ भी नहीं अभी!

अस्मिता तो ठीक हो गयी थी! मेरे ख़बीसों ने अस्मिता, असगर और विजय के बारे में सब बता दिया! लेकिन विजय का अभी भी कुछ पता नहीं था कि वो कैसा है?

मैंने अस्मिता के पिता को बुलाया, वो बेचारे रोते रोते, धन्यवाद करते, हाथ-पाँव जोड़ते आये, मैंने उनको समझाया! मैंने कहा, "आप इसको असगर के पास कब ले जायेंगे?"

"जी परसों, लेकिन अब तो ये ठीक हो गयी है, अब क्या आवश्यकता है गुरु जी?" वे बोले,

"आवश्यकता है, उसको सबक सिखाना है, जिंदगी भर तक का सबक!" मैंने कहा और शर्मा जी को इशारा किया कि वो सारी बात अब अस्मिता के पिता को बता दें!

शर्मा जी ने सारी बातें अस्मिता की, विजय की और असगर की बता दीं! उन पर और मुसीबतों का पहाड़ टूट गया! दोनों माँ और बाप बहुत रोये, अस्मिता के पिता बोले, "अब कौन ब्याह करेगा मेरी बेटी से गुरु जी?? कौन करेगा?"

"विजय! विजय करेगा और आपको मानना होगा!" मैंने कहा,

"मै तो उसके पाँव धो के पी जाऊँगा गुरु जी, आप कुछ करो, मेरी तो दुनिया तबाह हो गयी है। वो बेचारे बहुत रोये! शर्मा जी ने उनको हिम्मत बंधाई!

हम वहाँ से सारा कार्यक्रम बना के वापिस आ गए! कार्यक्रम ये था कि अबकी बार मै और शर्मा जी भी जायेंगे उनके साथ, जैसा हम कहें वैसा ही करना!

और फिर एक दिन के बाद मै और शर्मा जी उनको फरीदाबाद में मिले! वहाँ से हम असगर के पास चले! अस्मिता ने सारे रास्ते हमसे नज़रें नहीं उठायीं और ना ही कोई बात की!

हम फरीदाबाद कि एक छोटी सी बस्ती में पहुंचे, दूर कोने पर असगर का मकान था!

हम उतरे, असगर का चेला आया और मुझे शर्मा जी और अस्मिता के माँ-बाप को वहाँ रुकने को बोला, बताया गया कि मियाँ असगर मरीजों से अकेले में ही मिलते हैं!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 12 months ago
Posts: 9487
Topic starter  

मैंने उसके चेले को बुलाया और उससे कहा कि हम साथ अन्दर जायेंगे वो बहस करने लगा! तभी शर्मा जी आगे बढे और कस के उसके चेले के गाल पर एक चांटा जड़ दिया! चेला नीचे गिरा! शर्मा जी ने उसको उठाया और एक और दिया खींच के! चांटा नाक पर लगा, खून निकल आया! शर्मा जी उसको उसके गिरेबान से पकड़ कर अन्दर ले गए! और असगर को आवाज़ दी! असगर बाहर आया! अपने चेले का हाल देखकर सन्न रह गया! मैंने असगर का गिरेबान पकड़ा और कस के एक झापड़ दिया! साला नीचे गिरा! नीचे गिरे में ही मैंने उसके पेट, छाती, मुंह पर लातें मारी

"मर गया, मर गया, मैंने किया क्या है साहब ये तो बताओ?" वो हाथ जोड़ के बोला,

"अभी बताता हूँ मै तुझे कि तूने किया क्या है!" मैंने कहा और एक झापड़ और दिया उसे!

तब मैंने अस्मिता के पिता जी को बुलाया अन्दर अस्मिता के साथ, वो अन्दर आये!

"इस लड़की को पहचानता है तू?" मैंने उसकी गर्दन पकड़ते हुए कहा,

"हाँ जी, इस पर जिन्नात हैं" उसने कहा,

"गवाही देते हैं?" मैंने पूछा,

"हाँ जी" वो बोला,

"ज़रा मेरे सामने दिला गवाही?" मैंने कहा,

"अभी लो साहब" उसने कहा और अस्मिता के ऊपर अमल किया और उसको नीचे बिठाया, हम वहीं खड़े रहे,

वो काफी देर तक अमल करता रहा! अब अस्मिता में कोई हो तो गवाही देता ना!!

मैंने एक लात मारी उसकी छाती पे और बोला, " कमीन, ज़लील आदमी! तेरी वो रखैल मेरे पास कैद हैं, मेरे ख़बीसों के पास! तेरी वो शबनम!"

उसने सुना और उसके चेहरे का रंग उतर गया!

उसको गश आने लगा! मैंने फिर से एक लात उसके सर पर मारी!

मैंने कहा, "हरामी, तेरा मै क्या हाल करता हूँ तू देख आज! और तेरे इस चेले का भी!"

"तूने उस लड़के का क्या किया?" मैंने पूछा,

"कौन सा लड़का?" उसने पूछा,

"वही बेचारा लड़का जो इसके साथ आया था?" मैंने कहा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 12 months ago
Posts: 9487
Topic starter  

"कुछ नहीं किया मैंने" उसने कहा,

तभी मैंने उसके गाल पर एक झन्नाटेदार झापड़ जड़ा! अब वो बोलने लगा! बोला, "मैंने उसको फालिज डलवा दिया"

मैंने उसके बाल पकडे और दो तीन बार उसका सर हिलाया और मै फिर बोला, " उसने तेरा क्या बिगाड़ा था कमीन की औलाद!"

अब मैंने उसके चेले और असगर को अपने सामने एक तख्त पर बिठाया और तीक्ष्ण-मारण किया! अपनी जेब से भस्म निकाली और उन दोनों पर डाल दी! वो चिल्लाए, हाथ जोड़े और असगर बोला, "मुझे न मारो, मुझे न मारो, मेरे बच्चे छोटे हैं, मेरे बिना मर जायेंगे"

"सुन ज़लील इंसान! तुझे अगर पुलिस में दिया तो तू सजा काट के फिर आ जाएगा वापिस फिर यही घिनौने कामों को अंजाम देगा, जैसे आज तक देते आया है! तेरे जैसे इंसान को इस दुनिया में जीने का कोई हक नहीं, रही तेरे बच्चों की बात तो, तेरी औलाद तेरी हराम की कमाई न खाए इसीलिए तुझे मारने में ना कोई पाप है और न कोई गलती!" मैंने कहा,

अब मैंने तीक्ष्ण-मारण को गति दी, मारण का प्रभाव हुआ, थोड़ी ही देर में उन दोनों के चेहरे सूज गए, आँखें बंद हो गयीं, होंठ फूल गए! आने वाले ४८ घंटों में इनके शरीर का हर अंग काम करना बंद कर देगा, इस मारण को काटने के लिए एक सप्ताह का समय लगता है!

"चलो शर्मा जी, चलें यहाँ से, ये गलगल के गिरने वाले हैं" मैंने कहा,

हम वहाँ से वापिस आ गए, अस्मिता के घर पहुंचे तो शर्मा जी ने अस्मिता से विजय के घर का नंबर लिए, शर्मा जी ने भूमिका बांधते हुए विजय के घर बात की और विजय के साथ हुई सारी बात बता दी, विजय के परिजन मिलने को आतुर हो गए, हम उसी दिन होशंगाबाद रवाना हुए,

पहले हम भोपाल पहुंचे, विजय के परिजन हमे लेने यहाँ आये थे, उन्होंने बताया कि विजय की हालत बेहद नाजुक है, हम विजय के घर पहुंचे, उस पर भयानक फालिज का असर हुआ था, मैंने कुछ वस्तुएं मंगायीं, कुछ सामग्री और फिर फालिज का नाश कर दिया! विजय की फालिज ख़तम हो गयी, लेकिन शरीर अभी कमज़ोर था, अत: उसको एक महिना लगा संभलने मे, विजय के सकुशल होने पर उसके घरवालों ने हमे बेहद मान दिया, सम्मान किया! हम एक दिन बाद वहाँ से वापिस हो आये थे, करीब एक महीने बाद विजय अपने परिवार के साथ दिल्ली आया! अस्मिता और विजय ने एक दूसरे को देखा! मन में जाने-अनजाने भाव आये! शर्मा जी ने विजय से सारी बातें क्रम से पूछीं


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 12 months ago
Posts: 9487
Topic starter  

और फिर सब कुछ बता दिया! विजय ने इस होनी की वजह का कारण स्वयं को माना और फिर विवाह हेतु तैयार हो गया! एक दिन बाद दोनों की गोद भराई रसम पूर्ण हो गयी और फिर तीन महीनों के बाद विवाह!

मैं शर्मा जी साथ विवाह में शामिल हुआ! विवाह उचित प्रकार से संपन्न हो गया था! विजय और अस्मिता दाम्पत्य-जीवन के बंधन में बंध गए थे! सुबह-सुबह अस्मिता की डोली उठ चुकी थी ये सच में खुशी का अवसर था! अस्मिता के पिता और माता जी ने हमारा बहुत मान किया! रो रो के अपना हाल भी खराब कर लिया जब हमने भी उनसे विदा ली!

मैंने उनसे कहा, "परिवर्तन इस संसार का नियत नियम है! एक सदी के बाद दूसरी सदी तक परिवर्तन निरंतर चलते रहते हैं! अपनी सोच कभी दूसरों पर न लादिये, चाहें वे आपकी संतान ही क्यूँ न हों! अपने बच्चों का भविष्य कौन उज्जवल नहीं चाहता? परन्तु आम का पेड़ आम ही उत्पन्न करेगा, कोई अन्य फल नहीं! हाँ ये आप पर, बड़े होने के नाते, निर्भर करता है कि आम का फल किस प्रकार का हो! यदि आपने या विजय के परिवार ने इनके मन की इच्छा कभी जानी होती तो संभवत: ये समस्या कदापि ना होती! परन्तु! अंत भले का भला!"

हम वहाँ से आ गए! सुबह का समय था अत: शर्मा जी ने सड़क किनारे गाडी लगाई और २ गरमागरम चाय मंगा लीं

असगर और उसका चेला, किसी प्रकारसे अपने किसी गुरु से मिलने में सफल हो गए थे, उनके गुरु ने प्रयास किया काफी लेकिन कुछ न हो सका! उन दोनों के शरीर के मांस ने अस्थियाँ छोड़ दी थीं, ठीक तीसरे दिन उनको उनके किये कर्मों की सजा मिल गयी!

आज विजय दिल्ली में ही रह रहा है! अस्मिता के पिता मेरे पास अक्सर आते रहते हैं, अभी पिछली बार समाचार लाये थे कि वो जल्द ही नाना बनने वाले हैं!

------------------------------------------साधुवाद!--------------------------------------------

 

 


   
ReplyQuote
Share:
error: Content is protected !!
Scroll to Top